B.Com और LLB पास ये लड़की रोजी-रोटी के लिए ट्रक चलाती है

दो बच्चों की मां हैं योगिता.

नेहा कश्यप नेहा कश्यप
अप्रैल 15, 2019

कुछ पेशों को हमने जेंडर से जोड़ लिया है. रिसेप्शनिश्ट, नर्स है तो महिला होगी. ट्रक ड्राइवर है तो पुरुष होगा. नॉर्मली ऐसा होता भी है. लेकिन कुछ अपवाद भी होते हैं. जो ऐसे स्टीरियोटाइप्स को तोड़ते हैं. योगिता रघुवंशी भोपाल की रहने वाली हैं. ये देश की पहली ट्रक ड्राइवर हैं. वो पिछले 15 सालों से ट्रक चला रही हैं. और अपने ट्रक से देश के हर हिस्से तक पहुंच चुकी हैं.

49 साल की योगिता दो बच्चों की मां हैं और अकेली उनकी परवरिश कर रही हैं. वो पढ़ी-लिखी हैं. उनके पास बी. कॉम और एलएलबी की डिग्री है. इसके अलावा उन्हें हिंदी, अंग्रेजी, गुजराती, मराठी और तेलुगू भाषा आती है. जो उनके इस काम को आसान बनाने में मदद करती है.

thtrucker009_750_041519120307.jpgतस्वीर : द हिंदू

वो कहती हैं कि उनकी जिंदगी हमेशा से ऐसी नहीं थी. 2003 में सड़क दुर्घटना में उनके पति की मौत हो गई. अंतिम संस्कार में शामिल होने जा रहा उनका भाई भी रोड एक्सीडेंट में मारा गया. उनके पति वकील थे, और उनका ट्रांसपोर्ट का बिजनेस था. उनके पास तीन ट्रक थे. बिजनेस संभालने के लिए उन्होंने जिन लोगों को हायर किया था, वो कुछ ही दिनों में नौकरी छोड़कर भाग गए. तब उन्होंने खुद ट्रक ड्राइवर बनने का फैसला किया. ड्राइविंग सीखी. शुरूआत में साथ में हेल्पर रखा. फिर अकेले ड्राइविंग शुरू कर दी.

योगिता कहती है कि उन्हें जल्द ही ये लगने लगा था कि कॉमर्स और लॉ की डिग्री और ब्यूटीशियल का सर्टिफिकेट बच्चों को पालने के लिए काफी नहीं होगा. उनके पास एक लाल रंग का ट्रक है. जिसे एक बड़ी ट्रक निर्माता कंपनी ने उनके लिए कस्टमाइज किया है. वो उसे 45 किमी. प्रति घंटे की रफ्तार पर दौड़ाती हैं. जरूरत पड़ने पर ट्रक की खुद ही मरम्मत भी कर लेती हैं. सफर के दौरान स्प्राउट खाना पसंद करती हैं. और नींद न आए इसलिए दालचीनी का एक टुकड़ा मुंह में रखती हैं.

thtrucker007second-lead_750_041519120320.jpgतस्वीर : द हिंदू

ट्रक ड्राइवर्स की जिंदगी काफी चैलेंजिंग मानी जाती है. उनके रहने, सोने का कोई समय नहीं होता. महीनों घर से बाहर रहते हैं. कई घंटों तक लगातार ट्रक चलाते हैं. द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, योगिता कहती हैं कि उन्हें इस पेशे में कभी डर या खतरा महसूस नहीं हुआ. बाकी ड्राइवर्स उन्हें हिम्मत देते हैं. और जिन ढाबों पर वो रुकती हैं, वहां उन्हें सम्मान दिया जाता है.

खाना बनाने के लिए वो एक बार हाईवे पर रुकी थीं. तब तीन लोगों ने उनपर हमला कर दिया. वो उस हमले में घायल हो गईं लेकिन मदद आने तक उनका मुकाबला करती रहीं. योगिता कहती है कि इस हमले ने उन्हें और मजबूत बना दिया. अब उनकी शर्ट के कॉलर हमेशा ऊंचे रहते हैं और एक कॉन्फिडेंट इंसान की तरह चलती हैं.

 

 

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