पुलवामा में शहीद हुए जवानों के परिवार वालों की बातें सुन गला रुंध जाता है
कोई भी सर्जिकल स्ट्राइक इनके पतियों, बेटों को वापस नहीं ला सकती.
एक बार फिर आतंकी हमला हुआ. 14 फरवरी 2019 की शाम थी, समय हो रहा था दोपहर के 3 बजकर 20 मिनट. जगह थी जम्मू कश्मीर का पुलवामा. लोग थे, हमारे जवान. वो जवान जो हमारे रक्षाकवच हैं. शहीद हो गए, इस आतंकी हमले में. 44 जवान शहीद हो गए. और 48 गंभीर रूप से घायल हैं. संख्या बढ़ते जा रही है.
पुलवामा के अवंतीपुरा इलाके से सीआरपीएफ के जवानों का काफिला रवाना हो रहा था. जवानों के भरी हुई करीब 70 गाड़ियां श्रीनगर-जम्मू हाईवे से गुजर रही थीं. जब वो अवंतीपुरा इलाके को क्रॉस कर रही थीं, तभी एक कार उस काफिले की एक गाड़ी से टकरा गई. और जोरदार धमाका हुआ. सीआरपीएफ की गाड़ी के चिथड़े मच गए. 44 जवान शहीद हो गए. इस हमले में करीब 350 किलो IED का इस्तेमाल हुआ था. हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली. पुलवामा अटैक, 2016 में हुए उड़ी हमले के बाद, पहला सबसे बड़ा आतंकी हमला है.
आतंकी हमले के बाद की तस्वीर. फोटो- रॉयटर्स
हमला हुआ, संगठन ने जिम्मेदारी ली. नेताओं ने दुख जताया. ट्वीट कर दिया. बयान दे दिए, कि मुंहतोड़ जवाब देंगे. पाकिस्तान पर जुबानी हमला करने लगे. जमकर बवाल कट रहा है सोशल मीडिया पर. लेकिन उन लोगों का क्या, जिन्होंने इस हमले में अपनों को खो दिया. शहीद जवानों के परिजनों की हालत इस वक्त क्या होगी, ये आप सोच भी नहीं सकते.
# शहीद सुखजिंदर सिंह के पिता के आंसू नहीं थम रहे
पंजाब के तरनतारण में सुखजिंदर के घर के सामने लोगों का जमावड़ा लगा हुआ है. घर के बाहर और अंदर लोग रो रहे हैं. क्योंकि अब सुखजिंदर कभी वापस नहीं आएगा. वो शहीद हो गया है. उसके पिता के आंसू थम नहीं रहे हैं. मां का रो-रोकर बुरा हाल है. बच्चा छोटा है, उसे ये भी नहीं पता कि अब उसके पिता कभी वापस नहीं आएंगे.
शहीद सुखजिंदर. फोटो- वीडियो स्क्रीनशॉट
सुखजिंदर के पिता अपने बेटे को याद करते हुए वो कहते हैं, 'हमें सुखजिंदर के बारे में 14 फरवरी को शाम सात बजे जानकारी मिली. मेरी उससे सुबह 10 बजे बात हुई थी. उसने कहा था कि वो दोबारा कॉल करेगा. लेकिन मुझे क्या पता था, कि मैं आखिरी बार बात कर रहा हूं. उसका एक छोटा सा बच्चा है. बहुत बुरी हालत है उसकी अभी. उसकी मां भी रो रही है. बुरी हालत है उसकी. मेरी खुद 70 साल की उम्र है. वो मेरा बहुत अच्छा बेटा था. जब भी छुट्टी पर आता था, मेरे साथ काम करता था. बहुत गुस्सा आ रहा है. जिन्होंने भी ऐसा किया, उन्हें छोड़ा नहीं जाना चाहिए'.
# 15 दिन बाद घर जाकर बेटी की शादी तय करने वाले थे संजय सिन्हा
पटना के संजय सिन्हा, 15 दिन बाद घर जाने वाले थे. बेटी की शादी तय करने वाले थे. लेकिन अब वो कभी अपने घर नहीं लौट सकेंगे. आतंकी हमले में वो शहीद हो चुके हैं. उनकी शहादत की खबर 14 फरवरी की शाम साढ़े सात बजे उनके घरवालों को मिली.
शहीद जवान संजय सिन्हा. फोटो- ट्विटर
संजय के पिता का कहना है कि उन्हें इस बात पर गर्व है कि उनका बेटे ने देश के लिए बलिदान दिया है. लेकिन अब उनके परिवार का क्या होगा. एनडीटीवी के मुताबिक, उन्होंने कहा कि शहादत पर हमेशा से केवल राजनीति होती आई है. काफी समय से जवान मारे जा रहे हैं. लेकिन सरकार और विपक्ष हर कोई केवल राजनीति में लगा रहता है. सरकार को शहीदों के परिवार पर भी ध्यान देना चाहिए. साथ ही संजय के पिता ने सरकार से मांग की है कि वो आतंक के खिलाफ ठोक कदम उठाए.
# पिता बोले, 'बेटा तो चला गया, अब सरकार को हमें सपोर्ट करे'
उत्तर प्रदेश के बनारस का बेटा रमेश यादव भी हमले में शहीद हुआ है. उसके परिवार वालों का क्या हाल है, हम शब्दों में लिख नहीं सकते. रमेश अपने परिवार का सहारा था. परिवार गरीब है. पिता ने जमीन गिरवी रखकर बेटे को पढ़ाया था.
रमेश यादव. फोटो- वीडियो स्क्रीनशॉ
रमेश के पिता कहते हैं, 'हमें 14 फरवरी की शाम को कॉल आया. मैंने फोन उठाया. मेरे से पूछा गया कि क्या तुम रमेश के पिता हो. मैंने हां कहा, तब मुझे बताया कि रमेश आतंकी हमले में शहीद हो गया है. और उसकी बॉडी नहीं मिल रही है. उसकी एक बहू है. उसका डेढ़ साल का बेटा है. हमारी स्थिति बहुत खराब है. रमेश हमारा सहारा था. हमने खेत-जमीन सब गिरवी रखकर लड़के को पढ़ाया था. हमारा लड़का शहीद हो गया है. हम अपना एक और लड़का देश को देने के लिए तैयार हैं. एक हमारा पोता है, हमें दो नौकरी मिलनी चाहिए. सरकार को हमारी मदद करनी चाहिए. हमारे पास कुछ भी नहीं है. हम कैसे रहेंगे. पैसे नहीं है. बेटा तो शहीद हो गया, अब खाना-पीना कैसे करेंगे. हमें नौकरी चाहिए एक, हमारा और कोई सहारा नहीं है.' रमेश के पिता ने आगे कहा कि पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब मिलना चाहिए.
रमेश का परिवार.
# रतन ठाकुर के पिता की बातें आपके कानों में गूंजती रहेंगी
बिहार के भागलपुर में रतन ठाकुर के घर के अंतर मातम पसरा हुआ है. जिस घर में कभी हंसी की आवाज गूंजती रहती थी, आज वहां कोई कुछ बोल भी नहीं पा रहा है. क्योंकि रतन ठाकुर भी इस हमले में शहीद हो गए हैं. उनके शहीद होने की खबर जब उनके घर पहुंची, तब से ही उनके परिवार के लोगों का बुरा हाल हो रखा है. रतन का एक छोटा सा बच्चा भी है. जो चार साल का है. जिसे इस बात की कोई खबर नहीं है, कि अब वो अपने पिता को दोबारा कभी देख नहीं सकेगा. रतन की पत्नी इस वक्त प्रेगनेंट है. रतन होली पर घर आने वाला था.
शहीद रतन ठाकुर अपने परिवार के साथ.
रतन के पिता निरंजन ठाकुर को जब अपने बेटे की शहादत की खबर मिली, तब वो फूट-फूटकर रोने लगे. रतन अब उनके साथ नहीं है. बेटा सेना में जाना चाहता था. इसलिए उसे पढ़ाने के लिए निरंजन ने मजदूरी की. सड़कों पर जूस का ठेला लगाया. ठेला लगाकर कपड़े बेचे. कड़ी मेहनत की और बेटे को पढ़ाया, इस काबिल बनाया, कि वो देश के लिए कुछ कर सके. उनकी मेहनत रंग भी लाई. 2011 में रतन सीआरपीएफ में भर्ती हो गया.
रतन के पिता निरंजन. फोटो- ट्विटर
निरंजन का कहना है, 'मैंने अपना एक बेटा भारतमाता के लिए खो दिया है. मैं दूसरे को भी देश के लिए लड़ने के लिए भेजूंगा. लेकिन पाकिस्तान को उसकी इस हरकत का जवाब मिलना चाहिए. उसे माफ नहीं किया जाना चाहिए.'
# जैमल सिंह का परिवार सदमे में, पिता बोले- आतंकवाद खत्म हो, ताकि कोई अपना बेटा न खोए
पंजाब के मोगा जिले के गालोटी गांव का एक घर. घर के सभी लोग सदमे में हैं. क्योंकि उनका बेटा जैमल सिंह, जो देश की सेवा के लिए गया था, अब कभी वापस नहीं आएगा. घर का कोई व्यक्ति कुछ बोलने के काबिल नहीं है.
जैमल सिंह. फोटो- वीडियो स्क्रीनशॉट
सुखजीत कौर को जब ये पता चला कि आतंकी हमले में उसका पति शहीद हो गया है, उसका दिल धक्क से हो गया. वो बिस्तर पर बेसुध गिर पड़ी. उसका रोना बंद नहीं हो रहा है. जैमल की मां, अपनी बहू को किसी तरह संभालने की कोशिश कर रही है. 1993 में सेंट्रल फोर्स से जुड़ने वाले जैमल ने, आखिरी बार 12 फरवरी की रात को घर पर बात की थी.
जैमल का परिवार.
जैमल के पिता जसवंत का भी बुरा हाल है. उन्होंने पाकिस्तान से कड़ा बदला लेने की मांग की है. रोते हुए जसवंत कहते हैं, 'अब समय आ चुका है कि भारत आतंकवाद को खत्म कर दे. हमेशा के लिए आतंकवाद खत्म होना चाहिए, ताकि कोई भी मां-बाप अपना बच्चा ना खोए. कोई भी औरत अपना पति न खोए'.
# चार दिन पहले ही छुट्टी से ड्यूटी पर लौटा थे अजीत कुमार
हमले में उत्तर प्रदेश के उन्नाव के अजीत कुमार भी शहीद हुए हैं. सीआरपीएफ की 115वीं बटालियन में तैनात थे. पांच भाइयों में सबसे बड़े थे. कुछ दिन पहले घर आए थे. परिवार खुश था, लेकिन अब हर किसी की आंखों से आंसू बह रहे हैं. चार दिन पहले ही अजीत ड्यूटी पर लौटे थे.
शहीद अजीत कुमार.
उनका परिवार भी अब पाकिस्तान को उसके किए की सजा दिलवाना चाहता है. इस वक्त अजीत के घर पर मातम पसरा हुआ है. घरवालों का कहना है कि जब अजीत छुट्टियों से वापस जा रहा था, तब उन्हें नहीं पता था कि उसे आखिरी बार देख रहे हैं.
ब्लास्ट का एलर्ट जारी हो चुका था
हर जवान जब सेना में जाता है, एक ख्वाहिश होती है उसकी. यही कि अगर मौत आए तो देश के लिए जंग में लड़ते वक्त आए. शहीद हो जाए वो. इस हमले में भी जो हुआ, वो शहादत ही है. लेकिन क्या इसे आप जंग में शहीद होना मानेंगे? नहीं, बिल्कुल नहीं. कैसे मान सकते हैं? ये सिस्टम की नाकामी की वजह से हुआ एक हमला है. क्यों? क्योंकि हमले का पहले से ही एलर्ट था. खुफिया एजेंसियों ने सुरक्षाबलों को सावधानी बरतने की हिदायत दी थी. कहा था कि IED ब्लास्ट हो सकता है. 8 फरवरी को ये एलर्ट जारी हो गया था. फिर भी सवाल ये है कि इतने साले जवानों की जिंदगी दाव पर क्यों लगाई गई. सीआरपीएफ के इस काफिले में 3 बटालियन के करीब 2500 जवान थे. जो 70 गाड़ियों में सवार थे.
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