पाकिस्तानी पुरुषों की पत्नियों को बंदी बना रहा है चीन, उनपर अत्याचार कर रहा है

एक बार बीवी गायब हो जाए तो उसका कोई अता-पता नहीं मिलता.

ईशा चौधरी ईशा चौधरी
दिसंबर 18, 2018
प्रतीकात्मक तस्वीर- रॉयटर्स

चीन का सबसे बड़ा प्रदेश है शिनजियांग(Xinjiang). उत्तर चीन में है. मुस्लिम-बहुल है और यहां का कल्चर और भाषा बाकी के चीन से बिल्कुल अलग है. यहां के ज़्यादातर मुसलमान उईग़ुर समुदाय के हैं.

लाल वाला हिस्सा शिंजियांग है. क्रेडिट: Wikimedia Commonsलाल वाला हिस्सा शिंजियांग है. क्रेडिट: Wikimedia Commons

चीन की सरकार कई सालों से उईग़ुर मुसलमानों पर अत्याचार करती आ रही है. कहते हैं शिनजियांग में हुए आतंकवादी हमले और अलगाववादी आंदोलनों को रोकने के लिए ऐसा किया जा रहा है. मगर इसके लिए चीन की सरकार जो उपाय अपना रही है, वह कतई न्यायसंगत नहीं है.

सरकार चाहती है कि शिनजियांग से इस्लाम और मुसलमानों का अस्तित्व ही मिटा दिया जाए. ताकि वहां शांति बनी रहे.

सरकार चीन से इस्लाम का अस्तित्व मिटाना चाहती है. क्रेडिट: Reutersसरकार चीन से इस्लाम का अस्तित्व मिटाना चाहती है. क्रेडिट: Reuters

इसके लिए उन्होंने कड़े नियम बना रखे हैं. नमाज़ पढ़ने, टोपी या बुरका पहनने या इस्लामी नाम रखने पर सख़्त प्रतिबंध है. बहुत सारे ‘कॉन्सेंट्रेशन कैंप’ भी हैं. जिन कैंप्स में हिटलर के जर्मनी में यहूदियों को रखा जाता था. यहूदियों की तरह उईग़ुरों को भी शारीरिक और मानसिक तौर पर टॉर्चर किया जाता है. उन्हें बिजली के झटके दिए जाते हैं. दांत और नाखून उखाड़े जाते हैं. उन्हें ‘मुसलमान’ से ‘चीनी’ बनाने के लिए शराब और सुअर का मांस दिया जाता है. और अपनी भाषा छोड़कर मैंडरिन बोलने को कहा जाता है.

इन कैंप्स को ‘स्कूल’ या ‘एजुकेशन सेंटर’ कहा जाता है. मगर यह कैदख़ाने से कम नहीं हैं. छोटे-छोटे बच्चों को भी यहां रखा जाता है. यहां भेजे जाने की वजह कुछ भी हो सकती है. नमाज़ पढ़ना. विदेश में रह रहे दोस्तों या रिश्तेदारों से संबंध रखना. या महज़ मुसलमान होना.

यहां मुसलमान होना एक गुनाह है. क्रेडिट: Reutersयहां मुसलमान होना एक गुनाह है. क्रेडिट: Reuters

उईग़ुरों के अलावा शिनजियांग में कई पाकिस्तानी व्यापारी रहते हैं. जो अपने धंधे के सिलसिले में यहां रह रहे हैं. इनमें से कईयों ने उईग़ुर औरतों के साथ घर बसाया है. अब सरकार ने इन सभी औरतों और उनके बच्चों को कैंप्स में नज़रबंद कर लिया है. और उनके पतियों को वापस पाकिस्तान जाने का आदेश दे दिया है. रिसर्चर माया वैंग कहतीं हैं कि ऐसा इसलिए है ताकि सरकार उन लोगों पर नज़र रख सके जो इस्लाम से प्रभावित हो सकते हैं.

उईग़ुर औरतों को 'इस्लामी प्रभाव' से बचाने के लिए पति से अलग किया जाता है. क्रेडिट: Reutersउईग़ुर औरतों को 'इस्लामी प्रभाव' से बचाने के लिए पति से अलग किया जाता है. क्रेडिट: Reuters

चौधरी जावेद अता नाम के एक व्यापारी ने न्यूज़ एजेंसी ‘एसोसियेटेड प्रेस’ से बात की. सालभर पहले उन्हें अपना वीज़ा रिन्यू करवाने पाकिस्तान जाना पड़ा. 14 साल पहले उन्होंने बीवी अमीना से शादी की थी. और उनके 5 और 7 साल के दो बेटे भी हैं. उनके जाने से पहले अमीना ने उन्हें बताया था कि, ‘तुम चले जाओगे तो वो मुझे ले जाएंगे. मैं फिर कभी वापस नहीं आऊंगी’.

अमीना की बातें सच हुईं. जब जावेद वापस आए तो उनकी बीवी उन्हें कहीं नहीं मिली. आठ-नौ महीनों से उन्होंने अमीना को नहीं देखा. अपने बेटों को उन्हें अमीना के मायके छोड़ना पड़ा ताकि सरकार उन्हें भी हिरासत में न ले ले. महीनों बाद जावेद के साले ने उन्हें बताया कि उनके बेटे बिल्कुल ठीक हैं. लेकिन अमीना का आज भी कोई अता-पता नहीं.

ऐसी ही कहानी है रहमान की. रहमान डॉक्टर हैं. अपनी उईग़ुर बीवी के साथ पाकिस्तान में रहते थे. पिछले साल उनकी बीवी उनके बच्चों को लेकर चीन में मायके गई थी. फिर वो वापस नहीं आई. रहमान कहते हैं कि उनकी वाइफ़ को शिनजियांग की परिस्थिति के बारे में मालूम नहीं था. ‘वरना वो वहां कभी नहीं जाती’.

चीनी सरकार की यह हरकतें क्रूर और अन्यायी होने के साथ-साथ मर्दवादी भी हैं. औरतों पर इसलिए नज़र रखी जा रही है ताकि वो अपने पतियों से ‘प्रभावित’ न हों. कुछ हद तक यह भारत में फैलाये गए ‘लव जिहाद’ वाले प्रोपेगेंडा से मिलता जुलता है. जिसमें हिंदू लड़कियों को समझाया जाता है कि मुस्लिम लड़के उनका 'ब्रेनवॉश' करने पर तुले हैं. जैसे लड़की ख़ुद के लिए नहीं सोच सकती. उसका पति उसे ब्रेनवॉश करेगा और वह हो जाएगी. वह अपने लिए तय नहीं कर सकती कि वह इस्लाम अपनाना चाहती है या नहीं.

ऐसी ही मानसिकता के चलते चीन में भी ऐसा हो रहा है. बीवियों को पति के 'प्रभाव' से बचाने के लिए उन्हें अलग किया जा रहा है. उन्हें वैसे ही ट्रेन किया जा रहा है जैसा सरकार चाहती है. और न जाने कितने खुशहाल परिवार तोड़े जा रहे हैं.

 

 

 

 

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