30 साल पहले जब ट्विटर नहीं था, इस औरत ने पंजाब के DGP केपीएस गिल को कोर्ट में घसीटकर हराया
पूरे पंजाब में गिल का दबदबा था. और रूपन देओल बजाज IAS अफसर थीं.

अगर इन्टरनेट नहीं होता, पल भर में मन की बात सामने रख सकने के प्लेटफ़ॉर्म नहीं होते, तो ज़रूर #MeToo जैसा आन्दोलन कुछ साल आगे खिसक जाता. आज अपनी कहानी कहने वाली औरतें अलग अलग तरीकों से अपने एब्यूजर्स को शर्मसार कर रही हैं. उनके कच्चे चिट्ठे खोल रही हैं. इसी मामले में एक केस है जो इन सभी औरतों के लिए एक सपोर्ट सिस्टम बन सकता है, उन्हें हिम्मत बंधा सकता है. ये वो केस है जिसने आज से 30 साल पहले कानून के उन हिस्सों का इस्तेमाल किया था जिनको ब्रिटिश राज के समय से छुआ तक नहीं गया था. इस केस ने एक इतिहास रचा. केस था एक आईएएस अफसर और डीजीपी का. केस था एक सत्ता के नशे में बावले हुए पुलिस अफसर, और उसे उसकी करतूत का सबक सिखाने के लिए कमर कसे पंजाब कैडर की एक स्पेशल सेक्रेटरी का.
केस था रूपन देओल बजाज, और के पी एस गिल का.
साल है 1988. खालिस्तान की जो आवाज़ उठी थी, उसे दबाने में के पी एस गिल का बहुत बड़ा हाथ था. काफी दबदबा था गिल का अपने आस पास की राजनीति और पॉवर पॉलिटिक्स में. इस वजह से कोई उनके आड़े आने से डरता था. इसी ताकत ने गिल को इतनी हिम्मत दे दी कि स्पेशल सेक्रेटरी फाइनेंस के पद पर बैठी एक औरत, जिसके अंडर में 20000 लोग काम कर रहे थे, उसे एक हाई फाई पार्टी में सबके सामने सेक्सुअली असॉल्ट किया.
के पी एस गिल का काफी दबदबा था उस समय. फोटो: विकिमीडिया
दिन था जुलाई 18. होम सेक्रेटरी ने पार्टी रखी थी. वहां रूपन बजाज और के पी एस गिल के साथ साथ और भी कई जाने माने लोग थे. रूपन ने एक इंटरव्यू में उस रात की पूरी कहानी बताई.
के पी एस गिल ने उनको अपने पास बुलाया. उंगली से इशारा करके बुलाया और कहा, ‘गेट अप एंड कम विद मी’. रूपन ने मना कर दिया. गिल ने जोर डाला. लोग आमने सामने कुर्सियों पर बैठे थे. मर्द एक तरफ, औरतें एक तरफ. गिल रूपन के ठीक सामने आकर खड़े हुए, और रूपन के हिलने तक की जगह नहीं थी. वो उठीं, और घूमकर निकलने की कोशिश की तो गिल ने उनके नितम्बों पर जोर से हाथ मारा.
सब लोग चुप्प हो गए. पार्टी में सन्नाटा छा गया. औरतें उठ गईं. एक कम उम्र की डॉक्टर अन्दर जाकर रो रही थी. गिल को वहां से ले जाया गया. रूपन गुस्से में कांप गईं.
उनको कहा गया, मामूली सी बात है. होती रहती है. ध्यान ना दें इस पर. लेकिन रूपन ने कहा ‘ इसे जाने देने का मतलब मेरे लिए गिरे हुए आत्मसम्मान के साथ जीने जैसा था. अपने अपमान का घूंट पी लेने जैसा’. रूपन का साथ देने के लिए कोई तैयार नहीं था क्योंकि कोई भी डीजीपी से पंगा नहीं लेना चाहता था. ख़ास तौर पर वो डीजीपी जिसे सुपर कॉप और लायन ऑफ पंजाब जैसे नामों से बुलाया जाता हो. रूपन की इच्छा थी कि सरकार गिल के खिलाफ एक्शन ले, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. पंजाब के उस वक़्त गवर्नर रहे एस एस रे से लेकर चीफ सेक्रेटरी आर एस ओझा तक ने कुछ नहीं किया. जब ये नहीं हुआ तो रूपन वी एन सिंह के पास गईं जो उस वक़्त आईजी ऑफ़ पुलिस थे. रूपन ने द वायर को दिए एक इंटरव्यू में कहा, ‘उन्होंने मेरी कम्प्लेंट लिखी,उसे लिफ़ाफ़े में डाला और सील कर दिया. जब मैंने पूछा कि इसे सील क्यों किया तो सिंह ने जवाब दिया कि कम्प्लेन रजिस्टर करना उनकी ड्यूटी थी, अब उस कम्प्लेन के साथ क्या करना है ये उनका डिसीजन है. मुझे ये भी कहा सिंह ने कि उनका ये काम मेरी इज्जत बचाएगा’.
रूपन ने जो किया, वो आने वाले समय एक लिए एक लैंडमार्क बनने वाला था. फोटो: ब्लॉगस्पॉट
रूपन ने नोटिस किया कि 1860 में बने IPC (Indian Penal Code) की धारा 354 और 509 का इस्तेमाल कभी नहीं किया गया था. ये वो धाराएं हैं जो किसी भी औरत की इज्जत या सम्मान को ठेस पहुंचाने के अपराध की सजा तय करती हैं. ये चार्जेज रेप जितने गंभीर नहीं थे, लेकिन फिर भी काफी ज़रूरी थे और इनका इस्तेमाल अब तक नहीं किया गया था. इन धाराओं के तहत रूपन बजाज ने के पी एस गिल को कोर्ट में घसीटा. हाई कोर्ट ने रूपन बजाज का मामला खारिज कर दिया. कहा कि ये बहुत ही मामूली सा मामला है. हर कदम पर गिल को सपोर्ट मिला. रूपन को धमकियां दी गईं. उनके परिवार को नुकसान पहुंचाने की बातें कही गईं. लेकिन रूपन फिर भी लड़ीं. सुप्रीम कोर्ट गईं. यहीं से केस की रूपरेखा बदल गई.
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट का निर्णय पलट दिया. कहा इस मामले में रूपन की स्त्रियोचित गरिमा का अपमान किया गया है. उनकी मोडेस्टी (modesty) का अपमान किया गया है. मोडेस्टी शब्द को डिफाइन करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कई डिक्शनरियों की सहायता ली. इस निष्कर्ष पर पहुंचा गया कि सेक्सुअल अंडरटोन लिए कोई भी हरकत स्त्री के सामने की जाए उसकी मर्ज़ी के बिना जो उसकी गरिमा को भंग करे, वो सज़ा के लायक है. इस धारा के तहत दंडनीय है.
गिल को आखिरकार दोषी माना गया. इतिहास बन चुका था. फोटो : ट्विटर
2005 में ये निर्णय आया. के पी एस गिल को तीन महीने की जेल और 200000 रुपए का जुर्माना लगा. जेल प्रोबेशन में बदल दी गई. तब तक रूपन के जीवन के 17 साल निकल चुके थे.
आज रूपन मी टू मूवेमेंट के बारे में पढ़ रही हैं. खुश हो रही हैं उनको इस बात का सुकून है कि उनके केस ने एक ऐसा प्रेसेडेंट (precedent) तय किया जो आज भी सेक्सुअल हैरेसमेंट के खिलाफ जूझ रहे लोगों को हौसला दे सकता है. इस मामले में पहली बार कोर्ट ने तय किया कि मोडेस्टी की परिभाषा क्या है. विटनेस के मामले में विक्टिम खुद ही विटनेस है ये काफी है. इंटेंशन (उद्देश्य) को साबित करने की ज़रूरत नहीं, अगर किसी ने अश्लील तरीके से बर्ताव किया है तो वही इंटेंशन साबित करने के लिए काफी है. कोई लड़की अगर अपना केस कानून के सामने लड़ने जाती है, तो रूपन बजाज का ये केस काफी मददगार साबित हो सकता है.
लगातार ऑडनारी खबरों की सप्लाई के लिए फेसबुक पर लाइक करे