बेबी प्रोडक्ट्स बनाने वाली ये मशहूर कंपनी जाने कितनी लाशों पर बैठी है
मासूम विज्ञापनों वाली इस कंपनी ने जिंदगियां बर्बाद कर दीं.

आज से सैंकड़ों वर्ष पहले भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी नाम की एक विदेशी कंपनी आई थी. शुरुआत में इस कंपनी ने व्यापार किया फिर बाद में पूरे भारत को 200 वर्षों तक गुलाम बना कर रखा. 1947 में हमारे देश को तो आजादी मिल गई लेकिन विदेशी कंपनियों से हमें आजादी नहीं मिली. आज भी विदेश की कंपनी भारत के लोगों को अपना गुलाम मानती है. भारत के लोगों के प्रति उनका रवैया बेहद ही असंवेदनशील होता है.
ताजा उदाहरण जॉनसन एंड जॉनसन कंपनी का है. इस कंपनी ने भारत में 4700 घटिया हिप रिप्लेसमेंट सिस्टम बेचे. जिसकी वजह से 4 लोगों की मौत हुई. कईयों की ज़िंदगी बर्बाद हुई. 71 लोगों की ज़िंदगी उस मुकाम पर चली गई जहां से ना तो वो ठीक से चल सकते हैं और ना ही ठीक से खड़े हो पाते हैं. कंपनी ने यही काम दूसरे देशों में भी किया. घटिया प्रॉडक्ट बेचे. लोगों की ज़िंदगी से खिलवाड़ किया.
लेकिन दूसरे देशों में उनके ऊपर 6 हजार मुकदमे हुआ और वे 6500 करोड़ का मुआवजा भरने को तैयार भी हो गए. लेकिन भारत के लोगों के साथ ऐसा नहीं है. भारत में कईयों की ज़िंदगी खराब तो हुई है. लेकिन कंपनी हर्जाना नहीं भर रही है. कंपनी का रवैया इतना दोहरा है कि एक तरफ 6500 करोड़ भरने को तैयार हैं, लेकिन भारत के लोगों को कुछ करोड़ का मुआवजा देने में उनकी नानी याद आ रही है.
जॉनसन के प्रॉडक्ट के इस्तेमाल के बाद लोगों को इसी एरिया में दिक्कतें आने लगी
मामला विस्तार से समझिए
अमेरिका की मशहूर फार्मा प्रोडक्ट कंपनी है जॉनसन एंड जॉनसन. इस कंपनी ने साल 2003 से 2013 तक भारत में 4700 हिप रिप्लेसमेंट सिस्टम बेचे. कंपनी का ये प्रोडक्ट बहुत ही घटिया स्तर का था. इसकी डिज़ाइनिंग में फॉल्ट थी. कंपनी के इस प्रॉडक्ट की वजह से भारत के कई लोगों को सर्जरी के बाद दिक्कत हुई. आधिकारिक रूप से कितने लोग हैं इसका आंकड़ा मौजूद नहीं है. लेकिन 71 लोग कंपनी के खिलाफ मुकदमा लड़ रहे हैं. जबकि 4 लोगो की मौत हो गई है. भारत में इस बात का खुलासा साल 2018 में फरवरी के महीने में हुआ. हो वैसे 2017 में ही जाना था. लेकिन कोई डिपार्टमेंट फाइल दबाए बैठा था.
दरअसल सेंट्रल गवर्नमेंट की एक कमेटी ने साल 2017 में कंपनी के इसी प्रॉडक्ट के खिलाफ जांच की. जांच में इस बात का खुलासा हुआ कि कंपनी ने विदेशों में ही नहीं भारत में भी फॉल्टी प्रॉडक्ट बेचे थे. जिसकी वजह से कई मरीजों का भारी नुकसान हुआ है. इसी खुलासे के बाद महाराष्ट्र के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के पूर्व कमिश्नर महेश जगाडे ने भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया यानी DGCI पर कई गंभीर आरोप लगाए. क्योंकि कंपनी को लाइसेंस देने का काम इसी डिपार्टमेंट के पास है.
उस वक्त जगाडे ने कहा था कि साल 2010 में ही जिस प्रॉडक्ट को कंपनी ने घटिया होने पर वापिस मंगा लिया था. उस कंपनी के उसी प्रॉडक्ट को भारत में बेचने के लिए लाइसेंस रिन्यू कैसे हो गया. दूसरी तरफ DGCI का कहना था कि वो कंपनी पर कार्रवाई करेगी. उसके बाद ये मामला दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचा. साथ ही साथ मरीजों के मुआवजे के लिए सरकार ने एक कमेटी भी बना दी.
इस कमेटी ने कंपनी पर जुर्माना लगाया. कंपनी को आदेश दिया कि इस प्रॉडक्ट की वजह से पीड़ित मरीज़ को कंपनी चिन्हित करे. फिर उन्हें 3 लाख से सवा करोड़ रुपये तक का जुर्माना चुकाए. 31 मई 2018 को दिल्ली हाईकोर्ट ने भी आदेश दिया कि 67 मरीजों को तत्काल रूप से 25-25 लाख रुपये दिए जाए. इस आदेश को कंपनी ने नहीं माना.
मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. एक जनहित याचिका डाली गई. सुप्रीम कोर्ट ने माना कि कंपनी ने गलती की है और सरकार ने सही जुर्माना लगाया है. लेकिन कंपनी ने कई दलीलें देकर इस मामले में नई तारीख हासिल कर ली. और ये तारीखें आजतक जारी हैं. कंपनी अभी भी सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ रही है. लेकिन जुर्माना देने को तैयार नहीं है.
अमेरिका में एक बिलियन डॉलर जुर्माना भरने को तैयार
कंपनी का दोहरा रवैया यहीं से झलकता है. साल 2000 से 2010 के बीच कंपनी ने विदेशों में भी यही डिफेक्टिव प्रॉडक्ट बेचे. इससे कई लोगों को दिक्कतें आईं. अलग-अलग जगहों पर कंपनी के खिलाफ 6 हजार मुकदमें दाखिल किए गए. मुकदमा काफी लंबा भी चला और कंपनी केस हार भी गई. इसी साल 7 मई 2019 को कंपनी ने टेक्सस की अदालत में 1 बिलियन डॉलर का हर्जाना भरने की बात मानी. इस भारतीय रुपयै में कनवर्ट करे तो करीब 6500 करोड़ रुपये बनता है.
कंपनी टेक्सस की एक अदालत में एक बिलियन डॉलर का जुर्माना भरने को तैयार हो गई
मई 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 67 ऐसे मरीज सामने आए जिन्हें इस प्रॉडक्ट की वजह से नुकसान हुआ. इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक 4 और ऐसे मरीज सामने आए जिनकी ज़िंदगी को जॉनसन एंड जॉनसन के इस प्रॉडक्ट ने नरक बना दिया. मरीजों की संख्या कुल 71 हो गई.
क्या होता है हिप इंप्लांट?
पहले हिप इंप्लांट अच्छे से समझ लीजिए, वर्ना कन्फ्यूज़ हो जाएंगे. कई लोगों को उम्र के साथ जोड़ों में दर्द की शिकायत होती है. इसमें घुटना, कमर, हिप मुख्य रूप से शामिल है. दर्द होने की पहली वजह तो बढ़ती उम्र होती है, और दूसरी वजह ज्वाइंट का घिस जाना. ऐसे में लोगों को उन जोड़ों पर बेसहाय दर्द महसूस होता है.
कमर के नीचे में दर्द की स्थिति में डॉक्टर पहले दवाईयां देता है. लेकिन जब दवाईयों से भी मसला हल नहीं होता है फिर हिप रिप्लेसमेंट की सलाह दी जाती है. इस केस में डॉक्टर सर्जरी के ज़रिए हिप ज्वाइंट को हटा देते हैं और इसकी जगह धातु या फिर प्लास्टिक से बने आर्टिफिशियल ज्वाइंट लगा देते हैं. इस सर्जरी के बाद मरीज़ 15-20 दिनों के भीतर सही तरीके से चलने फिरने लगता है और दर्द से भी छुटकारा मिल जाता है.
आपकी सहूलियत के लिए आईआईटी के एक प्रॉफेसर का वीडियो लगा रहे हैं, ये देखकर आपको समझ में आज जाएगा कि हिप इंप्लांट कैसे काम करता है.
Prof. Kantesh Balani, Department of Material Science & Engineering @IITKanpur who won the Swarnajayanti Fellowship 2016-17, talks about his work on improving the antibacterial & antioxidant properties of hip joint implants. https://t.co/Ae5qfTBIll pic.twitter.com/qDGAooZLdc
— Abhay Karandikar (@karandi65) October 18, 2018
जॉनसन के प्रॉडक्ट में क्या था?
जॉनसन के प्रॉडक्ट की डिज़ाइनिंग में ही गड़बड़ी थी. इस प्रॉडक्ट में ज्वाइंट की जगह मेटल का इस्तेमाल किया गया था. इसी मेटल की वजह से मरीजों के खून में कोबाल्ट और क्रोमियम की मात्रा ज्यादा बढ़ रही थी. जिसकी वजह से लोगों के आयन्स टिशू और बॉडी आर्गन्स को नुकसान पहुंच रहे थे. लोगों ने इसे लगवाए थे दर्द खत्म करवाने के लिए, लेकिन इसी प्रॉडक्ट की वजह से लोगों के ऑर्गन्स फेल होने लगे.
अब उन 4 लोगों की जानकारी
वैसे तो इस मामले में हकीकत में कितने मरीज हैं जिसका कोई डेटा मौजूद नहीं है. लेकिन आधिकारिक तौर पर 71 लोग हैं. ये सभी कंपनी के खिलाफ कानूनी लड़ाई तो लड़ रहे हैं, लेकिन ज़िंदगी की एक बहुत बड़ी जंग हार चुके हैं. जॉनसन के इस प्रॉडक्ट की वजह से इन सभी लोगों की ज़िंदगी नर्क जैसी हो चुकी है.
पहला नाम है नंद किशोर जोशी का. 61 साल के जोशी ने अक्टूबर 2007 में कंपनी का आर्टिफिशियल हिप इंप्लांट करवाया. लेकिन 2018 में उनके शरीर में कोबाल्ट की मात्रा हद से ज्यादा बढ़ गई. डॉक्टरों ने कहा कि जल्द से जल्द सर्जरी करनी पड़ेगी. उन्होंने सर्जरी नहीं करवाई. इसी साल जुलाई में पता चला कि उनके शरीर में कोबाल्ट की मात्रा तय सीमा से वो 60 गुना ज्यादा बढ़ चुकी है. ऑपरेशन तुरंत नहीं करने की स्थिति में जान भी जा सकती है. जोशी को अब सिर्फ कोर्ट से उम्मीद है.
मेटल के इसी बॉल की वजह से मरीजों के शरीर में कोबाल्ट की मात्रा जानलेवा स्तर पर चली गई
दूसरा नाम है अंसारी का. एर्नाकुलम के अंसारी की मार्च 2009 में सर्जरी हुई थी. लेकिन एक साल के बाद ही उनकी सर्जरी फेल हो गई. उन्हें हिप में हमेशा दर्द होने लगा. फरवरी 2019 में उनके शरीर में कोबाल्ट की मात्रा 10 गुना से भी ज्यादा बढ़ गया. डॉक्टरों ने उन्हें फिर से सर्जरी के लिए एडवाइज़ किया. लेकिन वो कंपनी की तरफ से मुआवजे के पैसे का इंतजार कर रहे हैं.
तीसरा नाम है दिल्ली की सीमा मित्तल का. अप्रैल 2008 में इन्होंने कंपनी का हिप इंप्लांट करवाया. जिसके बाद साल 2014 में एक बेटे को जन्म दिया. डॉक्टरों के मुताबिक शरीर में कोबाल्ट की मात्रा ज्यादा होने की वजह से स्पेशली एबल्ड (अपंग) बेटा पैदा हुआ. साल 2015 में उनके शरीर में पस भर गया. जिसके बाद वो सर्जरी के लिए गईं. डॉक्टरों ने उनके शरीर से पस तो निकाल दिया, लेकिन दिक्कतें दूर नहीं हुई. सीमा के शरीर में लगे कंपनी के प्रॉडक्ट की वजह से आज की तारीख में उनकी जान पर आफत आई हुई है.
चौथा नाम है उदय मधुकर का. उदय महाराष्ट्र के औरंगाबाद के हैं. 56 साल उदय ने दर्द ठीक होने के लिए साल 2008 में सर्जरी करवाई. लेकिन उनकी असली दर्द इसी साल से शुरू हुई. 30 लाख रुपये से ऊपर खर्च कर चुके उदय आज चलने-फिरने के भी काबिल नहीं हैं. कंपनी की तरफ से मुआवजा मिलेगा या नहीं इसका इन्हें भरोसा नहीं है, लेकिन जॉनसन एंड जॉनसन ने इनकी ज़िंदगी बर्बाद कर दी इस बात का मलाल इन्हें ताउम्र रहेगा.
मरीजों में कुछ इस तरह से हिप इंप्लांट किए गए
मौजूदा स्थिति क्या है?
पिछली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने मीडिया में आकर कहा था कि वो इस मामले को खुद देख रहे हैं. उसके बाद 2019 में सरकार बदलने के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में है. कंपनी केस लड़ रही है लेकिन मुआवजा देने को तैयार नहीं हो रही है. जितना मुआवजा उन्होंने अमेरिका के केस में दिया है शायद भारत में उसका 1 प्रतिशत भी नहीं देना पड़े. लेकिन कंपनी का दोहरा रवैये की वजह से ही वो मुआवजा देने को तैयार नहीं है और केस पर केस लड़ रही है.
जॉनसन का इतिहास पहले से काला है
वैसे ये पहला मामला नहीं है जब जॉनसन एंड जॉनसन के प्रॉडक्ट पर सवाल उठे हो. इससे पहले भी साल 2018 में जुलाई में जॉनसन के पाउडर से गर्भाशय के कैंसर की बात सामने आई थी. जिसके बाद कंपनी पर मुकदमा हुआ था. मामला साबित होने पर कंपनी के ऊपर 32 हजार करोड़ रुपये का ज़ुर्माना लगाया गया था.
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