अंतर्वस्त्र में चाकू डालकर, भाई के सामने रेप हुआ था मनोरमा का, 14 साल से इंसाफ नहीं मिला

वो लड़की जिसके रेप और मौत ने मणिपुर में सेना पर गंभीर सवाल उठाए, मगर हुआ कुछ नहीं.

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अक्टूबर 23, 2018

10 जुलाई. 2004. आधी रात के आस-पास का समय.

थान्ग्जम बासु अपने घर में 'राजू चाचा' फिल्म देख रहा था. उसी समय बाहर से कुछ शोर आया.

जब तक वो कुछ समझ पाता, उसके घर में धड़धड़ाते हुए सेना के कुछ लोग घुस आए.

थान्ग्जम की मां खुमान्लेइमा देवी भी जग रही थीं. दौड़ी-दौड़ी आईं. उनसे हिंदी में कुछ पूछा उन लोगों ने. समझ नहीं आया.

फिर उनमें से एक ने लोकल भाषा में पूछा, ‘यहां कोई हेन्थोई नाम की औरत है?’

तब तक मनोरमा वहां आई. थान्ग्जम मनोरमा.

उसे देखते ही 17 असम राइफल के ये सिपाही उसे घसीट कर बाहर ले गए.

मनोरमा चिल्लाई. ‘मां मां. इनको रोको’. मां को धक्के मार कर पीछे धकेल दिया गया.

मनोरमा को घसीटते हुए आंगन में ले जाया गया.

एक सिपाही ने बासु के कमरे से तौलिया और कुछ कपड़े उठाए. किचन से एलुमिनियम का एक बर्तन और एक चाकू उठाया. बाल पकड़ कर मनोरमा को बरामदे की एक बेंच पर बिठा दिया.

बासु ने अपनी बहन के कमरे की खिड़की से देखा, तो उसकी बहन जमीन पर पीठ के बल लेटी हुई थी. उसके हाथ पीछे बंधे थे. सादे कपड़े पहना आदमी उसकी बहन के बाईं तरफ झुका हुआ था, और अपने दाएं हाथ से उसकी अंडरवियर में चाकू घुसा रहा था. 

thangjam-manorma-wiki_750x500_102318043120.jpgथान्ग्जम मनोरमा, जिसकी हत्या ने मणिपुर को झिंझोड़ दिया. फोटो: विकिमीडिया

मनोरमा ने फानेक पहना हुआ था. मणिपुरी औरतों का पारंपरिक परिधान. उस आदमी ने मनोरमा का फानेक नीचे खींचा, और उसकी टीशर्ट ऊपर खींच दी.  तब तक दूसरे सिपाही ने बासु को अन्दर झांकते हुए देख लिया और खिड़की पर बन्दूक का हत्था दे मारा. मनोरमा को बाहर लाया गया. सिपाहियों के सामने उसके कपड़े बदलवाए गए. उसके बाद अरेस्ट मेमो साइन करवाया गया. दो सिपाहियों ने विटनेस की जगह साइन किए. अरेस्ट मेमो की एक कॉपी और नो क्लेम सर्टिफिकेट मनोरमा के परिवारवालों को दिया गया.

मनोरमा को वहां से ले जाया गया. उसने अपने भाई से कहा, इन्होंने जो करना था कर लिया, सुबह जल्दी आकर थाने से मुझे ले जाना.

मनोरमा अगली सुबह मरी हुई मिली.

ये हिस्से हैं उस रिपोर्ट के जो 2014 में पब्लिक की गई. रिपोर्ट है थान्ग्जम मनोरमा के रेप और हत्या की. रिपोर्ट है उस सिस्टम की जिसने दस साल तक एक भयानक रेप और वीभत्स हत्या की बात पर चूं तक नहीं की. सिर्फ इस वजह से क्योंकि इस अपराध को करने वाले सिस्टम के अपने लोग थे. 2004 में हुए इस रेप और हत्या के बाद मणिपुर में झंझावात आया था.

(इसकी रिपोर्ट कॉन्फिडेंशियल रखी गई थी, लेकिन 2014 में एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान इसे पब्लिक किया. द वीक ने इस पूरी घटना पर स्टोरी की, और ख़ास तौर पर मनोरमा के परिवार से बात की. इस आर्टिकल के कुछ हिस्से द वीक से साभार लिए गए हैं. बाकी की जानकारी पब्लिक डोमेन में उपलब्ध है.)

उस समय थान्ग्जम मनोरमा की मौत पर सवाल उठे. मेजर राठौर, जिसने मनोरमा के घर छापा मारा था, उसने असम राइफल्स का पक्ष रखा. 

army-reuters_750x500_102318043231.jpg17 असम राइफल्स के दावों पर कई सवाल उठे, जिनका कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला. फोटो: रायटर्स

आगे पढ़ने से पहले, क्या है असम राइफल्स?

भारत में रक्षा मंत्रालय देश की डिफेन्स फोर्सेज के मामलों की देख रेख करता है. डिफेन्स फोर्सेज के तीन अंग हैं- आर्मी, नेवी, और एयर फ़ोर्स. कोस्ट गार्ड भी डिफेन्स मिनिस्ट्री के अंतर्गत आते हैं. इसके बाद आते हैं पैरामिलिट्री फ़ोर्स. अर्ध सैनिक बल. असम राइफल्स सबसे पुरानी पैरामिलिट्री फ़ोर्स है. 1965 से असम राइफल्स मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स यानी गृह मंत्रालय के अंडर आती है लेकिन आर्मी के कंट्रोल में ऑपरेट करती है. इसके सर्वोच्च अधिकारी को लेफ्टिनेंट जनरल के बराबर का पद दिया जाता है, आर्मी की तरह. इंडो म्यांमार बॉर्डर की सुरक्षा भी इसी की ज़िम्मेदारी है. इसके अलग सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्सेज (CAPF) होते हैं. इसमें बॉर्डर सिक्यूरिटी फ़ोर्स (BSF), इंडो-टिबेटन बॉर्डर पुलिस (ITBP), सेंट्रल रिज़र्व पुलिस फ़ोर्स (CRPF) इत्यादि जैसे बल आते हैं.

assam-rifles-gov-in_750x500_102518105805.jpgअसम राइफल्स ने इस मामले को लेकर बहुत आलोचना झेली.

 असम राइफल्स ने क्या कहा

ये कहा गया कि मनोरमा पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) की एक एक्टिव सदस्य थी, और उसके खिलाफ काफी जानकारी जुटाई गई. ये कि वो एक खतरनाक अलगाववादी थी जिसका PLA में कोड नेम हेन्थोई था. बताया गया कि उसे पकड़ने के लिए घर के आस पास का एरिया सील किया गया था. रात को साढ़े तीन बजे छापा मारा गया. अधिकारियों ने कहा कि मनोरमा के घर से उन्हें सिंगापुर का एक केनवुड रेडियो और एक चाइनीज़ हैंड ग्रेनेड मिला. ये कहा गया कि मनोरमा को जब लोकल पुलिस थाने  पर ले जाया जा रहा था पूछताछ के लिए, तब उसने अपनी एक साथी रूबी का नाम बताया. कहा कि उस तक वो उन्हें ले जा सकती है. इसके बाद वो बार-बार सिपाहियों को अलग-अलग जगहों पर ले गई. हर बार कहा कि ये गलत जगह है फिर कहीं और ले गई.

चूंकि मनोरमा को अरेस्ट किया गया था, उसे पुलिस थाने ले जाना ज़रूरी था.  क्योंकि आर्मी या पैरमिलिट्री फोर्सेज किसी से पूछताछ कर सकती है, उसे कस्टडी में नहीं ले सकती. कस्टडी के लिए लोकल पुलिस थाने ले कर जाना ही होगा सिविलियन को.

leutinent-general-shokin-chauhan-assam-rifles_750x500_102518110159.jpgइस वक़्त असम राइफल्स के लेफ्टिनेंट जनरल हैं शोकीन चौहान

जब उसे गाड़ी में पुलिस थाने ले जाया जा रहा था, तब उसने कहा कि उसे बाथरूम जाना है. गाड़ी रोकी गई. 30-35 मीटर की दूरी पर. उसे झाड़ियों में जाकर अपना काम निपटाने को कहा गया. उसने भागने की कोशिश की. रोकने के लिए उसे वार्निंग दी गई. ‘रुको रुको’ चिल्लाया गया. फिर भी नहीं रुकी तो उसे रोकने के लिए पैरों पर गोली मारी गई. इसकी वजह से वो वहीं मर गई.

परिवार और गवाहों ने क्या कहा

मनोरमा एक सीधी-सादी लड़की थी जो एक्टिविज्म करती थी. आतंक से या फिर किसी और चीज़ से उसका कोई लेना देना नहीं था. ये कि 17 असम राइफल्स वाले उसे उठा कर ले गए. उसे मार डाला. जहां मनोरमा की लाश मिली थी, वहां के कुछ गवाहों ने बताया कि उन्होंने आर्मी की जीप आती हुई देखी थी. उसमें से एक शरीर को नीचे फेंका गया था. वो शरीर बेजान लग रहा था. उसके बाद हवा में गोलियां दागी गई थीं.

सुबूत क्या कहते हैं

पोस्टमोर्टेम रिपोर्ट के अनुसार मनोरमा को 16 गोलियां मारी गई थीं. कोई भी पैर में नहीं लगी थी. सामने से भी गोली मारी गई थी. बेहद करीब से गोली मारी गई थी. सीज़र मेमो (Seizure Memo- चीज़ें बरामद होने पर जो मेमो दिया जाता है वो) परिवार के सामने नहीं लिया गया था. जिन लोगों ने गवाह के तौर पर साइन किए थे उन्होंने खुद कहा उन्हें कुछ नहीं पता था कि मनोरमा के घर से क्या निकला. मनोरमा के किए हुए साइन भी उस पर असली नहीं लग रहे थे. सीज़र मेमो बाद में जमा किया गया था. 

afspa-pti-rep-image_750x500_102318043315.jpgसांकेतिक तस्वीर: पीटीआई

सवाल क्या उठे?

छापा कब पड़ा था, इसको लेकर असम राइफल्स के बताए गए समय और परिवार के द्वारा बताए गए समय में इतना अंतर क्यों? मनोरमा पांच फुट की छोटी सी औरत थी, उसने इतने सारे तगड़े जवानों को कैसे चकमा दिया कि वो भाग निकली? उसने फानेक पहन रखा था. हाथ पीछे बंधे हुए थे. ऐसे में वो भागती कैसे? अगर वो भागी भी तो भी उसकी लोकल भाषा में उसे रुकने का आदेश क्यों नहीं दिया गया (जोकि ज़रूरी होता है)? उसके पीछे भागकर किसी ने उसे क्यों नहीं पकड़ा? अगर उसे रोकने के लिए गोली मारना इतना ही ज़रूरी था तो 16 गोलियां क्यों मारी गईं? एक भी पैर पर क्यों नहीं लगीं? सामने से गोली कैसे मारी गई?

इन सवालों के जवाब नहीं दिए गए.

मनोरमा की हत्या के पांच दिन बाद सामने आईं मणिपुर की माएं. लोकल भाषा में मेईरा पईबी (Meira Paibi). इस का मतलब होता है मशाल लेकर चलने वाली औरतें. इस नाम के पीछे एक ख़ास कहानी है. 1977 से चला आ रहा ये महिलाओं का समूह रात को मशालें ले कर घूमता है. औरतों को सुरक्षा का एहसास दिलाने के लिए. पहले ये समूह औरतों की सामूहिक सुरक्षा के लिए काम करता था. पुरुषों की शराब की बढ़ती लत के खिलाफ जागरूकता फैलाता था. मणिपुर में Armed Forces Special Powers Act (AFSPA) लगा हुआ है. इसके बुरे असर के खिलाफ भी मेईरा पेईबी ने अपना विरोध दर्ज करना शुरू किया. 

manorama-shrine_750x500_102518110008.jpgमनोरमा की समाधि

क्या है AFSPA?

ये एक्ट जहां भी लगता है वहां के सेना दलों को सिचुएशन संभालने के लिए कुछ ख़ास शक्तियां दी जाती हैं. जैसे कहीं पर भी लोगों को इकट्ठा होने से रोक लेना.  शूट टू किल. घुसपैठ का सामना करने के ऑपरेशन्स में किसी भी प्रॉपर्टी पर कब्ज़ा जमा सकने या उसे बर्बाद कर सकने की छूट. AFSPA के अंडर आने वाले क्षेत्रों में आर्मी द्वारा उठाया गया कोई भी कदम सिर्फ और सिर्फ केंद्र सरकार के द्वारा प्रतिवादित किया जा सकता है. राज्य सरकार का उससे कुछ लेना देना नहीं होगा. मणिपुर में 60 कांस्टिचुएंसीज हैं. इनमें से सात पर से ही AFSPA हटा है आजतक.

AFSPA की वजह से कई बार ये मुद्दा उठा कि आर्मी अपनी पावर्स का बेजा इस्तेमाल करती है. इसी की वजह से सेना के जवानों को लूटने, और रेप करने की आज़ादी मिल जाती है और उनकी जवाबदेही भी कोई तय नहीं करता. जन मनोरमा का केस हुआ, तब AFSPA के खिलाफ भी प्रदर्शन शुरू हुए और जोर शोर से उठे.

मेईरा पेईबी की औरतों ने मणिपुर में असम राइफल्स के स्टेशन (कांगला फोर्ट में स्थित, अब वहां से हटाया जा चुका है) के सामने प्रदर्शन किया. अपने कपड़े उतार दिए. कहा, इंडियन आर्मी, रेप अस. चीख कर कहा, ‘हम सब मनोरमा की माएं हैं’. ये तस्वीर विश्व के इतिहास में तियानानमेन स्क्वायर में टैंक के सामने खड़े आदमी के विद्रोह से भी आगे बढ़कर लिखे जाने के लायक है. भारत का इतिहास, और उसका वर्तमान इस तस्वीर की कड़वी सच्चाई के बिना अधूरा है. 

manipur-mothers_750x500_102318043431.jpgमणिपुर की ये माएं विद्रोह की एक कालजयी तस्वीर खींच गईं. फोटो: इंडिया टुडे

एल ग्यानेशोरी उन औरतों में से एक थीं जिन्होंने विरोध में भाग लिया. उन्होंने ह्यूमन राइट्स वॉच को बताया:

‘मनोरमा की हत्या ने हमारा दिल तोड़ दिया. हमने लोगों को गिरफ्तारी के बाद टॉर्चर से बचाने के लिए अरेस्ट मेमो की मांग की थी.फिर भी, इसने उन सिपाहियों को मनोरमा का रेप करने और उसे मार देने से नहीं रोका. उन्होंने उसका शरीर चीर-फाड़ दिया और उसकी योनि में गोलियां मारीं. हम माएं रो रही थीं, ‘अब हमारी बेटियों के बलात्कार होंगे. उन पर ऐसी क्रूरता होगी. हर लड़की खतरे में हैं’. हमने अपने कपड़े उतार दिए और सेना के सामने खड़े हो गए. हमने कहा, ‘हम माएं आई हैं. हमारा खून पियो. हमारा मांस खाओ. शायद इस तरह तुम हमारी बेटियों को छोड़ दोगे’. लेकिन उन सिपाहियों को सज़ा देने के लिए कुछ नहीं किया गया. मणिपुर की औरतों को AFSPA ने निर्वस्त्र कर दिया. हम अभी भी निर्वस्त्र हैं’.

गोहाटी हाई कोर्ट के जस्टिस डी बिस्वास ने असम राइफल्स की पेटिशन पर सुनवाई की थी. मनोरमा मामले में जब उन्होंने अपना आखिरी वक्तव्य सुनाया तो कहा,

‘ये साफ़ है कि छापा जब मारा गया तो कोई महिला कांस्टेबल मौजूद नहीं थी. घर को घेर लिया गया था उसके बाद भी सुपरिन्टेन्डेन्ट ऑफ द पुलिस से संपर्क करके महिला कांस्टेबल की सेवाएं लेने की कोई कोशिश नहीं की गई. गिरफ्तार व्यक्ति को फ़ौरन नजदीकी पुलिस स्टेशन के हवाले नहीं  किया गया. बल्कि उसे गिरफ्तार करके उससे पूछताछ की गई और दूसरी महिला साथी की तलाश में उसे यहां से वहां ले जाया गया. थान्ग्जम मनोरमा देवी की गिरफ्तारी के वक़्त उसके खिलाफ कोई भी FIR बकाया नहीं थी. 

afspa-protest-into_750x500_102318043524.jpgAFSPA के विरोध में कई धरने प्रदर्शन हुए. लेकिन उसे नहीं हटाया गया. फोटो: इंडिया टुडे

असम राइफल्स ने ये दावा किया कि मनोरमा को कस्टडी में लेने से पहले एक महिला कांस्टेबल का बंदोबस्त करने की कोशिश की गई थी. इम्फाल वेस्ट पुलिस स्टेशन ने उनकी ये रिक्वेस्ट पूरी नहीं की. हालांकि पुलिस ने बाद में बताया कि जो व्यक्ति ये मांग लेकर पुलिस स्टेशन आया था उससे ये कहा गया कि वो एक औपचारिक आवेदन लिखकर सुपरिन्टेन्डेन्ट ऑफ पुलिस को दे. ये एक स्टैण्डर्ड प्रोसीजर है, और सुपरिन्टेन्डेन्ट इस तरह की मांगों पर ध्यान देने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं. लेकिन पुलिस के अनुसार वो व्यक्ति बस चला गया और वापस नहीं लौटा’. 

जस्टिस जे एस वर्मा कमिटी ने 2013 में पूरे मुद्दे को रिव्यू किया, अपने सुझाव दिए.

j-s-verma-com_750x500_102518110050.jpgजस्टिस जे एस वर्मा कमिटी की रिपोर्ट

631 पन्नों  की अपनी रिपोर्ट में 149 वें पन्ने पर रिपोर्ट कहती है कि इंटरनेशनल कन्वेंशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ ऑल पर्सन्स फ्रॉम इन्फोर्स्ड डिसअपीयरेंस (यानी जबरन गायब कर देने की प्रक्रिया से बचाव के लिए बना अंतरराष्ट्रीय कन्वेशन) में भारत भी शामिल है. रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि भारत इस कन्वेंशन में लिखे गए नियमों की धज्जियां उड़ाने में पीछे नहीं है. कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में  कहा कि आर्म्ड फोर्सेज या वर्दीधारी व्यक्तियों द्वारा औरतों पर की गई यौन हिंसा को सामान्य क्रिमिनल लॉ के तहत लाया जाना चाहिए. यह भी कि AFSPA और उसके जैसे कानूनी प्रोटोकॉल्स को आंतरिक विवाद वाले क्षेत्रों में बनाए रखने पर दुबारा विचार किया जाना चाहिए, जितनी जल्दी हो सके.’ 

rep-image-afspa_750x500_102318043614.jpgसांकेतिक तस्वीर: पीटीआई

2014 में मनोरमा के परिवार को दस लाख रुपए मुआवजे के तौर पर दिए गए. लेकिन मनोरमा, और उसके जैसी कई लड़कियों और परिवारों की कहानी को सुनने वाले अब उन्हें भूल चुके हैं. मेईरा पेईबी की वो औरतें जिन्होंने आर्मी को शर्मसार कर दिया था, उनमें से कई अब इस दुनिया में नहीं हैं. कुछ को बुढापे ने अशक्त कर दिया है. मनोरमा के घरवाले अभी भी न्याय का इंतज़ार कर रहे हैं. ये इंतज़ार कितना लम्बा चलेगा, कोई नहीं जानता.

 

 

 

 

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