सुप्रीम कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न की शिकार औरतों के लिए एक बहुत अहम फ़ैसला सुनाया है
इस फ़ैसले से उनकी ज़िन्दगी थोड़ी आसान होगी.
वैदेही की शादी को दो साल हो गए थे. उसके ससुरालवाले उसे दहेज के लिए लगातार टॉर्चर करते रहे थे. कभी मारते-पीटते. कभी ताने कसते. एक दिन तंग आकर वो घर छोड़कर चली गई. अपने मायके पहुंची. उनको सब बताया. पर मायकेवालों ने उसे वापस ससुराल जाने को कहा. उन्हें बदनामी का डर था. वैदेही का मायका दूसरे शहर में था. थक-हारकर वो अपने मामा के घर रहने चली गई. उसके मामा-मामी ने पुलिस के पास जाकर शिकायत दर्ज करवाने को कहा. सब पुलिस स्टेशन गए. पर वहां जाकर उन्हें पता चला कि वैदेही वहां शिकायत दर्ज नहीं कर सकती. उसे उस पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करनी होगी जहां उसका ससुराल है. अब वैदेही उस शहर वापस नहीं जाना चाहती थी. इसलिए थक-हारकर बैठ गई.
ये दिक्कत अकेले वैदेही की ही नहीं है. बहुत सारी लड़कियां टॉर्चर झेल-झेलकर अपने ससुराल से दूर भाग जाती हैं. इसलिए वहां किसी पुलिस स्टेशन में जाकर शिकायत नहीं दर्ज करवा पातीं. इस चक्कर में उनका केस लटक जाता है. क्योंकि कानूनी तौर पर औरत या तो अपने ससुराल के पास किसी पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करवा सकती है या मायके के. पर उन औरतों का क्या जो न ससुराल में रह पाती हैं न मायके में?
सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी औरतों के लिए अहम फ़ैसला सुनाया है
9 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फ़ैसला सुनाया है. दहेज़ उत्पीड़न या ससुराल द्वारा सताए जा रहे मामलों में अब औरतें कहीं से भी शिकायत दर्ज कर सकती हैं. ये फ़ैसला तीन जजों की बेंच ने सुनाया है. इस बेंच को लीड कर रहे थे चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया रंजन गोगोई. उन्होंने कहा कि ज़रूरी नहीं है कि कोई औरत अपने ससुरालवालों की डिस्ट्रिक्ट में ही मुकदमा दर्ज करे. वो अपने मायके से, या और किसी जगह के पुलिस स्टेशन में जाकर मुकदमा दर्ज कर सकती है. या कोर्ट की मदद ले सकती है. वो शहर या डिस्ट्रिक्ट कोई भी हो सकती है.
(फ़ोटो कर्टसी: ट्विटर)
इस फ़ैसले का मतलब क्या है
भारतीय संविधान के आर्टिकल 498A के तहत, कानून किसी भी औरत को अपने पति और उसके रिश्तेदारों से दहेज के लिए प्रताड़ित किए जाने पर क्या करना चाहिए, इसकी सलाह देता है. पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से पहले औरतें अपने पति का घर छोड़ने के बाद प्रताड़ना की शिकायत नहीं कर पाती थीं. क्योंकि कानून के मुताबिक उनके साथ उस समय प्रताड़ना नहीं हो रही होती थी. कहने का मतलब है कि यहां कानूनी दांव-पेंच पति और उसके घरवालों के काम आ जाते थे. और वो बच जाते थे.
इस फ़ैसले से औरतों को क्या मदद मिलेगी
पहले कोई औरत अपने पति की डिस्ट्रिक्ट छोड़ने के बाद वहां मुकदमा दायर नहीं कर सकती थी. हां, अगर वो अपने मायके से मुकदमा दायर करना चाहे तो इसका प्रवाधान था. पर जो औरत अपने ससुराल और मायके दोनों में नहीं रह रही थी, उसके लिए सारे रास्ते बंद थे.
पर अब इस नए फ़ैसले ने औरतों की ज़िन्दगी थोड़ी आसान बना दी है. अब वो कहीं से भी प्रताड़ना का मुकदमा दर्ज कर सकती हैं. अपने पति का घर छोड़ने के बाद भी.
(फ़ोटो कर्टसी: ट्विटर)
क्यों लिया गया ये फ़ैसला
रुपाली देवी उत्तर प्रदेश की रहने वाली हैं. उन्होंने इस कानून के ख़िलाफ़ याचिका डाली थी. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुनाया.
अब कम से कम औरतों की थोड़ी मुश्किलें तो आसान होंगी.
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