तुम्हारी याद ऐसे आई जैसे गीली लकड़ी से काला धुआं उठता है: अमृता प्रीतम की कविताएं

आज अमृता प्रीतम का जन्मदिन है.

शिप्रा किरण शिप्रा किरण
अगस्त 31, 2018
अमृता प्रीतम

मेरा पता

आज मैंने

अपने घर का नंबर मिटाया है

और गली के माथे पर लगा

गली का नाम हटाया है

और हर सड़क की

दिशा का नाम पोंछ दिया है

पर अगर आपको मुझे ज़रूर पाना है

तो हर देश के, हर शहर की,

हर गली का द्वार खटखटाओ

यह एक शाप है, यह एक वर है

और जहां भी

आज़ाद रूह की झलक पड़े

समझना वह मेरा घर है.

 

याद

आज सूरज ने कुछ घबरा कर

रोशनी की एक खिड़की खोली

बादल की एक खिड़की बंद की

और अंधेरे की सीढ़ियां उतर गया…

 

आसमान की भवों पर

जाने क्यों पसीना आ गया

सितारों के बटन खोल कर

उसने चांद का कुर्ता उतार दिया…

 

मैं दिल के एक कोने में बैठी हूं

तुम्हारी याद इस तरह आयी

जैसे गीली लकड़ी में से

गहरा और काला धूंआ उठता है…

 

साथ हजारों ख्याल आये

जैसे कोई सूखी लकड़ी

सुर्ख आग की आहें भरे,

दोनों लकड़ियां अभी बुझाई हैं

 

वर्ष कोयले की तरह बिखरे हुए

कुछ बुझ गये, कुछ बुझने से रह गये

वक्त का हाथ जब समेटने लगा

पोरों पर छाले पड़ गये…

 

तेरे इश्क के हाथ से छूट गयी

और जिन्दगी की हंडिया टूट गयी

इतिहास का मेहमान

मेरे चौके से भूखा उठ गया…

 

 

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