पीरियड आया तो बहू को ठंड में घर से बाहर कर दिया, दो बच्चों के साथ अपने ही कंबल में मरी मिली
पीरियड से ऐसी घृणा!
नेपाल का बाजुरा इलाका. एक छोटी सी झोपड़ी. झोपड़ी में अम्बा बोहरा अपने दो बेटों के साथ सो रही थी. सुबह घरवालों ने झोपड़ी का दरवाजा खोला तो अन्दर अम्बा मर चुकी थी. उसके दोनों बच्चे भी मर चुके थे. जो कम्बल उन्होंने ओढ़ रखे थे वो जल गए थे. अम्बा बोहरा के पैर झुलस चुके थे.
अम्बा और उसके दोनों बच्चों की दम घुटने से मौत हो गई, ऐसा अंदाजा लगाया जा रहा है. अम्बा अपने दोनों बच्चों के साथ उस झोपड़ी में सोने गई थी. कोई खिड़की नहीं थी उसमें. रात को बंद जगह में धुंए से दम घुट गया.
लेकिन नेपाल के पश्चिमी इलाके में इतनी ठण्ड के मौसम में भला कोई भी मां अपने बच्चों को लेकर घर से बाहर झोपड़ी में क्यों सोएगी? वो भी इस तरह बंद होकर?
इसकी वजह ये है कि अम्बा के पीरियड्स हो रहे थे.
सांकेतिक तस्वीर: रायटर्स
नेपाल के पश्चिमी हिस्सों में हिन्दू आबादी काफी ज्यादा है. उस इलाके में छाउपड़ी की प्रथा काफी चलती है. इस प्रथा में जिन औरतों/ लड़कियों को पीरियड्स हो रहे होते हैं, उनको घर से निकाल कर किसी झोपड़ी में रहने के लिए भेज दिया जाता है.
इस प्रथा के मुताबिक़,
जिस लड़की की शादी नहीं हुई वो 6 दिन तक झोपड़ी में रहेगी.
जिस की शादी हो गई है और उसके बेटा बेटी दोनों हैं, वो 5 दिन झोपड़ी में रहेगी.
जिसकी सिर्फ बेटियां हैं, वो 7 दिन झोपड़ी में रहेगी.
ये झोपड़ियां कॉमन इस्तेमाल की भी हो सकती हैं और घरों की अपनी अलग भी. जो इलाके निम्न आय वर्ग वाले लोगों के होते हैं, वहां पर कई घरों पर एक झोपड़ी भी होती है. बारी बारी से हर घर की औरतें/लड़कियां उनका इस्तेमाल करती हैं. कुछ घर ऐसे इलाकों में भी होते हैं जहां इतनी ज़मीन उपलब्ध नहीं होती जहां अलग से झोपड़ी बनाई जा सके. ऐसे में घर के अन्दर ही एक अलग-थलग कोने में पीरियड्स से गुज़र रही लड़कियों/औरतों को रहने के लिए मजबूर कर दिया जाता है.
सांकेतिक तस्वीर: Getty Images
सिर्फ यही नहीं, जिन को पीरियड्स आ रहे होते हैं, वो घर के अन्दर का कोई भी सामान नहीं छू सकतीं. खाना नहीं बना सकतीं. किचन में नहीं जा सकतीं. घर का टॉयलेट इस्तेमाल नहीं कर सकतीं. लोगों का मानना है कि अगर पीरियड वाली औरतें घर के अन्दर आ गईं तो देवता नाराज़ हो जाएंगे.
नेपाल के कानून में छाउपड़ी को बैन कर दिया गया है. इस कानून में छाउपड़ी की प्रथा को एक अपराध माना गया है. अब अगर कोई भी व्यक्ति/परिवार इस प्रथा के तहत अपने घर की औरतों/लड़कियों को घर से निकालेगा, उस पर तीन हज़ार का जुर्माना और/या तीन महीने की जेल होगी. लेकिन फिर भी छाउपड़ी मानने वाले लोगों पर इसका कोई असर नहीं हो रहा है.
बी आर्टसी (Be Artsy) नाम का एक NGO है जिसने वेस्ट नेपाल में छाउपड़ी की प्रथा की वजह से नुकसान झेल रही लड़कियों को मेंसट्रुअल कप्स बांटे. साल भर में अधिकतर लड़कियों ने कहा कि चूंकि उनके शरीर से खून बाहर महीन आता तो उनके घरवाले उनको साफ़ सुथरा मानते हैं और घर के अन्दर सोने देते हैं. चूंकि मेंसट्रुअल कप्स के इस्तेमाल में कुछ बार बार फेंकना नहीं पड़ता और शरीर से खून बाहर नहीं आता तो स्मेल की दिक्कत नहीं होती. इन सभी वजहों से लड़कियों के स्कूल जाने में दिक्कतें घटीं और उनको अपने ही घर में सहजता से रहना संभव हुआ.
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