ख़तना: 'हराम की बोटी' कहकर लड़कियों का गुप्तांग का हिस्सा काट देते हैं

9 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने औरतों के ख़तने को लेकर काफ़ी सवाल उठाए.

सरवत फ़ातिमा सरवत फ़ातिमा
जुलाई 10, 2018
खतने से पीड़ित औरतों की लगातार कोशिशों के बाद अब ये बात सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई है. फ़ोटो कर्टसी: Reute

हमें लगता है कि ख़तना आमतौर पर लड़कों का होता है. कुछ साल पहले तक मुझे भी ऐसा ही लगता था. करीब 4-5 साल पहले मैंने एक किताब पढ़ी. 'प्रिंसेस'. ये किताब सच्ची घटनाओं पर आधारित है. इसे सऊदी अरब के शाही परिवार की एक राजकुमारी ने लिखा है. अमरीकी राइटर जीन सैसन की मदद से. यह किताब सऊदी में रहने वाली मुस्लिम महिलाओं के बारे में है. पर ये सिर्फ़ सऊदी में नहीं होता. हिंदुस्तान में भी होता है.

हिंदुस्तान में कौन करता है औरतों का ख़तना?

भारत में एक कम्युनिटी है दाऊदी बोहरा. यह शिया मुस्लिम समुदाय का एक हिस्सा है. इनमें लड़कियों का खतना होता है. 2017 में एक अंग्रेजी अखबार ने ऑनलाइन सर्वे किया था. उसके मुताबिक इस कम्युनिटी की 98% औरतों ने माना था की उनका खतना हुआ है. और 81% औरतों ने कहा था कि ये बंद होना चाहिए.

एक महिला हैं मासूमा रनाल्वी. उन्होंने महिलाओं के ख़तने के खिलाफ एक कैंपेन स्टार्ट किया था. कुछ वक़्त पहले, मासूमा ने हमारे प्रधामंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को इसके बारे में एक चिट्ठी भी लिखी थी. वो चाहती थीं कि मोदी यह प्रथा ख़त्म करवाने में महिलाओं की मदद करें.

भारत में एक कम्युनिटी है दाऊदी बोहरा. लड़कियों का खतना इनमें होता है. फ़ोटो कर्टसी: Reuters भारत में एक कम्युनिटी है दाऊदी बोहरा. लड़कियों का खतना इनमें होता है. फ़ोटो कर्टसी: Reuters

कैसे होता है औरतों का खतना

मुस्लिम और यहूदी समुदाय में बचपन में ही लड़को के लिंग के आगे की खाल काट दी जाती है. पर यह तो हुई लड़कों की बात. लड़कियों में उनका क्लिटरिस काटा जाता है. यह एक ऐसा अंग है जिसके बारे में लोगों को बहुत ही कम जानकारी है. यहां तक कि क्लिटरिस के लिए आम भाषा में कोई शब्द ही नहीं है. हां, संस्कृत में इसे भग्न-शिश्न कहते हैं. यह खाल का एक छोटा सा टुकड़ा होता है जो लड़कियों के वल्वा (जिन्हें हा वजाइना के लिप्स यानी बाहरी भाग कहते हैं) के ठीक ऊपर होता है.

यह बहुत ही दर्दनाक प्रथा है.

ख़तने के क्या नुकसान हैं?

ख़तना काफ़ी छोटी उम्र में ही हो जाता है. इस वजह से छोटी-छोटी बच्चियां महीनों तक दर्द से तड़पती रहती हैं.

डॉ. माला खन्ना एक स्त्रीरोग विशेषज्ञ हैं. दिल्ली में प्रैक्टिस करती हैं. उन्होंने बताया कि ख़तने की वजह से पेशाब करने में बहुत तकलीफ होती है. अलग-अलग प्रकार के इन्फेक्शन हो जाते है. सिस्ट यानी गांठे हो जाती हैं. यहां तक कि जब वो बच्चे को जन्म देने वाली होती हैं तो उन्हें काफी गंभीर दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

अब जब इस प्रथा के इतने नुकसान हैं, तो इसे करते ही क्यों है?

वजह सुनकर आपको और भी अजीब लगेगा. माना जाते है कि अगर लड़कियों का क्लिटरिस काट दिया जाए तो वो सेक्सुअली एक्साइट नहीं होगी. शादी से पहले उनका सेक्स करने का मन नहीं करेगा. वो वर्जिन और ‘साफ़’ रहेंगी.

एक महिला हैं मासूमा रनाल्वी. उन्होंने महिलाओं के ख़तने के खिलाफ एक कैंपेन स्टार्ट किया था. फ़ोटो कर्टसी: Reuters एक महिला हैं मासूमा रनाल्वी. उन्होंने महिलाओं के ख़तने के खिलाफ एक कैंपेन स्टार्ट किया था. फ़ोटो कर्टसी: Reuters

पर क्या ये सच है?

ये सच नहीं है. साइंस इस फैक्ट को पूरी तरह से नकारता है. फिर भी लडकियों का खतना दुनिया के कई हिस्सों में होता है जैसे बहुत सारे अफ्रीकन देशो में, मिडिल ईस्ट में, रूस में, पाकिस्तान और हिंदुस्तान में.

खतने से पीड़ित औरतों की लगातार कोशिशों के बाद अब ये बात सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई है.

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने औरतों के ख़तने के बारे में?

9 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने औरतों के ख़तने को लेकर काफ़ी सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि ये बच्चियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. केंद्र सरकार की बात रखने के लिए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल वहां मौजूद थे. जजों की बेंच के मुखिया थे चीफ़ जस्टिस दीपक मिश्रा. वेणुगोपाल ने कोर्ट को बताया कि कैसे ये ख़तना लड़कियों को नुकसान पहुंचाता है और इसे बैन कर देना चाहिए.

इसपर अगली सुनवाई 16 जुलाई को है. फ़ोटो कर्टसी: Reuters इसपर अगली सुनवाई 16 जुलाई को है. फ़ोटो कर्टसी: Reuters

एक मुस्लिम ग्रुप की तरफ़ से सीनियर एडवोकेट एएम सिंघवी कोर्ट में मौजूद थे. उन्होंने कहा ये मामला संवैधानिक पीठ (constitution bench) के पास जाना चाहिए क्योंकि ख़तना मुस्लिम समुदाय की एक ज़रूरी प्रथा है. इसकी धार्मिक वैल्यू है.

इसपर अगली सुनवाई 16 जुलाई को है.

यूनाइटेड नेशंस का इसपर क्या कहना है?

सबसे ज़्यादा डराने वाली बात ये है कि यूनाइटेड नेशंस के मुताबिक अगर इस प्रथा को रोका नहीं गया तो 2030 तक 6.8 करोड़ लड़कियों का खतना हो चुका होगा. और ये उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.

हम तो यही दुआ करेंगे कि हर उस देश में जहां बच्चियों का खतना होता है, उनकी सरकारें इसपर रोक लगाएं. ताकि कोई छोटी बच्ची बिना सर-पैर की प्रथा के चलते बेवजह दर्द से न तड़पे.

 

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