सरकारी पोस्टर पर निर्भया के दोषी की फोटो बताती है कि रेप को लोग कितने हल्के में लेते हैं
और ये गलती सरकार से सरेआम हुई है.
राजस्थान का अलवर गैंगरेप याद होगा आपको. 18 साल की एक दलित महिला का रेप हुआ था. उसके पति के ही सामने. 26 अप्रैल को घटना हुई. 30 अप्रैल को शिकायत. लेकिन पुलिस वाले चुनाव का बहाना कर कार्रवाई टालते रहे. बेखौफ आरोपी महिला और पति को ब्लैकमेल करते रहे. 2 मई को FIR लिखी गई, पर कोई एक्शन नहीं. गैंगरेप का वीडियो 4 मई को वायरल हुआ, तब जाकर पुलिस की नींद टूटी. पुलिस इस केस को हल्के में न लेती तो शायद वो वीडियो वायरल न होता.
पिछले दिनों एक लड़की के ट्वीट्स काफी चर्चा में रहे. वह ट्रेन में यौन शोषण की शिकार हुई थी. उसने शिकायत की. अगले दिन उसे थाने बुलाया गया. उससे कहा गया कि वह केस वापस ले ले. आरोपी के परिवार, उसके बच्चों के बारे में सोचे. लड़की अड़ी रही और उसने केस वापस नहीं लिया. लेकिन पुलिस को यौनशोषण इतना हल्का लग रहा था कि उन्होंने उसे केस वापस लेने के लिए ही कह दिया.
कुछ नहीं, सिर्फ दो उदाहरण हैं. आपके सामने. पहले भी पढ़े होंगे आपने. कुछ नहीं बस ये दिखाना था कि रेप की खबरों को लेकर तब तक असर नहीं होता जब तक रेप की शिकार लड़की खूंखार तरीके से मार न डाली जाए. उसमें भी कुछ दिनों का दिखावा, फिर लंबी खामोशी.
सांकेतिक तस्वीर: रायटर्स
16 दिसंबर, 2012 की तारीख राजधानी दिल्ली के माथे पर हमेशा कलंक रहेगी. इस दिन एक चलती बस में एक लड़की का गैंगरेप हुआ. सिर्फ गैंगरेप नहीं, उसके शरीर के साथ वो सब हुआ जिसके बारे में सोचकर सालों बाद भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं. उसे और उसके दोस्त को नग्न अवस्था में, सर्द रात में सड़क पर फेंक दिया गया. मौत से जंग में वह हार गई. देश ने उसे निर्भया नाम दिया.
ये केस वाटरशेड मोमेंट था इस दशक का. दिल्ली ही नहीं पूरा देश सड़कों पर उतरा था. निर्भया के लिए इंसाफ की मांग के लिए. बेटियों की सुरक्षा के लिए. ऐसे मामलों में कड़े से कड़े कानून बनाने के लिए. इस केस के बाद दोषियों को फांसी की सज़ा सुनाई गई थी.
हालांकि अभी तक कोई फांसी पर लटका नहीं है. लेकिन उससे पहले ही चंडीगढ़ में इलेक्शन कमीशन के पोस्टर पर निर्भया का दोषी, उस मामले के दोषी मुकेश क चेहरा एक सगर्व नागरिक के तौर पर पेश किया गया है.
तस्वीर: ट्विटर
इस पोस्टर पर लिखा है:
लोकतंत्र के सुंदर रंग
मेरा वोट मेरा मान है
हमें पता है कि हर एक वोट की गिनती है.
रेप के एक दोषी की तस्वीर इस तरह जागरुकता पोस्टर में लगाना. उन हजारों रेप विक्टिम्स के जख्मों को कुरेदने वाला है जो न्याय के इंतजार में बैठी हैं. हो सकता है कि ये गलती से हुआ हो, लेकिन ये गलती किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं होनी चाहिए. ये गलती से ज्यादा रेप जैसे गंभीर मामलों के प्रति लापरवाह रवैये को दिखाता है. असंवेदनशीलता को दिखाता है.
इस पोस्टर पर दिल्ली महिला आयोग ने इलेक्शन कमीशन पंजाब को नोटिस भेजा है. स्वाति मालीवाल ने ट्वीट किया कि वो निर्भया की मां से मिलीं. ट्वीट में उन्होंने ये भी लिखा कि निर्भय की मां दुखी हैं बहुत. उनकी बेटी के बलात्कारियों को सज़ा देने की जगह सरकार उन्हें पोस्टरों पर हीरो बना रही है.
Met Nirbhaya’s mother today. She was in tremendous pain. Instead of giving death to her daughters rapists, govt agencies are putting up his posters on their ads glorifying him. Election Commission must set accountability of the officers. Strongest action should be taken! https://t.co/XsuiW5RwrF
— Swati Maliwal (@SwatiJaiHind) July 22, 2019
पिछले कुछ सालों में रेप और यौन शोषण जैसे अपराधों पर बात होनी बढ़ी है. लेकिन जब एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाने गए क्राइम के अपराधी की तस्वीर इस तरह सरकारी पोस्टरों में इस्तेमाल की जाती है, तो उसकी गंभीरता पर सवाल उठना लाज़मी है. ये सवाल उठना बिलकुल सामान्य है कि क्या रेप जैसे क्राइम को लेकर हम और हमारी सरकार इतने ज्यादा इंसेंसिटिव हो गए हैं? खुद सोचकर देखिए. उस पोस्टर को देखकर आपको कैसा लगता, अगर ये आदमी आपके किसी अपने का अपराधी होता तो?
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