रात-दिन विकास का नारा लगाने वालों को 5 साल की खुशी से माफ़ी मांगनी चाहिए

11 दिनों तक जानवरों की तरह रहना पड़ा खुशी को

आपात प्रज्ञा आपात प्रज्ञा
जुलाई 13, 2018
खुशी इसी चारपाई और छप्पर में रहने को मजबूर है. फोटो क्रेडिट- ऑडनारी/भवानी

आगे आपको जो भी पढ़ने को मिलेगा, वो एक नमूना मात्र है इस देश में फैली हुई अराजकता और उसमें हर पल लगते बेवकूफी के छौंक का. साल 2018 में देश के अंदर एक जगह ऐसी भी मौजूद है जहां एक 5 साल की बच्ची एक चिड़िया के अंडे को ग़लती से तोड़ देती है तो उसे आने वाले समय में होने वाली किसी अप्रिय घटना का संकेत समझ लिया जाता है और उस लड़की को बाकायदा सज़ा सुनाई जाती है. सज़ा के तौर पर उसे समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है. ये वक़्त है जब हर उस मुंह से ये सवाल किया जाए जो एक माइक देखते ही चीख पड़ता है कि भारत एक प्रगतिशील देश है. अगर प्रगति का मतलब ये है तो ऐसी प्रगति को यहीं रोक दिया जाना चाहिए. खैर...

हमारे देश का कानून भारतीय दंड संहिता के हिसाब से चलता है. ये तो आधिकारिक कानून है लेकिन इसके अलावा भतेरे कानून हैं जिन्हें हमें आंख बंद कर मानना पड़ता है. धर्म के नियम-कायदे क्या कानून से कम हैं? फिर जाति के नियम-कायदे हमारे सामने कानून बन कर खड़े हो जाते हैं. धर्म और जाति के कानूनों से बचना लगभग नामुमकिन है. यहां कोर्ट तो लगता है, कार्रवाई भी होती है लेकिन बचाव पक्ष जैसी कोई चीज़ नहीं होती. यहां के वकील भी पंच होते हैं और न्यायाधीश भी. वो ही दलील पेश करते हैं. वो ही फैसला सुनाते हैं.

समाज का ऐसा ही एक कोर्ट राजस्थान के बूंदी जिले में लगा. बूंदी जिले में एक गांव है हरिपुरा. हरिपुरा में एक पांच साल की लड़की रहती है जिसका नाम है ख़ुशी. वो हरिपुरा के राजकीय प्राथमिक विद्यालय में पढ़ती है. खुशी रोज़ की तरह एक दिन स्कूल जा रही थी. वहां उसने एक टिटहरी का घोंसला देखा. वो उसमें पड़े अंडों से खेलने लगी. खुशी को कहां पता था कि ये खेल उसके लिए सज़ा बन जाएगा. खेलने में ग़लती से उससे एक अंडा टूट गया. बच्चों में तुरंत ये बात फैल गई. बच्चों ने गांव में भी बता दिया. गांव वालों से पंचों को भी पता चला कि एक लड़की ने टिटहरी का अंडा तोड़ दिया है.

हरिपुरा गांव में रैगर समाज के लोग रहते हैं. एक अंडा टूटने को रैगर समाज के पंचों ने गांव के भविष्य के लिए अशुभ बताया. अब खुशी के घरवालों को बुलाकर पंचायत लगाई गई. पंचायत ने फैसला किया कि खुशी ने जीव हत्या की है. जीवहत्या करना बहुत बड़ा पाप है. अब इस पाप से बचने के लिए क्या कर सकती थी वो मासूम? तो तय हुआ कि उसे तीन दिनों के लिए समाज से बहिष्कृत कर दिया जाए. (इससे खुशी पर लगा जीवहत्या का पाप कैसे उतरेगा, पता नहीं.)

खुशी को समाज से बहिष्कृत कर दिया गया. अब वो न घर जा सकती थी, न ही कोई उसे छू सकता था. किसी को उससे बात करने के लिए भी मना कर दिया गया था. उसे खाना-पानी जानवरों की तरह दिया जाता रहा. जैसे जानवरों के आगे घास-फूंस डालते हैं न, वैसे ही खुशी के सामने खाना डाल दिया जाता. इतनी गर्मी में उसे घर के बाहर छप्पर में रखा गया. इस छप्पर में एक पलंग डाल दिया गया. खुशी की दुनिया इस पलंग में ही सिमट कर रह गई. इस दौरान बाकायदा खुशी पर नज़र रखी गई कि कहीं वो घर के भीतर न चली जाए या उसके माता-पिता उसे घर में न ले जाएं.

खुशी का घर.फोटो क्रेडिट- ऑडनारी/भवानी खुशी का घर.फोटो क्रेडिट- ऑडनारी/भवानी

बूंदी के संवाददाता भवानी ने हमें इस घटना की जानकारी देते हुए बताया कि खुशी के माता-पिता ने जब इस फैसले का विरोध किया तो उन्हें डराया गया. उन्हें गांव से बाहर करने की धमकी दी. पिता से नहीं रहा गया. शराब के नशे में आकर उसने पंचों के फैसले का विरोध किया, उनके साथ गाली-गलौज की. पंच इससे नाराज़ हो गए. इस नाराज़गी का ज़ुर्माना भी खुशी को ही भरना पड़ा. उसके समाज निकाले को तीन दिन से बढ़ाकर 11 दिन कर दिया गया.

इस पूरी घटना से खुशी का परिवार डरा हुआ है. कोई कुछ बोलना नहीं चाहता. क्योंकि अगर बोलेंगे तो पंच उनकी बेटी की सज़ा को और बढ़ा देंगे. हिण्डोली पुलिस और जिला प्रशासन के आला अधिकारी गांव में पहुंचे. पुलिस को देख पंच फरार हो गए. पुलिस और तहसीलदार ने लोगों से बातचीत की. गांव के लोगों के लिए ये घटना सामान्य है. पहले भी इस तरह की घटनाएं वहां होती रही हैं. (और किसी ने इन पर सवाल उठाने या इनका विरोध करने की कोशिश नहीं की.)

खुशी के घरवालों को इस घटना से सदमा लगा है. खुशी की मां खेतों में काम करती है. वो मानसिक तौर पर परेशान हो गई है. चुपचाप गेंहू की सफाई करती अपनी बेटी के बारे में सोचती रहती है. पंचायत के फैसले को मानने के अलावा वो कुछ नहीं कर सकती. वरना हो  सकता है कि पंचायत उनके पूरे घर को ही समाज से बेदखल कर दें.

खुशी को मिली सज़ा के लिए माफी भी तय की गई है. माफी के लिए पूरे गांव में चने और खमण बांटा जाना तय हुआ. साथ ही खुशी को दूसरे गांव ले जाकर स्नान कराया जाए. तब जाकर उसे समाज में वापस लिया जा सकता है. और ये सब खुशी को मिली सज़ा को पूरा करने के बाद करना है. इस माफी के लिए व्यक्ति भी तय है. खुशी के फूफा के हाथों इन रस्मों को कराया जाएगा. इसके बाद ही खुशी को समाज में वापस लिया जा सकता है.

फोटो क्रेडिट- ऑडनारी/भवानी फोटो क्रेडिट- ऑडनारी/भवानी

इस घटना के बारे में सरकारी अधिकारियों को पता चला. बाल संरक्षण आयोग अध्यक्ष मनन चतुर्वेदी हरिपुरा पहुंचीं. बाल कल्याण समिति को पंचों के खिलाफ शिकायत करने के लिए निर्देश दिए. चतुर्वेदी ने कहा - ‘जुविनाइल जस्टिस एक्ट और सीआरपीसी की धाराओं के तहत पंचों पर मुकदमा किया जाएगा. उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी. साथ ही ये सुनिश्चित किया जाएगा कि आगे से किसी भी तरह ऐसी कोई घटना न हो.’

चतुर्वेदी ने पंचों को इसके लिए डांट भी लगाई. बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष के सामने पंचों के सुर ही बदल गए. पंचों ने कहा - ‘बालिका हमारी बेटी है और उसके साथ कुछ ग़लत नहीं होगा.’ चतुर्वेदी ने खुशी के घरवालों और गांव के तमाम लोगों से भी बातचीत की. उन्होंने उनसे पूछा कि आपने पहले ही पुलिस में शिकायत दर्ज़ क्यों नहीं कराई? पर सभी लोग पंचायत के फैसले से डरे हुए थे. उन्होंने लोगों को कहा कि आप लोगों को पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान देना चाहिए. शिक्षित होना चाहिए और ऐसी रूढ़िवादी परम्पराओं का विरोध करना चाहिए.’ 

फोटो क्रेडिट- ऑडनारी/भवानी फोटो क्रेडिट- ऑडनारी/भवानी

मनन चतुर्वेदी खुशी से भी मिलीं. उसके घरवालों को विश्वास दिलाया कि प्रशासन उनके साथ है. पंचों के खिलाफ सख़्त कार्रवाई होगी. उन्हें किसी से भी डरने की ज़रूरत नहीं है. साथ ही जिला कलेक्टर को आदेश दिया कि परिवार को रसोई गैस सुविधा, विद्युत कनेक्शन, शौचालय और खाद्य सुरक्षा योजना का लाभ दिया जाए. परिवार को दो महीने का राशन और 30 किलो गेंहू भी दिया गया.

हमारे यहां एक कहावत है ‘जब जागो, तभी सवेरा.’ लेकिन ऐसा न हो कि जागने में इतनी देर हो जाए कि सवेरा होना नामुमकिन हो जाए. प्रशासन को तमाम योजनाओं और गांव के लोगों को मिलने वाले लाभ की चिंता तब हुई जब उस घर की बेटी को समाज-निकाला दिया गया. और ये ख़बर उन तक पहुंची. अगर नहीं पहुंची होती तो ये योजनाएं काग़ज़ों में ही रहतीं, जैसे बाकी लोगों के लिए है. खुशी के घर को तो तमाम योजनाओं का लाभ पहुंचाने की बात आपने कह दी अध्यक्ष जी. लेकिन मेरे ज़हन में एक सवाल और भी है. गांव के बाकी लोगों तक इन योजनाओं को पहुंचाने का विचार आपको कब आएगा? जब उनके घर की बेटियां को भी समाज निकाला दे दिया जाएगा या किसी के पिता को अपने सर पर जूते रखकर सभी गांव वालों से माफ़ी मांगनी होगी.

पुलिस ने पांचों पंचों को गिरफ्तार कर लिया है. हमारे यहां गांव और समाज की पंचायतों का डर देश के कानून से ज़्यादा है. कभी अपनी मर्ज़ी से शादी करने तो कभी एक अंडा तोड़ने के लिए यहां अजीबो-गरीब सजाएं दी जाती हैं. लोगों में इनका डर इतना है कि वो इनकी बेहूदा सज़ा को मानते भी हैं. प्रगतिशील होने का दंभ भरती सरकार का इन गांवों की प्रगति तरफ ध्यान क्यों नहीं जाता?

 

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