अटल का निजी जीवन: प्रधानमंत्री नहीं, कुत्तों को टहलाने और नातिन के साथ खेलने वाले नानाजी

जब न वो धोती-कुर्ता पहनते, न कविता कहते. पैंट-बुशर्ट पहन मसाला-कोल्ड्रिंक पिया करते थे.

ऑडनारी ऑडनारी
अगस्त 16, 2018

ये आर्टिकल सबा नक़वी भौमिक ने 20 साल पहले लिखा था. ये 20 अप्रैल 1998 को इंडिया टुडे अंग्रेजी मैगज़ीन में छपा था. इसका हिंदी अनुवाद हम आपको पढ़वा रहे हैं.


कुछ ही नेता हैं जो अपने निजी और बाहरी जीवन को उस तरह अलग रख पाए हैं जिस तरह अटल बिहारी वाजपेयी ने रखा है.

एक पब्लिक स्टेज है. सबकी नजरों के सामने. जिसपर अटल बिहारी वाजपेयी 4 दशकों से अपनी भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहे हैं. इस स्टेज ने उनकी छवि का निर्माण किया है--जो एक सटीक स्पीकर, राजनेता और कवि का संगम है. मगर एक 'प्राइवेट' वाजपेयी हैं. जो राजनीति से मीलों दूर एक छोटी सी दुनिया में रहते हैं जो सही मायनों में उनकी अपनी है.

ख़बरों के केंद्र में खड़े और खुशामद करने वालों से लेकर आस्तीन के सांपों तक से घिरे हुए एक आदमी के तौर पर वाजपेयी बड़े ही विचित्र हैं. क्योंकि उन्हें दुनिया की नज़रों से कटा हुआ रहना पसंद है. उनकी खुद की दुनिया का केंद्र कौल परिवार है, जिसे वाजपेयी ने अपना बना लिया है.

(बाएं से) दत्तक पुत्री नमिता, नातिन निहारिका और दामाद रंजन. (बाएं से) दत्तक पुत्री नमिता, नातिन निहारिका और दामाद रंजन.

कौल परिवार से उनकी संगत उन दिनों से है, जब वो ग्वालियर में रहते थे. 60 के दशक में जब बीएन कौल दिल्ली के रामजस कॉलेज में पढ़ा रहे थे, अटल उनके परिवार का हिस्सा सा बन गए थे. आज वाजपेयी और उनके गोद लिए हुए परिवार का अलग होना अकल्पनीय है.

उनकी नातिन नेहारिका और उनके बीच का प्रेम ग़ज़ब है. दोनों घंटों एक-दूसरे की तारीफ़ कर सकते हैं. घर-भर में दौड़ती निहारिका एसपीजी कमांडोज के बीच से जगह बनाते हुए उस जगह पहुंच ही जाती है, जहां होना उसका अधिकार है. यानी नानाजी की गोद में. वाजपेयी परिवार के करीबी बताते हैं, 'उनकी नातिन नेहा किसी भी परिस्थिति में अटल जी के चहरे पर मुस्कान ला सकती है.'

नेहारिका और अटल, 20 साल पहले: इंडिया टुडे मैगज़ीन में छपी तस्वीर. नेहारिका और अटल, 20 साल पहले: इंडिया टुडे मैगज़ीन में छपी तस्वीर.

नमिता और राजन भट्टाचार्य, जो अबतक 7, सफदरजंग रोड पर रहा करते थे, रेस कोर्स के सरकारी बंगले में शिफ्ट होने की तयारी कर रहे हैं. 38 साल के रंजन चिनाव प्रचार में हर कदम पर वाजपेयी के साथ थे.

1996 में, जब 13 दिन की सरकार बनी थी, राजन प्रधानमंत्री के दफ्तर में स्पेशल अफसर के तौर पर तैनात थे. मगर इस बार चुनावों में उनकी भूमिका घरेलू स्तर पर ज्यादा थी. उनके मुताबिक़ उनके पास चलाने को एक बिजनेस है, जिससे वो ज्यादा दिनों तक दूर नहीं रह सकते.

चुनाव प्रचार के दौरान अटल को परिवार के किसी सदस्य की कमी खलती थी. रंजन बताते हैं, 'बापजी कम ही लोगों से बात करते हैं. मिलना-जुलना, बैठना-बतियाना उनकी फितरत नहीं है. इसलिए उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखने के लिए मैं उनके साथ रहता हूं. बापजी कहते हैं कि मेरी भूमिका परिवार तक ही सीमित है. पर जब वे प्रचार के लिए निकलते हैं तो उनके साथ होना मेरा फ़र्ज़ होता है.'

पिछले तीन महीनों में रंजन को अटल के करीब देखा गया है. रंजन का अटल के साथ होना ये सुनिश्चित करता है कि अटल अनचाहे फोन और लोगों से दूर रहें. बीते दो महीनों में 3 बार अटल का नंबर बदलना पड़ा क्योंकि लोग फोन बहुत करते हैं. मगर अब चुनाव के बाद धीरे-धीरे जीवन नॉर्मल की ओर बढ़ रहा है.

रंजन अपने साउथ दिल्ली के दफ्तर में वापास जा चुके हैं. और नमिता, उन्हें तो कभी बापजी के इर्द-गिर्द चल रही नेतागिरी से कोई फर्क ही नहीं पड़ा. वो उस दुनिया से दूर ही रहना चाहती हैं. वो प्राइमरी स्कूल टीचर हैं और उनके पढ़ाए हुए स्टूडेंट्स उन्हें बहुत मानते हैं. पास होने के बाद भी उनसे मिलना नहीं छोड़ते.

बेटे जैसे दामाद राजन भट्टाचार्य के साथ. बेटे जैसे दामाद राजन भट्टाचार्य के साथ.

जब अटल विपक्ष के लीडर थे, नमिता अक्सर उनके लुटयन्स बंगले पर नन्हे बच्चों को घुमाने ले आया करती थीं. एक अभिभावक बताते हैं, 'मेरे बच्चे घास पर दौड़ते थे, अटल जी के ऊपर चढ़ जाया करते थे. आज वो प्रधानमंत्री जरूर हैं लेकिन बच्चों के लिए प्यारे नाना थे. जो एक बड़े बंगले में बड़ी बंदूकों वाले गार्ड्स के साथ रहा करते थे.

बंदूकों और गार्ड्स के बीच अटल के यहां दो कुत्ते, सैसी और सोफ़ी और रितु नाम की बिल्ली रहा करती है जो कमांडोज के साथ चक्कर काटा करते हैं. परिवार से जुड़े एक व्यक्ति के मुताबिक़ अटल 70 के दशक में खरगोश पाला करते थे. और कुत्ते उनके साथ हमेशा रहे हैं.

अटल इसी तरह रिलैक्स करते थे. वो अपने कुत्तों के साथ खेलते और उन्हें टहलाने ले जाया करते. चूंकि वे लेखक और कवि थे, लोगों को लगता था वो बड़े सीरियस होंगे. पर असल में उन्हें नमिता के सिरहाने से मर्डर मिस्ट्री के उपन्यास चुपके से उठाकर चंपत होते हुए पाया गया है.

उन्हें पढ़ने का खूब शौक है. सीरियस राजनैतिक किताबों और हिंदी गल्प के साथ-साथ उन्हें अंग्रेजी किताबें पढ़ना भी पसंद है. बल्कि चुनाव प्रचार के दौरान वो जॉन ग्रीशम में खोए हुए थे. उन्होंने ग्रीशम की 'द क्लायंट' और 'द फर्म' चुनाव प्रचार के दौरान पढ़ डाली थीं.


ये आर्टिकल सबा नक़वी भौमिक ने 20 साल पहले लिखा था. ये 20 अप्रैल 1998 को इंडिया टुडे अंग्रेजी मैगज़ीन में छपा था. इसका हिंदी अनुवाद हम आपको पढ़वा रहे हैं.


बच्चों और पेट्स के अलावा एक और शख्स था जो अटल के घर का अभिन्न हिस्सा था. लंबे-चौड़े, मूंछों वाले शिव कुमार. 30 साल से अटल के साथ रह रहे शिव कुमार ने असल में अपना वकालत का करियर अटल की सेवा करने के लिए छोड़ दिया था, ऐसा उन्होंने जन संघ के कहने पर किया था. साल था 1969.

शिव कुमार, अटल का दाहिना हाथ रहे. शिव कुमार, अटल का दाहिना हाथ रहे.

तबसे आज तक वे अटल के साथ रहे हैं. 'मैं अटल जी का चपरासी, रसोइया, बॉडीगार्ड, सेक्रेटरी और कॉन्स्टीटुएंसी मैनेजर, सब रह चूका हूं.' शिव कुमार ने अटल के साथ सबसे ज्यादा वक़्त बिताया है. शिव बताते हैं, 'बीते 30 सालों में अटल जी ने एक भ बार उझ्से ऊंची आवाज में बात नहीं की. अगर उनका मूड खराब होता है, तो वो किसी से बात नहीं करते. क्रोध में भी चुपचाप, अकेले हो जाते हैं. हालाँकि ऐसे मौके कम ही आते हैं क्योंकि अटलजी कभी विचलित नहीं होते. मैंने उनके जैसे धीरज वाला इंसान नहीं देखा, जो सबकी बातें पूरे धैर्य से सुनता हो.'

मगर जब उनका मूड अच्छा हो तो वो बच्चे से बन जाते हैं. शिव बताते हैं कि 1993 में जब वे अमेरिका गए, तो काम निपटा के पहले ग्रैंड कैनियन गए. उसके बाद डिज्नीलैंड. तब अटल 69 साल के थे. और डिज्नीलैंड को देखकर इतने खुश हो गए कि लाइन में लग-लगकर जाने कितने झूलों पर झूले. शिव बताते हैं, 'मैंने उन्हें इतने अच्छे मूड में शायद ही कभी देखा हो.'

डिज्नीलैंड, जहां अटल बच्चे बन गए थे. डिज्नीलैंड, जहां अटल बच्चे बन गए थे.

अपने हीरो नेहरू की तरह अटल भी विदेश के दौरों पर बहत खुश हो जाते थे. यही तो वो ओके होते हैं जब धोती-कुर्ते की जगह बंद-गले और पैंट पहने जाते हैं. न्यू यॉर्क में बसे डॉक्टर मुकुंद मोदी, अटल के बड़े करीबी दोस्त रहे हैं. ब्रुकलिन ईस्ट में रहते हैं और स्टेटन आइलैंड में प्रैक्टिस करते हैं. और अटल को सन् 70 से जानते हैं. मुकुंद बीजेपी से जुड़ी 'ओवरसीज फ्रेंड्स ऑफ़ द बीजेपी' को शुरू करने वाले व्यक्ति हैं. मुकुंद और उनकी पत्नी कोकिला बताते हैं कि अटल को किस तरह न्यू यॉर्क में तरह-तरह का खाना ट्राय किया. जिसके बाद मेक्सिकन फ़ूड उन्हें खूब भा गया.

मुकुंद और कोकिला के साथ अटल ने न्यू यॉर्क के ब्रॉडवे थिएटर में लगने वाले सबसे ज्यादा शो देखे हैं- फिडलर ऑन द रूफ़, एविटा और गॉड्स मस्ट बी क्रेजी जैसी फिल्मों के वीडियो प्रिंट किराए पर लिए. मुकुंद और कोकिला मोदी ने अटल को उस रूप में देखा है, जिसमें शायद ही किसी भारतीय ने देखा हो: न्यू यॉर्क की सड़कों पर ट्राउजर्स और चेक वाली नीली शर्ट पहने, अपने और अपनी सिक्यूरिटी के लिए कोल्ड-ड्रिंक और आइस-क्रीम खरीदते हुए.

न्यू यॉर्क में अटल का फेवरेट काम है शहर की सबसे बड़ी खिलौनों की दुकान 'श्वार्ट्ज़' (Schwartz) में जाकर खिलौने देखना. तल्लीनता से वे खिलौने देखते. उसके बाद पेट स्टोर में जाते. नतीजा ये होता कि अटल की हर फॉरेन ट्रिप के बाद नेहा को और खिलौने मिलते. और उनके पेट्स सैसी, सोफ़ी और रितु को खेलने के लिए नई हड्डियां का डॉग कॉलर मिलते.

न्यू यॉर्क की वो दुकान जहां से अटल खिलौने खरीदा करते थे. न्यू यॉर्क की वो दुकान जहां से अटल खिलौने खरीदा करते थे.

अटल के अमेरिका के टूर उनके लिए काम से छुट्टी लेने का जरिया बन जाते. वे सबकुछ छोड़कर नायग्रा फॉल्स चले जाते. या फिर 3 दिन के लिए पोएर्तो रीको चले जाते. अधिकतर समय वो मुकुंद और कोकिला मोदी के साथ बिताते. यहां उनसे नमिता की बड़ी बहन नंदिता भी मिलने आया करतीं. नंदिता दिमाग की डॉक्टर हैं और उनके पति अशोक नंदा कंप्यूटर की दुनिया में काम करते हैं.

इंडिया में भी अटल दोस्तों के साथ और छुट्टी पे जाने के लिए समय निकाल ही लेते. प्रधानमंत्री बनने तक हर साल मनाली जाना तो मानों उनके लिए एक रस्म की तरह थी. हर साल गर्मी की छुट्टियों में वो मनाली में स्थित नमिता और रंजन के घर जाते हैं. उनके एक पुराने साथियों में से एक हैं अप्पा घटाटे. अप्पा सुप्रीम कोर्ट वकील हैं और बीजेपी की राष्ट्रीय समिति के अध्यक्ष हैं.

अटल और अप्पा एक-दूसरे को 1957 से जानते हैं. तब जब अटल संसद में स्पीच देते, अप्पा उन्हें सुनने जाया करते. अप्पा बताते हैं कि उस समय के लोकसभा स्पीकर अनंतश्याम ऐयंगर कहा करते थे कि लोकसभा में दो लोग सबसे अच्छे स्पीकर हैं. अंग्रेजी में हीरेन मुखर्जी और हिंदी में 'नया लड़का' अटल. जब अप्पा ने ये बात अटल को बताई तो अटल झट से बोल पड़े, 'इतना अच्छा स्पीकर हूं तो फिर वो (ऐयंगर) मुझे बोलने क्यों नहीं देता!

अटल के प्रति अप्पा का समर्पण भाव ग़ज़ब है. उन्होंने 3 साल तक सब काम छोड़कर अटल की सभी पार्लियामेंट की स्पीचों को इकठ्ठा कर उनका कलेक्शन तैयार किया है. अप्पा बताते हैं कि असल में अटल अपने स्टेज वाले रूप से बिलकुल अलग हैं. 'मैंने उनके साथ काफ़ी ट्रेवल किया है. सफ़र के दौरान वे घंटों चुप बैठे रहते हैं. मगर जैसे ही स्टेज पर चढ़ते हैं, वे बदल जाते हैं.


ये आर्टिकल सबा नक़वी भौमिक ने 20 साल पहले लिखा था. ये 20 अप्रैल 1998 को इंडिया टुडे अंग्रेजी मैगज़ीन में छपा था. इसका हिंदी अनुवाद हम आपको पढ़वा रहे हैं.


अप्पा घटाटे बताते हैं कि अटल के जीवन के कुछ छोटी-छोटी बातें हैं जो कभी सामने नहीं आ पातीं. वे न ही धार्मिक हैं और न ही कर्म-कांडों को मानते हैं. उन्होंने कभी ड्राइविंग नहीं सीखी. जब गणेश दूध पीते हैं तो वे हंसते हैं. उन्हें भारी और मसालेदार, तीखा खाना खूब पसंद है पर अब उन्हें अपनी इस आदत पर कंट्रोल करना पड़ता है. अप्पा बताते हैं कि एक बार किसी ने उनसे पूछा कि आप तो प्रधानमंत्री के 'इनर सर्कल' यानी करीबी मित्रों में से हैं. अंदर से क्या खबर आ रही है. तो अप्पा ने जवाब दिया, 'मैं ऐसे आदमी के साथ रहता हूं जिसका असल में कोई सर्कल है ही नहीं.

लोकसभा के दूसरे स्पीकर ऐयंगर, जिनका कार्यकाल 1956 से 1962 तक रहा. लोकसभा के दूसरे स्पीकर ऐयंगर, जिनका कार्यकाल 1956 से 1962 तक रहा.

अटल को पार्टी के साथियों के करीब कम ही देखा गया है. उनके सबसे अच्छे दोस्त वही हैं जो पॉलिटिक्स से दूर हैं. हालांकि एक समय उनकी लाल कृष्ण अडवाणी से अच्छी दोस्ती रही. मगर समय के साथ उसकी भी चमक जाती रही. अटल के लिए बहुत दर्दनाक था, जब दीनदयाल उपाध्याय की 1967 में मुग़ल सराय के बाहर हत्या कर दी गई थी.

पार्टी के कुछ ही लोग थे जो अटल के करीबी थे. अडवाणी उनमें से एक थे. पार्टी के कुछ ही लोग थे जो अटल के करीबी थे. अडवाणी उनमें से एक थे.

कुछ साथी हैं, जिनसे बातचीत के सवस्थ रिश्ते हैं. राजस्थान के चीफ मिस्निटर भैरों सिंह शेखावत से वे घंटों मसाला कोक पीते हुए बात कर सकते हैं. वहीं जसवंत सिंह, जिनका स्टाइल हालांकि अटल से अलग है, अटल के साथ से बिताते हैं. अटल पीवी नरसिम्हा राव का भी बबुत आदर करते हैं, जिन्होंने एक बार अटल जी को अपना 'गुरु' कहा था.

मगर राजनीति की दुनिया निर्मम है. यहां दोस्त नहीं टिकते. मगर ये अटल को बताने की जरूरत नहीं. वो एक कवि हैं और एक आम नेता बेहतर जीवन के सत्य को समझ सकते हैं. वे अपने राजनैतिक करियर के सबसे ऊंचे पड़ाव पर हैं. उन्हें पता है कि बाहरी दुनिया में उनका चार्म है. मगर अटल को इसपर गर्व से ज्यादा झेंप होती है.

एक एकाकी व्यक्ति जो बाहरी दुनिया से कटने के लिए आंखें मूंद लेता, नेहा के साथ खेलता, कुत्तों को टहलता और रितु के नखरे उठाता. अटल एक अंतर्मुखी हैं जो तभी जीवित होते दिखते हैं जब वे स्टेज पर होते हैं.

 

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