वो लड़की जिसने पंजाब की स्टूडेंट पॉलिटिक्स में इतिहास रच दिया

बड़ी गाड़ियां, पैसे और पौरुष के बीच एक जीत सच की.

आपात प्रज्ञा आपात प्रज्ञा
सितंबर 07, 2018
कनुप्रिया पंजाब यूनिवर्सिटी की पहली महिला प्रसिडेंट बनीं. फोटो क्रेडिट- फेसबुक

6 सितंबर 2018. रात सात बजे. पंजाब यूनिवर्सिटी. सबको चुनाव परिणाम का इंतज़ार. एक-एक पल किसी तरह बीत रहा था. अब आधिकारिक घोषणा हो कि तब हो. उम्मीद कि कनुप्रिया प्रसिडेंट पद जीत जाएंगी. रात आठ बजते बजते परिणाम घोषित हुए. सबकी उम्मीद जीत गई. कनुप्रिया पंजाब यूनिवर्सिटी की पहली महिला प्रसिडेंट बन गईं.

जीत के बाद कनुप्रिया. फोटो क्रेडिट- फेसबुक जीत के बाद कनुप्रिया. फोटो क्रेडिट- फेसबुक

जीत के बाद एक न्यूज़ चैनल को दिए इंटरव्यू में कनुप्रिया ने कहा-

‘एसएफएस जो शुरू से लाना चाह रही थी, जो संदेश रहा है एकजुटता का वो आज सभी स्टूडेंट्स तक पहुंच गया है. वो वर्डिक्ट ने भी साबित किया कि ये जो यूनिवर्सिटी है वो स्टूडेंट्स की पहले है. ये अथॉरिटीज़ की पहले नहीं है. ये बीजीपी, कांग्रेस, आरएसएस या अकालियों की पहले नहीं है. ये बच्चों की यूनिवर्सिटी है और इसको स्टूडेंट्स ही चलाएंगे.’

कनुप्रिया ने कहा- 'ये बच्चों की यूनिवर्सिटी है और इसको स्टूडेंट्स ही चलाएंगे.' फोटो क्रेडिट- फेसबुक कनुप्रिया ने कहा- 'ये बच्चों की यूनिवर्सिटी है और इसको स्टूडेंट्स ही चलाएंगे.' फोटो क्रेडिट- फेसबुक

वहीं कनुप्रिया और एसएफएस के समर्थक बेहद खुश नज़र आए. डफली जो एसएफएस की पहचान रही है वो उनकी जीत के बाद भी समर्थकों के हाथों में दिखी. एक समर्थक का कहना था- ‘लोग कहते हैं कि सच की हमेशा जीत होती है. ये हमारे सामने उदाहरण है. यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स ने पहचान लिया है कि कौन सच्चा है और कौन झूठा है. सभी स्टूडेंट्स जागरुक हो चुके हैं.’

पंजाब यूनिवर्सिटी में 1977 से चुनाव हो रहे हैं लेकिन ये पहली बार है कि कोई लड़की प्रसिडेंट बनी है. 1984 के बाद स्टूडेंट इलेक्शन पर बेन लगा दिया गया था. 1997 से ये फिर शुरू हुए. एसएफएस ही वो पार्टी रही जिसने पहले भी महिला केंडीडेट्स को टिकट्स दिए. साल 2014 में अमन कौर ने पार्टी के लिए चुनाव लड़ा हालांकि वो जीत नहीं पाईं. 2017 में हसनप्रीत कौर चुनाव में उतरीं और कुछ वोट्स से जीतने से चूक गईं. 2018 में ये चूक नहीं हुई और कनुप्रिया ने 719 वोट्स के मार्जन से प्रसिडेंट पद जीत लिया. उन्हें कुल 2802 वोट्स मिले.

कनुप्रिया ज़ुलॉजी डिपार्टमेंट की स्टूडेंट हैं. फोटो क्रेडिट- फेसबुक कनुप्रिया ज़ुलॉजी डिपार्टमेंट की स्टूडेंट हैं. फोटो क्रेडिट- फेसबुक

कनुप्रिया ज़ुलॉजी डिपार्टमेंट की स्टूडेंट हैं. एमएससी कर रहीं कनुप्रिया को फोटोग्राफी करना पसंद है. अपने हॉस्टल के कमरे में रहना पसंद है. कैंपस में कई ऐसी जगहे हैं जहां बेहतरीन फोटोज़ आते हैं और उन्हें ये बात बहुत अच्छी लगती है.

पंजाब यूनिवर्सिटी से पढ़े और एसएफएस से जुड़े रहे रजत बताते हैं कि यहां का माहौल एक तरह के पॉप कल्चर को दिखाता है. शो ऑफ हर जगह देखने को मिल जाएगा. बड़ी-बड़ी गाड़ियां हों चाहे महंगे गेजेट्स यूनिवर्सिटी में बच्चों के पास ऐसा बहुत कुछ देखने को मिलता है. चुनावों में हमेशा पैसे और मसल पॉवर का ज़ोर भी रहता है लेकिन इस बार के चुनाव ऐतिहासिक हैं.

फोटो क्रेडिट- फेसबुक फोटो क्रेडिट- फेसबुक

एक स्टूडेंट पार्टी की जीत हुई है. ऐसी पार्टी जिसने चुनाव के लिए फंड भी चंदा करके इकट्ठा किया था. ऐसी पार्टी जिसने बच्चों के हक के लिए एक साल चुनाव ही नहीं लड़ा था. साल 2015 में एसएफएस ने चुनाव नहीं लड़े थे. वजह, उन पर आरोप लग रहे थे. असल में एसएफएस की मांग थी कि हॉस्टल्स में टाइमिंग खत्म होनी चाहिए. उन्हें 24 घंटे खुला रहना चाहिए. उन पर आरोप लगा कि वो ये मांग इसलिए कर रहे हैं ताकि उन्हें चुनाव में वोट मिल सकें. इस बात को खारिज करने के लिए एसएफएस ने 2015 में चुनाव नहीं लड़े. 2018 में ऐसी पार्टी की जीत हुई जिसने यूनिवर्सिटी में गाड़ियो के आने या न आने के लिए जनमत संग्रह कराया था. ये चुनाव हर तरह से एतिहासिक हैं.  

पंजाब यूनिवर्सिटी. फोटो क्रेडिट- फेसबुक पंजाब यूनिवर्सिटी. फोटो क्रेडिट- फेसबुक

एसएफएस भगत सिंह को अपना आइडल मानती है. ये पार्टी लगातार बच्चों के बीच उनके मुद्दे उठाती रही है. चाहे फीस बढ़ने के खिलाफ धरना देना हो या राइट टू एड्यूकेशन पर सेमिनार्स आयोजित करना हो. एसएफएस हर जगह बच्चों से संबंधित समस्याओं को अपना मुद्दा बनाया है. लैंगिक समानता पर भी एसएफएस लगातार अपना पक्ष रखती रही है. इस पार्टी ने हमेशा लैंगिक समानता का समर्थन किया है. लोगों से जुड़े मुद्दों को समर्थन किया है.

पंजाब यूनिवर्सिटी का दृश्य. फोटो क्रेडिट- फेसबुक पंजाब यूनिवर्सिटी का दृश्य. फोटो क्रेडिट- फेसबुक

एसएफएस का मानना है कि आप जिससे पैसे लेते हो उस ही के जवाबदेह होते हो. एसएफएस ने स्टूडेंट्स से पैसे लिए हैं और वो स्टूडेंट्स के लिए जवाबदेह है. यहां पर कोई नेता बनने के लिए चुनाव नहीं लड़ता. स्टूडेंट यूनिटी, जेंडर इक्विलिटी, और बच्चों की समस्याओं को हल करने के लिए चुनाव लड़ते हैं.

हॉस्टल से एक फोटो. फोटो क्रेडिट- फेसबुक हॉस्टल से एक फोटो. फोटो क्रेडिट- फेसबुक

रजत ये भी बताते हैं कि एसएफएस चाहती है कि गर्ल्स हॉस्टल से टाइम बाउंडेशन खत्म हो जाए. जिस तरह लड़के 24 घंटे पुस्तकालय और यूनिवर्सिटी कैंपस की सुविधाओं का इस्तेमाल करते हैं लड़कियों को भी ये अधिकार हो. साथ ही वो कहते हैं कि इस जीत ने बहुत से मिथ तोड़े हैं. माना जाता था कि लड़कियां चुनाव नहीं जीत सकतीं. कनुप्रिया ने इस मिथ को पूरी तरह चकनाचूर कर दिया है. इस जीत ने ये साबित किया है कि मुद्दों की राजनीति करने पर कोई भी आगे आ सकता है. जीत सकता है. राजनीति कोई खराब शब्द नहीं है, लोगों ने इसे खराब बनाया है. अब वक्त बदल रहा है. यूनिवर्सिटी में पितृसत्ता की बेड़ियां के टूटने की शुरूआत हो चुकी है.

 

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