रुचिका गिरहोत्रा: जिसका पुलिस अफ़सर ने यौन उत्पीड़न किया, फिर तिल-तिल कर उसे आत्महत्या पर मजबूर किया
इस अफसर की खुद उसी उम्र की बेटी थी.

एक फिल्म थी- दामिनी. उस फिल्म में मीनाक्षी शेषाद्रि थीं. सनी देओल थे. ऋषि कपूर थे. दामिनी का मतलब होता है बिजली. इसमें मीनाक्षी शेषाद्रि बिजली बनकर उन लोगों पर गिरी थीं जिन्होंने एक मासूम लड़की के साथ रेप किया फिर उसे मरवा दिया था. और देखने में ऐसा लगवाया कि वो सुसाइड था. दामिनी सबके खिलाफ अकेले जूझती है. उसका साथ देने के लिए सिर्फ सनी देओल होते हैं. इसी फिल्म में वो मशहूर डायलॉग था - तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख, तारीख पर तारिख मिलती रही है, लेकिन इन्साफ नहीं मिला मी लॉर्ड, इन्साफ नहीं मिला. किस तरह सिस्टम मजबूर कर देता है लोगों को हार मान लेने के लिए. और किस तरह से कोई अपनी पॉवर का बेजा इस्तेमाल कर सकता है, वो सब कुछ इस फिल्म में देखने को मिला.

रुचिका गिरहोत्रा और उसकी सहेली आराधना प्रकाश की कहानी कुछ ऐसी ही है, बस अंतर ये है कि ये कोई बॉलीवुड फिल्म नहीं थी जहां पर 'एंड में सब कुछ ठीक ठाक हो ही जाता है'. ये असल ज़िन्दगी थी. और असल ज़िन्दगी की सबसे बड़ी बात ये है कि इसमें हम कोई अल्टरनेट एंडिंग नहीं लगा सकते. आंखें बंदकर के सीन निकल जाने का इंतज़ार नहीं कर सकते. हॉल से निकल कर या लैपटॉप बंद करके ये नहीं सोच सकते कि घर जाकर चाय-कॉफ़ी पीते हुए इसे भुला देंगे.
असल ज़िन्दगी अपने दांत निकाले हमेशा आपको खड़ी-खड़ी घूरती रहती है. आप उसे अपने बाथरूम के शीशे में भी देखते हैं, और बंद हो चुकी स्क्रीन के रिफ्लेक्शन में भी. चुपचाप. आपको देखती हुई. आपसे कुछ पूछती हुई. कभी-कभी बस दांतों के पीछे से मुस्कुराती हुई.
रुचिका गिरहोत्रा का चेहरा मेरी आँखों में कब छपा था, मुझे याद नहीं. लेकिन टीवी पर उसकी आई हुई फोटो आज भी कहीं भी देखूं तो पहचान लूंगी. रुचिका वो लड़की थी जिसे एक पुलिसवाले ने छेड़ा था, और शिकायत करने पर उसकी ज़िन्दगी कुछ इस तरह तबाह की, जिसके बारे में सुन कर ऐसा लगता है कि इतना बुरा कोई कैसे हो सकता है.
आप पढ़ रहे हैं हमारी स्पेशल सीरीज- हत्या. इस सीरीज में हम कवर करेंगे देश के उन सभी हाई प्रोफाइल मामलों को जिन्होंने देश और कानून की जड़ें हिला कर रख दीं. इन मामलों में किसी न किसी औरत की हत्या की गई. मुक़दमे चले. मुजरिमों को कई बार सजा हुई, कई बार वो छूट निकले. कई बार न्याय के लिए जनता सड़क पर उतरी. आज इस सीरीज में पढ़िए रुचिका गिरहोत्रा की आत्महत्या के बारे में, जिसे ह्त्या कहा जाना चाहिए.

रुचिका दसवीं की स्टूडेंट थी चंडीगढ़ में. उस के पापा UCO बैंक में मैनेजर थे. मम्मी नहीं थीं. एक छोटा भाई आशु भी था. रुचिका और उसकी दोस्त आराधना प्रकाश टेनिस खेलने जाती थीं, हरियाणा लॉन टेनिस असोसिएशन में. एसपीएस राठौर वहां का फाउंडिंग प्रेसिडेंट था. 1966 बैच का आईपीएस अफसर भी था. वहीं सेक्टर 6 पंचकूला में घर था उसका. उसके गैरेज में ऑफिस बना रखा था. नीचे जो लिखा है, वो कोर्ट में दिए गए बयानों, सालों-साल चले मुक़दमे से रिलेटेड इंटरव्यू इत्यादि में बताई गई बातों, और डाक्यूमेंट्स को ध्यान में रखकर उनसे इन्फोर्मेशन लेकर लिखा गया है. कोर्ट में जो डिसीजन लिया गया, उसमें भी इन सब बातों का ध्यान रखा गया था.
11 अगस्त 1990.
एसपीएस राठौर रुचिका के पिता के घर पहुंचा और उनसे कहा कि वो रुचिका को ख़ास तौर से ट्रेन करेगा. अगले दिन जब रुचिका और आराधना ट्रेनिंग के लिए पहुंचे तो उसने आराधना को बोला जाकर कोच मिस्टर थॉमस को ले आओ. जब आराधना निकली, तो राठौर ने रुचिका का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ घसीट लिया. उसकी कमर पकड़ कर उसे अपने शरीर के पास ले आया और रुचिका के हाथ-पैर मारने पर कोई ध्यान नहीं दिया. इसी बीच आराधना वापस आ गई और उसने ये सब होते हुए देख लिया. राठौर ने रुचिका को छोड़ दिया और अपनी कुर्सी में धंस गया. उसने आराधना से कहा कि जाकर खुद कोच को बुलाकर साथ ले कर आये. आराधना नहीं गई. राठौर चिल्लाया उसपर. रुचिका को रुकने को बोला. दोनों वहां से निकल भागीं. अगले दिन टेनिस खेलने भी नहीं गईं. उसके अगले दिन दूसरे टाइम पर गईं ताकि राठौर से आमना सामना ना हो. पर उस दिन भी राठौर ने उनको ऑफिस में बुलवा लिया.

पानी सर से ऊपर पहुंच गया था. उन्होंने डिसाइड किया अब घरवालों को बता देना चाहिए. उन्होंने सब कुछ बता दिया. पेरेंट्स इकट्ठा हुए, उन्होंने सोचा कि इस समय सबसे सही कदम यही रहेगा कि किसी ऊपर के लेवल के आदमी तक बात पहुंचाई जाए. सीएम या होम मिनिस्टर तो नहीं, लेकिन होम सेक्रेटरी जे. के. दुग्गल से मुलाकात उनकी हो ही गई. उनको सब कुछ बताया गया. बात हुई कि इस मामले में राठौर पर एफआईआर दर्ज तो करानी ही चाहिए. उस समय डीजीपी राम रक्षपाल सिंह को ज़िम्मेदारी दी गई कि इस केस की जांच पड़ताल करें. उन्होंने राठौर को दोषी पाया. रिपोर्ट दे दी.
लेकिन राठौर का बाल भी बांका नहीं हुआ.
रुचिका के लिए नरक धरती पर उतार दिया गया. एक रसूख वाले इंसान से आखिर 'पंगा' जो ले लिया था उसके परिवार ने.
इस बात के बाद रुचिका को उसके स्कूल से निकाल दिया गया. वजह बताई गई - रुचिका ने फीस नहीं भरी. मजिस्ट्रेट ने जांच करवाई तो पता चला कि स्कूल में फीस लेट देने पर निकालने का कोई सिस्टम नहीं है. कई बच्चे थे जिन्होंने रुचिका से लेट फीस भरी. उन्हें कुछ नहीं हुआ.
रुचिका के भाई आशु को उठा कर पुलिस स्टेशन ले गए. मनसा देवी. उसे टॉर्चर किया. बताया कि कैसे उसे हाथ-पैर बांध कर थर्ड डिग्री टॉर्चर दिया गया.
उसने ये भी बताया कि पुलिस स्टेशन में खुद राठौर ने आकर पूछा कि उसको ठीक से सलटाया या नहीं.

आशु पर 11 कार चोरियों में शामिल होने का आरोप लगाया गया.
हथकड़ी लगा कर घुमाया गया.
ये बातें खुद आशु ने 'द टेलीग्राफ' को दिए गए एक इंटरव्यू में स्वीकारीं.
29 दिसंबर 1993 को रुचिका ने ज़हर पी लिया. उसकी मौत हो गई.
रुचिका के पिता ने कोशिश की कि एबेटमेंट ऑफ़ सुसाइड का केस लगे राठौर पर. आशु को जेल में टॉर्चर करने के कारण अटेम्प्ट टू मर्डर का भी चार्ज लग सकता था. लेकिन सबूत की कमी बताकर इन मामलों को बंद कर दिया गया. अब तक गिरहोत्रा परिवार टूट गया था. उन्होंने इस मुद्दे पर फिर कोई बात नहीं की. आराधना प्रकाश इस केस की इकलौती गवाह थी जिसने राठौर को रुचिका को छेड़ते हुए देखा था.

उसके पिता आनंद प्रकाश ने जी जान लगा कर ये केस लड़ा. आराधना को हैरेस किया गया. उसे भद्दे-भद्दे फ़ोन कॉल आये. धमकी दी गई. आनंद प्रकाश पर कई केस एक साथ ठुक गए. उन्होंने फिर भी हार नहीं मानी. अंत में सुप्रीम कोर्ट ने भी राठौर को दोषी माना. और छः महीने की सजा बरकरार रखी. ये 2009 की बात है.

रुचिका मरी नहीं थी. उसे मारा गया था. तिल-तिल कर. एकएक केस से. एक-एक आरोप से. जब उसको स्कूल से एक्सपेल किया गया था और अदालत में कहा गया कि उसका कैरेक्टर खराब था. जब उसके भाई को बार-बार उठा कर पुलिस स्टेशन ले जाकर टॉर्चर किया गया. जब उसके पिता का जीना हराम कर दिया गया.
रुचिका एक बार नहीं, कई बार मरी.
19 साल. एक लड़की का परिवार और उनके दोस्त न्याय के लिए जूझे. राठौर की अपनी बेटी प्रियांजलि, जो रुचिका की क्लासमेट थी, लाइमलाईट से दूर होते होते बिलकुल अलग हो गई. आराधना शादी कर के ऑस्ट्रलिया चली गई. आशु की शादी हुई, उसकी एक बेटी है. आनंद प्रकाश की जनवरी 2018 में प्रोस्टेट कैंसर से मौत हो गई.
एसपीएस राठौर को हाल में ही रिपब्लिक डे के सेलिब्रेशन में चीफ गेस्ट के तौर पर बुलाया गया था पंचकूला में.
जोर से कहिए - कानून के हाथ लम्बे होते हैं. कानून अंधा होता है.
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