क्या होता है बैकअप कैंडिडेट? कोई महिला 37 साल से तो कोई पहली बार ये रोल निभा रही हैं

नेताओं ने अपने फैमली मेम्बर को ही मौका दिया.

उमा मिश्रा उमा मिश्रा
अप्रैल 25, 2019

लोकसभा चुनाव में दिल्ली के प्रत्याशियों ने अपना-अपना बैकअप कैंडिडेट भी उतारा है. कुछ ने पार्टी के ही सदस्यों को अपना बैकअप बनाया, तो कुछ ने अपनी फैमली के मेंम्बर को ये मौका दिया है. ताकि वो चुनाव लड़ न भी पाएं, तो उनका वो कैंडिडेट चुनाव लड़ सके.

आइए पहले जानिए कि कवरिंग उर्फ बैकअप कैंडिडेट होता क्या है?

कवरिंग या बैकअप कैंडिडेट किसी भी तरह के चुनाव में हो सकता है. इनको चुनाव में खड़े प्रत्याशी नॉमिनेट करते हैं. इसका मतलब ये है कि जो प्रत्याशी जिस पार्टी से होता है, वो उसी पार्टी के किसी कैंडिडेट को नॉमिनेट करता है. ये अधिकार प्रत्याशी के पास होता है. उसे नामांकन यानी नॉमिनेशन के समय उस कैंडिडेट का नाम लिखना होता है. हालांकि ये जरूरी नहीं होता है. पर कुछ अपना कैंडिडेट बैकअप के तौर पर उतारते हैं और कुछ नहीं.

इसके बाद अगर चुनाव आयोग मुख्य प्रत्याशी का नामांकन स्वीकार कर लेते हैं, तो कवरिंग कैंडिडेट का नाम अपने आप ही रद्द हो जाता है. कवरिंग कैंडिडेट को सिक्योरिटी मनी (सुरक्षा राशि) भी जमा करनी पड़ती है, जिसका अमाउंट 25 हजार रुपए होता है. नामांकन रद्द होने पर वो रुपए वापस मिल जाते हैं.

...कुछ तो बनते ही आ रहे हैं-

सरिता अग्रवाल, कांग्रेस नेता और दिल्ली के चांदनी चौक सीट से लोकसभा प्रत्याशी जेपी अग्रवाल की पत्नी हैं. और इसके साथ-साथ उनकी बैकअप कैंडिडेट भी. सरिता अग्रवाल का कहना है कि वो पिछले 8 चुनावों से जेपी अग्रवाल की बैकअप कैंडिडेट के तौर पर खड़ी हो रही हैं. मेयर का चुनाव था 1982 में, तब उनका ये सफर शुरू हुआ था. फिर 1984 में हुए लोकसभा चुनाव के बाद 1989 के लोकसभा चुनाव में भी वो बैकअप कैंडिडेट रहीं. उसके बाद 1991, 1996, 2009, 2014 और अब 2019 के लोकसभा चुनाव में वह उनकी बैकअप कैंडिडेट हैं. जब उनसे हमने पूछा कि आपने कभी चुनाव क्यों नहीं लड़ा तो उन्होंने कहा, 'जब मिया लड़ रहे हैं तो मैं क्या करूंगी चुनाव लड़कर, घर का एक मेम्बर तो खड़ा ही है.'

jp-aggrawal-750x500_042519074557.jpgजेपी अग्रवाल और उनकी पत्नी सरिता अग्रवाल

स्वाति सिंह वर्मा, बीजेपी सांसद और वेस्ट दिल्ली सीट से बीजेपी लोकसभा प्रत्याशी प्रवेश वर्मा की पत्नी हैं. इन्होंने भी प्रवेश वर्मा का साथ तीन चुनाव में दिया है. महरौली से जब उन्होंने सांसद का चुनाव लड़ा था, तब स्वाति सिंह उनकी बैकअप कैंडिडेट थीं. 2014 में जब वो लोकसभा के चुनाव में खड़े हुए, तब भी स्वाति उनकी बैकअप कैंडिडेट रहीं और अब 2019 के चुनाव में भी वो बैकअप कैंडिडेट थीं. क्योंकि प्रवेश वर्मा का नामांकन आयोग ने एक्सेप्ट कर लिया है. तो स्वाति सिंह का नाम अपने आप ही रद्द हो गया. और उन्होंने जो रुपए आयोग में दिए हैं, वो भी उन्हें वापस मिल जाएंगे.

parvesh-750x500_042519074631.jpgस्वाति सिंह अपने पति प्रवेश वर्मा के साथ

अल्का चड्ढा, जो आम आदमी पार्टी के नेता और दक्षिणी दिल्ली से लोकसभा प्रत्याशी राघव चड्ढा की मां हैं. वो भी बैकअप कैंडिडेट हैं. राघव चड्ढा से हमने जब बात की तो उन्होंने बताया कि उन्हें अपनी मां को काफी मनाना पड़ा था. और वो अपनी मां के काफी क्लोज हैं, करीब हैं तो उन्होंने अपनी मां को ही बैकअप कैंडिडेट चुना. ये राघव चड्ढा का पहला चुनाव है.

तारिशी, पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से प्रत्याशी अतिशी की बैकअप कैंडिडेट थीं. इनका नाम भी रद्द हो चुका है और अतिशि के नाम को मंजूरी मिल गई है. तारिशी भी पहली बार इस चुनाव में बैकअप कैंडिडेट बनीं. तारिशी से बात की तो उन्होंने बताया कि उन्हें ऑक्सफोर्ड जाने का मौका मिला था, लेकिन उन्हें राजनीति में रहकर जो सीखने को मिलता वो वहां न मिलता. हालांकि वो दिल्ली से पोस्ट ग्रैजुएशन कर रही हैं.

इसके अलावा, कांग्रेस नेता अजय माकन ने अपनी पत्नी राधिका को, आप नेता बीएस जाखड़ ने अपने भाई विक्रम सिंह को और गूगन सिंह ने अपने बेटे मधु सूदन को बैकअप कैंडिडेट के तौर पर उतारा. इससे एक चीज तो साफ नजर आती है कि बड़े नेता हों या फिर छोटे, सभी अपना बैकअप साथ में लेकर चलते हैं. 

 

 

 

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