क्या पीरियड की वजह से औरतें अपना आपा इस कदर खो सकती हैं कि किसी की हत्या कर दें?

औरतों के पीरियड उनके शरीर में 100 से भी ज्यादा बदलाव लाते हैं.

सरवत फ़ातिमा सरवत फ़ातिमा
अगस्त 09, 2018
PMS आख़िर होता क्या है? फ़ोटो कर्टसी: Pixabay

आज से क़रीब तीस साल पहले अजमेर में एक महिला रहती थी, रजनी (नाम बदल दिया गया है). 1981 में उसने तीन बच्चों को अगवा किया. दो लड़के और एक लड़की. अगवा करने के बाद उसने बच्चों को एक कुएं में फेंक दिया. आसपास खड़े लोगों ने लड़की और एक लड़के को बचा लिया. पर एक लड़के की डूबने से मौत हो गई. रजनी को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया. लगभग तीस साल ये केस चला.

पहली अगस्त को राजस्थान हाई कोर्ट ने एक फ़ैसला सुनाया. रजनी को बरी कर दिया गया. क्यों. क्योंकि रजनी के वकील ने दलील ही कुछ ऐसी दी थी. उनके मुताबिक जिस समय रजनी ने बच्चों को मारा, उस वक़्त वो अपने होशो-हवास में नहीं थी. उसको पीरियड्स होने वाले थे. तब वो PMS से गुज़र रही थीं. PMS मतलब प्री-मेनस्ट्रूअल सिंड्रोम. इसे और आसान शब्दों में समझते हैं. पीरियड्स शुरू होने से पहले कुछ महिलाओं के शरीर में हॉमोर्नल इम्बैलेंस हो जाता है. यानि हॉर्मोंस की उथल-पुथल रहती है. इसका असर उनके दिमाग पर भी पड़ता है. इस वजह से पीरियड्स के कुछ दिन पहले से ही उनका मूड ख़राब रहता है. उन्हें गुस्सा आता है. चिड़चिड़ाहट होती है. रोना आता है.

क्या वाकई PMS औरतों को इतना असर कर सकता है कि वो किसी की जान ले लें. फ़ोटो कर्टसी: Reuters क्या वाकई PMS औरतों को इतना असर कर सकता है कि वो किसी की जान ले लें. फ़ोटो कर्टसी: Reuters
कई लोगों को लगता है कि PMS नाम की कोई चीज़ नहीं होती. ये सब औरतों के दिमाग की उपज है. पर सच ये नहीं है. राजस्थान हाई कोर्ट ने तो इस दलील की बिना पर रजनी को रिहा भी कर दिया. तो क्या वाकई PMS औरतों पर इतना असर कर सकता है कि वो किसी की जान ले लें. ये जानने के लिए हमने साईकिएट्रिस्ट, डॉक्टर भावना बरमी से बात की. वो एस्कॉर्ट्स हॉस्पिटल, दिल्ली में काम करती हैं. साथ ही हमने हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की वकील प्रज्ञा सिंह से भी बात की.

इन दोनों से हमने ये समझने की कोशिश की कि कोर्ट ने क्या देखकर ये फ़ैसला लिया. सबसे पहले तो आते हैं कानून पर. प्रज्ञा बताती हैं कि दिमागी हालत ठीक न होने पर कई लोगों को कोर्ट बरी कर देता है. चाहे जो भी अपराध हो. दिक्कत की बात ये है कि भारत में और बाहर भी ऐसे बहुत केसेस नहीं है.

तो इस केस में महिला के पक्ष में जो चीज़े गईं वो हैं:

1. डॉक्टरों की मानें तो PMS वाकई एक हेल्थ इश्यू है. और कुछ औरतों को ये काफ़ी सीरियस तरीके से नुकसान पहुंचता है. उनके सिम्पटम्स सिर्फ़ ख़राब मूड तक सीमित नहीं रहते. इस दौरान उनकी दिमागी हालत इतनी ख़राब हो जाती है कि उनका ख़ुद पर ही बस नहीं रहता. इस केस में ये जानना ज़रूरी था कि क्या ऐसा इस महिला के साथ पहले भी हुआ है?

जवाब था- हां. तीन अलग-अलग डॉक्टरों ने पहले उसका इलाज भी किया था. उन्होंने कोर्ट में गवाही भी दी. उनके मुताबिक रजनी की PMS के दौरान वाकई बुरी हालत हो जाती थी.

जब कोर्ट को यकीन हो गया कि रजनी पहले भी PMS के दौरान अपना दिमागी संतुलन खो देती थी, तो उसने उसके हक़ में फ़ैसला सुनाया.

डॉक्टरों की माने तो PMS वाकई एक हेल्थ इशू है. फ़ोटो कर्टसी: Reuters डॉक्टरों की माने तो PMS वाकई एक हेल्थ इशू है. फ़ोटो कर्टसी: Reuters

2. दूसरी चीज़ जो रजनी के हक़ में गई वो है औरत की ममता. औरतें प्राकृतिक तौर पर थोड़ी ‘सॉफ्ट’ होती हैं. वो क्रूर नहीं होती हैं. ऐसा ज़्यादातर माना जाता है. तो अगर रजनी ने तीन बच्चों को कुएं में ढकेला तो वो अपने होशो-हवास में हरगिज़ नहीं किया होगा. वो एक औरत है और औरत बच्चों के साथ ऐसा नहीं कर सकती.

3. सबसे बड़ी बात, क्योंकि रजनी के पुराने डॉक्टरों ने ये साबित किया कि वो पहले भी कई बार PMS की वजह से अपना आपा खो देती थी, इसलिए उसे ‘बेनिफिट ऑफ़ डाउट’ मिला. मतलब जज जब पूरी तरह से श्योर नहीं होते, तो मुजरिम को उसका फ़ायदा दिया जाता है. इसलिए भी क्योंकि उसके ख़िलाफ़ ठोस सबूत नहीं होते.

4. रजनी ने बच्चों को मारने से पहले उनको किडनैप किया था. ऐसा वही कर सकता है जिसकी अपराधी मानसिकता हो. क्योंकि रजनी ने अपने पास्ट में कोई ऐसा क्राइम नहीं किया था, इसलिए वो बच गई.

जज जब पूरी तरह से शियोर नहीं होते, तो मुजरिम को उसका फ़ायदा दिया जाता है. फ़ोटो कर्टसी: Shutterstock जज जब पूरी तरह से शियोर नहीं होते, तो मुजरिम को उसका फ़ायदा दिया जाता है. फ़ोटो कर्टसी: Shutterstock

5. हमारे देश में ठोस मेडिकल लॉज़ नहीं हैं. मतलब इस तरह के केसेस के लिए कोई ठोस मेडिकल कानून नहीं है. इसलिए PMS वाकई दिमाग में असंतुलन पैदा कर सकता है या नहीं इसका कानून के पास कोई एग्जैम्पल या उदाहरण नहीं है.

ये तो हुई बात कानून की. अब आते हैं कि डॉक्टर इस बारे में क्या कहते हैं. भावना बरमी की राय थोड़ी अलग है. उनका कहना है:

“PMS अकेले किसी भी औरत को हत्या कर देने पर आतुर नहीं करता है. हो सकता है उस महिला को कोई दिमागी बीमारी हो. जो पहले से न उसे, न ही उसके डॉक्टरों को पता हो. PMS के साथ-साथ किसी एक दिमागी बीमारी का होना तो बेहद ख़तरनाक कॉम्बिनेशन बन जाता है. उस केस में महिला अपने नैचुरल बिहैवीयर से हटकर हरकतें करती है. जैसे इस केस में हुआ. PMS एक सीरियस कंडीशन है. हम सभी इसे इग्नोर करते हैं. मज़ाक में लेते हैं. पर PMS का असर हमारे दिमाग पर भी पड़ता है. इसलिए औरतों को इसे सीरियसली लेना शुरू कर देना चाहिए.”

हमारे देश में ठोस मेडिकल लॉज़ नहीं हैं. फ़ोटो कर्टसी: ट्विटर हमारे देश में ठोस मेडिकल लॉज़ नहीं हैं. फ़ोटो कर्टसी: ट्विटर
अब कोर्ट ने जो फ़ैसला लिया सो लिया. पर इस केस के ज़रिए एक बात तो साफ़ है. हम PMS को हल्के में नहीं ले सकते. ये और बीमारी की तरह ही संजीदा है. इसलिए अगर आपको लगे कि पीरियड शुरू होने से पहले आप अपने आपे में नहीं रहतीं, तो डॉक्टर को ज़रूर दिखाएं.

 

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