उन्नाव रेप केस: सुप्रीम कोर्ट ने मामला दिल्ली तो ट्रांसफर कर दिया लेकिन खर्चा कौन उठाएगा?

पीड़ित लड़की के अकाउंट में तुरंत 25 लाख रुपये डालने का आदेश.

अभिषेक कुमार अभिषेक कुमार
अगस्त 01, 2019
कोर्ट ने मामले को 45 दिन में निबटाने के आदेश दिए है

सुप्रीम कोर्ट में उन्नाव रेप मामले पर सुनवाई हुई. चीफ जस्टिस ने उस चिट्ठी पर सुनवाई की जो उन्हें 12 जुलाई को पीड़िता की तरफ से लिखी गई थी. मामले पर सुनवाई करते हुए सीजेआई रंजन गोगोई ने यूपी सरकार को निर्देश दिए कि पीड़िता और उसके परिवार को पूर्ण रूप से सुरक्षा मुहैया कराई जाए. साथ ही सरकार को निर्देश दिए कि पीड़िता के अकाउंट में तुरंत 25 लाख रुपये ट्रांसफर किये जाएं.

इस मामले में आरोपी विधायक कुलदीप सेंगर हैं, जिनका प्रभाव केस पर पड़ सकता है. इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने पीड़िता से जुड़े पांचों केस दिल्ली हाईकोर्ट ट्रांसफर करने के आदेश दे दिए. कोर्ट ने धड़ाधड़ निर्देश देते हुए ये भी कहा कि 28 जुलाई को जो हादसा हुआ है, उसकी रिपोर्ट 7 दिन में फाइनल करें, जितने केस हैं सभी को 45 दिन के भीतर निबटाएं, उसके अलावा कोर्ट ने इस मामले पर रोजाना सुनवाई करने के भी आदेश दे दिए.

आसान भाषा में कहें तो सीबीआई को हर हाल में 45 दिन के भीतर अपनी जांच पूरी कर लेनी होगी. खैर, इतनी बातें पढ़ने के बाद आपको लग रहा होगा कि चलो इस मामले में कुछ तो अच्छा हुआ. देर से ही सही पीड़िता के लिए कुछ तो अच्छी खबर आई. लेकिन ये बातें आपने जितनी आसानी से पढ़ लीं, असल ज़िंदगी में इतनी आसान नहीं थी. कोर्ट में सुनवाई के दौरान ढेर सारे सवाल जवाब हुए, कोर्ट ने स्पेसिफिकली कई सवाल पूछे जिसका जवाब देने में सीबीआई के हाथ पैर फूल गए.

इस रिपोर्ट में आपको उन तमाम सवालों से रूबरू करवाएंगे. जो कोर्ट में चीफ जस्टिस ने सीबीआई और सॉलिसिटर जनरल से पूछे. साथ ही आपको वैसे सवालों के भी जवाब देंगे जो आपके ज़ेहन में कहीं न कहीं आते होंगे लेकिन उसका जवाब नहीं मिलता होगा.

1- सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को तो दिल्ली ट्रांसफर करने के आदेश दे दिए, लेकिन ऐसा ही मिलते-जुलते हज़ारों मामले होते हैं उनका क्या. उन मामलों के साथ ऐसा न्याय क्यों नहीं हो पाता है. सुप्रीम कोर्ट उस पर क्यों नहीं सुनवाई करती है?

2- इस मामले में अब सुनवाई दिल्ली में होगी, लेकिन खर्चा कौन उठाएगा. बचपन से सुनते आए हैं कि कोर्ट कचहरी में खर्चा बहुत होता है. बहुत पइसे लगते हैं. इस मामले में सामने वाली पार्टी तो पइसे वाली है, लेकिन पीड़िता पक्ष का क्या होगा. उसका खर्चा कौन उठाएगा?

हमने इन सवालों के जवाब पर एक्सपर्ट से बात की, जिसे हम आपको बताएंगे. लेकिन पहले कोर्ट में क्या-क्या हुआ, कैसे हुआ. ये सब जान लीजिए. काफी इंटरेस्टिंग बहस हुई सुप्रीम कोर्ट में.

सीजेआई ने सड़क हादसे वाले मामले को 7 दिन के भीतर सुलझाने के आदेश दिए हैसीजेआई ने सड़क हादसे वाले मामले को 7 दिन के भीतर सुलझाने के आदेश दिए है

अंग्रेजी में एक कहावत है ‘बेटर लेट दैन नेवर’ यानी कि ‘देर आए दुरुस्त आए’. उन्नाव मामले पर भी कुछ ऐसा ही हुआ. गुरुवार की सुबह जब रंजन गोगोई सुनवाई के लिए बैठे तो कोर्ट में सीबीआई की टीम मौजूद थी. सबसे पहले उन्होंने सवाल पूछ लिया-

कोई ज़िम्मेदार अधिकारी नहीं है क्या, जिनसे मामले पर बात की जाए?

सीजेआई के इस सवाल के जवाब पर सीबीआई की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल टी मेहता बोले-

हमने सीबीआई के डायरेक्टर से बात की थी, उन्होंने कहा इस मामले की जांच कर रहे अधिकारी लखनऊ में हैं उनका आज यहां आना मुमकिन नहीं है. इसीलिए सुनवाई शुक्रवार को की जाए.

कुल मिलाकर सुनवाई टालने की कोशिश हो रही थी. लेकिन चीफ जस्टिस नहीं माने. उन्होंने कहा-

इस मामले की आज ही सुनवाई होगी. सीबीआई के डायरेक्टर फोन पर इस मामले की पूरी जानकारी ले सकते थे. उसके बाद वे कोर्ट में पेश हो सकते थे. लेकिन नहीं आए. 12 बजे तक कोर्ट में हमें कोई न कोई ज़िम्मेदार अधिकारी चाहिए जिनसे हम बात कर सकें. क्योंकि इस केस को हम दिल्ली ट्रांसफर करने जा रहे हैं.

थोड़ी देर के लिए कार्यवाही स्थगित होने के बाद. 12 बजे रंजन गोगोई की पीठ फिर से बैठी. जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस इस पीठ के सदस्य थे. 12 बजे जब कोर्ट की कार्यवाही फिर से शुरू हुई तब सीबीआई की ज्वाइंट डायरेक्टर संपत मीणा कोर्ट में आईं. फिर चीफ जस्टिस की बेंच ने स्पेसिफिकली सवाल पूछने शुरू किए. मसलन पिता की गिरफ्तारी कब हुई, कैसे हुई, किस तारीख पर हुई, चार्जशीट कब दाखिल कई गई. वगैरह-वगैरह. बेंच हर एक सवाल का जवाब बारीकी से सुन रही थी.

फिर कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल से पूछा-

इस हादसे की जांच के लिए आपको कितना वक्त चाहिए?

सॉलिसिटर जनरल ने कहा-

एक महीने में जांच पूरी कर ली जाएगी?

लेकिन इस जवाब पर कोर्ट ने नाराजगी जताई. नाराज चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा-

एक महीना नहीं, 7 दिन में जांच पूरी कीजिए. वैसे ही इस मामले में बहुत देर हो चुकी है.

इस दौरान चीफ जस्टिस ने देश में रेप के दूसरे मामलों पर भी नाराजगी जताई. उन्होंने फिर कहा-

देश में आखिर हो क्या रहा है? कुछ भी कानून के हिसाब से नहीं हो रहा.

कोर्ट ने पीड़िता के मेडिकल कंडिशन पर भी बात की. चीफ जस्टिस ने पूछा कि हादसे के बाद पीड़िता की स्थिति कैसी है, जिस पर सीबीआई ने मौजूदा स्थिति के बारे में कोर्ट को बताया. फिर कोर्ट ने कहा-

अगर पीड़िता को लखनऊ में इलाज नहीं मिल पा रहा, तो उसे एम्स में शिफ्ट किया जा सकता है, लखनऊ के केजेएयू अस्पताल से बात कीजिए. ज़रूरत पड़े तो परिवार की हामी लेकर पीड़िता को एम्स में भर्ती करवाईये.

चीफ जस्टिस ने पीड़िता के चाचा पर भी बात की. बेंच ने पूछा-

अगर पीड़िता के चाचा को जेल से दूसरी जगह शिफ्ट करना चाहते हैं, तो बताएं और इस पर भी रिपोर्ट दें. और अगर पीड़िता को कोई भी शिकायत करनी हो तो वो सीधा सुप्रीम कोर्ट के पास आएंगी.

अब चिट्ठी मामले में क्या हुआ?

इस मामले पर पर रंजन गोगोई काफी नाराज दिखे. उन्होंने रजिस्ट्रार से पूछा-

चिट्ठी पहुंचने में देरी कैसे हुई.

जिस पर रजिस्ट्रार ने कहा-

कोर्ट में औसतन हर महीने 7 हजार चिट्ठियां आती हैं. उसके बाद सभी चिट्ठियों की स्क्रूटनी करके उसे संबंधित डेस्क पर पहुंचा दिया जाता है. इस मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ. चिट्ठी की स्क्रूटनी की जा रही थी, जिसके बाद वो आपके पास पहुंचती.

चिट्ठी के ऊपर सवाल-जवाब के बाद चीफ जस्टिस चिट्ठी में लिखी बातों पर आए. पीड़िता और उसकी मां की तरफ से लिखी गई चिट्ठी में सुरक्षा गुहार लगाई गई थी. जिस पर चीफ जस्टिस ने कहा-

उन लोगों पर सख्त एक्शन लीजिए, जो पीड़िता के परिवार को धमकाते हैं.

फिर सीबीआई की तरफ से दलील दी गई कि धमकी देने वालों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया है. दरअसल, कोर्ट में सुनवाई से पहले ही सीबीआई ने सड़क हादसे मामले में केस दर्ज कर लिया था. जिसमें विधायक कुलदीप सेंगर समेत 10 लोगों के नाम शामिल थे. उसके अलावा 20 अज्ञात लोगों के खिलाफ भी केस दर्ज किए गए थे.

क्योंकि 12 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में चिट्ठी देने के 16 दिन बाद 28 जुलाई को भयंकर हादसा हुआ. इस हादसे में उन्नाव रेप पीड़िता की चाची और मौसी की मौत हो गई. जबकि पीड़िता और वकील गंभीर रूप से घायल हैं. दोनों के सिर और शरीर में गंभीर चोटें आईं हैं. दोनों का इलाज लखनऊ के केजीएमयू अस्पताल में चल रहा है. और दोनों अभी लाइफ सपोर्ट सिस्टम यानी कि वेंटिलेटर पर हैं.

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने पीड़िता के वकील की सुरक्षा को लेकर भी बात की. कोर्ट रूम में उस दूसरी चिट्ठी का भी जिक्र हुआ, जो वकील महेंद्र सिंह ने उन्नाव के जिलाधिकारी को 15 जुलाई के दिन लिखी थी. इस चिट्ठी के ज़रिए उन्होंने डीएम से हथियार रखने के लिए लाइसेंस मुहैया कराने की मांग की थी. उन्होंने लिखा था- कि उन्हें डर है कि भविष्य में उनकी हत्या हो सकती है. इस मामले पर कोर्ट ने कहा-

वकील को भी परिवार के साथ पूरी सुरक्षा मुहैया कराई जाए.

सुप्रीम कोर्ट में कार्यवाही के दौरान 35 शिकायतों का भी मामला उठा. कोर्ट ने पूछा-

पीड़ित परिवार की तरफ से पुलिस के पास 35 बार शिकायतें की गई, उस पर क्या कार्रवाई हुई

जिस पर उन्नाव के एसपी ने कहा-

पुलिस को 35 नहीं 33 शिकायतें मिली थी. सभी शिकायतों में तथ्य नहीं थे. इसीलिए उन्हें खारिज कर दिया गया. हम फिर से उन सभी शिकायतों की जांच करेंगे.

अब आते हैं केस को दिल्ली ट्रांसफर किए जाने वाली बात पर

मन में सवाल उठता है कि देश के कई राज्यों में ऐसे क्राइम हुए हैं, या फिर ऐसे पीड़ित हैं जिनका केस उसी राज्य में चल रहा है, सुप्रीम कोर्ट की नज़र वैसे केस पर क्यों नहीं गई. या फिर वैसे केस दिल्ली क्यों नहीं ट्रांसफर किए गए.

इस सिलसिले पर हमने सुप्रीम कोर्ट की वकील करुणा नंदी से बात की. उन्होंने बताया-

ये उस तरह का केस था जिसमें पीड़ित पक्ष ने पहले सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की. उसके बाद उन्होंने सारे तथ्य पेश किए कि उनके केस में जांच करने वाली टीम अपना काम ठीक से नहीं कर रही. उन्हें इस बात का डर था कि सामने वाला पक्ष अपने पावर का इस्तेमाल करके उनके केस को खराब कर सकता है. साथ ही 35 बार शिकायत देने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई. पीड़िता के पिता को गिरफ्तार कर लिया गया. उसके बाद जेल में ही उसकी मौत हो गई. पीड़िता के परिवार को कई बार धमकियां मिली. जान से मारने की धमकी मिली. फिर एक गंभीर हादसे में पीड़िता की चाची और मौसी मर गई. वो खुद और उनका वकील वेंटिलेटर पर है. इन सारी चीजों को ध्यान में रखते हुए, कानून को फॉलो करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस केस को राज्य से बाहर ट्रांसफर कर दिया.

जबकि दूसरे केसेज में शिकायत करने वाले पक्ष को ये यकीन होता है कि कानून की तरफ से उसे देर-सवेर न्याय मिल ही जाएगा. साथ ही साथ सुप्रीम कोर्ट में केस ट्रांसफर के लिए याचिका भी डाली जाती है, जिसके बाद ही सुनवाई होती है. ज्यादातर मौके पर कोर्ट खुद से सुनवाई नहीं करती.

इस केस में पीड़िता का खर्चा कौन उठाएगा?

इस मामले में हमने वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह से बात की, उन्होंने बताया-

देशद्रोह, तोड़फोड़, जासूसी, आतंकवाद और रेप इस तरह के मामले क्राइम अगेंस्ट स्टेट की श्रेणी में आते हैं. ऐसे मामले में पीड़ित पक्ष को वकील राज्य सरकार देती है. केस अगर दूसरे राज्य में भी लड़ा जाए तो उस केस में राज्य का पक्ष रखने के लिए वकील स्टेट गवर्नमेंट ही मुहैया कराती है. पीड़ित पक्ष के वकालत का पूरा खर्चा स्टेट गवर्नमेंट मुहैया कराती है.

अब इस मामले में सीबीआई तो अपने काम पर जुट ही गई है. बीजेपी भी प्रो एक्टिव हो गई है. दरअसल विपक्षी लगातार पार्टी पर हमला बोलते थे कि कुलदीप सेंगर को पार्टी से अभी तक नहीं निकाला गया है. तो सुप्रीम कोर्ट और लोगों के सेंटिमेंट को देखते हुए पार्टी ने यूपी बीजेपी अध्यक्ष को दिल्ली बुलाया. जिसके बाद स्वतंत्र देव अयोध्या दौरे को बीच में ही छोड़कर दिल्ली पहुंच गए. उसके बाद तुरंत खबर आई कि पार्टी ने कुलदीप सिंह सेंगर को निकाल दिया है. वो अभी तक सस्पेंड चल रहे थे.

 

 

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