क्या है वो 'बीमारी', जिससे ज़ायरा वसीम 4 साल से जूझ रही हैं?

क्या होते हैं डिप्रेशन के लक्षण?

‘अवसाद केवल एक भावना नहीं है, यह एक बीमारी है. यह किसी की पसंद या गलती नहीं है. यह किसी भी समय किसी को भी प्रभावित कर सकता है.’

ज़ायरा वसीम ने फेसबुक पर एक पोस्ट लिखा है. पोस्ट में उन्होंने बताया कि वे पिछले 4 सालों से भी ज़्यादा समय से डिप्रेशन में हैं. डिप्रेशन शब्द का हम बहुत आसानी से इस्तेमाल करते हैं. हम थोड़ा परेशान, दुखी या हर्ट महसूस करते हैं तो हमें लगता है कि हम डिप्रेस्ड हैं.

असल में डिप्रेशन यानी अवसाद एक बीमारी है. जिसे हम क्लिनिकल डिप्रेशन भी कहते हैं. एकाध दिन की किसी तरह की चिंता, उदासी या दुख नहीं.

हमने मानसिक बीमारियों को 'सदमा' की श्रीदेवी या 'तेरे नाम' के सलमान खान से समझा. इसलिए मानसिक बीमारियों के नाम से ही हम घबरा जाते हैं. पहले तो हम मानते ही नहीं कि हम किसी तरह के अवसाद से ग्रस्त हैं. हमें सबकुछ दिमाग का फितूर लगता है. लगता है सबकुछ अपने हाथ में है.

शहरी युवाओं में बढ़ते डिप्रेशन और एंग्जायटी पर चर्चा करने की कोशिश फिल्म 'डियर जिंदगी' में देखी गई थी.  शहरी युवाओं में बढ़ते डिप्रेशन और एंग्जायटी पर चर्चा करने की कोशिश फिल्म 'डियर जिंदगी' में देखी गई थी.

इसे आप ऐसे समझिए. जब आप डॉक्टर के पास जाते हैं, कोई जरूरी नहीं कि आपको कैंसर या एड्स हो. आम बुखार के लिए भी जाते हैं न. इसी तरह मानसिक बीमारियों की भी डिग्रियां होती हैं. और फिजिकल बीमारियों की तरह ही, जितनी जल्दी आप उनका इलाज करवा लें, उतनी जल्दी आप स्वस्थ हो जाएंगे. 

आजकल टीनेजर्स में यह बीमारी बहुत अधिक देखने को मिल रही है. जैसे ज़ायरा वसीम का ही केस ले लीजिए. टीनेज डिप्रेशन को समझने के लिए हमने बात की मुम्बई की क्लीनिकल साइक्लोजिस्ट डॉ. शालिनी अनन्त और दिल्ली की डॉ. रचना के सिंह से. उनसे बातचीत के दौरान हमने जाना डिप्रेशन के बारे में.

अब डिप्रेशन में न बुखार आता है न शरीर पर फफोले पड़ते हैं. तो हमें लक्षण कैसे पता चलेंगे? 

ज़ायरा के पहले दीपिका पादुकोण ने पब्लिक में स्वीकारा था कि वो डिप्रेशन से जूझ रही थीं. ज़ायरा के पहले दीपिका पादुकोण ने पब्लिक में स्वीकारा था कि वो डिप्रेशन से जूझ रही थीं.

डिप्रेशन के लक्षण. कम-से-कम दो हफ्तों तक इन लक्षणों का पाया जाना:

  • नींद का बहुत ज़्यादा या बहुत कम आना.
  • भूख न लगना
  • हर समय मूड खराब रहना
  • बार-बार रोना
  • जो चीज़ें पहले अच्छी लगती थीं उनका अब अच्छा न लगना
  • घर से बाहर न निकलने का मन करना 
    चीन में रहने वाली सुन हुआनपिंग ने अपने बेटे को कार एक्सीडेंट में खो दिया था. चीन की वन-चाइल्ड पॉलिसी की वजह से वो दूसरा बच्चा नहीं कर पाईं. जिसके बाद से वो डिप्रेशन में हैं. तस्वीर: रॉयटर्स  चीन में रहने वाली सुन हुआनपिंग ने अपने बेटे को कार एक्सीडेंट में खो दिया था. चीन की वन-चाइल्ड पॉलिसी की वजह से वो दूसरा बच्चा नहीं कर पाईं. जिसके बाद से वो डिप्रेशन में हैं. तस्वीर: रॉयटर्स

क्यों होता है टीनेज में डिप्रेशन

  • टीनेज में डिप्रेशन का सबसे बड़ा कारण है पारिवारिक समस्याएं.
  • बुरा बर्ताव भी इसका कारण हो सकता है.
  • भावनात्मक उपेक्षा मतलब इमोश्नल नेगलेक्ट.
  • सहपाठियों द्वारा बुली किया जाना.
  • बच्चों का माता-पिता से बात करने में सहज न होना.
  • असुरक्षा का भाव.
  • रिश्तों में सहज न होना.
  • भौतिकतावादी वस्तुओं को महत्त्व देना मतलब मटेरियलिस्टिक चीज़ों को आवश्यक समझना.
  • बहुत अधिक गुस्सा या चिड़चिड़ापन.

ये सभी डिप्रेशन के बहुत से कारणों में से कुछ हो सकते हैं.

मेक्सिको के एक चर्च के बाहर की तस्वीर. ये लोग एक बच्चे की मौत का मातम मना रहे हैं. डिप्रेशन से जूझ रहे इस बच्चे ने खुद की जान लेने के पहले कई बच्चों और एक टीचर को गोली मारी. तस्वीर: रॉयटर्स मेक्सिको के एक चर्च के बाहर की तस्वीर. ये लोग एक बच्चे की मौत का मातम मना रहे हैं. डिप्रेशन से जूझ रहे इस बच्चे ने खुद की जान लेने के पहले कई बच्चों और एक टीचर को गोली मारी. तस्वीर: रॉयटर्स

यह सभी लक्षण होने पर आप साइकैट्रिस्ट से मिलें. वह मेडिकल टेस्ट करके निश्चित बताएंगे कि क्या आप बीमार हैं. टेस्ट में क्या आपके भेजे को किसी मशीन में घुसेड़ दिया जाएगा? नहीं, किसी भी अन्य ब्लड टेस्ट की तरह आपका ब्लड सैंपल लेकर जांचेंगे कि आपके दिमाग के सभी केमिकल्स ठीक मात्रा में हैं या नहीं. क्योंकि यही केमिकल्स हमें खुश और दुखी रखते हैं. मगर ये बहुत छोटा हिस्सा है. डॉक्टर आपसे बात करेंगे, आपकी बातों को समझेंगे. इसलिए जरूरी है आप उनपर भरोसा करें. 

डिप्रेशन दूर कैसे होगा?

मेडिकल इलाज ज़रूर करवाएं. साथ ही अपने आस-पास के माहौल को खुशनुमा रखने की कोशिश करें. बच्चों को एक स्वस्थ माहौल देना बहुत ज़रूरी है. अब स्वस्थ माहौल के लिए क्या करें. आपको तो लगेगा कि आप सबकुछ कर रहे हैं अपने बच्चों के लिए. अच्छे स्कूल में पढ़ता है आपका बच्चा, अच्छे कपड़े हैं, बेहतर खिलौने हैं, सुख-सुविधाओं की सभी वस्तुएं हैं. इन सबसे ज़्यादा ज़रूरी है ‘समय’. अपने बच्चों को अधिक-से-अधिक समय दें. उनकी बातें सुनें. और उससे भी ज़्यादा उन्हें समझने की कोशिश करें. समझें कि वे क्या कहना चाहते हैं. क्या सोचते हैं. क्या करना चाहते हैं. बच्चों के जीवन में सबसे ज़्यादा असर उनके घर, स्कूल और खेलने-कूदने की जगह का पड़ता है. कोशिश करें कि वो हर जगह खुद को सहज महसूस करे.

डॉ. शालिनी अनन्त एक अच्छी बात कहती हैं. ये एक मानसिक अवस्था है और इसे बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ा कर बताने की ज़रूरत नहीं है. न ही इसे कमतर आंकने की ज़रूरत है कि यह तो बस तनाव है. डिप्रेशन आपको भावनात्मक रूप से बहुत प्रभावित कर सकता है. यह बाकी बीमारियों की ही तरह एक बीमारी है. जो दवाइयों और देखभाल के ज़रिए ठीक हो सकती है.

इसलिए स्वस्थ रहें और अपना ध्यान रखें. अपने दिल-ओ-दिमाग का ध्यान रखें.

 

 

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