दिल्ली की 25 महिला अदालतों में सिर्फ टोटल 4 महिला वकील हैं, दिल्ली सरकार को फाइनली ये दिख गया है

यौन शोषण की शिकार घरेलू महिलाएं पुरुष वकील के सामने न सहज हो पाती हैं, न उन्हें न्याय मिलता है.

आपात प्रज्ञा आपात प्रज्ञा
सितंबर 21, 2018
महिला कोर्ट वो कोर्ट हैं जहां महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर कार्यवाही होती है. फोटो क्रेडिट- Reuters

महिला कोर्ट वो कोर्ट होते हैं जहां महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर कार्यवाही होती है. ये बाकी कोर्ट्स की तरह औपचारिक नहीं होते. अनौपचारिक होते हैं. मतलब कोई ठक-ठक करने वाला जज नहीं. कोई दलीलें देने वाला वकील नहीं. यहां किसी खास भाषा या तौर तरीकों का पालन नहीं होता. तो कैसे चलते हैं ये कोर्ट?

महिला कोर्ट लोकल स्तर की अदालतें होती हैं. जैसे लोक अदालतें. यहां पर जब कोई महिला अपनी परेशानी लेकर जाती है तो उसकी काउंसलिंग की जाती है. काउंसलिंग के अलावा दूसरा उपाय है मेडिएशन. यानी मध्यस्थता. मतलब कि बीच का रास्ता निकालना. यहां महिलाओं को उनकी भाषा में बोलने की आज़ादी होती है. वो अपनी भाषा में बात कर सकती हैं. उनके लिए कोई न कोई व्यक्ति होता है जो उनकी भाषा को समझ सके. कोशिश की जाती है कि अधिकतर लोग उस जगह के ही हों जहां पर महिला कोर्ट है. ताकि वो वहां के तौर तरीके और संस्कृति को जानता हो.

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महिला और उसके पति या ससुराल वालों के बीच कोई परेशानी है तो इन मुद्दों को महिला अदालत में सुलझाया जाता है. अधिकतर विवाह और पारिवारिक मुद्दों के लिए इस अदालत का दरवाज़ा खटखटाया जाता है. इसके अलावा महिलाओं से संबंधित कोई भी मुद्दा हो उसके लिए महिला अदालत जाया जा सकता है. जज के अलावा जो भी महिलाएं महिला अदालत में काम करती हैं उनका कम से कम 12वीं पास होना आवश्यक है. साथ ही उन्हें इस अदालत में काम करने की अलग से ट्रेनिंग भी लेनी होती है.

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अधिकतर कोशिश ये होती है कि महिला यहां पर सहज महसूस करे. अपनी बात, परेशानियों को आराम से बता सके. महिल अदालत 1970 के दशक में लोक अदालतों को मिली सफलता के बाद चर्चा का विषय बने. लोगों को लगा कि महिलाओं से संबंधित भी कोई विशेष अदालत होनी चाहिए. जो उन से जुड़े मुद्दों पर बात करे. 1987 में आंध्र प्रदेश में पहली महिला अदालत चालू हुई. दिल्ली में पहली महिला अदालत 1994 में चालू हुई. इन्हें अलग-अलग जगह अलग नामों से भी जाना जाता है.

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सुप्रीम कोर्ट की वकील प्रज्ञा सिंह बताती हैं कि महिला अदालतों को अधिकतर महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर काम करने वाले एनजीओ, समाजिक दल या सरकार फंड करती है. ये इतने अनौपचारिक होते हैं कि एक बार इनका दिया फैसला वाट्सएप के ज़रिए पीड़ित तक भेजा गया था. ऐसा इसलिए किया गया था क्योंकि वो अदालत आने में सहज नहीं थीं. इन अदालतों का लिया फैसला मानने के लिए आप बाध्य भी नहीं होते. आप चाहें तो ये मान सकते हैं चाहे तो न भी मानें. आप बाकी अदालतों का दरवाज़ा खटखटा सकते हैं.

महिला मुद्दों को हैंडल कर रहे हैं पुरुष

महिला कोर्ट में मुद्दे महिलाओं के लेकिन लड़ने वालीं केवल 4 महिला प्रॉसीक्यूटर. प्रॉसीक्यूटर यानी सरकारी वकील जो सरकार की तरफ से किसी भी पीड़ित का केस लड़ते हैं.

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अब दिल्ली सरकार ने ये आदेश दिया है कि सभी महिला कोर्ट्स में केवल महिला प्रॉसीक्यूटर्स होंगी. दिल्ली सरकार के साथ अभी 250 सरकारी वकील काम करते हैं. 60 और वकीलों की नियुक्ति होने वाली है. इनमें से 33 महिला वकील हैं. इन 33 में से भी केवल 4 महिला कोर्ट्स के साथ काम करती हैं. अब सभी महिला कोर्ट्स में महिला सरकारी वकील होंगी ताकि महिलाएं अपनी परेशानियां बेहतर तरह से बता पाएं.

 

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