मिस शेफ़ाली: कैबरे क्वीन जिसको देखने के लिए लोग चींटियों की तरह कतार लगाते थे

कलकत्ते की सबसे चाही जाने वाली लड़की, जिसपर अब फिल्म आ रही है.

सुमित सिंह सुमित सिंह
अगस्त 21, 2019

सीन 39:

कैमरा समंदर के ऊपर रेंगता हुआ स्याह सफ़ेद पर्दे पर कुछ फौजियों को दिखाता है. थ्री नॉट थ्री रायफ़लों के मुहाने पर चौकस संगीनें. मौत के सामने खड़े एक फ़ौजी को याद आती है गुज़रे कल तक की ज़िंदगी. याददाश्त के लिए स्क्रीन पर फ्लैशबैक. उन्हीं फ्लैशबैक्स में से एक रील में छपी हुई एक लड़की. कैमरा धीरे-धीरे करवट लेता है और लड़की के बालों पर आकर रुकता है.

पीछे से एक गरजती आवाज़ आती है ‘कट’. ये गरजती आवाज़ थी सत्यजीत रे की. फ़िल्म थी ‘प्रतिद्वंदी’. साल था 1970.

shefali-film_082119013419.jpg1970 में आई सत्यजीत रे की 'प्रतिद्वंदी' फ़िल्म का एक सीन

साल 2018. कोलकाता के नागेर बाज़ार इलाक़े का एक क्लीनिक. एक रिक्शा आकर रुकता है. 74 साल की एक उदास औरत चौकस क़दमों से डिस्पेंसरी की ओर बढ़ती है. दवा लेती है. हिसाब खाते में लिखा देती है.

आधी सदी पहले इस उदास औरत का चेहरा देखने के लिए कइयों ने अपने घर बेचे थे. बेहिसाब जूनून से थिरकती शेफ़ाली. मिस शेफ़ाली. लेकिन ज़िंदगी के साथ शेफ़ाली का हिसाब शुरू हुआ 1949 में. पैदाइश का साल.

हिंद की आज़ादी और बंटवारे के ज़ख्म दोनों ताज़े थे. एक परिवार पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान आकर बसा. जो अब बांग्लादेश है. बाद में परिवार की रिहाइश हो गई तब के कलकत्ता में.

हर दिन रोटी रोज़गार के लिए पांव घिसटते पिता को तब कहां पता था कि उनकी बेटी के पांव एक दिन ऐसे थिरकेंगे कि उसके सामने आसमानी बिजली भी शर्मा जाए. मां ने घर चलाने के लिए दूसरों के घरों में बर्तन चूल्हा करना शुरू किया. तीन बेटियों और एक बेटे का बोझ जो था. सबसे बड़ी बेटी तब 11 साल की थी. आरुती दास. लिखने के लिए आरती.

# जोलेर छाया

आरती काम करना चाहती थी. एक नर्स से बात व्यवहार हुआ तो उसने एक घर पर लगा दिया. एक एंग्लो-इंडियन परिवार. आरती के ज़िम्मे आया चूल्हा. और चूल्हा था कि भभकता ही रहता था. हर दिन कोई न कोई पार्टी. गाना-बजाना-नाचना. आरती पर्दे के पीछे से लोगों को नाचते देखती रहती. अंग्रेज़ी गानों पर हौले-हौले नाचते लोग. महीने की तनख्वाह थी 70 रूपए. यहीं आरती को मिला 'विवियन'. पार्क स्ट्रीट के एक रेस्त्रां 'मकाम्बो' का सिंगर.

‘क्या काम कर सकती हो?’ पूछने पर आरती ने बिना एक पल गंवाए जवाब दिया ‘डांस’.

विवियन आरती को लेकर गया Firpo’s. ये कलकत्ता में साठ के दशक का सबसे महंगा होटल था. वहां आरती ने अपने डांस के कुछ नमूने दिखाए.

firpos_082119013612.jpgउस दौर में कैबरे करने वाले बचे नहीं थे देश में

अपनी आत्मकथा ‘संध्या रातेर शेफ़ाली’ में आरती लिखती हैं-

‘वहां सारे लोग अंग्रेज़ी में बकबक कर रहे थे. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था. मुझे सिर्फ़ इतना जानना था कि कुछ काम मिला कि नहीं. साहेब लोग आपस में बात करके बोले कि काम मिल गया है. और तनख्वाह होगी 700 रूपए.’

बाक़ायदा रहने के लिए घर. डांस सिखाने के लिए टीचर. क्योंकि आरती को करना था कैबरे डांस. और तब तक लगभग सारे कैबरे डांसर देश छोड़कर जा चुके थे. 70 रूपए से सीधे 700 रूपए. उस ज़माने में ये वो पेशकश थी जिसे कोई ठुकराने की सोच भी नहीं सकता.

book_082119013813.jpgमिस शेफ़ाली ने भारत में कैबरे को फिर एक बार जिंदा किया

# दिवसेर रात्रि

लेकिन जो उस दिन हुआ वो भी आरती ने सोचा नहीं था. पहला पब्लिक परफ़ॉर्मेंस. होटल गई तो उसे तैयार होने को कहा गया. पहनने के लिए झीनी सी झालरदार ब्रा और वैसा ही अंडरवियर. यही कैबरे डांसर की ड्रेस होती थी. अब यहां से आरती वापस नहीं मुड़ सकती थी. उसने वही ब्रा और अंडरवियर पहना और स्टेज पर आ गई. अपनी आत्मकथा में आरती लिखती हैं-

‘मेरे शरीर में कुछ भी ढंग से ढंक नहीं पा रहा था. सामने सैकड़ों लोग थे और मुझे बिल्कुल नंगा महसूस हो रहा था. सूट-बूट पहने सिगार शराब पीते लोग. लेकिन म्युज़िक मैन ने इशारा किया और मैं तैयार थी. म्युज़िक शुरू हुआ और मैं नाचने लगी.’

उस शाम आरती दास ख़त्म हुई और शेफ़ाली ने जन्म लिया. 12 साल की मिस शेफ़ाली. हॉल में हर शख्स चीखते चिल्लाते तालियां बजा रहा था. शेफ़ाली एक नए सफ़र पर निकल गई. उसी दिन मिले नए नाम के साथ.

she_082119013954.jpgशेफ़ाली ने जो सफ़र शुरू किया उसे क़िताबों में दर्ज किया जाना था

# मिस शेफ़ाली

यहां से शुरू होता है कलकत्ता की ‘नाइट क्वीन’ का सफ़र. शाम से Firpo’s के आगे लोग जमा होना शुरू कर देते थे. हर कोई मिस शेफ़ाली को एक झलक निहारना चाहता था. देश में हेलेन और कलकत्ता में मिस शेफ़ाली का कहर था. शेफ़ाली अपना गुरु मानती थी हेलेन को. इतना ज़्यादा मानती थीं कि जब एक बार किसी ने मिस शेफ़ाली को हेलेन के साथ स्टेज पर कैबरे करने को कहा तो मिस शेफ़ाली ने बिना सोचे मना कर दिया.

Firpo’s में मिस शेफ़ाली दसियों बरस तक नाचीं. और कलकत्ता में कैबरे का दूसरा नाम बन गईं. शेफ़ाली मतलब कैबरे.

untitled-design-10_082119014947.jpgहेलेन और शेफ़ाली

# रात्रेर प्रेमी

शेफ़ाली को देखने के लिए लोग चींटियों की तरह क़तार लगाते थे. साठ और सत्तर के दशक में होश संभाले कलकत्ता का कोई ऐसा नौजवान नहीं होगा जिसके सपनों में शेफ़ाली ना आई हो (अतिश्योक्ति अलंकार).

शेफ़ाली ने भी कई अलंकार और उपमाएं कमाई थीं. ‘क्वीन ऑफ़ कैबरे’. मिस शेफ़ाली की क़ामयाबी का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उस दौर का ऐसा कोई बंगाली सुपरस्टार नहीं होगा जिससे शेफ़ाली की दोस्ती ना हो. क़ामयाबी आई तो फ़िल्म में काम करने की पेशकश भी होने लगी. शेफ़ाली के पास अनगिनत ऑफर थे. फ़िल्मों में काम करने के. लेकिन शेफ़ाली से काम करवाया सत्यजीत रे ने.

एक शाम शेफ़ाली के पास सत्यजीत रे का संदेसा आया. जब शेफ़ाली सत्यजीत से मिलने पहुंची तो सत्यजीत ने सीधा सवाल पूछा. ‘सिगरेट पीती हो?’

शेफ़ाली में सत्यजीत के लिए इज़्ज़त से ज़्यादा डर था. जवाब दिया ‘ना दादा.'

सत्यजीत ने कहा कि इस रोल के लिए मेरी दो शर्तें हैं. पहली कि ‘सिगरेट पीनी होगी’ और दूसरी कि एक सीन में ‘ब्लाउज़ खोलना होगा.’ शेफ़ाली तैयार थीं. सत्यजीत शेफ़ाली को घर छोड़ने अपनी गाड़ी में ले गए. ख़ुद गाड़ी चला रहे थे. अचानक एक दुकान के पास गाड़ी रोककर कहा ‘शेफ़ाली तुम कौन सी सिगरेट पीती हो?’

शेफ़ाली की ज़बान पर खट्ट से आया ‘555’. और अभी कुछ देर पहले बोले झूठ पर शेफ़ाली शर्मिंदा हो उठीं. सत्यजीत दुकान से अपने और शेफ़ाली दोनों के लिए सिगरेट ले आए.

सत्यजीत रे के साथ शेफ़ाली ने 1960 में ‘सीमाबद्ध’ और 1970 में ‘प्रतिद्वंदी’ फ़िल्म की.

satyjit_082119014219.jpgसत्यजीत रे की फ़िल्म में काम करने से पहले शेफ़ाली को सत्यजीत से डर लगता था. क्योंकि बाहर इनके बारे में 'खडूस' डायरेक्टर होने की कहानी चलती थी

# आमार कोथा

मिस शेफ़ाली अब 75 की उम्र में भी ‘मिस शेफ़ाली’ हैं. 2016 में अपनी आत्मकथा लिखी और नाम दिया ‘संध्या रातेर शेफ़ाली.’

शेफ़ाली ‘मिस’ थीं अब भी ‘मिस’ ही हैं. सिर्फ़ एक बार प्यार हुआ. रॉबिन से. एक शादीशुदा अमरीकन. और वो शेफ़ाली से शादी के लिए तैयार भी था. लेकिन रॉबिन को लौटना था, लौट गया.

shefali-bkk_082119014412.jpgमिस शेफ़ाली ने अपनी आत्मकथा में बताया है कि कैसे उनके दरवाज़े के आगे प्रोड्यूसर लोग कुर्सी लगाकर बैठते थे

# सांझ और रात की शेफ़ाली

शेफ़ाली एक फूल का नाम होता है. शेफ़ाली के फूल रात को खिलते हैं. शाम को खिलकर चांद के साथ जवान होती शेफ़ाली की रेशमी महक का कोई तोड़ नहीं होता. बुज़ुर्ग कहते हैं कि शेफ़ाली की गंध से ज़हरीले सांप उनकी तरफ़ खिंचे चले आते हैं. रात भर उनके ज़हर को गमकाती ठंडाती है शेफ़ाली. सुबह का सूरज और फली हुई जिंदा शेफ़ाली कभी एक-दूसरे को देख नहीं पाते. सुबह होते ही शेफ़ाली झर जाती है. गिरती या टूटती नहीं. झरती है. पूरी की पूरी गांछ ही शेफ़ाली से चुक जाती है. सड़कों, गलियों, आंगनों में सुबह अनगिनत मरी हुई शेफालियां मिलती हैं. दफ्तरों, स्कूलों, कचहरियों, दुकानों को जाते लोग इन फूलों को कुचलते जाते हैं.

मिस शेफ़ाली ने अपनी रात देख ली. चांद पूरा हो चुका है. तब भीड़ शेफ़ाली के साथ चलती थी, अब शेफ़ाली भीड़ के साथ चलती हैं.

shefaaali_082119014600.jpgशेफ़ाली ने चांद रातों का सफ़र कब पूरा किया उन्हें ख़ुद नहीं पता चला

 # सीन 40

कैमरा शेफ़ाली के चेहरे पर अटका हुआ है. ज़ूम आउट होता है. कैमरे की आंखें फैलती हैं. अब चेहरे के पीछे लहराता हुआ समंदर दिख रहा है. धीरे-धीरे नायक के सामने से पूरा सीन धुंधला जाता है. नायक को लगता है कि जो लड़की अभी थी, वो शायद कभी थी ही नहीं. नज़र का धोखा था . नायक के सामने संगीनों वाली बंदूकें आ जाती हैं. ये थीं, हैं और रहेंगी.

पीछे से एक गरजती आवाज़ आती है ‘कट’. 

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