क्या कहनाः 'बिन ब्याही मां' का संघर्ष दिखाने वाली ये फिल्म अपने वक्त से कहीं आगे थी

सिनेमाहॉल में बैठे लोग बगलें झांकने लग गए थे

प्रीति जिंटा ने एक ट्वीट किया है. उसमें उन्होंने अपनी पहली साइन की हुई फिल्म क्या कहना को याद किया है.  ये फिल्म साल 2000 में 19 मई को रिलीज हुई थी. प्रीति ने लिखा कि इस फिल्म का हिस्सा बनने के साथ ही उनका करियर शुरू हुआ था. प्रीति ने फिल्म 21 साल पहले साइन कर ली थी. लेकिन इसकी रिलीज 2000 तक के लिए टल गई थी.

खैर, ये स्टोरी इस ट्वीट के बारे में नहीं है. ये तो सिर्फ एक बहाना है. भारतीय सिनेमा के एक अहम मोड़ को याद करने का. तो इसी बहाने उस फिल्म पर बात हो जाए जिसने अपने समय में एक उदाहरण पेश किया था.

सन 2000. मल्टीप्लेक्स आए नहीं थे उस वक़्त. फिल्में देखना फैमिली के लिए एक इवेंट होता था. सब साथ में जाते थे. उस साल एक ऐसी फिल्म आई, जिसने सिनेमाघर में बैठे लोगों को अनकम्फर्टेबल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. लोग बगलें झांकते नज़र आए.

kk-4_750_052119045942.jpgतस्वीर: ट्विटर

स्क्रीन पर एक ‘कुंवारी’ लड़की मां जो बन चुकी थी. वो रोई नहीं. मरी नहीं. मारी नहीं गई. सैकड़ों लोगों के सामने खड़ी होकर आंखों में आंखें डालकर बोली. उस एक पल में स्क्रीन के ज़रिए वो लड़की एक ही साथ स्क्रीन के इस पार बैठे लाखों लोगों से जुड़ गई. कुछ भौंचक देखते रहे. कुछ नजरें झुकाए बैठे रहे. कुछ की आंखों में आंसू थे. इन सबके बीच एक बात तो तय थी, इस लड़की ने वो कर दिया था जो बॉलीवुड में उस समय किसी के अन्दर करने की हिम्मत नहीं थी.

kk-6_750_052119045957.jpgतस्वीर: फेसबुक

फिल्म थी क्या कहना. एक्ट्रेस- प्रीतम सिंह जिंटा. बॉलीवुड में प्रीति जिंटा. शिमला की इस डिम्पल वाली लड़की ने एक साथ कई स्टीरियोटाइप तोड़ दिए थे.

ये फिल्म कई बार अपने समय से आगे की फिल्म कही गई. ऐसा नहीं था कि इस फिल्म की अपनी दिक्कतें नहीं थीं. लेकिन अपने कॉन्टेक्स्ट में ये फिल्म बहुत प्रोग्रेसिव थी.

वजह सिर्फ ये नहीं थी कि एक 'अनब्याही मां' को जज किए जाने पर, उसे गलत समझने की सोच पर हमला किया गया. इस फिल्म के अंत में प्रिया के पास राहुल (सैफ अली खान) लौट आता है. वही राहुल जिससे उसने कभी प्यार किया था. वही राहुल जिसके बच्चे की वो मां बनी. वही राहुल जिसने कभी प्रिया को ठुकरा दिया था. एक तरफ राहुल, दूसरी तरफ अजय (चंद्रचूड़ सिंह). अजय वो जिसने प्रिया को बचपन से चाहा. जिसने हर कदम पर उसका साथ दिया. किसी और के बच्चे को अपनाने की हिम्मत दिखाई.

kk-5_750_052119050021.jpgतस्वीर: ट्विटर

ध्यान इस बात का रहे कि जिस समय ये फिल्म आई थी, उस समय न तो इतना एक्सपोजर था, न ही इतना खुलापन कि ये आम बात मानी जा पाती. उस समय इस फिल्म ने एक स्टैंड लिया और प्रिया से उसकी एजेंसी (agency- अपने निर्णय खुद ले सकने का अधिकार) छीनी नहीं गई. उसका इस्तेमाल कर के प्रिया ने उस व्यक्ति को चुना जिससे वो प्यार करती है. न कि जिसे चुनने की समाज उससे अपेक्षा करता है. 

kk-3_750_052119050049.jpgतस्वीर: फेसबुक

क्या कहना की शूटिंग के दौरान प्रीति स्विट्ज़रलैंड में थीं. डायरेक्टर थे कुंदन शाह. प्रीति को अचानक लगा कि एक्टिंग इतना अच्छा आइडिया भी नहीं है. कुंदन शाह को जाकर बोल दिया, फिल्म नहीं करनी. शाह ने पूछा ऐसे कैसे नहीं करनी. कॉन्ट्रैक्ट साइन किया है. बालकनी में जाकर रोईं. उसके बाद शाह ने उन्हें समझाया कि कर सकती हैं वो ये काम. इतनी जल्दी हार नहीं माननी चाहिए. प्रीति मान गईं. उसके बाद जो हुआ वो सबने देखा.

ये फिल्म सिर्फ प्रीति के जीवन में नहीं, बल्कि बॉलीवुड के लिए एक यादगार फिल्म है. और आने वाले काफी समय तक बनी रहेगी.

 

 

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