आयुर्वेद और ऑर्गेनिक के नाम पर हमारे साथ फ्रॉड होता है,पर हमें पता नहीं चलता

इनके चक्कर में बेवकूफ मत बनिए

ऑडनारी ऑडनारी
अप्रैल 03, 2019

आयुर्वेद का नाम भारत वालों के लिए नया नहीं है. काफी टाइम से आयुर्वेदिक दवाइयां और उपाय लोग अपनाते आए हैं.जो लोग देसी परिवारों में पले बढ़े हैं उनको मालूम है कि हल्दी दूध से इम्यून सिस्टम बेहतर होता है. लौंग गले और दांतों के लिए अच्छी होती है. ये तो हुए छोटे मोटे उपाय. स्किन केयर से लेकर शरीर की बड़ी बीमारियों तक के लिए भी आयुर्वेद में कुछ न कुछ उपाय दिए गए हैं.

ये तो हुई आयुर्वेद की पहचान.

अब आते हैं इसकी मार्केटिंग पर. काफी समय तक तो आयुर्वेद से जुड़े इलाज या हेल्थकेयर वाले उपाय लोग एक दूसरे को बताते और वैद्यों से जानते रहे. फिर समय आया कि भई अब इसे बेचा कैसे जाए. तो हुआ ये कि आयुर्वेद को भारत की पैसे वाली जनता को लुभाने के लिए ऊंचे दामों पर बेचा जाना शुरू किया गया. बहुत सारे ऐसे ब्रैंड्स हैं जोकि आयुर्वेदिक लाइन शुरू कर चुके हैं. अब कई ऐसे ब्रैंड्स भी आ गए हैं जो खुद को आयुर्वेदिक कह के बेच रहे हैं. लेकिन इनकी कीमतें देखिए, तो वॉलेट जेब से निकल कर छलांग मार दे. आधा लीटर दूध में दो चुटकी हल्दी डाल कर पियेंगे आप तो 25 रुपए का भी खर्चा नहीं आएगा. लेकिन गोल्डन मिल्क लाते (Latte- एक तरह की गर्म ड्रिंक जो दूध से बनती है, कॉफ़ी इसमें मिलाई जाती अधिकतर) खरीदने जाइए किसी फैंसी आयुर्वेदिक स्टोर में, वही चीज़ आपको 250 की न मिले तो कहिए.

अब इस पर क्यों बात कर रहे हैं हम. इसलिए कर रहे हैं क्योंकि आज ही एक भरा पूरा ऐड आया है अखबार में. इसमें एक लड़की एक आयुर्वेदिक ब्रैंड का प्रचार करती खड़ी दिखाई जा रही है. ठीक है भई. ऐड तो आते रहते हैं. लेकिन इस वाले ऐड की कुछ बारीकियां हैं जो नज़र में आकर भी नहीं आ रही हैं. या शायद इसलिए कि हमें इग्नोर करने की आदत हो गयी है. जो भी हो. एक बार देख लीजिए:

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  1. कम ही ऐसा होता है कि कोई ब्रैंड किसी सांवली लड़की को अपनी मॉडल बनाए. आम तौर पर जितनी भी ऐड्स देखे जाते हैं, उनमें दिखने वाली लड़कियां या औरतें या तो गोरी होती हैं या बहुत गोरी होती हैं. पॉलिटिकली करेक्ट होना ज़रूरी होता आजकल के टाइम में, इसलिए गोरा शब्द इस्तेमाल नहीं करते. निखार शब्द इस्तेमाल कर देते हैं. खैर. ये देखने में एक बारगी अच्छा लगता है. 

    ayurved-3--750x500_040319095310.jpgआयुर्वेद के नाम पर बहुत कुछ बेचा जा रहा है, लेकिन उनकी टार्गेट ऑडिएंस कोई और है.

  2. लेकिन अगले ही पल एक और चीज़ ध्यान में आती है. आयुर्वेद सालों से भारत की अपनी धरोहर रही है. इसमें इस्तेमाल होने वाली चीज़ें ऐसी हैं जो कि आम आदमी भी इस्तेमाल कर सकता है थोड़े बहुत पैसों में. लेकिन अमीर वर्ग को कैसे भरोसा दिलाया जाए कि भई हल्दी दूध के तुम तीन सौ रुपए दो हमें. यहां हल्दी दूध मेटाफर है. इसकी जगह किसी भी आयुर्वेदिक/ऑर्गेनिक प्रोडक्ट को रख लीजिए. इसे लिटरली लेकर कमेन्ट सेक्शन में फैक्ट चेक वाली चीज़ें अगर आप लिखेंगे तो हम समझ जाएंगे कि आपने आर्टिकल पढ़ा नहीं है और ऐसे ही पेल दिए हैं कमेन्ट. खैर. बात ये है कि यहां पर लड़की का सांवला होना इसलिए भी इम्पोर्टेन्ट है क्योंकि ये प्रोडक्ट इंडिया को एक्सोटीसाइज़ कर रहा है. जो लोग पहले से अमीर हैं, उनको आप कैसे भरोसा दिलाएंगे कि ये प्रोडक्ट सही है. जेनुइन है? लड़की को सांवला दिखाओ. ओरिएंट यानी पूर्व की सांवली सलोनी लड़की दिखेगी तो उन्हें यकीन होगा कि हां भई ये प्रोडक्ट सच में जेनुइन है. ये साइकोलोजी की बात है. कम पैसे की चीज़ अगर आम आदमी को बेचनी हो तो उसे दिखाओ कि किस तरह ये इस्तेमाल करके आप अमीरों जैसे दिख सकते. उन जैसा फील कर सकते. वो चीज़ फिर एस्पिरेशनल हो जाती है. इच्छा जगाती है. अब अमीरों के पास तो ऑलरेडी सब कुछ है. तो उनको महंगे प्रोडक्ट कैसे बेचेंगे. क्या कह के बेचेंगे. तो उनको आप दिखाइए कि भई ये चीज़ ऑथेंटिक है. क्योंकि एकदम शुद्ध देसी भारत की सांवली सलोनी लड़की इसका ऐड करती हुई दिख रही है.

आयुर्वेद और ऑर्गेनिक को अमीर लोगों का प्रोडक्ट बना देने के लिए ये स्ट्रेटजी बेहद अहम है, इसके चक्कर में पड़ कर पैसे बर्बाद ना ही करें तो बेहतर.

 

 

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