सुप्रीम कोर्ट ने औरतों के 'खतने' पर ज़बरदस्त बात बोली है
दाउदी बोहरा समुदाय में औरतों का खतना किया जाता है
‘महिलाओं को उनके पतियों की ज़रूरत पूरी करने का सामान नहीं बनाया जा सकता.’
सुप्रीम कोर्ट ने 30 जुलाई को ‘खतना’ केस की पीआईएल (PIL- Public Interest Litigation) यानी जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा. सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम धर्म के दाउदी बोहरा समुदाय में होने वाले ‘खतने’ की प्रथा पर सवाल उठाए.
‘खतना’ मुसलमानों में एक प्रथा है. इस्लाम के अधिकतर समुदायों में पुरुषों का खतना करने की प्रथा है. औरतों का खतना उनकी सेक्सुअल डिज़ायर्स (सेक्स करने की इच्छा) को खत्म करने के लिए होता है. औरतों का खतना केवल दाउदी बोहरा समुदाय में किया जाता है. इस प्रथा के अनुसार औरतों के ‘क्लिटोरिस’ को काट दिया जाता है. इसके कई खतरे हैं. महिलाओं को पीरियड्स के दौरान बहुत अधिक दर्द, सेक्स के दौरान बहुत अधिक दर्द, यहां तक कि पेशाब करने में भी दर्द हो सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने मौलिक अधिकारों का ज़िक्र करते हुए कहा कि किसी भी महिला का खतना करना महिलाओं के मौलिक अधिकारों का हनन है. कोर्ट ने आर्टिकल 15 (जाति, धर्म, लिंग के आधार पर भेदभाव पर रोक) के बारे में बताते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति के शरीर पर उसका अपना अधिकार है. खतना प्रथा के खिलाफ कई लोगों ने पीआईएल दाखिल की है. सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार ‘फीमेल जेनेटल म्यूटीलेशन’ के खिलाफ दर्ज़ हुए पीआईएल के समर्थन में है. 42 देशों में इसे प्रतिबंधित कर दिया गया है. जिनमें से 27 देश अफ्रीका के हैं.
खतना बचपन में ही कर दिया जाता है. उस समय बच्चों को पता ही नहीं होता कि उनके साथ क्या हो रहा है. ये प्रथा बच्चों के अधिकारों का भी हनन करती है. सुप्रीम कोर्ट की बेंच में न्यायाधीश ए.एम. खानविल्कर, डी. वाय. चंद्रचूड़ और चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने अपनी राय देते हुए कहा-
‘खतना कैसे किया जाता है इससे फर्क नहीं पड़ता. मुद्दा ये है कि ये औरतों के मौलिक अधिकारों का हनन है. खासकर आर्टिकल 15 का. खतने पर रोक लगाना ज़रूरी है ताकि सुनिश्चित हो सके कि आपके शरीर पर केवल आपका हक़ है. संविधान दोनों ही जेंडर के प्रति संवेदनशील है. ऐसी प्रथा जो औरतों को केवल आदमियों के भोग की वस्तु बनाती हो वो संवैधानिक तौर पर ग़लत है.’
खतना जैसी प्रथा मानवता के खिलाफ है. किसी भी इंसान के शरीर पर उसका अपना अधिकार है. किसी भी प्रथा या धर्म को इस अधिकार को छीनने का हक़ नहीं होना चाहिए. लेकिन है, बहुत से समुदायों में खतना को धार्मिक प्रथा के नाम पर आज भी माना जा रहा है. इस पर जल्द से जल्द रोक लगनी चाहिए.
एक तरफ तो सुप्रीम कोर्ट में सरकार की तरफ से के.के. वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार ‘खतने’ के खिलाफ कानून बनाना चाहती है. वहीं 10 दिन पहले 20 जुलाई को महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय के राज्य मंत्री विरेंद्र कुमार ने संसद में एक सवाल के जवाब में कहा है- ‘पोक्सो एक्ट 2012 (POCSO), भारतीय दंड संहिता (IPC) और दंड प्रक्रिया संहिता (CCP) में खतने के खिलाफ ज़रूरी नियामक पहले से ही मौजूद हैं. सरकार इस पर कोई और कानून नहीं बनाना चाहती.’
विरेंद्र कुमार ने ये जवाब सांसद शशि थरूर के प्रश्न पर दिया था. थरूर ने पूछा था कि क्या सरकार धार्मिक संप्रदायों से खतना जैसी प्रथा रोकने के बारे में पूछ रही है? इस पर विरेंद्र कुमार ने कहा कि इस तरह का कोई प्रस्ताव अभी सरकार के पास नहीं है.
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