बच्चों को पढ़ाने का ऐसा जूनून, कि खुद खुद बस चलाकर बच्चों को स्कूल लाता है ये टीचर
शिक्षा बड़े बजट नहीं, ऐसे लोगों की वजह से संभव हो पाती है.

रोज़ की तरह राजाराम सुबह-सुबह उठे. तैयार हुए. मिनी-बस निकाली और बच्चों को स्कूल पहुंचाने के लिए निकल पड़े. एक-एक कर के बच्चों को उनके घरों से पिक किया. बस बाराली नाम के सरकारी स्कूल की है. ये उडुपी, कर्नाटक में पड़ता है. जब बस स्कूल पहुंच गई, तो एक-एक कर के बच्चे उतरे और स्कूल के अंदर चले गए. राजाराम ने बस पार्क कर दी. स्कूल शुरू हो चुका था. पहली क्लास साइंस की थी. सारे बच्चे क्लास में बैठे मास्टर जी का इंतज़ार कर रहे थे.
कुछ देर बाद राजाराम क्लास में आए. बच्चों की किताबें खुल्वाईं और पढ़ाना शुरू कर दिया.
भला स्कूल बस चलाने वाला ड्राइवर बच्चों को साइंस कैसे पढ़ा सकता है?
दरअसल राजाराम बस ड्राइवर नहीं हैं. वो बाराली स्कूल के टीचर हैं.
हम आपका कन्फ्यूजन समझ सकते हैं. अगर वो टीचर हैं तो बस ड्राइवर का काम क्यों कर रहे हैं? इसलिए क्योंकि उनके स्कूल में बसें नहीं हैं. इस वजह से कई पेरेंट्स अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पा रहे हैं. आस-पास रहने वाले बच्चे या तो स्कूल जा ही नहीं रहे हैं. या जिन पेरेंट्स के पास थोड़े पैसे हैं, वो अपनी कमाई जोड़कर अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल भेज रहे हैं.

जब काफ़ी बच्चों ने एक साथ स्कूल छोड़ दिया तो राजाराम ने कुछ करने की ठानी. उन्होंने स्कूल पास कर चुके पुराने स्टूडेंट्स से मदद मांगी. पिछले साल पैसे जोड़कर एक मिनी बस खरीदी. पर दिक्कतें यहां ख़त्म नहीं हुईं. उस सरकारी स्कूल के पास इतने पैसे नहीं थे कि वो एक बस ड्राइवर रख पाएं और हर महीने उसे पगार दे पाएं. तो राजाराम ने एक फ़ैसला किया. सिर्फ़ इसलिए ताकि और बच्चे स्कूल छोड़कर न जाएं, उन्होंने टीचर के साथ-साथ बस ड्राइवर का काम भी शुरू कर दिया.
एक अंग्रेजी न्यूज़ वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा:
“मैं स्कूल के पास ही रहता हूं. तो बस चलाने की ज़िम्मेदारी मैंने उठाई. इस तरह से मैं बच्चों की सुरक्षा का ध्यान रख पाता हूं. और बच्चे स्कूल छोड़कर भी नहीं जाते.”
कमाल की बात ये है कि अब इस स्कूल में बच्चों की संख्या गिरने के बजाय और बढ़ गई है. पहले केवल 60 स्टूडेंट्स थे. अब 90 हो गए हैं.

राजाराम बच्चों को साइंस के साथ-साथ मैथ्स और पीटी भी सिखाते हैं. असल में वो पीटी टीचर के तौर पर ही नियुक्त किए गए थे. पर स्कूल में टीचरों की कमी थी. उनको पगार देने के लिए स्कूल के पास पैसे नहीं थे. इसलिए राजाराम ने बच्चों को पढ़ना भी शुरू कर दिया.
बाराली गवर्नमेंट स्कूल की प्रिंसिपल कुसुम ने एक इंटरव्यू में बताया:
“हमारे स्कूल में सिर्फ़ चार टीचर हैं. पर राजाराम अपने काम को लेकर सबसे ज़्यादा संजीदा हैं. उनको ड्राइवर और टीचर की नौकरी करते हुए दो साल हो गए हैं. वो जब भी छुट्टी पर जाते हैं तो पहले से सारा इंतज़ाम करके रखते हैं ताकि बच्चों को परेशानी न हो.”
कितने भी अभियान चल जाएं, शिक्षा का बजट कितना भी बड़ा बना दिया जाए, देश की शिक्षा में राजाराम जैसे लोग जिस तरह योगदान देते हैं, कोई लाखों खर्च कर भी नहीं दे सकता.
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