इस देश को 7 साल बाद फिर क्यों बैन करना पड़ा नक़ाब?

ट्यूनीशिया में साल 2011 तक बुरक़ा और नक़ाब बैन था. फिर बैन हटा और आज क़रीब सात साल बाद फिर नक़ाब पर बैन लगा है.

रजत रजत
जुलाई 07, 2019

ये ख़बर सिर्फ एक लाइन की है. वो ये कि- एक अफ्रीकी देश ने नक़ाब पर बैन लगा दिया है. पर इस ख़बर को समझना और गहराई से जानना ज़रूरी है. आखिर अरब क्रांति का शायद इकलौता सफल देश क्यों 7 साल पुराने ढर्रे पर लौट आया? तो पढिए.�

उत्तरी अफ्रीका में एक देश है ट्यूनीशिया. यहां इस्लाम मानने वालों की बहुलता है. 1956 तक यहां फ्रांस का कब्ज़ा था. बाद में अपना राज आया. ट्यूनीशिया की तारीख़ में 2011 साल अहम है. अरब इलाके में हुई अभूतपूर्व घटनाओं से ट्यूनीशिया भी अछूता नहीं रहा. अरब स्प्रिंग जिसे अरब क्रांति का नाम दिया गया, उसका सफल उदाहरण है ट्यूनीशिया. यहां भी बाकी देशों की तरह तख़्तापलट हुआ. शासक थे, जिने-अल-अबीदीन बेन अली. राष्ट्रपति थे, 'चुनाव' करवाकर ही जीतते रहे.और फिर मुल्क छोड़ भागना पड़ा.

बेन अली. ट्यूनीशिया का निर्विवाद शासक. ज़रूर अरब क्रांति इनके जीवन का सबसे दुखद पहलु रहा होगा. जिने-अल-अबीदीन बेन अली. ट्यूनीशिया का निर्विवाद शासक. ज़रूर अरब क्रांति इनके जीवन का सबसे दुखद पहलु रहा होगा.

पहली बार राष्ट्रपति बने थे साल 1987 में. तब से 2011 तक लगातार ट्यूनीशिया में सरकार चलाने वाले बेन अली के पास अरब क्रांति के दौरान देश छोड़ने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था. उनकी सरकार का तख़्तापलट किया गया था. देश का पैसा खाने और ट्यूनीशिया को परिवार की आरामगाह बनाने का इल्ज़ाम लगा था. देश छोड़ने के बाद बेन अली पर कई मुकदमे चले. कई मामलों में उम्रकैद की सजा सुनाई गई है. लेकिन इस सब के बावजूद, एक बात के लिए बेन अली की तारीफ होती थी. वो थी सत्ता का सेकुलर चरित्र बनाए रखना. जिस वक्त बेन अली राष्ट्रपति थे, उस वक्त भी मौलानाओं का खूब दबाव था. मुल्ला लोग चाहते थे कि शरियत के हिसाब से मुल्क चले. लेकिन बेन अली ने नहीं माना. बेन अली के राज में सार्वजनिक स्थानों या सरकारी दफ्तरों में नक़ाब पहनने पर रोक लगी थी.

पूरे अरब में अरब क्रांति के बाद से भारी अशांति है. इराक से लेकर लीबिया तक. पुराने लोग तो कहते थे हैं कि तानाशाह ही अच्छे थे, कम से कम रोज़ जान जाने का डर तो नहीं सताता था. पूरे अरब में अरब क्रांति के बाद से भारी अशांति है. इराक से लेकर लीबिया तक. पुराने लोग तो कहते थे हैं कि तानाशाह ही अच्छे थे, कम से कम रोज़ जान जाने का डर तो नहीं सताता था.

जब बेन अली को देश से भागना पड़ा तो ट्यूनीशिया की राजनैतिक परिस्थितियां और नाज़ुक बन गईं. नई सरकार में राष्ट्रपति बने मोनसेफ मरज़ोइकी. कट्टरपंथी मुल्लाओं ने फिर ज़ोर पकड़ा. मुंह को पूरी तरह ढंकने वाले पहनावे को अनिवार्य करने मांग उठाने लगे. खूब प्रदर्शन हुए लेकिन मोनसेफ नहीं झुके.

मोनसेफ ने सत्ता उस वक्त संभाली जब ट्यूनीशिया नाज़ुक दौर से गुज़र रहा था. एक तरफ मिलिटरी और दूसरी तरफ चरमपंथी, सबसे संतुलन बैठाना था.पूर्व राष्ट्रपति मोनसेफ. इन्होंने सत्ता उस वक्त संभाली जब देश नाज़ुक दौर से गुज़र रहा था. एक तरफ मिलिटरी और दूसरी तरफ चरमपंथी, संतुलन बैठाना चुनौती थी.

फैसला किया कि देश की सरकार शरियत के हिसाब से नहीं, सेकुलर तरीके से ही काम करेगी.�शरियत को दिखाने वाले पहनावों का समर्थन नहीं हुआ. कम-से-कम सरकार की ओर से ऐसा नहीं किया गया. कुछ भी सरकारी तौर पर थोपा नहीं गया. यानी अगर मन हो तो मुंह पर नक़ाब ओढ़ सकते हैं, ना हो तो पहनावा ज़रूरी नहीं है. ट्यूनीशिया की बगल में एक देश है लीबिया. यहां आज भी कट्टरपंथ का बोलबाला है. इस्लामिक स्टेट के आतंकवादियों ने आम शहरी की ज़िंदगी तबाह कर डाली है.

इस फोटो में अरब ख़ित्ते के 4 तानाशाह हैं. लीबिया का गद्दाफी, मिस्र का होस्नी मुबारक, यमन का सालेह और ट्यूनीशिया का बेन अली.इस फोटो में अरब ख़ित्ते के 4 तानाशाह हैं. (दाएं से) मिस्र का मुबारक,�लीबिया का गद्दाफी, यमन का सालेह और ट्यूनीशिया का बेन अली. गद्दाफी और सालेह के हिस्से मौत आई. बेन अली और मुबारक निर्वासित हैं.�

ट्यूनीशिया में भी यही सब करने की कोशिश की गई. यहां 2015 में विदेशी पर्यटकों को निशाना बनाया गया. हमले में 22 लोगों की मौत हुई थी. इसके अलावा एक और धमाके में 38 लोग मारे गए थे. हालात इतने बिगड़ गए कि इमरजेंसी लगानी पड़ी. बावजूद इसके सरकार मुल्लाओं के आगे नहीं झुकी. अब फिर एक बार ऐसा ही हुआ है. उलट ही नहीं, पहले से भी कड़ा स्टैंड लिया है ट्यूनीशिया की सरकार ने.

बेन अली के सत्ता से जाने के बाद नक़ाब पहनने पर लगा बैन हटा और अब फिर लागू कर दिया गया है.

पर ऐसा किया क्यों?

ट्यूनीशिया की राजधानी है ट्यूनिस. समंदर किनारे बसा शहर है. यहां बीते एक हफ्ते में तीन बम धमाके हुए हैं. तीनों आत्मघाती. चौंकाने वाली बात ये कि तीनों धमाकों में बुरक़े और नक़ाब का इस्तेमाल हुआ है. इसीलिए 4 जुलाई को प्रधानमंत्री यूसुफ चाहेद के दफ्तर से एक आदेश जारी किया गया.

प्रदानमंत्री यूसुफ चादेह. प्रदानमंत्री यूसुफ चाहेद.

सरकारी आदेश में कहा गया है कि

नक़ाब (जिसमें आंखों के अलावा पूरा चेहहरा ढंका होता है.) पहनने वालों को किसी भी सरकारी दफ्तर में एंट्री नहीं दी जाएगी. ये सुरक्षा कारणों के चलते किया जा रहा है.

2 जुलाई को ट्यूनिस के इलाके में हुआ आत्मघाती हमले में हमलावर ने नक़ाब पहना हुआ था. ये बात धमाके के वक्त मौके पर मौजूद लोगों ने कही है. हालांकि डीडब्ल्यू के मुताबिक, सरकार इस दावे को खारिज कर रही है. इससे पहले हुए दो धमाकों का आरोपी भी यही शख़्स था. इसने पकड़े जाने के डर से ट्यूनिस के बाहरी इलाके में खुद को उड़ा लिया.

ट्यूनीशिया में हुए सिलसलेवार धमाके के बाद की फोटो. ट्यूनीशिया में हुए सिलसलेवार धमाके के बाद की फोटो.

साल 2011 में नक़ाब से बैन हटा था. लेकिन 2014 आते-आते फिर सुरक्षा एजेंसियों ने सख़्ती बढ़ानी शुरू कर दी थी. आज सात साल बाद फिर पुराने ढर्रे पर लौट रहा है ट्यूनिशिया. बेन अली के बाद अब प्रधानमंत्री युसुफ चाहेद ने हिम्मत जुटाई है कि कट्टरपंथ को सीधे चुनौती दी जा सके. ऐसा नहीं है कि इनके फैसले का विरोध नहीं हो रहा. मुल्लाओं के पेट में दर्द मुसलसल जारी है.उनकी मांग है कि इस बैन को टेम्परेरी घोषित किया जाए.

अरब क्रांति के शुरुआती दौर में ट्यूनीशिया में इसका प्रभाव दिखने लगा था. अरब क्रांति के शुरुआती दौर में ट्यूनीशिया में इसका प्रभाव दिखने लगा था. फोटो- ट्विटर/माई-अल-सदानी

बहरहाल, अरब क्रांति की इकलौती सफल कहानी ट्यूनीशिया ही है. इतिहास में कई मुल्क ऐसे हैं जहां समाज आगे की बजाए पीछे की ओर गया है. अब उसके लिए ज़रिया या बहाना कुछ भी हो. कट्टरपंथियों की हमेशा कोशिश रही है कि धर्म या रिवाज़ के नाम पर लोगों को दबाकर अपना उल्लू सीधा किया जाता रहे. ईरान इसका अच्छा उदाहरण हो सकता है. वहां की 70 के दशक की फोटोज़ की आज की फोटोज़ के साथ तुलना करने पर आप सब समझ जाएंगे.

बैन लगाने वालों की सूची बड़ी है

मुंह ढंकने के लेकर अलग-अलग देशों में अलग-अलग कानून है. लेकिन पूरी तरह बैन कुछ ही देशों में है. ज्यादातर मुल्कों में चरमपंथी आतंकवाद को ही बैन का आधार बनाया गया है.

tunisia-4_750_070719074351.jpgट्यूनीशिया में हुए धमाकों के बाद से ही सुरक्षा ऐजेंसिया सतर्क हैं. इन्होंने प्रशासन से चेहरे ढंकने वाले पहनावे पर रोक लगाने की मांग की थी, जिसे माना गया.

साल 2004 बुरके पर बैन लगाने वाले फ्रांस का नाम इस सूची में सबसे पहले आएगा. 2004 में सरकारी संस्थानों में बुरक़ा पहनने पर रोक लगी थी, लेकिन 2011 में राष्ट्रपति निकोलस सरकोज़ी ने ऐलान किया कि बुरक़ा पहनी महिलाओं का फ्रांस में स्वागत नहीं है. फ्रांस के अलावा बेल्जियम ने भी चेहरा ढंकने पर पूरा तरह बैन लगा रखा है. इसके बाद नीदरलैंड , इटली, स्पेन, चाड़, कोंगो, लटाविया, डेनमार्क, कैमरून, नाइजर, तुर्की और स्विट्ज़रलैंड जैसे देशों में आंशिक तौर पर बैन लगाया गया है. हाल ही में श्रीलंका में हुए आत्मघाती हमलों के वहां की सरकार ने मुंह ढंकने वाले किसी भी तरह के कपड़े पर रोक लगाई है.

इनमें से ज्यादातर देशों में अगर कोई नक़ाब या बुरका पहनता है तो उसे जुर्माना और सज़ा दोनों हो सकते हैं.

ये भी पढ़ें-�इस आदमी ने ऐसा क्या कर दिया, कि ईशा गुप्ता को लम्बी-चौड़ी पोस्ट शेयर करनी पड़ गई

 

लगातार ऑडनारी खबरों की सप्लाई के लिए फेसबुक पर लाइक करे      

Copyright © 2024 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today. India Today Group