हर मां-बाप को अपने बेटों को ये सात चीज़ें सिखानी चाहिए

लिंग के तौर पर भेदभाव से लड़ने के लिए ये बेहद ज़रूरी हैं

ईशा चौधरी ईशा चौधरी
दिसंबर 23, 2018

 

1. ‘मर्द को दर्द नहीं होता’ एक झूठ है.

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बचपन से आपको सख़्त और कठोर बनने को कहा गया होगा. आपको कहा गया होगा कि मर्द रोते नहीं हैं. अपनी फ़ीलिंग्स बयां नहीं करते. अगर आप कोई फ़िल्म देखकर रोए हों. या आपको अंधेरे में डर लगा हो. या आप कॉकरोच देखकर चिल्ला दिए हों तो आप पर बहुत मज़ाक बना होगा. ‘लड़की है क्या?’ कहकर शायद कोसा भी गया होगा.

 लेकिन मर्द भी इनसान ही होते हैं, न? इनसानों की सारी भावनाएं उनके अंदर भी तो होती हैं. तो क्यों ये भावनाएं एक्स्प्रेस करने से उन्हें रोका जाए? अगर आपको हॉरर फ़िल्म देखते वक्त डर लग जाए तो गला फाड़कर चिल्लाएं. अगर ब्रेकअप होने के बाद दुखी महसूस कर रहे हों तो जी भरके रो लें. आपके इमोशंस ही आपको एक इनसान बनाते हैं. मर्दानगी के सर्टिफ़िकेट बांटनेवालों से कहें कि इन्हें कैद करके रखना कतई हेल्दी नहीं है.

 

2. आपको जो चीज़ें अच्छी लगती हैं, आप जी भरकर उन्हें पर्स्यू करें. चाहे वो ‘लड़कियों वाली चीज़ें’ ही क्यों न हों.

 लड़कों को क्रिकेट-फुट्बॉल खेलना चाहिए और लड़कियों को घर-घर. लड़कों के लिए रेसिंग कार और लड़कियों के लिए गुड्डा गुड़िया. लड़के नीले कपड़े पहनेंगे और लड़कियां गुलाबी. मैंने तो लोगों को ये भी बोलते सुना है कि लड़कों को आर्ट्स की जगह साइंस पढ़ना चाहिए.

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 ये सब अव्व्ल दर्जे का बक़वास है. ऐसी कोई बात नहीं है कि आप लड़के हैं तो आपको वही चीज़ें करनी चाहिए जो ‘लड़कों के लिए’  है.

 एक लड़का होने के बावजूद भी आपको गुड़ियों से खेलना पसंद हो सकता है. नेल पॉलिश लगाना अच्छा लग सकता है. या काले या नीले से अच्छा गुलाबी रंग लग सकता है. ये आपकी मर्ज़ी है. आपके चॉयसेज़ को लेकर किसी और को सवाल उठाने का हक़ कभी नहीं है. वैसे ही आपकी बहन को अगर क्रिकेट या वीडियो गेम्स पसंद हों, तो लड़की होने की वजह से उसे डिसकरेज न करें.

 

3. लड़के और लड़कियां दोस्त बन सकते हैं. क्योंकि लड़कियां भी इनसान हैं.

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 किसी लड़की के बहुत सारे लड़के दोस्त हों तो उसके कैरेक्टर पे सवाल किए जाते हैं. लड़के की दोस्ती लड़कियों से हो तो लोग चिढ़ाने से बाज़ नहीं आते. एक अजीब सी धारणा है लोगों में कि लड़के और लड़कियां दोस्त बन ही नहीं सकते. कि उनके बीच शादी या सेक्स के अलावा कुछ संभव नहीं है.

 लड़कियों को जैसे मशीन समझ लिया गया है. जिन्हें सिर्फ़ कभी कभार सेक्स और वक़्त आने पर बच्चे करने के लिए यूज़ किया जा सकता है. मगर लड़के लड़कियां दोनों अगर इनसान हैं तो उनमें दोस्ती क्यों नहीं हो सकती? वो अपने इंट्रेस्ट्स क्यों नहीं आपस में बांट सकते?

 लड़के लड़कियां एक दूसरे से बात करेंगे तो एक दूसरे को बेहतर समझ भी पाएंगे. इस तरह आगे जाकर उनके रिलेशनशिप्स में भी प्रॉब्लम नहीं होगी.

 

4. आपको सेक्स करने का पूरा हक़ है. मगर...

आमतौर पर पेरेंट्स अपने बच्चों के साथ ये सब बातें डिस्कस नहीं करते. करते भी हैं तो ये बताते होंगे कि सिर्फ़ शादी के बाद ही सेक्स किया जा सकता है. लेकिन ये बिल्कुल गलत है. सेक्स की इच्छा होना स्वाभाविक ही है. और जब चाहे, जिसके साथ चाहे सेक्स करना आपका हक़ है.

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लेकिन उसके लिए कनसेंट ज़रूरी है. कनसेंट यानी दोनों की मर्ज़ी. अगर आपको सेक्स करने का मन है और उसे नहीं, तो ये रेप है. अगर वो बेहोश, सोई हुई, या नशे में हो, तो भी रेप है. क्योंकि बेहोश हाल में होने के कारण उसने कनसेंट नहीं दिया.

ये भी जानना ज़रूरी है कि ‘ना’ का मतलब ‘ना’ ही होता है. कोई आपके साथ सेक्स करने से इनकार करे तो उसके डिसिशन की इज़्ज़त करें. अगर वो डरी या सहमी हुई हो तो ज़बरदस्ती न करें. याद रखें, अगर उसे मन होगा तो वो खुद आपके पास आएगी.

अगर किसी को ना कहने का हक़ है, तो हां कहने का भी है. कोई लड़की अगर अपनी सेक्शुऐलिटी को लेकर सहज हो तो उसे बेशर्म या चरित्रहीन न समझें. सेक्स एक नैचुरल चीज़ है और, लड़का हो या लड़की, हर कोई इसे एंजॉय कर सकता है. ऐसा करने से वो बुरा इनसान नहीं बन जाता.

 

5. किसी का कैरेक्टर उसके कपड़े या चॉयसेज़ देखकर कभी न जज करें.

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हमें आसपास बहुत सुनने को मिलता है कि फ़लानी लड़की ‘ख़राब’ है. क्योंकि वो छोटी स्कर्ट पहनती है. शराब या सिगरेट पीती है. लड़कों के साथ घूमती है. मगर इन चीज़ों से कोई बुरा कैसे हो सकता है? किसी की अच्छाई या बुराई उसके स्वभाव पर, उसके विचारों पर डिपेंड करता है. वो क्या पहनना या किसके साथ घूमना पसंद करते हैं इसपे नहीं.

 

6. फ़ेमिनिज़्म के बारे में पढ़े. उसे समझें.

आमतौर पर हम लोग समझ लेते हैं कि फेमिनिज़्म मतलब लड़कियों के बारे में अच्छा अच्छा बोलना. और मर्दों की बुराई करना. ये एक बहुत बड़ी गलतफ़हमी है. फ़ेमिनिज़्म का लक्ष्य है एक ऐसा समाज जहां हर जेंडर और सेक्शुऐलिटी के लोग एक दूसरे से बराबरी कर सकें. जहां मर्दों और औरतों को एक दूसरे से अलग करके न देखा जाए.

जेंडर के आधार पर बंटा हुआ समाज लड़कों और लड़कियों दोनों के लिए बुरा है. समानता के लिए लड़ना इसलिए दोनों की ज़िम्मेदारी है. और इसके लिए फेमिनिज़्म बहुत ज़रूरी है.

 

7. अपनी शर्तों पर जिएं और दूसरों को भी जीने दें.

याद रखें आपको समाज की पाबंदियों में बंधे रहने की कोई ज़रूरत नहीं. कोई ये तय नहीं कर सकता कि आप अपनी ज़िंदगी कैसे जियेंगे. इसके बदले आप भी किसी को आपके मुताबिक न जीने के लिए नहीं कोस सकते. अपने हिसाब से खुश रहने का पूरा अधिकार है. आपको और आपके आसपास हर किसी को.

 

 

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