'मैं, एक आम भारतीय हाउसवाइफ, ऑनलाइन सेक्स चैट की दीवानी हूं'

'इंटरनेट पर मुझे वो पल जीने को मिले जो मैंने कभी नहीं जिए थे.'

ईशा चौधरी ईशा चौधरी
जनवरी 15, 2019
फिल्म 'तुम्हारी सुलु' में विद्या बालन/फोटो क्रेडिट: YouTube

ये आर्टिकल 4 जनवरी को Dailyo.in में अंग्रेज़ी में छपा था. आप यहां इसका हिंदी अनुवाद पढ़ रहे हैं.


मैं एक 36 साल की हाउसवाइफ हूं.

मुझे पता है 'हाउसवाइफ' शब्द में कुछ ख़ास नहीं है. बड़ा बोरिंग सा है. मगर यही हक़ीक़त है. मैं 15 साल से शादीशुदा हूं. हमारे जुड़वा बच्चे 14 साल के हैं. मेरे पति 37 साल के हैं और स्टेशनरी की दुकान चलाते हैं. यही है मेरी ज़िंदगी.

एक और बात. मुझे इंटरनेट पर कमउम्र मर्दों के साथ सेक्स चैट करने में बहुत मज़ा आता है!

क्यों, अब लगी न मैं इंटरेस्टिंग?

कौन हूं मैं?

पहले में अपने बारे में थोड़ा बता दूं. मैं एक मिडिल क्लास परिवार से आती हूं. घरवाले पुरानी सोच के हैं. मैं 21 की थी तो लड़का देखकर शादी करवा दी. ग्रेजुएशन के एक महीने बाद ही मेरी शादी हो गई. मेरे पति और मैं शादी जैसी ज़िम्मेदारी सर पर लेने के लिए बहुत छोटे थे. मगर हमने कोशिश की.

बहुत कम उम्र में मेरी शादी हो गई/फोटो क्रेडिट: Pixabayबहुत कम उम्र में मेरी शादी हो गई/फोटो क्रेडिट: Pixabay

उनकी छोटी सी दुकान थी. घर चलाने के लिए वो दिन-रात मेहनत करते. दुकान शहर के दूसरे कोने में थी. मेरे ससुराल से बहुत दूर. हम दुकान के ऊपर एक फ़्लैट में रहते थे.

21 की उम्र में मेरी ज़िंदगी की शुरुआत यही थी. शादी के 10 महीने बाद ही हमारे दो बेटे हुए, जो जुड़वा हैं.

मेरी रोज़ की ज़िंदगी

हम बहुत कम उम्र में माता-पिता बने. हमें कोई आइडिया नहीं था कि बच्चों की परवरिश कैसे करें. मगर मेरे पति ने पूरी कोशिश की. वो एक बच्चे को अपने साथ दुकान ले जाते. दूसरे को मैं घर पर देखती. कई रातों में मैं थकी होती तो वो दोनों को संभालते थे. फ़ुलटाइम मेड रखने की हैसियत भी नहीं थी हमारी. बस एक औरत झाड़ू-पोंछा करने और बर्तन मांजने आती थी.

हमारी नींद कभी भी नहीं पूरी होती थी. मेरे पति ने दोस्तों के साथ समय बीताना भी बंद कर दिया. शादी की शुरुआत के कुछ साल तो बच्चों की देखरेख में ही निकल गए. जब तक वो स्कूल नहीं जाने लगे, हमें सांस लेने तक की फ़ुर्सत न थी.

उस समय मैंने ट्यूशन पढ़ाना भी शुरु किया था. मैं दोपहर 3:30 से 5 बजे तक पढ़ाती थी. उसी वक़्त में मेरे बेटे अपना होमवर्क ख़त्म कर लेते थे. उनके 12-13 साल के होने तक ये सिस्टम चलता रहा. उससे पहले तक उन्हें हर चीज़ के लिए मेरी ज़रूरत पड़ती थी. मेरी ज़िंदगी उन्हीं तक सीमित थी. मगर वो बड़े हो गए तो अपनी ही दुनिया में रहने लगे. दोस्त, टीवी, वीडियो गेम्स में मशगूल रहने लगे. उन्हें भूख लगने पर ही मेरी याद आती. मेरे पति भी दुकान में ही बिज़ी रहते थे. मुझे अकेला महसूस होने लगा.

मुझे बहुत अकेला महसूस होने लगा/फोटो क्रेडिट: Pixabayमुझे बहुत अकेला महसूस होने लगा/फोटो क्रेडिट: Pixabay

मेरी ऑनलाइन सेक्स लाइफ़

मैं अब 33 साल की हो गई थी. अकेलेपन की वजह से इंटरनेट पर ज़्यादा वक़्त बिताने लगी. चैटिंग की साइट्स पर मर्दों से बात करना शुरु किया. उनमें से ज़्यादातर सेक्स के प्यासे थे. उनसे बात करके मुझे महसूस हुआ कि मैं अकेली नहीं, लोगों से घिरी हुई हूं. इंटरनेट की अच्छी बात ये है कि आप अपनी पहचान छुपाकर किसी से भी बात कर सकते हैं. बहुत सारे बेनाम अजनबी मुझे अपने-से लगने लगे.

मैंने किसी को अपनी पहचान नहीं बताई. मैं बस इतना बताती थी कि मैं शादीशुदा हूं. बस, इसके आगे कोई नहीं पूछता.

मैं अब अपने बारे में अच्छा महसूस करने लगी. अब तक मेरी आइडेंटिटी मेरे फ़ैमिली बैकग्राउंड तक सीमित थी. अब और नहीं.

मैंने बहुत से मर्दों के साथ चैट किया है. ज़्यादातर घर से दूर रहनेवाले प्रोफेशनल्ज़ हैं. इनमें से कुछ शादीशुदा भी हैं जो अभी भी सेक्स की तलाश में हैं. कुछ ऐसे भी छिछोरे मिले हैं जो ख़ुद को 'अंकल' कहते थे और सेक्स के सिवा कुछ नहीं चाहते.

मैं बता दूं, मैं एक बहुत मामूली औरत हूं. शादी से पहले किसी लड़के ने मुझे देखा तक नहीं था. मैंने झूठमूठ में अपने पति से कहा है कि मेरे पीछे बहुत लड़के पड़ते थे. घरवालों की इजाज़त न होने की वजह से मैं उनसे दूर रहती थी. मगर सच ये है कि मुझे कोई अटेन्शन नहीं मिलता था.

मैं गर्ल्स स्कूल में पढ़ी हूं और मेरी सहेलियों के बहुत सारे चाहनेवाले थे. मैं बस पोस्टमैन बनकर लड़कों की चिट्ठियां अपनी सहेलियों तक पंहुचाती थी.

मुझे लगा शायद कॉलेज में ये सब बदल जाएगा, पर नहीं. लड़के मेरे से अच्छा बर्ताव करते थे. मगर मुझे उस नज़र से नहीं देखते थे जैसे मेरी सहेलियों को देखते. मैं जैसे हवा की तरह अदृश्य थी. मैं कितना चाहती थी कि कोई मुझे भी नोटिस करे.

फिर शादी हुई. बच्चों के बड़े होते होते मुझे अपनी सहेलियों से जलन होने लगी. उनके पास अपने ब्रेकअप्स की कितनी कहानियां थीं. मर्द उन्हें नोटिस करते थे, प्यार करते थे, चाहते थे. मैं तो 'सती-सावित्री' टाइप की थी.

मेरे पास और ऑप्शन ही क्या था?

इंटरनेट पर मुझे वो पल जीने को मिले जो मैंने कभी नहीं जिए थे.

मैं अपनी उम्र ग़लत बता सकती थी. अपने प्राइवेट पार्ट्स के फ़ोटो भेज सकती थी. किसी मर्द को मेरी आवाज़ सुनने के लिए तरसा सकती थी. इस बीच मैंने हमेशा ध्यान रखा कि किसी को अपने चेहरे का फ़ोटो न भेजूं.

वैसे मैं बहुत गर्म मिजाज़ की हूं. पर मैंने देखा कि इन अफ़ेयर्स ने मुझे नर्म और शांत बनाने में मदद की. अपने पति की तरफ़ मेरा व्यवहार भी बदलने लगा था.

बहुत सारे ऑनलाइन अफ़ेयर्स

मैंने 25 से 45 साल तक के मर्दों से बात की है. मैं इनसे GTalk और Kik जैसे ऐप्स पर बात करती.

शादीशुदा मर्दों से मैं कहती, 'अगर मैं तुम्हारी बीवी होती तो...' और फिर बताती कि हम क्या-क्या करते. इसमें शामिल था गले मिलना, साथ सोना, फ़िल्म देखने जाना, पब्लिक में किस करना. मैं उनके लिए उनके ख़्वाबों की दुनिया सजाती.

मैंने वीडियो सेक्स भी किया है. मैंने इतने सारे लिंग देखे हैं कि मुझे याद भी नहीं. मर्दों के कराहने की आवाज़ मुझे बहुत भाती है. कुछ मर्द सेक्स के बाद मेरा शुक्रिया भी अदा करते.

ये सोचकर अच्छा लगता है कि मैं इन मर्दों के लिए प्रेमिका भी हूं और एक देवी भी. वो मुझे चाहते. मुझे देखने के लिए तरस जाते.

मुझे देखने के लिए वो तरस जाते/फोटो क्रेडिट: Pixabayमुझे देखने के लिए वो तरस जाते/फोटो क्रेडिट: Pixabay

ये अफ़ेयर तीन महीने से ज़्यादा देर चलते भी नहीं थे. क्योंकि हम जानते थे ये हक़ीक़त नहीं, एक काल्पनिक दुनिया है. मगर यही दुनिया मुझे बहुत राहत देती थी.

मैं इतने सालों से इतनी फ्रस्ट्रेटेड रही हूं. अब मुझे बहुत अच्छा लगता है. ऐसे अफ़ेयर्स का नशा-सा चढ़ गया है.

अब हक़ीक़त में मैं एक वयस्क महिला हूं. थोड़ी मोटी हूं. आपके सामने से चली जाऊंगी तो आपको पता भी न चले. ज़्यादतर लोग मुझे 'आंटी' बुलाते हैं. मैं सिर्फ़ एक मां और पत्नी हूं. सामाजिक तौर पर भी एक वोट के सिवा कुछ नहीं हूं.

हक़ीक़त का सामना करना मुश्किल है. मैं जानती हूं. मेरी सहेलियों को आज भी लोग घूरते हैं. उन्हें 'यम्मी मम्मी' बुलाते हैं. वे आर्थिक तौर पर स्वतंत्र भी हैं. मैं सोशल मीडिया पर उन्हें देखती हूं तो अपने बारे में बहुत बुरा लगता है.

मेरी ज़िंदगी बहुत नीरस है. मैं बहुत मामूली हूं. मैं नहीं रही तो किसी को मेरी याद भी नहीं आएगी. इंटरनेट पर मैं अपने सपनों की दुनिया जीती हूं. जो मेरी असली दुनिया को मेरे लिए सुंदर बनाता है.

अब मैं चलती हूं. एक ऑनलाइन प्रेमी मेरा इंतज़ार कर रहा है. उससे कुछ गर्मागर्म बातें करनी हैं. वो 27 साल का है. मैं 36 की हूं.

 

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