अंग्रेज रानी सुश्री विक्टोरिया जिनकी वजह से आज इंडिया में लड़ाई छिड़ी हुई है
उन्हीं के राज में ब्रिटेन ने सबसे ज्यादा देशों को गुलाम बनाया
कोलकाता में एक मशहूर इमारत है- विक्टोरिया मेमोरियल. ब्रिटेन की रानी क्वीन विक्टोरिया के नाम पर है. संगमरमर से बनी भव्य इमारत है. इसी देश के कारीगरों ने बनाई. खून पसीना एक करके. इस इमारत के भीतर एक प्लाक लगा हुआ है. प्लाक बोले तो पत्थर/मेटल की तख्ती. उस पर लिखा है कि 1877 में विक्टोरिया को ‘एम्प्रेस ऑफ इंडिया’ यानी भारत की महारानी का पद दिया जाता है. इसे वो बेहद सप्रेम स्वीकार भी करती हैं. भारत के बाशिंदों को ‘माई सब्जेक्ट्स’ यानी अपनी प्रजा कहकर संबोधित करती हैं. इस तख्ती पर उनका स्टेटमेंट लिखा है. जब मेमोरियल जाएं, देखें और पढ़ें ज़रूर.
विक्टोरिया मेमोरियल. कोलकाता. वेस्ट बंगाल. फोटो: Getty Images हालांकि जब विक्टोरिया ने ये बात कही थी, तब तक विक्टोरिया मेमोरियल बना नहीं था. 1901 में उनकी मौत के बाद 1906 में इसका कंस्ट्रक्शन शुरु हुआ था.
कौन थी ये रानी विक्टोरिया?
सेक्शन 377 पर बहस चल रही है अभी देश में. उसमें कहा जा रहा है कि ये एक विक्टोरियन एरा का कानून है. 1861 में बना कानून जब भारत में लागू हुआ, उस समय ब्रिटेन और आयरलैंड की रानी थी क्वीन विक्टोरिया. उनका राज 64 साल तक चला था. 1837 से लेकर 1901 में उनकी मृत्यु तक. यही समय था जिसे कहा गया विक्टोरियन एरा.
क्वीन विक्टोरिया का रिकॉर्ड तोड़ा क्वीन एलिज़ाबेथ 2 ने. 2015 में उन्हें 65 साल हो गए राज करते हुए. फोटो: Getty Images काफी रसूख वाली रानी थीं. 1819 में पैदा हुईं तो पांचवें नंबर पर थीं, ब्रिटिश राज का तख़्त पाने की लाइन में. 18 साल की होते ही उनके पहले के सभी लोग भगवान को प्यारे हो गए, और विक्टोरिया लाइन में सबसे आगे. 1837 में रानी बन गईं. ड्राइंग और पेंटिंग का शौक था. डायरी भी लिखती थीं. रोज़, बिना नागा. अपने पति से बहुत प्यार करती थीं. 42 साल कि उम्र में वो भी गुज़र गए. शोक इतना मनाया कि उसके बाद पूरी ज़िन्दगी सिर्फ काले कपड़े ही पहने.
क्वीन विक्टोरिया की ताजपोशी इन कपड़ों में हुई थी. फोटो: Getty Images बेंजामिन डिजरायली उनके करीबी मंत्री थे. उन्होंने धीरे-धीरे रानी को सामान्य किया. दुख परे रख कर राज-काज चलाना शुरू करने में मदद की. उनकी जान लेने की कई बार कोशिश हुई . हर बार बच निकलीं, इस बता ने उनकी इमेज एक सख्त जान की बना दी. विदेश में उनकी धाक इतनी थी, कि जर्मनी के राजा को एक चिट्ठी लिखकर उन्होंने दूसरा फ्रांस-जर्मनी युद्ध टलवा दिया था.
पति की मौत के बाद उन्होंने सिर्फ काले कपड़े पहने थे.फोटो: Getty Images उनके राज का नाम इसलिए भी बहुत पॉपुलर है क्योंकि उन्हीं के राज में ब्रिटेन ने सबसे ज्यादा देशों को गुलाम बनाया. उनके राज में अंग्रेज इतनी दूर-दूर तक फ़ैल गए कि उनके 50 से भी ज्यादा ग़ुलाम देश बन गए. उसी समय कई चीज़ें अंग्रेज अपने साथ लेकर आए. उन सभी चीज़ों ने भारत ही नहीं, बल्कि ब्रिटेन के सभी ग़ुलाम देशों के ऊपर इतना गहरा असर डाला कि वो उससे कभी उबर ही नहीं पाए. ये सभी देश एक साथ कॉमनवेल्थ कहलाए. ये नाम आपने गेम्स में सुना होगा. कॉमनवेल्थ गेम्स. ये खेल उन देशों के बीच होते हैं जो ब्रिटेन के ग़ुलाम रह चुके थे. यानी कॉमनवेल्थ का हिस्सा रह चुके थे.
क्वीन की एक पुरानी तस्वीर. फोटो: Getty Images चूंकि विक्टोरियन एरा में काफी देश ग़ुलाम बने ब्रिटेन के, ब्रिटेन की मोरालिटी (नैतिकता) और सही गलत की परिभाषा सब कुछ उन देशों पर भी हावी हुए. जैसे नेटिव (मूल निवासी) अमेरिकन लोगों को श्वेत लोगों ने ग़ुलाम बनाया, उन पर अत्याचार किया, और उन्हें अपने तरीके से ‘सभ्य’ बनाने की कोशिश की. ब्रिटेन ने भी वही चीज़ अपने ग़ुलाम देशों के साथ की. अपने तरीके से उनको सभ्य बनाने की कोशिश की. विक्टोरिया के समय की जो चीज़ें भारत में आईं, वो अभी तक हमारे बीच ही हैं. इसलिए वो चीज़ें जाननी ज़रूरी हैं. बेहद ज़रूरी हैं.
विक्टोरियन नैतिकता अपने आप में एक बहुत बड़ा हिस्सा रहा है इतिहास का. फोटो: Getty Images - नैतिकता के साथ आए कपड़े. औरतों के ब्लाउज विक्टोरियन कपड़ों की समझ की देन हैं. उससे पहले औरतें ब्लाउज नहीं पहना करती थीं.
- औरतों को देवी या वेश्या के बस दो रूपों तक समेट देने का कांसेप्ट भी उसी समय चलन में आया. भारत की संस्कृति में वेश्याएं / गणिकाएं तौर तरीके और तहजीब सिखाने के लिए मशहूर मानी जाती थीं. बड़े बड़े ज़मींदार, राजा, और नवाब अपने लड़कों को उनके पास ये सभी चीज़ें सीखने के लिए भेजा करते थे. विक्टोरियन नैतिकता ने इसे एक शर्मनाक पेशा बना दिया.
- देसी चीज़ों को हेय नज़र से देखने का कॉम्प्लेक्स इसी समय में उभरा. हाथ से खाना गन्दी बात मानी जाने लगी. हर चीज़ छुरी कांटे से खाने का चलन एलीट और सभ्य माना जाने लगा. इसी की देन है कि आज लोग डोसा और समोसा भी छुरी कांटे से खाते हुए देखे जा सकते हैं.
राजपरिवार के नाम को विक्टोरिया ने पूरी दुनिया में फैला दिया. फोटो: Getty Images - औरतों को प्रॉपर्टी और वोटिंग का अधिकार नहीं दिया गया था. शादी के बाद पत्नी की सारी प्रॉपर्टी उसके पति की हो जाती थी. डाइवोर्स यानी तलाक लें अ बहुत ही मुश्किल था, और तलाकशुदा औरत को समाज में स्वीकार नहीं किया जाता था. इसके सुबूत आज भी देखे जा सकते हैं.
- मर्दों का भी बहुत नुकसान किया इस समय के चाल चलन ने. भारत में शास्त्रीय नृत्य औरतें और पुरुष दोनों ही किया करते हैं. जब ब्रिटिश आए, वो अपने साथ औरतों और मर्दों के बीच एक बेहद अलग इमेज लेकर आए. उनके लिए पुरुषों का कला और भावनाओं से कोई लेना देना नहीं था. ये औरतों से जुड़ी चीज़ें थीं. भौंहें नचाते और कमर मटकाते पुरुष उनको नागवार गुज़रे. इस वजह से एक पूरा नृत्य का तरीका बदलाव से गुज़र गया.
रानी के ताजपोशी वाले दिन की एक फोटो. फोटो: Getty Images - रंग रूप और शरीर को लेकर भी इस समय ने ग़ुलाम देशों में हीनभावना इतना कूट कूट कर भरी कि दशकों बाद भी वो हमारी रगों में दौड़ रही है. गोरा होना खूबसूरती का पर्याय हो गया. कुदरती रूप से सांवले, कम ऊंचे, शारीरिक बनावट में छोटे भारतीय लोगों के ऊपर इमेज का ऐसा भार आन पड़ा कि वो उसे ही अपनी सबसे बड़ी कमी समझ बैठे. किसी का फायदा हुआ, तो मार्केट का. जिसने गोरा करने वाली क्रीमें बेचीं. वज़न घटाने वाली गोलियां बेचीं.
- जितनी भी परीकथाएँ लिखीं गईं उन्होंने एक ख़ास इमेज में स्त्री पुरुष के मेटाफर का प्रयोग करते हुए पूरब और पश्चिम को डिफाइन कर दिया. पूरब स्त्री है, कमज़ोर, बेवकूफ़ सी, जिसे अपना अच्छा, भला-बुरा, सही-गलत कुछ भी पता नहीं है. पश्चिम समझदार और ताकतवर पुरुष है, जो पूरब को बचाएगा. उसको लायक बनाएगा. हर परीकथा में नाज़ुक सी राजकुमारी को बचाने एक प्रिंस चार्मिंग/राजकुमार आता है. जिसके बिना किसी का कुछ नहीं हो सकता.
घुड़सवारी करती रानी विक्टोरिया की पेंटिंग. फोटो: Getty Images
खुद रानी विक्टोरिया ने कुछ नहीं किया. लेकिन उनके राज में हो रही इन सब चीज़ों ने ग़ुलाम देशों का भविष्य कुछ इस तरह से आकार दिया कि आज तक वो इस से पीछा छुड़ाने की कोशिश कर रहे हैं. सेक्शन 377 तो एक उदाहरण है जो हमारे सामने आ गया. लेकिन कई ऐसी बातें हैं जिनका बोझ हम ढोए जा रहे हैं और हमें इस बात का आभास भी नहीं होता. एक असल ग़ुलाम वही होता है जिसे अपनी गुलामी का आभास भी न हो.
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