बिलकिस बानो: रेप करने वाले मरा समझ छोड़ गए थे, आज तक इंसाफ के लिए लड़ रही हैं
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को मुआवजा देने के आदेश दिए हैं

27 फरवरी, 2002. गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में आग लगा दी गई थी. अयोध्या से आ रहे 59 कारसेवकों की उसमें मौत हो गई. इसके बाद देखते देखते पूरे गुजरात में इसकी लपट फ़ैल गई. ट्रेन के डिब्बे नम्बर एस 6 से निकली आग यहीं रुकने वाली नहीं थी.
इस घटना के बाद मुस्लिम परिवारों को ढूंढ-ढूंढ कर मारने का जुनून सवार हुआ लोगों पर. कई परिवार अपनी रहने की जगहों से निकलकर कहीं और भागने लगे. समय ठीक नहीं था. ट्रकों, बसों में भर-भर कर लोग भगा रहे थे. ऐसा ही एक लोगों से भरा ट्रक राधिकापुर नाम के गांव में पकड़ लिया गया. दाहोद नाम के जिले में पड़ता है ये गांव. 14 लोग मार दिए गए. साथ में दो साल की बच्ची और पेट में पांच महीने का बच्चा लिए पीछे एक औरत बच गई. दो और लोगों के साथ.
तस्वीर: पीटीआई
उसके सामने उसकी बेटी शेहला का क़त्ल कर दिया गया.
उन हत्यारों ने उसके साथ गैंग रेप किया.
मरा समझ कर वहीं छोड़ गए.
औरत की उम्र उस वक़्त 19 साल थी.
लेकिन वो मरी नहीं थी.
ज़िंदा थी.
वो ऐसा नाम बनने वाली थी जो कभी हार ना मानने का पर्याय बन गया मीडिया में. हिम्मत का. सिस्टम के खिलाफ जूझती एक औरत का.
नाम था, बिलकिस बानो.
इस घटना के बाद क्या हुआ उन्होंने बताया,
“मैं एकदम नंगी थी. मेरे चारों तरफ मेरे परिवार के लोगों की लाशें बिखरी पड़ी थीं. पहले तो मैं डर गई. मैंने चारों तरफ देखा. मैं कोई कपड़ा खोज रही थी ताकि कुछ पहन सकूं. आखिर में मुझे अपना पेटीकोट मिल गया. मैंने उसी से अपना बदन ढका और पास के पहाड़ों में जाकर छुप गई.”
दर-दर इंसाफ , डर-डर इंसाफ?
स्थानीय पुलिस स्टेशन ने उनकी शिकायत नहीं लिखी. मजिस्ट्रेट के सामने बिलकिस के बयान को खारिज करवा दिया. केस बंद हो गया. मानवाधिकार आयोग गईं. वहीं अपील की. सुप्रीम कोर्ट में पेटिशन डाली. दिसंबर 2003 में सीबीआई जांच के आदेश हुए. लेकिन इंसाफ दिलाने वाले किनसे डरे हुए थे, ये जवाब कौन दे. बिलकिस को 2 साल में 20 घर बदलने पड़े. उनके पति ने कहा कि उन्हें भाग दौड़ और छुप छुप कर घर बदलने पड़े हैं. एक औरत जिसे सपोर्ट की ज़रूरत थी, उसे एक अपराधी की तरह ट्रीट किया गया.
बिलकिस को अपनी हिम्मत की कीमत कई तरह से चुकानी पड़ी
सीबीआई ने मामले की जांच के दौरान नीमखेड़ा तालुका से न केवल 12 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया था, बल्कि 3 मार्च 2002 को भीड़ के हाथों कत्ल हुए लोगों के शवों को बरामद करने के लिए पन्नीवेल के जंगलों में खुदाई भी करवाई थी. इस कार्रवाई में सीबीआई चार लोगों के कंकाल बरामद करने में सफल रही थी.
2004 में बिलकिस का केस मुंबई की अदालत में शिफ्ट कर दिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने देखा कि गुजरात की अदालतों में कुछ नहीं हो रहा. 2008 में 11 आरोपियों को उम्रकैद दी गई. हत्या और बलात्कार के जुर्म में. टोटल आरोपी 18 थे. सीबीआई इस फैसले से संतुष्ट नहीं थी और इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की. एजेंसी ने तीन आरोपियों राधेश्याम नाई, जसवंत नाई और शैलेश भट्ट के लिए फांसी की मांग की. 20 हजार रुपए के जुर्माने पर छोड़ दिए गए पुलिसकर्मियों और मेडिकल स्टाफ के खिलाफ भी अपील दायर की गई. चार मई 2017 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने बिलकिस बानो केस में फैसला सुनाया था. कोर्ट ने 11 दोषियों की अपील खारिज करते हुए निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा है. 2008 में जब निचली अदालत ने इस केस में अपना फैसला सुनाया तो यह आजादी के बाद पहली मर्तबा था कि दंगों से जुड़े हुए किसी भी बलात्कार के मुकदमे में सजा हुई थी.
इस पूरे मामले में गुजरात सरकार क्या करती है, अब ये देखना है
अब इस मामले में घटना के 17 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने 23 अप्रैल को बिलकिस बानो को मुआवजा देने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को आदेश दिया है कि बानो को 50 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाए. साथ ही कोर्ट ने गुजरात सरकार को ये भी आदेश दिया है कि बिलकिस बानो को सरकारी नौकरी और नियमों के मुताबिक घर मुहैया कराया जाए.
कुछ लोग इसे एक अच्छा कदम मान रहे हैं, लेकिन बिलकिस के लिए इंसाफ क्या है, वो कौन ही तय कर सकता है.
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