सीमा बिस्वास- एक्टिंग का ऐसा जुनून कि कॉलेज छोड़ा, चार साल तक एक टाइम खाना खाया
बचपन में डांसर बनने का ख्वाब देखती थीं हमारी बैंडिट क्वीन
'रईस खानदान से रिश्ता जोड़ रहे हो, पहले बाकी बातें तो कर लो. सबकुछ लुटाने नहीं दूंगी.'
'विवाह' फिल्म में रमा को अपनी भतीजी की शादी पर बहुत अधिक खर्च करने से आपत्ति होती है. वो अपने पति को ज़्यादा खर्च करने से रोकती है. रमा पूनम (अमृता राव) से थोड़ा सा चिढ़ती है, क्योंकि उसकी खुद की बेटी सांवली होती है. जबकि पूनम का रंग गोरा होता है. उसे चिंता है कि उसकी बेटी की शादी कैसे होगी. एक खड़ूस औरत का किरदार निभाने वाली सीमा बिस्वास ने अपने फिल्मी करियर की शुरूआत 'बैंडिट क्वीन' से की थी. 1994 में फूलन देवी के किरदार पर बनी इस फिल्म ने बहुत सुर्खियां बटोरीं. सुर्खियों के साथ-साथ बहुत कॉन्ट्रोवर्सी भी, क्योंकि फिल्म में बहुत से रेप सीन थे. एक न्यूड सीन भी था. फूलन देवी के जीवन पर लिखी किताब के आधार पर ये फिल्म बनी थी.
राज्यसभा टीवी के इंटरव्यू प्रोग्राम में सीमा बिस्वास बताती हैं कि फिल्म को हां बोलने में उन्होंने बहुत समय लिया था. उन्हें लगता था कि वो इतना बोल्ड रोल नहीं कर पाएंगी. साथ ही वो न्यूड सीन करने में सहज नहीं थी. उन्होंने डायरेक्टर शेखर कपूर को बोला था कि वो ये रोल नहीं करना चाहतीं. अगर वो उनके बॉडी डबल के साथ ये सीन कर लें तो वो फिल्म कर सकती हैं. शेखर ने उनकी बात आसानी से मान ली.
फिल्म 'बैंडिट क्वीन' में सीमा बिस्वास. फोटो क्रेडिट- यूट्यूब
अब थोड़ा पहले चलते हैं. फिल्म मिलने से पहले. सीमा एनएसडी (नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा) की रिपर्टरी में काम करती थीं. इस ही के साथ एक नाटक कर रही थीं. नाटक का नाम था- 'खूबसूरत बहू'. इसमें सीमा को एक हास्य किरदार निभाना था. इस ही नाटक के दौरान 'बैंडिट क्वीन' के लिए कास्टिंग कर रहे तिग्मांशु धुलिया ने सीमा से उनकी तस्वीरें मांगी. सीमा कहती हैं कि वो एक समय में एक ही काम करती हैं. तो उन्होंने हां तो बोल दिया लेकिन तस्वीरों के प्रति कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. जब तिग्मांशु ने दोबारा तस्वीरें मांगी तो अपने ही एक दोस्त से बस यूं ही खिंचवा के तस्वीरें पकड़ा दीं. तिग्मांशु तो तब तक जा चुके थे तो सीमा ने शेखर कपूर को तस्वीरें दे दी. शेखर ने तस्वीरें देख कर कहा कि उन्होंने अपने पूरे करियर में इससे ज़्यादा नॉन प्रोफेशनल फोटोज़ नहीं देखीं. वो सीमा से मिलने पहुंचे. क्योंकि उस दिन उनके नाटका का मंचन था तो वो शेखर से नहीं मिल पाईं. शेखर कपूर उनका नाटक देखने पहुंचे. नाटक खत्म हुआ तो सीमा से मिलने ग्रीम रूम (जहां एक्टर्स तैयार होते हैं) पहुंचे. उन्हें कहा कि वो बैंडिट क्वीन करें और तुरंत ही बाहर जाकर फिल्म की हीरोइन का ऐलान कर दिया. जिस चीज़ की वजह से सीमा को फिल्म नहीं मिलनी चाहिए थी उस ही वजह ने उन्हें फिल्म दिलावाई. इसके बाद भी सीमा ने बहुत समय लिया फिल्म करने के लिए हां बोलने को. जब उन्होंने शेखर कपूर से पूछा कि ये न्यूड सीन ज़रूरी है तो शेखर का जवाब था कि 'मैं बदसूरत चीज़ को बदसूरत तरीके से ही दिखाना चाहता हूं.'
'बैंडिट क्वीन' में सीमा बिस्वास ने डाकू फूलन देवी का किरदार निभाया है. फोटो क्रेडिट- यूट्यूब
कुछ ऐसे शुरू हुआ था सीमा बिस्वास का फिल्मी सफर. अब कुछ और पहले चलते हैं, उनके बचपन में. सीमा बताती हैं कि वो बचपन में बहुत शर्मीली और शांत सी रहने वाली बच्ची थीं. वो बहुत ही मूडी थीं. दोस्त बनाने में सहज नहीं थी इसलिए ज़्यादातर अकेले ही रहती थीं. अपने माता-पिता, तीन बहनों और एक भाई के साथ वो असम के नलबाड़ी में रहती थीं. उनकी मां वैसे तो टीचर थीं लेकिन कला से जुड़ी हुई थीं. सीमा नलबाड़ी आर्ट स्कूल में डांस सीखने जाती थीं. यहीं पर उन्होंने अपना पहला नाटक किया था. इसके लिए उनकी मां ने उनसे पूछे बिना ही हामी भर दी थी. जब सीमा डांस सीखती थीं तो उन्हें लगता था कि वो बड़े होकर डांसर बनेंगी. वो बताती हैं -
'मुझे लगता था कि मैं डांसर बनूंगी क्योंकि आप अकेले डांस करते हैं रानी की तरह, और सब लोग आपको देखते हैं. जब पहला नाटक किया तो लगा कि नहीं ये एक्टिंग मेरे लिए है. मुझे एक्टर बनना है.'
इस नाटक के वक्त को याद करके सीमा कहती हैं कि 'पहले ही नाटक के दौरान मुझे लगा कि मैं ये नैचुरली कर पा रही हूं. मैं बहुत सहज थी एक्टिंग करने में.' लेकिन उनकी मां हमेशा उन्हें उनकी कमियां बताती थीं. इस नाटक के दौरान भी सीमा जी की मां उन्हें डांटती थीं तो सीमा जी को थोड़ा सा बुरा लगता. वो कहतीं कि मां सब लोगों के सामने मत डांटा करो.
'खामोशी' में गूंगी महिला का किरदार निभातीं सीमा बिस्वास. फोटो क्रेडिट- यूट्यूब
यहां से उनकी एक्टिंग को लेकर दिवानगी शुरू हुई. ये इतनी बढ़ी कि जब कॉलेज के दिनों में एक टीचर ने कहा कि एक्टिंग तुम्हारा पेट नहीं भरेगी. पढ़ाई ही काम आएगी. तो सीमा जी ने कॉलेज जाना ही छोड़ दिया. वो पेपर तक देने नहीं जाना चाहती थीं. लेकिन आखिरी वक्त में उनकी दोस्त अनीता ने उन्हें पेपर देने के लिए कहा. उनके लिए नोट्स बनाए, उन्हें किताबें दी, कॉलेज जाकर उन्हें पेपर देने की अनुमति दिलवाई. अब एक तरफ कॉलेज के पेपर थे दूसरी तरफ एनएसडी का एंट्रेंस. सीमा ने दोनों ही पास किए. लेकिन इससे भी मज़ेदार बात ये है कि इससे कुछ साल पहले सीमा बिस्वास को एनएसडी का मतलब तक नहीं पता था. जब उनके जीजा जी ने उन्हें एनएसडी की वर्कशॉप में जाने के लिए कहा तो उन्होंने पूछा था कि ये एनएसडी क्या है?
परिवार के पास बहुत अधिक पैसे नहीं थे. भाई को इंजीनियरिंग करनी थी तो उन्हें एनएसडी नहीं जाने के लिए कहा गया था. वो बहुत दुखी हो गईं थी. उनका सपना टूट रहा था. अपनी मां को गुरू से मिलाने ले गईं. जब उन्हें बताया कि एनएसडी में नहीं जा रही हैं तो वो बहुत गुस्सा हुए, मां को समझाया और सीमा बिना कंफर्म टिकट के ही दिल्ली रवाना हो गईं. अब शुरू जीवन का असली संघर्ष. घर की आर्थिक स्थिति तो ठीक थी नहीं, माता-पिता से कहा कि वो अपना गुज़ारा कर लेंगी. चार साल तक एक समय खाना खाया. ब्रेड और अंडे खाकर दिन काटे. जब एनएसडी खत्म हुआ तो घर नहीं था. एक दोस्त को बोला तो उसने घर के बरामदे में रहने के लिए जगह दी. एनएसडी रैपेटरी जॉइन की. सीमा कहती हैं-
'चाहे जो कुछ हुआ हो मैं लोगों को बोल कर जवाब देने में विश्वास नहीं रखती थी. हमेशा काम से जवाब देना चाहती थी.'
विवाह में पूनम की खड़ूस चाची बनी हैं सीमा. फोटो क्रेडिट- यूट्यूब
जब बैंडिट क्वीन के किरदार को लेकर सवाल उठे तो लगा कि माता-पिता को नहीं लगना चाहिए कुछ गलत किया है बाकी कोई क्या सोचता है क्या फर्क पड़ता है. पूरी फिल्म शूट होने के बाद घर पर दिखाई. फिल्म देखने के बाद सब शांत बैठे थे. कोई कुछ नहीं बोला तब उनके पिता ने जो बोला वो उसे अपने जीवन का सबसे बड़ा पुरस्कार बताती हैं. उनके पिता ने कहा-
'केवल तुम ही इस तरह का रोल कर सकती थीं.'
सीमा के पिता ने हमेशा ही उन्हें बढ़ावा दिया. अपने बचपन से एक रोचक किस्सा वो बताती हैं कि हर रात पिता वापस आकर उनके तकिये के नीचे चिल्लर पैसे रख जाते थे. वो रोज़ सुबह उठ कर देखती थीं कि उन्हें कितने पैसे मिले हैं. उस समय उनके लिए ये ही बहुत बड़ी बात थी. सीमा बिस्वास के लिए जीवन हमेशा रोलर कोस्टर राइड रहा है. हमेशा चुनौतियां आती रहीं. जिस दिन मुंबई में उन्होंने पहला घर खरीदा उस ही दिन पिता की एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई. जब काम के लिए पहचान मिलनी शुरू हुई तो जांघ का लिगामेंट ऑपरेशन हुआ. इस ही हालत में 30 नाटक किए. सीमा जी अपने किस्मत को जीवन का हिस्सा मानती हैं. वो कहती हैं कि एक्टिंग में आना भी उनकी किस्मत ही थी. और इसे करते रहना भी. अपने एक्टिंग से प्यार को वो इन शब्दों में ज़ाहिर करती हैं-
'मुझे एक्टिंग से बहुत लगाव है. थियेटर से होने के कारण एक ही तरह के रोल करना पसंद नहीं है.'
हाल के दिनों में सीमा बिस्वास. फोटो क्रेडिट- ट्विटर
थियेटर उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है. लेकिन ये बहुत ही मुश्किल भरा रहा. वो कहती हैं-
'थियेटर में पैसा नहीं है. इतना भी नहीं कि आप अपना पेट पाल सकें. अगर किसी नाटक के लिए 30 हज़ार रुपए मांगो तो वो भी बहुत बड़ी बात हो जाती है. आम लोगों को लगता है कि नाटक बिना टिकट देखना चाहिए लेकिन अगर आप पैसे नहीं देंगे तो एक्टर्स क्या करेंगे? कैसे जिएंगे? हिंदी थियेटर से आप पैसा नहीं कमा सकते. इसलिए ज़्यादातर एक्टर्स को फिल्मों का रुख करना पड़ता है. पर हर किसी को तो फिल्म मिलती नहीं है.'
सीमा बिस्वास को 'बैंडिट क्वीन' के लिए बेस्ट एक्ट्रेस का नेशनल पुरस्कार मिला था. इस ही फिल्म के लिए 'बेस्ट फीमेल डेब्यूटेंट' के फिल्मफेयर अवॉर्ड से नवाज़ी गईं. अपनी एक्टिंग के लिए सीमा को 'संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड', 'स्टार स्क्रीन अवॉर्ड', 'कैनेडियन स्क्रीन अवॉर्ड' जैसे नामी पुरस्कार मिल चुके हैं. दुनिया भर में तारीफ बटोरने वाली फिल्म 'वॉटर' का भी हिस्सा रहीं. फिल्मों के साथ-साथ उन्होंने हिंदी सीरियल भी किए हैं. इसके अलावा कोंकणी, भोजपुरी, असमी, मलयालम, गुजराती, अंग्रेज़ी, मराठी और पंजाबी में भी कई फिल्में की.
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