मंजू देवी: 5 बच्चों की मां जो पोस्टमॉर्टम करती हैं, दिन भर लाशें चीरकर सिलती हैं

13 हजार से ज्यादा पोस्टमॉर्टम कर चुकी हैं.

लालिमा लालिमा
दिसंबर 29, 2018
मंजू देवी. फोटो- जहांगीर खान.

फिल्मों में लड़कियों को कॉकरोच और छिपकली से डरते तो देखा ही होगा? फिल्मों और समाज ने एक मानसिकता पैदा कर दी है कि लड़कियां डरपोक होती हैं. बल्कि सच तो ये  है कि हर व्यक्ति डरपोक होता है, हर व्यक्ति उतना ही मजबूत भी होता है. और किसी भी पुरुष की तरह औरतें, उन्हें जो काम मिलता है, बखूबी करती हैं. इसका उदाहरण हैं बिहार की मंजू देवी. 

मंजू पिछले 18 साल से पोस्टमार्टम हाउस में काम कर रही हैं. डॉक्टर नहीं हैं. एक अस्थाई कर्मचारी हैं. सहायक हैं. लेकिन पोस्टमार्टम की हर बारीकी जानती हैं. और अभी तक 13 हजार से भी ज्यादा लाशों का पोस्टमार्टम कर चुकी हैं. वो उन लाशों को चीरती हैं, और सिलती भी हैं.

2_750_122918050048.jpgमंजू देवी. फोटो- जहांगीर खान.

जानिए मंजू देवी की पूरी कहानी-

- बिहार में एक जिला है समस्तीपुर. वहां के सदर अस्पताल के पोस्टमार्टम रूम में ही मंजू काम करती हैं. 45 साल की हैं. अनुसूचित जाति से आती हैं. जाति के बारे में आपको इसलिए बता रहे हैं, क्योंकि जब आप पिछड़ी जाति में जन्म लेते हैं, आपका जीवन दूसरों से ज्यादा मुश्किल होता है. 

- समस्तीपुर में जब पोस्टमार्टम का काम शुरू हुआ था, तब से ही मंजू के परिवार वाले ये काम कर रहे हैं. मंजू के बेटे ने बताया कि उनके परदादा ने सबसे पहले पोस्टमार्टम रूम में काम करना शुरू किया था. उसके बाद उनके दादा, और दादी ने किया.

- साल 1994 में मंजू के ससुर रामजी मल्लिक की मौत हो गई. उसके बाद मंजू की सास को पोस्टमार्टम रूम में, सहायक के तौर पर रखा गया.

- मंजू के पति नगर पालिका में सफाईकर्मी थे. 2001 में उनकी मौत हो गई. उसके बाद परिवार को पालने की जिम्मेदारी मंजू के सर पर आ गई. क्योंकि उनके पांच बच्चे थे. और उस टाइम पर सब छोटे थे.

- इसलिए मंजू ने अपनी सास के साथ पोस्टमार्टम रूम में जाना शुरू कर दिया. उनसे काम सीखने लगीं. 2004 में सास की भी मौत हो गई. तब मंजू को पोस्टमार्टम का काम पूरी तरह से दे दिया गया.

- साल 2006 में अस्पताल ने मंजू को नियुक्ति का एक लेटर दिया. परमानेंट नियुक्ति नहीं, बल्कि अस्थाई.

4_750_122918050100.jpgसदर अस्पताल, समस्तीपुर. फोटो- जहांगीर खान.

- मंजू 10वीं पास हैं. बताती हैं कि उन्हें दिन के 110 रुपए ही मिलते हैं. भले ही एक दिन में एक लाश का पोस्टमार्टम करना पड़े, या फिर 10. और अगर किसी दिन एक भी लाश नहीं आती है, तो उन्हें 110 रुपए भी नहीं मिलते.

- पैसे तो कम हैं ही, लेकिन पैसे टाइम पर भी नहीं मिलते. मंजू से ऑडनारी की टीम ने बात की. उन्होंने बताया कि पैसे मिलने की टाइमिंग बहुत बकवास है. कुछ फिक्स नहीं है. हाजिरी तो लगती है, लेकिन समय पर कभी पैसे नहीं मिलते. और जब भी मिलते हैं, पूरे नहीं मिलते.

- मंजू ने कई बार दिहाड़ी बढ़वाने और स्थाई नौकरी पाने की कोशिश की. लेकिन कुछ नहीं हुआ. वो सभी बड़े अधिकारी से लेकर, मुख्यमंत्री के पास तक जा चुकी हैं, लेकिन किसी ने उनकी एक नहीं सुनी. कुछ नहीं हुआ. वो आज भी 110 रुपए प्रति हाजिरी पर काम कर रही हैं.

- इसके अलावा मंजू ने ये भी बताया, कि अस्पताल की तरफ से सफाई के सामान के लिए भी पैसे नहीं मिलते. जिस वजह से लाश की सफाई करने के लिए, उन्हें लाश के परिवार वालों से पैसे लेने पड़ते हैं. और अगर कोई लावारिस लाश होती है, तो थाना प्रभारी उन्हें पैसे देते हैं.

- मंजू कहती हैं कि मृतक के परिवार से पैसे लेना अच्छा नहीं लगता, लेकिन वो भी मजबूर हैं. इसलिए लेना पड़ता है.

- समस्तीपुर में मंजू पोस्टमार्टम का काम पिछले 18 सालों से कर रही हैं. और अभी तक उन्होंने 18 हजार लाशों का पोस्टमार्टम कर दिया है.

- उनके बिना कुछ भी काम नहीं हो पाता. वो अपने काम में एकदम फिट हैं. जिस दिन वो अस्पताल नहीं जातीं, उस दिन काम रुक सा जाता है. वो डॉक्टर्स का राइट हैंड हैं.

- कोई डेड बॉडी आती है, तो मंजू ही डॉक्टर को बताती हैं कि उस व्यक्ति की मौत कैसे हुई. जहर खाया, या एक्सीडेंट हुआ, या सुसाइड. फिर चीरना-फाड़ना, और फिर डेड बॉडी को सिलना, सारा काम मंजू के सिर पर ही होता है.

- मंजू के पांच बच्चे हैं. उनका बड़ा बेटा है दीपक. 27 साल का है. पोस्टमार्टम के काम में अपनी मां की मदद करता है. दूसरे नंबर पर एक बेटी है, 25 साल की. शादी हो चुकी है. तीसरा एक बेटा है- किशन. 20 साल का है. म्यूजिक की पढ़ाई कर रहा है. बाद में दो जुड़वा बेटियां भी हैं. दोनों 17 साल की हैं.

- मंजू बताती हैं कि शुरू में वो पोस्टमार्टम करने से डरती थीं, लेकिन परिवार को पालने की जिम्मेदारी थी. इसलिए सब करना पड़ा. डर को भूलना पड़ा.

 

लगातार ऑडनारी खबरों की सप्लाई के लिए फेसबुक पर लाइक करे      

Copyright © 2024 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today. India Today Group