स्त्रीरोग: वो बीमारी जो बच्चा पैदा करने की उम्र में औरतों में सबसे ज्यादा पाई जाती है
औरतों का एक 'चुप्पा हत्यारा' जो आ जाए तो गर्भ और माहवारी, दोनों को बर्बाद कर देता है.
1. रेखा बिहार के मढौरा नाम के गांव में रहती है. हाल में ही शादी हुई है. ससुरालवाले बहुत खुश हैं उससे. खाना कमाल बनाती है. सब उंगलियां चाटते रह जाते हैं, ऐसा. सुबह चार बजे से उठ कर घर के कामों में लग जाती है. शाम होते होते थकान हो जाती तो आठ बजते बजते सो जाती है. इस चक्कर में रात का खाना उसका बहुत कम ही हो पाता है. एक दिन दोपहर का खाना परोसते हुए उसे चक्कर आये और वो वहीं बैठ गयी. उसकी सास को लगा लड़की प्रेग्नेंट है. घरवाले खुश हो गए. डॉक्टर के पास ले गए. डॉक्टर ने खुशखबरी देने के बजाय घरवालों को डांट लगा दी. क्यों? क्योंकि रेखा का हीमोग्लोबिन सात के आस पास था.
2. रंजना एक मीडिया हाउस में काम करती हैं. दिल्ली में रहती हैं. काफी तेज़ तर्रार रिपोर्टर हैं. पॉलिटिकल मसलों पर काम करती हैं. फील्ड पर जाकर रिपोर्टिंग करती हैं. कई बार काफी शॉर्ट नोटिस पर उन्हें दूर दराज के शहरों में जाना पड़ता है. कहीं भी चुनाव होते हैं, रंजना अपनी टीम के साथ वहां जाकर रिपोर्टिंग करती हैं. इस चक्कर में उनका खाने पीने और सोने का कोई तय टाइम नहीं रहता. कभी बाहर ही कुछ फास्ट फ़ूड खा लिया. घर आने का टाइम मिला तो ब्रेड बटर खा लिया. फ्लाईट में टाइम मिला तो सो गए. लम्बी दूरी की ट्रेन में गए तो हल्का फुल्का खाना खा कर टाइम निकाल दिया. रंजना ये सब ख़ुशी-ख़ुशी करती हैं. एक दिन उनके ऑफिस में ब्लड डोनेशन यानी खून देने वाला कैम्प लगा. रंजना की बड़ी इच्छा थी कि वो भी अपना ब्लड डोनेट करें. जब वो वहां गईं तो डॉक्टर ने कहा कि उनको पहले अपना हीमोग्लोबिन जांच करवाना पड़ेगा. रंजना ने जाके फटाफट टेस्ट करवाया. उनका हीमोग्लोबिन आठ था. किसी को भी खून देने के लिए आपका हीमोग्लोबिन 12.5 से ऊपर होना चाहिए. रंजना ब्लड डोनेट नहीं कर पाईं.
आप पढ़ रहे हैं हमारी ख़ास सीरीज: स्त्री रोग. इस सीरीज में हम बात कर रहे हैं उन सभी बीमारियों की जो या तो औरतों को ही होती हैं या फिर पुरुषों की मुकाबले औरतों को ज्यादा होती हैं. इनमें से कई बीमारियों के बारे में आज हम बात करने में भी झिझकते हैं, और हमारा मकसद है उन सभी के प्रति जागरूकता बढ़ाना ताकि उन पर बात करने की झिझक खत्म हो सके. औरतें और लड़कियां अपनी सेहत को सीरियसली लें. इस सीरीज में हमारा आज का आर्टिकल है एनीमिया पर.
एनीमिया क्या है?
एनीमिया का मतलब होता है खून की कमी. नहीं-नहीं, सचमुच में खून नहीं सूखता . खून तो अगर पांच लीटर है तो पांच लीटर ही रहेगा. खून में मिलने वाली एक चीज होती है- हीमोग्लोबिन. बोले तो खून का वो हिस्सा जो ऑक्सीजन ले के जाता है पूरे शरीर में. प्रोटीन होता है, बहुत ही ज़रूरी. जैसे पानी को मापने के लिए लीटर शब्द का इस्तेमाल होता है, खून के लिए डेसीलीटर का इस्तेमाल होता है. क्या फर्क होता है? जैसे किसी भी लिक्विड याने तरल चीज़ को मापने के लिए लीटर एक स्टैण्डर्ड है, उसकी शुरुआत मिलीलीटर से होती है. मिली सबसे छोटा नंबर होता है. उससे भी छोटा साइज़ नापा जा सकता है लेकिन वो आम तौर पे डेली लाइफ में इस्तेमाल नहीं होता. तो मिली से ऊपर होता सेंटी, और उससे ऊपर होता है डेसी. आपने स्केल देखी होगी. उसे फुट्टा भी कहते हैं. उसमें सबसे छोटा नम्बर मिलीमीटर होता है. दस मिलीमीटर मिलके एक सेन्टीमीटर होते हैं. दस सेंटीमीटर मिलके एक डेसीमीटर हुए. और दस डेसीमीटर मिलकर एक मीटर बनते हैं.
वही हिसाब लीटर का भी है. तो डेसीलिटर जो होता है, वो सेंटीलीटर से ज्यादा होता है, लेकिन एक लीटर से कम होता है. हर एक डेसीलीटर खून में 12 से लेकर 18 ग्राम तक हीमोग्लोबिन होना चाहिए. 12 से लेकर 16 तक औरतों में सामान्य है. मर्दों में 13 से लेकर 18 तक. हीमोग्लोबिन की वजह से ही हमारा खून लाल होता है. इसके अन्दर आयरन यानी लोहे को अपने आप से बांधकर रखने ताकत होती है. और ऑक्सीजन उनसे जुड़कर ही शरीर में हर जगह तक पहुंचता है. इसी लिए जब खून बढ़ाने की बात होती है तो कहा जाता है हरी पत्तेदार सब्जियां खाने को क्योंकि उनमें आयरन काफी होता है. लेकिन जब हीमोग्लोबिन कम होने लगता है, तो शुरू होती हैं परेशानियां.
औरतों में ये परेशानी ज्यादा क्यों?
क्योंकि हमारे यहां की औरतें अपने खान-पान पर ध्यान नहीं देतीं. याद करने की कोशिश कीजिये आखिर बार कब आपने अपनी मां को घर में सबसे पहले खाना खाते हुए देखा था ? या फिर उन्हें ख़ास अपने लिए फ्रूट खरीदते हुए देखा था? नहीं याद? वही तो परेशानी है. औरतें अपनी सेहत पर तभी ध्यान देती हैं जब कुछ ऐसा हो जाए जो उनकी जान पर खतरा बन जाए. दूसरों का क्या कहूं, मेरी मां खुद तब तक डॉक्टर को नहीं दिखातीं जब तक बिस्तर से उठना मुश्किल ना हो जाए. और वहीं घर में किसी और की थोड़ी सी भी तबियत ख़राब होती है तो उसी वक़्त डॉक्टर को चार बार फ़ोन घुमा देती हैं.
एनीमिया जैसी हालत तब होती है जब ढंग से खाया-पिया ना जाए , सेहत पर ध्यान न दिया जाए , समय-समय पर चेकअप ना कराया जाए. हमारे देश में वैसे भी लड़कियां और महिलाएं एनीमिक हैं. उनको भरा पूरा खाना नहीं मिलता. भरे पूरे से मतलब थाली भर के खाने से नहीं. बोले तो सब कुछ अच्छे से बैलेंस कर के बनाया गया खाना. खून में आयरन की कमी से होता है एनीमिया. फिर उसकी टैबलेट लेनी पड़ती है.
क्या होता है एनीमिया में?
हीमोग्लोबिन कम होगा तो ऑक्सीजन ढंग से पहुंचेगा नहीं. मतलब सांस पूरी लेंगे, सांस का फायदा नहीं होगा. थकान हो जायेगी. खाया पीया शरीर को लगेगा नहीं. ये सारी दिक्कतें. माहवारी में परेशानी होगी. कम खून आएगा, समय पे नहीं आएगा. कई बार बहुत ज्यादा आएगा . चेहरे की रौनक चली जायेगी, आंखों के नीचे काले घेरे हो जायेंगे. अगर आप प्रेग्नेंट होने की कोशिश कर रही हैं तो गर्भ ठहरने के बाद बच्चे के पोषण में दिक्कत हो जायेगी. और आपकी तो वाट लगनी तय है. उम्र बढ़ने पर परेशानियां और ज्यादा दिखाई देंगी, और उनसे छुटकारा पाना मुश्किल होता जाएगा.
क्या है इलाज?
एनीमिया का इलाज कोई मुश्किल नहीं है. डॉक्टर आपको धीरे धीरे खाना-पीना ठीक करने को कहेंगे. उनकी दी हुई दवाइयां सही समय पर खानी होंगी. खुद से आप एनीमिया का टेस्ट नहीं कर सकते. डॉक्टर के पास जाकर ब्लड टेस्ट करवाना ही पड़ेगा. एक बार पता चल जाए कि आपका हीमोग्लोबिन कितना है, उसके बाद आप डॉक्टर की सलाह से दवाइयां लेना और खाना खाना शुरू कर सकते हैं. आप हरी पत्तेदार सब्जियां खा सकती हैं. उनमें काफी ज्यादा क्वांटिटी में आयरन होता है. हमने जितने भी डॉक्टर्स से बात की, सबने कहा कि शुरुआत तो अच्छे खाने पीने से करनी ही पड़ेगी. दवाइयां भी एक लिमिट तक आपकी मदद कर सकती हैं. लेकिन शरीर को हेल्दी रखना है तो आपको बेसिक चीज़ों से शुरुआत करनी होगी जिनमें आपकी खाने की आदतें सबसे पहले आती हैं.
ये एक ऐसी बीमारी है जिसे छुपाते नहीं हैं लोग. किसी को एनीमिया हो तो झट से बता देता है. शायद इसी वजह से इतना सामान्य है इसके बारे में सुनना. और इसी वजह से ये काफी खतरनाक है. क्योंकि लोग इसके बारे में सुनने के इतने आदी हो गए हैं कि इसे गंभीरता से नहीं लेते. किसी की शक्ल उतरी हो या फिर कमजोरी दिख रही हो तो लोग फटाक से कह देते हैं; 'एनीमिक लग रही हो'.
क्या हैं खतरे?
इस बीमारी का इतना सामान्य हो जाना भी डराने वाला है. अधिकतर औरतों का हीमोग्लोबिन सात से नौ के बीच पाया जाता है. ये साधारण स्तर से काफी नीचे है. लेकिन अगर इसे एक सामान्य बात समझा जाता रहेगा तो दिक्कत ही होगी. यह एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है, इसकी वजह से लाखों महिलाएं बीमारी में जीवन काटने को मजबूर होती हैं. एक सर्वे के अनुसार ग्लोबल न्यूट्रीशन इंडेक्स में भारत को सबसे निचले पायदान पर रखा गया है, क्योंकि यहां पर आधे जे ज्यादा औरतें एनीमिक हैं. इनमें से अधिकतर औरतें वो हैं जो बच्चे पैदा करने की उम्र में हैं.
एनीमिया को साइलेंट किलर यानी 'चुप्पा हत्यारा' भी कहा जाता है. यानी ऐसी बीमारी जो बिना कोई ख़ास लक्षण दिखाए जान ले ले. और ऐसा नहीं है कि सिर्फ ग्रामीण इलाकों या छोटे शहरों की औरतें ही खाने में में ध्यान नहीं रखतीं और एनीमिक हो जाती हैं. बड़े बड़े शहरों में भी ये दिक्कत है. डॉक्टरों से बातचीत करने पर यह भी पता चला कि अधिकतर औरतों को अपनी प्रेगनेंसी ढंग से चलाने के लिए आयरन की गोलियां लेनी पड़ती हैं. इसलिए इसे लाइटली मत लीजिये. जांच कराइए. अपने घर की औरतों से कहिए. जान है, तो जहान है.
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