इस खतरनाक वायरस की शिकार हो रही हैं जयपुर की औरतें
इसको रोकने का कोई तरीका भी नहीं है
27 साल की फ़रहाना आठ महीने से गर्भवती है. जयपुर के शास्त्री नगर की एक झुग्गी में रहती है. पिछले महीने उसे तेज़ बुखार आया था तो वह नज़दीकी सरकारी अस्पताल गई जहां उसका ब्लड सैम्पल लिया गया. उसे बताया गया कि खून में इनफ़ेक्शन हुआ था, अब ठीक हो गया है. मगर बाद में सैम्पल की जांच से पता चला कि फ़रहाना के खून में ज़िका वायरस मौजूद है. जो उसके और उसके होनेवाले बच्चे के लिए खतरनाक साबित हो सकत है.
ज़िका वायरस के बारे में सुना होगा आपने. नहीं सुना है तो बता देते हैं कि यह एक वायरस है जो मच्छरों से फैलता है. यह वायरस मादा Aedes मच्छर फैलाती है, जिसके काटने से डेंगू और चिकुनगुनिया जैसी बीमारियां भी होती हैं. तेज़ बुखार, मांसपेशियों में कमज़ोरी, दाने और पेरैलिसिस ज़िका के कुछ लक्षण हैं. 1947 में युगांडा में यह वायरस पहली बार देखा गया था. तब से यह पूरे 86 देशों में फैल चुका है. और इसका प्रभाव अब भारत में भी दिखने लगा है.
86 देशों में फैल गया है यह वायरस
सितंबर 23 से जयपुर, राजस्थान में ही 140 लोगों में यह वायरस पाया गया है. जिनमें से 50 गर्भवती महिलाएं हैं. अब किसी गर्भवती औरत में यह वायरस हो तो वह पेट के बच्चे को भी अफेक्ट करता है. बच्चा microcephaly का शिकार हो जाता है. यह एक ऐसा विकार है जिसमें इनसान का सिर उसके शरीर से कहीं ज़्यादा छोटा होता है और उसका ब्रेन ठीक से डेवेलप नहीं हो पाता.
Microcephaly
World Health Organization (WHO) बताता है कि गर्भवती महिलाओं को ज़िका के लिए टेस्ट करवाना चाहिए. और अगर वह 'पॉज़िटिव' हों, यानी अगर उनमें यह वायरस मौजूद हो, तो 18-20 हफ्तों के बीच अल्ट्रासाउंड करवाना चाहिए. यह देखने के लिए कि बच्चा microcephaly का शिकार है कि नहीं. बच्चा पैदा होने के 2 साल बाद तक भी उसका हेल्थ ट्रैक करने का नियम है. फ़रवरी 2016 में हमारे स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी ज़िका के केसेज़ हैंडल करने के कुछ गाइडलाइंस निकाले थे. पर अफ़सोस, इसमें कहीं भी गर्भवती महिलाओं का ज़िक्र नहीं था.
18-20 हफ्तों तक अल्ट्रासाउंड करवाना है
स्थानीय अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में फिर भी गर्भवती महिलाओं के नियमित अल्ट्रासाउंड और चेकप का आदेश दिया गया है. Sawai Man Singh Medical College के डॉ. ओबी नागर कहते हैं कि वहां दाखिल सभी औरतों के लिए 18-20 हफ्तों के अंदर अल्ट्रासाउंड करवाना ज़रूरी है. वह कहते हैं, 'अगर 20 हफ्तों तक भ्रूण में microcephaly या कोई और विकार नज़र आता है तो मां अबॉर्शन करवा सकती है.'
विकार नज़र आने पर अबॉर्शन हो सकता है
इसमें समस्या यह है कि 18-20 हफ़्तों में सिर्फ़ microcephaly की संभावना ही नज़र आ सकती है. उसके डेफ़िनिट लक्षण 32 हफ़्तों के बाद ही दिख सकती हैं, जब अबॉर्शन के लिए बहुत देर हो चुकी होती है. Medical Termination of Pregnancy Act के तहत 20 हफ्तों के बाद कोई औरत अबॉर्शन करवाना चाहे तो उसे अदालत से अनुमति मांगनी होती है. डॉक्टरों का मानना है कि बार बार अल्ट्रासाउंड के लिए आना, फिर कोर्ट का चक्कर लगाना औरत की मानसिक अवस्था के लिए सही नहीं है.
राजस्थान की ऐडिशनल हेल्थ सेक्रेटरी डॉ. निवेदिता गुप्ता कहती हैं, 'स्टडीज़ से पता चला है कि बच्चे में microcephaly जैसे विकारों का रिस्क पहले ट्राइमेस्टर (तीन महीनों) में सबसे ज़्यादा रहता है. लगभग 8 से 15% तक चांसेज़ होते हैं. दूसरे ट्राइमेस्टर तक यह चांसेज़ 5% हो जाते हैं. और तीसरे में 4%. इसलिए हमारा फ़ोकस सिर्फ उन औरतों पर है जिनकी प्रेग्नेंसी शुरू हुई है. जो महिलाएं ज़्यादा टाइम से प्रेगनेंट हैं, उनके लिए रिस्क न के बराबर है.'
डॉ. गुप्ता का कहना है कि सिचुएशन को सुधारने के लिए प्रयास अभी जारी है. शहर के कई इलाकों को ‘containment zones’ के तौर पर चिह्नित किया गया है. यानी इन जगहों में यह वायरस सबसे ज़्यादा फैल रहा है. 91 में से 14 जगहों को ‘containment zones’ बताया गया है. और इन इलाकों में गर्भवती औरतों और बुखार, कनजंक्टिवाइटिस वगैरह के शिकार लोगों का नियमित चेकप और अल्ट्रासाउंड भी जारी है. पैम्फ़्लेट्स द्वारा जनता को ज़िका वायरस पर जानकारी दी जा रही है. स्थानीय अस्पतालों में डॉक्टर भी इस वायरस और उसके इलाज पर शोध कर रहे हैं ताकि हालात कुछ कंट्रोल में आएं.
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