मां! इस चिट्ठी में वो सब है जो मैंने तुमसे कभी नहीं कहा

ये पहली चिट्ठी है जो तुम्हारे नाम लिख रही हूं

प्रतीकात्मक फोटो. सोर्स- पिक्साबे

मां,

शायद ये पहली चिट्ठी है जो तुम्हारे नाम और सिर्फ तुम्हारे लिए लिख रही हूं. आज तुम्हारा जन्मदिन है. जब तुम मेरी उम्र की थी तब मैं 9 और भैया 12 बरस का हो चुका था. लेकिन मैं खुशकिस्मत हूं कि तुमने मुझसे कभी ये बात नहीं कही. तुम्हें देखकर मैंने सीखा है समझदारी और बहुत अधिक पढ़े-लिखे होने का आपस में कोई सीधा कनेक्शन नहीं होता है. सारे रिश्तेदार, यहां तक कि मेरी सहेलियां भी कहती हैं कि तुम बहुत भोली हो. लेकिन, तुम्हें मालूम है? खुद की बढ़ती उम्र के साथ मुझे अहसास हो रहा है कि तुम जितनी भोली हो उतनी ही ज्यादा अंडरस्टैंडिंग भी.

बचपन से लेकर अब तक क्या पढ़ना है, क्या बनना है? जैसे मुद्दों पर मैंने तुमसे कभी राय नहीं ली. कभी नहीं पूछा कि क्या करूं. हमेशा पापा और भाई से ही इस बारे में बात की. लेकिन मैंने तुम्हें हमेशा अपने साथ खड़ा पाया.

तुम्हारी खुद की शादी 16 की उम्र में हो गई थी. शायद इसीलिए तुम कम उम्र की शादी के नुकसान बेहतर समझती हो. तुम हमेशा कहती थी कि लड़कियों की शादी जल्दी नहीं होनी चाहिए. मुझे याद है 23 की उम्र में जब मेरी एक दोस्त की शादी हुई थी तब तुमने कहा था कि अभी तो बहुत छोटे हो तुम लोग.

तुमने और पापा ने हमेशा इस बात को समझा कि लड़की का अपने पैर पर खड़े होना कितना जरूरी है. अब जब मैं 30 की होने वाली हूं तो पापा मेरी शादी को लेकर थोड़ी चिंता करने लगे हैं. तुम भी परेशान होती ही होगी. लेकिन मुझे अच्छा लगता है जब तुम कहती हो कि अपना कमा-खा रही है, जब अच्छा लड़का मिलेगा तब कर लेगी शादी.

मेरे आसपास कई लड़कियां ऐसी हैं जिनकी मांएं दिन में तीन बार फोन कर उन्हें बताती हैं कि स्किन का ख्याल रखो, मुंह बांधकर-मोजे पहनकर निकला करो नहीं तो काली हो जाओगी. तुम नहीं कहती ऐसा. कभी नहीं कहा. तब भी नहीं जब बचपन में पूरी दुनिया मुझे मुल्तानी मिट्टी और मलाई लगाने के मशविरे देती थी. मुझे अच्छा लगता है कि तुमने कभी भी मुझे ये अहसास नहीं दिलाया कि मैं जैसी हूं वैसी ठीक नहीं हूं. या मुझमें कोई कमी है.

अपनी मां उज्ज्वला के साथ दीपिका पादुकोणअपनी मां उज्ज्वला के साथ दीपिका पादुकोण

आज तुम सास और दादी भी बन चुकी हो. मुझे अच्छा लगता है ये देखकर कि तुम टिपिकल सासुमां जैसे बर्ताव नहीं करती. कि तुम जैसे मुझे समझती हो वैसे ही भाभी को भी समझने की कोशिश करती हो. मैंने देखा है तुम्हें उनकी परेशानी से परेशान होकर आंसू बहाते.

कई बार मुझे आश्चर्य होता है कि तुम कैसे हमेशा सही की साइड ले पाती हो. मैंने कभी भी तुम्हें बेजा किसी का पक्ष लेते नहीं देखा. जो गलत लगता है उसे बोल देती हो, एकदम सीधे. शायद इसीलिये मैं भी ऐसी हूं.

तुम किसी बात का गुस्सा लेकर बैठती नहीं हो. किसी से बहस हुई तो बहस हो जाने के बाद सुलह करने से तुम चूकती नहीं हो. गलती किसी की भी हो तुम उस बात के बीतते ही उस पर मिट्टी डाल देती हो. कितनी आसानी से कर लेती हो तुम ये. काश ये सीख पाऊं मैं तुमसे. तुम नाराज होती हो, किसी बात से परेशान होती हो तो छिपाती नहीं हो, बोल देती हो. मैं भी ऐसी ही हूं. बस, बड़े होने के साथ गुस्सा थोड़ा ज्यादा बढ़ता जा रहा है मेरा.

पता है, बचपन में जब मेरे साथ पढ़ने वाली लड़कियों की मांएं बीए, एमए पढ़ी होती थीं तो मुझे लगता था कि सारी सुविधाएं होने के बाद भी, नाना के घर से चार कदम दूर स्कूल होने के बाद भी तुम कम क्यों पढ़ीं?  उस दौर में घरवालों का दबाव था कि तुम पढ़ो लेकिन तुम नहीं पढ़ीं. तुमने स्कूल जाना बंद कर दिया क्योंकि तुम्हारा मन नहीं करता था. कच्ची उम्र में शायद तुमने पहली बार अपने लिए स्टैंड लिया होगा. मैं भी तो वैसी ही निकली. सारे दोस्त इंजीनियर बन रहे थे. सब चाहते थे कि मैं भी इंजीनियर बनूं, बहुत प्रेशर था. लेकिन मैं अड़ी रही. एंट्रेंस के फॉर्म गलत भरे ताकि एग्जाम ही न देना पड़े. आज वो कर रही हूं जो मैं करना चाहती थी.

तस्वीर- इंस्टाग्रामतस्वीर- इंस्टाग्राम

बचपन में हमारी किसी से लड़ाई होती थी तो तुम उनकी मांओं से लड़ने नहीं जाती थी. हॉस्टल में किसी से मुझे प्रॉब्लम होती तो तुम और पापा मेरी प्रॉब्लम सुनते. मुझे समझाते लेकिन कभी उस दूसरे बच्चे को डांटने नहीं गए कि मेरे बच्चे को परेशान क्यों किया. शायद ये तुम दोनों का तरीका था मुझे ओवर-प्रोटेक्ट नहीं करने का, मुझे अपनी जिंदगी के लिए तैयार करने का.

और हां मां, एक बात और. हम सबकुछ नहीं कर सकते हैं. इसलिए घर के काम, किचन, दुकान, गायें, बाड़ी और खेत के चक्कर में अपनी सेहत का ख्याल रखना मत भूला करो.

मैंने ये कभी नहीं कहा. आज कह रही हूं कि तुम मेरी आइडल हो. और मैं तुम जैसी बनना चाहती हूं. तुम मुझे प्रेरित करती हो बेहतर होने के लिए. तुमने कभी जताया नहीं और न ही मैंने कभी बताया. लेकिन मेरा करियर बनाने में, मेरे अपने पैर पर खड़े होने में और बिना लड़खड़ाए लगातार आगे बढ़ने में तुम्हारा भी उतना ही हाथ है जितना पापा और भाई का.

 

बहुत सारा प्यार,

तुम्हारी कुसुम!

 

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