प्रियदर्शिनी मट्टू हत्याकांड: जब 'डर' फिल्म हकीकत बनी और लोगों के रोंगटे खड़े कर दिए
उसकी डेड बॉडी उसके कमरे के डबल बेड के नीचे पड़ी हुई थी. मुंह से खून बहकर फ़ैल गया था.

मुझे एक गाना बहुत अच्छा लगता था जब मैं छोटी थी तो. बोल थे, ‘जादू तेरी नज़र, खुशबू तेरा बदन, तू हां कर या ना कर, तू है मेरी किरन.’ इतना पसंद था कि मैंने सोचा मेरा नाम बदलवा कर किरन रखवा लूं. बड़ी हुई तो पता चला फिल्म कतई दिक्कत वाली थी. नफरत हो गई. गाना अब भी सुन लेती हूँ कभी कभी. क्योंकि ट्यून अच्छी थी. लेकिन घटिया वाली फीलिंग जाती नहीं. गाना भी अब बकवास लगता है.

क्यों?
क्योंकि इस फिल्म में शाहरुख़ खान जूही चावला के साथ जो कर रहे थे, वो उस समय लोगों को रोमांस लगा होगा. असल में एक नंबर का कमीनापन था. जिसमें आज जेल हो जाएगी. इसको मार्केट किया था ‘डर: अ वायलेंट लव स्टोरी’ के नाम से. मतलब खून-खराबे और मार-धाड़ वाली लव स्टोरी. लोगों को बहुत पसंद भी आई थी. इसमें शाहरुख़ का बोला गया डायलॉग ‘क..क....क.... किरन’ उनका सिग्नेचर आइटम बन गया. लोगों को लगा कितना प्यार करता है शाहरुख़ जूही से. कुछ भी कर सकता है उसके लिए.
क्या शाहरुख़ जूही की जान भी ले सकता था?
क्योंकि 1996 में संतोष कुमार सिंह नाम के एक बड़े बाप के लड़के ने यही किया. लड़की पर फ़िदा हुआ, उसको प्रपोज किया. लड़की ने मना कर दिया. पुलिस में शिकायत की. पुलिस ने उसे एक एस्कॉर्ट दिया. यानी सुरक्षा के लिए बॉडीगार्ड. लड़के ने तब भी पीछा नहीं छोड़ा. एक दिन वो लड़की अपने घर पर मरी हुई मिली.
लड़की का नाम था प्रियदर्शिनी मट्टू.

दिल्ली यूनिवर्सिटी की फैकल्टी ऑफ़ लॉ से एलएलबी कर रही थी. श्रीनगर से स्कूली पढ़ाई पूरी करके जम्मू चली गयी थी. फिर वहां से बीकॉम करके दिल्ली आई लॉ फैकल्टी में पढ़ने के लिए. यहाँ पे उसका सीनियर संतोष उसपे लट्टू हो गया था. बार बार पीछा करता. प्रिया को प्रपोज करता. प्रिया हर बार मना कर देती. संतोष पास आउट हो गया था कॉलेज से. फिर भी प्रियदर्शिनी के चक्कर में अपनी बुलेट लेकर लॉ फैकल्टी के आस पास घूमता रहता. इतना ज्यादा परेशान कर दिया था उसने प्रिया को कि उसने पुलिस में कम्प्लेंट भी दर्ज कराई थी. इस वजह से प्रिया को पर्सनल सिक्यूरिटी गार्ड भी मिला. हेड कांस्टेबल राजिंदर सिंह. संतोष को वॉर्निंग दी गई. लेकिन उसने अपनी हरकतें नहीं छोड़ीं. उलटा प्रियदर्शिनी के खिलाफ शिकायत दर्ज करा दी. कि वो एक साथ दो-दो डिग्रियों के लिए पढ़ रही है. प्रियदर्शिनी ने सबूत दिए कि उसकी एम कॉम की पढ़ाई काफी पहले खत्म हो चुकी है, और अब वो सिर्फ लॉ की डिग्री के लिए पढ़ रही है.

आप पढ़ रहे हैं हमारी स्पेशल सीरीज- हत्या. इस सीरीज में हम कवर करेंगे देश के उन सभी हाई प्रोफाइल मामलों को जिन्होंने देश और कानून की जड़ें हिला कर रख दीं. इन मामलों में किसी न किसी औरत की हत्या की गई. मुक़दमे चले. मुजरिमों को कई बार सजा हुई, कई बार वो छूट निकले. कई बार न्याय के लिए जनता सड़क पर उतरी. आज इस सीरीज में पढ़िए प्रियदर्शिनी मट्टू की हत्या के बारे में.

23 जनवरी 1996 को सुबह कांस्टेबल राजिंदर सिंह प्रिया के घर आने में लेट हो गए. तो वो अपने मम्मी पापा के साथ निकल गई. उनके मम्मी पापा को गाड़ी ने तीस हजारी कोर्ट उतारा और फिर प्रिया को कॉलेज छोड़ने चली गई. राजिंदर सिंह सीधे कॉलेज पहुंचे, और उन्होंने वहां पर संतोष को देखा. प्रिया कॉलेज में 11.15 से अपनी क्लास अटेंड कर रही थी. उसके बाद राजिंदर के साथ घर आ गई. उनसे कह दिया 5.30 तक आने को. खाना बनाने वाला उनका कुक भी बाहर चला गया था. अपने किसी दोस्त विशम्भर से मिलने. तकरीबन पांच बजे के आस-पास वापिस आया और फिर कुत्ते को टहलाने बाहर ले गया. उसी समय संतोष भी वहां आया. उसे वहां आते हुए कुप्पुस्वामी ने देखा. संतोष के हाथ में काले रंग का हेलमेट था.
5.30 बजे जब हेड कांस्टेबल राजिंदर सिंह घर पहुंचे, उनके साथ कांस्टेबल देव कुमार भी थे. घंटी बजाई, किसी ने दरवाज़ा नहीं खोला. वो पीछे के दरवाज़े की तरफ से गए तो देखा वो हल्का सा खुला हुआ है. वहां से अन्दर जाने पर उन्होंने प्रियदर्शिनी को देखा.
उसकी डेड बॉडी उसके कमरे के डबल बेड के नीचे पड़ी हुई थी. मुंह से खून बहकर फ़ैल गया था. प्रिया की हत्या की खबर आग की तरह फैली. फोटो: रायटर्स
राजिंदर सिंह ने फ़ौरन पुलिस स्टेशन को फ़ोन लगाया. टीम आई. जांच शुरू हुई. प्रिया की डेड बॉडी के पास टूटे हुए कांच के टुकड़े, कुछ बाल पड़े थे. उन्हें इकठ्ठा किया गया. हीटर की तार से प्रिया का गला घोंटा गया था. वो भी साइड में पड़ी थी. उसे भी सबूत के तौर पर उठा लिया गया. प्रिया के मां बाप घर पर नहीं थे. साढ़े सात बजे जब चमनलाल मट्टू वापिस आये तो उन्हें पता चला कि उनकी बेटी इस दुनिया में नहीं रही. प्रिया की मां रागेश्वरी ने संतोष का नाम लिया. उन्होंने बताया कि वो किस तरह से प्रिया को परेशान किया करता था. किस हद तक उसके लिए पागल था. संतोष को पूछताछ के लिए बुलाया गया.

संतोष के पापा उस समय जम्मू कश्मीर में आईपीएस अफसर थे और जल्दी ही उनकी पोस्टिंग दिल्ली होने वाली थी. इस वजह से प्रिया के घरवालों को यह भी टेंशन थी कि उनको न्याय नहीं मिल पायेगा. क्योंकि संतोष बड़े बाप की औलाद था. और उनका शक सही निकला.
जांच के दौरान जो कुछ भी हुआ. वो किसी भी देश के कानूनी सिस्टम को शर्मिंदा कर देने के लिए बहुत होगा. रिपोर्ट में कह दिया गया कि रेप नहीं हुआ. कहा गया कि संतोष से टेस्टिंग के लिए लिया गया खून यूज करके प्रिया की अंडरवियर पर डाल दिया गया ताकि उसको फंसाया जा सके. सीबीआई इस केस को देख रही थी. 1999 में जज जी पी थरेजा ने संतोष को बरी कर दिया. पूरे देश में उदासी की लहर दौड़ गयी. इस उदासी में गुस्सा था. लाचारी थी. बेबसी थी. एक बेटी दिन दहाड़े अपने घर के भीतर मार दी गई थी, और उसका अपराधी कौन है ये जानते हुए भी उसे खुला छोड़ दिया गया था . ये कानून की ही नहीं, इंसानियत की हार थी.

हार क्यों और कैसे थी?
क्योंकि सबूत चीख चीख कर गवाही दे रहे थे और उन्हें अनसुना कर दिया गया था.
किसी भी मर्डर केस में तीन चीज़ें देखी जाती हैं. मोटिव. मीन्स. ऑपर्चुनिटी.
संतोष के पास मोटिव था. क्योंकि प्रियदर्शिनी ने उसका प्यार एक्सेप्ट नहीं किया था. उसके ईगो को ठेस लगी थी.
संतोष को प्रिया के घर में घुसते कुप्पुस्वामी ने देखा था. उसको उस एरिया से बाहर निकलते हुए भी लोगों ने देखा था जिन्होंने गवाही दी थी. संतोष के पास ऑपर्चुनिटी थी.
संतोष के हेलमेट का शीशा टूटा हुआ था. प्रिया की बॉडी के पास से उसके टुकड़े मिले थे. उसके पास मीन्स थे.
हेलमेट पिचका हुआ था, दोनों तरफ से. प्रिया के शरीर पर 19 घाव थे. किसी भोथरी चीज़ से किये गए वार. हेलमेट पर खून था.
इन सभी सबूतों के बावजूद संतोष सिंह बरी हो गया था. पूरे देश का खून खौल उठा था. उस समय शायद थोड़ी बहुत ईमानदारी जिंदा रही होगी.

कुछ लोग थे जिन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी. जस्टिस फॉर प्रिया नाम के एक संगठन के तहत आकर साथ जुड़े इन लोगों ने मांगें उठानी शुरू कीं. सीबीआई ने हाई कोर्ट में अपील की. छः साल बाद हाई कोर्ट ने संतोष सिंह को दोषी करार दिया. 2006 में ये निर्णय आया. साबित किया गया कि डीएनए टेस्टिंग में इस्तेमाल हुआ लिक्विड दरअसल सीमन (वीर्य) ही था जो प्रिया की बॉडी से मिला, और फिर उसे मैच करने के लिए संतोष का खून इस्तेमाल किया गया. जिससे पता चला कि वो सीमन संतोष का ही है. निर्णय में यह चीज़ हाईलाईट की गयी कि जांच के लिए आये इंस्पेक्टर ललित मोहन ने कुप्पुस्वामी का स्टेटमेंट नहीं लिया. जबकि उन्होंने उसी दिन बता दिया था कि संतोष को उन्होंने प्रियदर्शिनी के घर में जाते देखा था. इससे पता चला कि किस तरह से पुलिस ने संतोष के पिता के पुलिस में होने की वजह से उसे बचाने की कोशिश की. संतोष को फांसी की सजा हुई.

संतोष सिंह ने दुबारा अपील की सुप्रीम कोर्ट में. सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आर्डर पर स्टे लगाया. छः अक्टूबर 2010 को सुप्रीम कोर्ट ने संतोष की सजा फांसी से घटा कर उम्रकैद की कर दी. थके हारे पिता चमनलाल मट्टू ने कहा, “कोर्ट से ये उम्मीद नहीं थी”.
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