मोहन बागान क्लब प्रेसिडेंट माफ़ करें, उनके माफ़ीनामे से हमें घंटा फर्क नहीं पड़ता
औरतों के बारे में घटिया बात कहकर पतली गली से निकल रहे हैं टूटू बोस.
बीते बुधवार को मोहन बागान ने कोलकाता फुटबॉल लीग चैम्पियनशिप जीत ली. मोहन बागान वही फुटबॉल क्लब जो भारत में सबसे ज्यादा फेमस है. 2009 के बाद अब जाकर ये जीत मिली है उसे. इसी खेल में जब मिड टाइम के आस पास मोहन बागन की टीम दो गोल से आगे चल रही थी, और ऐसा लग रहा था कि जीत भी जाएगी, तब वहां के लोकल न्यूज़ चैनल साधना न्यूज़ ने मोहन बगान के क्लब प्रेसिडेंट स्वपन साधन बोस (इनको टूटू बोस भी बुलाते हैं) से पूछा कि मोहन बागन जीत रही है ये चैंपियनशिप, उनको कैसा लग रहा है.
बोस ने जवाब दिया,
सात सालों तक लड़की हो, उसके बाद लड़का हो तो आपको कैसा लगेगा? बस मुझे वैसा ही लग रहा है.
ये रहा वो विडियो:
This is how Mohun Bagan president Tutu Basu reacted after winning #CFL2018 title.A distasteful sexist remark#Shame pic.twitter.com/I1LoiELX6v
— Ritabrata Banerjee (@ritabrata20) September 12, 2018
सोशल मीडिया पर काफी छीछालेदर हुई इनकी, तो इन्होंने अपनी कही हुई बात वापस ले ली. कहा कि किसी को चोट पहुंचना मेरा मकसद नहीं था. इन्होंने अपने स्टेटमेंट में कहा:
‘आठ साल बाद चैंपियनशिप जीतने के उत्साह में मैं बह गया और हाफ टाइम के समय मैंने कुछ कमेन्ट किए. मेरा कहने का वो मतलब नहीं था. मेरे करीबियों को उन शब्दों से चोट पहुंची है, उसके लिए मैं माफ़ी मांगता हूं. मेरे घर में बहुएं हैं. मेरी एक पोती भी है. घर में बेटी के होने का महत्त्व मैं जानता हूं. निजी तौर पर मैं बेटों और बेटियों में कोई फर्क नहीं करता. इसलिए कल कही गई बात वापस लेता हूं. मेरा किसी को आहत करने का कोई इरादा नहीं था.’
ये एक ट्रेंड है. जब भी किसी को उनकी गलती दिखाई जाती है, उसे डिफेंड करने के लिए इस तरह के लॉजिक तैयार हो जाते हैं. कोई गाली भी देता है या किसी लड़की को छेड़ता है तो उससे कहा जाता है- तेरे घर में मां बहन नहीं है क्या. जैसे कि अगर किसी के घर में मां बहन नहीं हों तो उसे लड़कियों को छेड़ने का लाइसेंस मिल जाएगा.
इसी तरह यहां पर टूटू बोस का माफीनामा भी उसी प्रॉब्लम की तरफ इशारा करता है. लड़कियों या स्त्री जाति से जुड़े किसी मामले पर जब लोगों को उनकी इंसेंसिटिविटी दिखाई जाती है, तब उनका जवाब होता है कि मेरी मां है या मेरी भी बहन है. या मेरी भी बेटी है. पुरुषों के लिए स्त्री की इज्जत या उससे जुड़े मामलों को सीरियसली लेना तभी संभव हो पाता है जब वो अपना सम्बन्ध उस स्त्री के साथ एस्टाब्लिश कर सकें. नोटिस करने वाली बात ये भी है कि कोई ये नहीं कहता कि मेरी पत्नी है /गर्लफ्रेंड है. स्त्रियों की कीमत तभी होती है पुरुषों की नज़र में जब वो उनका रिश्ता उनके साथ ऐसा हो जिसमें सेक्स इन्वोल्व ना हो.
जिस औरत के साथ सेक्स नहीं किया जा रहा होता, अमूमन उसी की इज्जत होती है उनसे जुड़े पुरुषों की नज़र में. और ये वाहियात सा लॉजिक कोई स्वीकार कर भी कैसे सकता है. मतलब बाकी चाहे कुछ हो न हो, पैदा तो एक महिला ने ही किया है आपने. ऊपर से टपका तो नहीं ही होगा कोई भी. फिर इस तरह से इज्जत का इक्वेशन बिठाना कैसे समझ में आता है. सिर्फ इसलिए कि किसी की मां है या बहन है या फिर बेटी/पोती/बहू है , इसका मतलब ये नहीं होता कि किसी के अन्दर औरतों को इंसान मानकर उनकी इज्जत करने की समझ आ जाएगी.
टूटू बोस की सोच उनके पहले बयान से ही साबित हो गई थी. अब उनका लेकर माफ़ीनामा हम क्या करें. देश की लड़कियां क्या करें. उनकी बेटी क्या करे.
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