ये एग्जिट पोल वाले आंकड़े आते कहां से हैं?

लोग तो कहते हैं उनके पास एग्जिट पोल वाले कभी नहीं आए, फिर ये कैसे होता है?

आप पढ़ रहे हैं हमारी ख़ास सीरीज : लोकतंत्र. हर तरफ आप कोई-न-कोई खबर पढ़ रहे हैं. चुनाव से जुड़ी. इलेक्शन कमीशन से जुड़ी. चुनावी प्रक्रिया से जुड़ी. कई शब्द होंगे जो हम और आप लगातार सुनते हैं. इस्तेमाल होते हुए देखते हैं. लेकिन उनका सही मतलब किसी को पता नहीं होता. होता भी है तो उसे हम एक्सप्लेन नहीं कर पाते. या ठीक-ठीक उसका महत्त्व क्या है वो हमें मालूम नहीं होता.

इसलिए हम इस ख़ास सीरीज में डेमोक्रेसी यानी लोकतंत्र से जुड़ी चीज़ों पर बात करेंगे. महत्वपूर्ण टॉपिक्स पर. जिनको लेकर हमारी समझ बेहतर हो सकती है. आज का टॉपिक है- एग्जिट पोल क्या होते हैं, कैसे काम करते हैं.

loktantra_051919032810.jpg

चुनाव के बाद लोग बेसब्री से एग्जिट पोल का इंतज़ार करते हैं. न्यूज चैनल ख़ास बुलेटिन चलाते हैं इस पर. टीवी स्क्रीन्स पर नंबर फ्लैश होते रहते हैं. इसमें बताते हैं कि इस पार्टी को इतनी सीटें मिल रही हैं. उस को इतनी. पिछली बार के मुकाबले इस बार कितना फायदा, कितना नुकसान हुआ सीटों का. ये सब कुछ पता चलता है.

लेकिन आखिर ये सब पता लगाया कैसे जाता है?

जहां जहां वोटिंग होती है, वहां पर सूत्र/जर्नलिस्ट वोट देकर आने वालों से पूछते हैं उन्होंने किसको वोट दिया. उनसे जानकारी लेते हैं. कई बार ये इंटरव्यू लेने वाले प्राइवेट कम्पनियों के भी होते हैं जिन्हें हायर किया जाता है इस काम के लिए. उदाहरण के लिए अमेरिका में जब वोटिंग होती है तो एग्जिट पोल के लिए बड़े मीडिया हाउसेज जैसे CNN, ABC News, FOX News इत्यादि मिलकर एडिसन इंटरनेशनल नाम की एजेंसी को फंड करते हैं जो इनके लिए एग्जिट पोल कराती है. भारत में न्यूज चैनलों के अपने स्त्रोत होते हैं जिनसे ये जानकारी जुटाई जाती है.

एग्जिट पोल में सिर्फ वोट के बारे में ही जानकारी नहीं ली जाती, ये भी कई बार लोग पता करते हैं कि किसी भी खास क्षेत्र में वोटिंग करने वाले लोग किस आधार पर वोटिंग कर रहे हैं. जो वोट किया वो क्यों किया. उनका मोटिवेशन क्या है. वो किस मुद्दे पर वोट कर रहे हैं. ये जानकारी भी सर्वे में ली जाती है.

एग्जिट पोल का नाम एग्जिट पोल इसलिए है क्योंकि वोटर के वोट देकर एग्जिट करते ही यानी निकलते ही उससे जानकारी ली जाती है. ये ध्यान देने वाली बात है कि हर किसी से जाकर सवाल नहीं पूछे जाते. एक सैम्पल साइज तय कर लिया जाता है. उनसे सवाल पूछे जाते हैं. जैसे मान लीजिए किसी सीट पर वोटरों की संख्या एक लाख है, तो  कम से कम 100 लोगों से सवाल पूछे जाने पर दस फीसद मार्जिन ऑफ एरर रहेगा. यानी कि जितने भी आंकड़े बतायए जाएंगे, उनमें दस फीसद ऊपर या नीचे हो सकता है. ये लिमिट ही मार्जिन ऑफ एरर कहलाती है. यही अगर मार्जिन पांच फीसद करना हो तो लाख में से कम से कम 380 लोगों को पूरे कांफिडेंस से जवाब देना होगा. अब समझ गए होंगे आप, कि अधिकतर लोगों के पास एग्जिट पोल वाले इसलिए नहीं जाते क्योंकि सैम्पल साइज़ के हिसाब से काम होता है कैलकुलेशन का. अधिकतर सर्वे भी इसी तरह होते हैं. 

फिर एग्जिट पोल कभी भी दिखा सकते हैं क्या?

नहीं. रेप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपल्स एक्ट 1951 की धारा 126 A के तहत चुनाव के शुरू होने से लेकर ख़त्म होने के आधे घंटे बाद तक आप एग्जिट पोल नहीं दिखा सकते. इस रोक को इम्बार्गो (Embargo) कहा जाता है. यानी कि जब से पहले फेज की वोटिंग शुरू हुई है तब से लेकर आखिरी फेज की वोटिंग तक आप एग्जिट पोल का कोई सर्वे नहीं दिखा सकते. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि चल रही वोटिंग को इन्फ्लुएंस न किया जा सके.

eci-pic-750x500_051919033131.jpgकेंद्रीय चुनाव आयोग नज़र रखता है इन पर.

ओपिनियन पोल नाम की भी एक चीज़ होती है. लेकिन ये वोटिंग से पहले होती है. लोगों से पूछा जाता है उनके मत के बारे में. उनके रुझान के बारे में. किसे वोट ज्यादा मिलने के आसार हैं और क्यों. ये सब कुछ.

कितने भरोसेमंद होते हैं ये एग्जिट पोल ?

जो आंकड़े एग्जिट पोल के होते हैं, वो एक मार्जिन ऑफ एरर के तहत ही देखे जा सकते हैं. 2004 के लोकसभा चुनावों में एग्जिट पोल्स ने ये दर्शाया था कि NDA की सरकार वापस आ रही है. लेकिन ऐसा नहीं हुआ था. UPA की सरकार बनी थी.  इसलिए इनपर आंख मूंद कर भरोसा करने का भी कोई पॉइंट नहीं है. बस एक अंदाज़े के लिए देखना चाहें तो देखें.

 

 

लगातार ऑडनारी खबरों की सप्लाई के लिए फेसबुक पर लाइक करे      

Copyright © 2024 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today. India Today Group