प्रियंका चोपड़ा ने ब्लाउज क्यों नहीं पहना, इस सवाल का जवाब मिल गया है
भारतीय संस्कृति के स्वघोषित रक्षकों ने काफी बुरा-भला कहा है प्रियंका को.
प्रियंका चोपड़ा ने बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक काफी नाम कमा चुकी हैं. ये हमारे बताने की चीज नहीं है, आपको पता ही होगा. प्रियंका चोपड़ा मैगजीन के कवर्स पर आती हैं, खूब पॉपुलर हैं, ये भी आपको पता होगा. अभी हाल में इनस्टाइल मैगज़ीन के कवर पर आईं. तरुण तहिलियानी नाम के डिजाइनर की बनाई साड़ी पहनकर.
उसपे बवाल मच गया. क्योंकि प्रियंका ने ब्लाउज नहीं पहना था. इसको लेकर घणी छीछालेदर हुई. किसी ने कहा कि प्रियंका वेस्ट यानि पश्चिम के टेस्ट को सूट करने वाले ऐसे कपड़े डाल रही हैं, तो किसी ने भारतीय संस्कृति की तरफ से आहत होने की ज़िम्मेदारी ले ली, वो भी थोक के भाव में. चलिए, आप सोशल मीडिया पर हों तो वो भी आपको पता होगा.
लेकिन प्रियंका का ब्लाउज न पहनना कहीं ज्यादा भारतीय है. सो कॉल्ड ‘भारतीय संस्कृति के ठेकेदारों’ से तो कहीं ज्यादा.
ये शायद आपको पता न हो.
पर कोई न. हम बता देते हैं.
जब हम ब्लाउज कहते हैं, तो हमारे दिमाग में साड़ी के साथ पहना जाने वाला एक कपड़ा आता है. डीप गला. बंद गला. चाइनीज कॉलर. बैकलेस. वगैरह वगैरह. लहंगे-दुपट्टे के साथ पहनो, या साड़ी-पेटीकोट के साथ. साड़ी को भारत का कल्चर मानने वाले इसके साथ ब्लाउज अपने आप ही इमैजिन कर लेते हैं. लेकिन सच तो ये है कि ब्लाउज जैसी चीज कुछ थी ही नहीं. उदाहरण?
एक उदाहरण जो दिखाता है किस तरह शरीर के ऊपपरी हिस्से को ढकना कतई ज़रूरी नहीं माना जाता था
पुरानी मूर्तियों में महिला का शरीर जहां कहीं भी दिखाया गया है, उसमें ऊपर के कपड़े नहीं पहने गए हैं. चोल राज्य में महिलाएं अपने स्तनों के इर्द-गिर्द कपड़ा बांधती थीं. क़ाफ़ी कस कर. विजयनगर राज्य में कंचुक/कंचुकी का ट्रेंड आया. ये ब्रा तो नहीं थी, लेकिन काम कुछ वैसा ही था. बंगाल में भी औरतें बिना ब्लाउज की साड़ी पहने दिख जाती थीं.
चोखेरबाली- स्टोरीज बाई रबिन्द्रनाथ टैगोर से राधिका आप्टे.
ब्लाउज भारत का अपना आविष्कार नहीं था. ब्रिटेन के विक्टोरियन एरा के नैतिक और सामाजिक मूल्य, जो बेहद कंजर्वेटिव थे, कट्टर थे, के साथ शरीर को शर्म का टोकरा बनाने की मानसिकता आई. वही यहां भी जड़ें जमा बैठी. केरल का ब्रेस्ट टैक्स तो काफी विवादित हुआ. वहां ‘नीची’ मानी जाने वाली जाति की औरतों को अपने वक्ष ढंकने की इजाज़त नहीं थी. चन्नार मूवमेंट ने उन्हें इससे आज़ादी दिलाई. नान्गेली नाम की औरत ने अपनी जान देकर इसके खिलाफ आवाज़ उठाई.
चन्नार विद्रोह के बारे में अभी भी काफी लोग नहीं जानते.
जो ब्लाउज ड्रेस के नीचे पहना जाता था, उसके अलग-अलग रूप भारतीय परिधानों के साथ ढलते गए. पहले ब्लाउज सिर्फ ड्रेस के ऊपरी हिस्से को कहा जाता था. नीचे फ्रिल (झालरें, चुन्नटें) होती थीं. फिर धीरे-धीरे महिलाएं घर से बाहर निकलीं. प्रथम विश्व युद्ध ने महिलाओं को खींचकर बीच में ला दिया. कई काम करने के लिए जो उन्होंने पहले कभी नहीं किए थे. इसके साथ उनके कपड़े भी बदले. पहले बिल्कुल गले तक ढकने वाला ब्लाउज अब थोड़ा खुले गले वाला हो गया. आज भी कई ऑनलाइन वेबसाइट्स पर ब्लाउज ही लिखे जाते हैं महिलाओं के टॉप और स्लीव वाली शर्ट्स.
तरुण तहलियानी, जो इस साड़ी के डिजाइनर हैं, उन्होंने कहा कि प्रियंका की ये ड्रेस ग्लोबल याने वैश्विक स्टेटमेंट है.
वोग (Vogue) नाम की मशहूर फैशन मैगजीन की फैशन फीचर्स डिरेक्टर रही हैं बंदना तिवारी. Swaddle को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि नग्नता के बुरे होने का विचार अब्रहमिक धर्मों (ईसाई धर्म, इस्लाम) के साथ आया. सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि अब्रहमिक धर्मों से पहले की संस्कृतियों को आप कहीं भी देखें, जैसे माया सभ्यता या मिस्र की सभ्यता, ब्रा का अस्तित्व नहीं था क्योंकि स्तनों को उत्तेजित करने वाली वस्तु की तरह नहीं देखा जाता था. ये एक नई घटना है’
तो ये जो ब्लाउज की मोरालिटी है, नैतिकता है, ये अपनी हमारी खुद की है भी नहीं. विदेशी है. अगर प्रियंका इस तरह से साड़ी पहन ही रही हैं, तो ‘प्रॉब्लम क्या है’?
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