मैं कैसे बताती कि टॉफी देने के बहाने दुकान वाला मेरा हाथ जकड़ लेता था?

आप पूछते हैं मैं चुप क्यों थी. मैं कैसे बताती कि कोचिंग जाते वक़्त लड़के सीने पर हाथ मारते थे?

आपात प्रज्ञा आपात प्रज्ञा
अक्टूबर 23, 2018
समाज ने हमेशा लड़कियों को चुप कराया है. फोटो क्रेडिट- Reuters

चुप रहना कोई आसान काम नहीं है. बड़ी मेहनत लगती है जनाब!

सच न बोल पाने की झुंझलाहट कभी महसूस की है? जब आपका अवचेतन(सबकॉन्शियस) चीख-चीख कर आपसे कह रहा हो कि मुंह खोल और सबको बता दे. बता दे इस दुनिया को. अपने घर को. अपने पिता को. अपने पति को. अपनी मां को. इस समाज को कि ये सच्चाई है मेरी. तुम यकीन करो न करो. सुनो या न सुनो. तुम्हें पसंद हो या नहीं. तुम्हारी इजाज़त हो या नहीं पर ये ही सच्चाई है. ये सच है मेरे जीवन का, तुम्हें मंज़ूर हो या नहीं. इसके अगले ही पल आपको एहसास हो कि जैसे ही आप ये सब बोलोगे सबसे पहले तो आपके घर वाले आपका साथ छोड़ देंगे. समाज आपको बाहर फेंक देगा. कानून आप पर शक करेगा. लोग आपको संदेह की निगाह से देखेंगे. कोई यकीन नहीं करेगा. कैसे बोलोगे आप? किसके भरोसे बोलोगे?

1_102318052344.jpgफोटो क्रेडिट- Reuters

आपको महाभारत याद है? कर्ण कुंती के पहले पुत्र थे. पूरी ज़िन्दगी कुंती इस बात को जानती थीं लेकिन नहीं बोल पाईं. हममें से कई लोग उन्हें गलत कहते हैं. रामधारी सिंह दिनकर रश्मिरथी में कर्ण के मुंह से कहलवाते भी हैं-

‘क्यों नहीं वीर माता बन आगे आयीं? सबके समक्ष निर्भय होकर चिल्लायीं?

सुन लो समाज के प्रमुख धर्म ध्वज धारी, सुतवती हो गई मैं अनब्याही नारी

अब चाहे तो रहने दो मुझे भवन में, या जातिच्युत कर मुझे भेज दो वन में...’

9_102318053141.jpgरश्मिरथि. फोटो क्रेडिट- फेसबुक

कुंती राजा की पुत्री थीं वो चाहतीं तो लोगों को सच बता सकती थीं. ज़्यादा-से-ज़्यादा क्या होता? सीता की तरह शायद अग्नि परीक्षा लेकर समाज उन्हें स्वीकार कर लेता. या अहिल्या की तरह कोई ऋषि उन्हें पत्थर की शिला बना देता या बहुत ही ज़्यादा होता तो द्रोपदी की तरह भरी सभा में चीर हरण हो जाता. इससे ज़्यादा क्या ही कर लेता समाज? पर सोच के देखा है बिना गलती के सज़ा मिलने पर कैसा लगता है? बचपन में जब भाई या बहन कोई चीज़ तोड़ दे और डांट आपको पड़े तो कितना गुस्सा आता है. आता है न? फिर दूसरे की गलती की सज़ा आपको भुगतनी पड़े और ऊपर से आप उस बारे में ज़िक्र भी न कर सको तो कैसा लगता होगा? महसूस किया है कभी? शायद नहीं, लकिन अधिकतर महिलाओं ने किया होगा. कभी सुन कर देखना उनकी बात. शायद अंदाज़ा लगा सको.

आपको गुस्सा आ रहा है. बुरा लग रहा है. जायज़ है आपको बुरा लगना. आपका ज़मानों का एकाधिपत्य शासन कटघरे में जो है. आप कह रहे हो कि अब बोलने से क्या फायदा. इतने सालों तक मज़े किए अब जब कुछ काम नहीं रह गया है तो औरतें लोगों के खिलाफ आवाज़ उठा रही हैं. ठंडे दिमाग से सोच कर देखिए, इतने सालों तक चुप क्यों थीं औरतों? क्यों नहीं बोल पाईं? किसी आदमी पर इल्ज़ाम लग जाए तो वो कैसे खुद को निर्दोष साबित करेगा? लोग तो औरत को ही सच मानेंगे.

2_102318052543.jpgफोटो क्रेडिट- Reuters

आप जो हमेशा से सत्ता में रहे हैं. आप जिसके पास हमेशा से शक्ति रही है. आज आपको डर लग रहा है कि आप कैसे बोलेंगे? तो सोचिए जनाब हम कैसे बोलते? वो औरतें, वो लड़कियां जिन्हें पैदा होने से पहले ही शांत और सरल स्वभाव का उत्तराधिकारी बना दिया जाता है. मान लिया जाता है कि लड़की है ये तो शांत स्वभाव की ही होगी. वो तो आप सबने सुना ही होगा न. ‘ये जब पेट में था न मैं तो परेशान हो गई थी. इतनी धमाचौकड़ी मचाई है इसने कि जीना मुश्किल हो गया था और एक ये मेरी प्यारी सी गुड़िया, ये तो इतनी शांत थी कि पता ही नहीं चला, बिल्कुल गाय है हमारी बेटी.’ माएं अक्सर ऐसी बातें अपने बेटे और बेटियों के बारे में करती हैं.

3_102318052600.jpgफोटो क्रेडिट- Reuters

जिस लड़की पर पैदा होने से पहले ही शांत और चुप रहने का ठप्पा लगा दिया गया हो वो कैसे बताए कि मेरे साथ गलत हुआ है. कैसे अपने घर जाकर बोले कि ’आज कोचिंग से आते समय एक बाइक वाला मेरे स्तनों को छूकर निकल गया. मैं कुछ नहीं कर पाई. सुन्न जो हो गई थी. जब होश आया तो पत्थर उठा कर मारा भी था पर तब तक वो जा चुका था.’ वो डरी हुई है कि कहीं उसका कोचिंग जाना न बंद हो जाए. कहीं उसे घर न बैठा लिया जाए क्योंकि दुनिया तो ऐसी ही है बेटा हम उसे तो नहीं बदल सकते. तुम्हारे ऊपर बंधन लगा सकते हैं.

कैसे बताए कि ‘जिससे प्यार किया उस ही ने मुझे धोखा दे दिया. फायदा नहीं उठाया. जीवन भर के वादे किए. दुनिया जहां के सपने दिखाए लेकिन जब ज़िम्मेदारी उठाने की बात आई तो बीच रास्ते छोड़ कर चला गया.’ ‘हाथ से निकल गई हो तुम. गलती हमारी थी जो तुम पर विश्वास किया. तुम्हें पढ़ाया लिखाया. अब हम किसी को क्या मुंह दिखाएंगे?’ यही जवाब मिलेगा उसे. अरे कोई और अपनी ज़िम्मेदारी से भाग गया इसमें मेरी क्या गलती है? वो आदमी मूर्ख था तो लड़की गलत कैसे हुई?

4_102318052611.jpgफोटो क्रेडिट- Reuters

कैसे बताए कि मुझे पढ़ाने वाला शिक्षक ही मुझ पर घटिया नज़र रखता है. कैसे बताए कि बगल वाले भईया ने कल हाथ पकड़ लिया था मेरा. कैसे बताए कि ये ताऊजी न बिल्कुल अच्छे नहीं हैं. मुझे छूते हैं. मेरा मुंह दबाते हैं. कैसे बताए कि वो दुकान वाला टॉफी देने के बहाने हाथ पकड़ लेता है. कैसे बताए कि कॉलेज के लड़के ताने देते हैं. भद्दे कमेंट्स करते हैं. कैसे बताए कि नौकरी देने से पहले इंटरव्यू में मेरा हुलिया देखा गया था. कैसे बताए कि बॉस जब मर्ज़ी आए कहीं भी छूकर निकल जाता है. जबरदस्ती करता है. नौकरी चली गई तो? कौन विश्वास करेगा? वो तो इतना बड़ा आदमी है. किताबें छप चुकी हैं उसकी. उसका इतना नाम है, रुतबा है. लोग तो यही कहेंगे तुमने ही कुछ किया होगा.

आज जब पूरी दुनिया में इतना बड़ा मूवमेंट चल रहा है, हर जगह औरतें अपनी आप बीती बता रही हैं, तब आप उन पर सवाल खड़े कर रहे हो तो पहले कैसे बताती वों?

5_102318052645.jpgफोटो क्रेडिट- Reuters

आप सीता को भगवान मानते हो न. जब उन्हें अपनी पवित्रता साबित करने के लिए अग्निपरीक्षा देनी पड़ी तो आप कैसे उम्मीद करते हो कि कोई आम लड़की खड़ी होकर बोल देती और लोग उस पर विश्वास कर लेते. जब बिना गलती के भी अहिल्या को पत्थर का बना दिया गया तो आप कैसे उम्मीद करते हो कि औरतों को जज नहीं किया जाता. जहां प्यार नहीं अपनाने पर लड़की पर एसिड फेंक दिया जाता है वहां आप उम्मीद करते हो कि वो किसी बॉस, किसी शक्तिशाली आदमी के खिलाफ बोलती और शांति से अपना जीवन जी पाती? जहां लड़की, इन्सान नहीं बल्कि बोझ है, दूसरे घर की लक्ष्मी, पराया धन है वहां आप उम्मीद करते हो कि उसके घरवाले उस पर भरोसा कर के उसका साथ देते?

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इस सबमें किसी व्यक्ति या समाज की पूरी तरह गलती नहीं है. गलती है हमारी सोच में. जो बिना किसी के पढ़ाए-सिखाए हम सीखते जाते हैं. ऐसा इसलिए कि जो होता आ रहा है हम उसे बदलना ही नहीं चाहते. हम मान कर बैठ गए हैं कि आदमी औरत से बढ़कर है. बस अब चाहे जो हो जाए वो बढ़कर ही रहेगा. जैसे कोई दलित राष्ट्रपति बनने पर भी दलित ही रहता है न बिल्कुल वैसे. मुक्काबाज़ फिल्म का वो डायलॉग तो आपको याद ही होगा- ‘जीत भी गए तो क्या, रहोगे तो हरिजन ही न’. यही हालत है. प्रधानमंत्री भी बन गईं तो क्या, रहोगी तो औरत ही न.

ये सोच ही आज हमें औरतों पर शक करने क मजबूर कर रही है. ये सोच ही आज हमारे सामने खड़ी है और कह रही है औरतें पागल हो गई हैं. बंद करो ये बकवास. ये बकवास नहीं है. न ही कोई ढोंग है. ये बदलाव की शुरूआत है. और सिर्फ औरतों के लिए नहीं. आदमियों के लिए भी.

7_102318052716.jpgफोटो क्रेडिट- Reuters

आदमियों के साथ भी गलत हुआ है. कई औरतों ने अपने पद का फायदा उठा कर आदमियों का उत्पीड़न भी किया होगा. मैं मानती हूं ये बात लेकिन आप भी इस बात से इनकार नहीं कर पाएंगे कि महिलाओं के उत्पीड़न की तुलना में वो बहुत ही कम है. कम होने का ये मतलब नहीं कि उनका शोषण हुआ और उन्हें चुप रहना चाहिए. नहीं, बिल्कुल नहीं. आदमियों को भी सामने आना चाहिए. पूरी हिम्मत और बिना डरे बोलना चाहिए कि मेरे साथ गलत हुआ. जब #WhyIdidn’treport चला था तब औरतों के साथ-साथ पुरुषों ने भी बताया था कि उनके साथ हुए उत्पीड़न की शिकायत वो क्यों नहीं कर पाए थे? हज़ारों महिलाओं की तरह पुरुष भी सामने आए थे और उन्होंने अपने साथ हुए दुर्व्यवहार और शोषण का ज़िक्र किया था. 

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ये एक मौका है जब हर इन्सान अपने डर से, सच न बोल पाने की झुंझलाहट से बाहर निकल सकता है. हो सकता है कि ये शुरूआत हो एक नए कदम की. जहां कोई भी मूवमेंट, कोई भी जगह लैंगिक भेदभाव के आधार पर न देखी जाए. जहां हर जगह, हर समय हर किसी की बात सुनी जाए. हर किसी को अपनी बात रखने का हक हो. जहां सब बराबर हों. कोई छोटा या बड़ा नहीं. जहां औरतें और आदमी अलग-अलग पंक्ति में नहीं एक साथ खड़े हों. जहां औरतें और आदमी एक-दूसरे के खिलाफ नहीं एक-दूसरे के समर्थन में खड़े हों. हो सकता है क्योंकि होने को, तो कुछ भी हो सकता है.

सालों तक सच न बोल पाने के डर ने हम सबको बहुत डराया है. अब इस डर को हराना है. मत शक करिए लोगों पर. विश्वास कीजिए. सुनिए कि लोग इतने सालों तक चुप क्यों थे? सुनिए कि उन्हें किस भयावह घटना की याद के साथ सालों तक जीना पड़ा है? सुनिए कि किस एक क्षण ने उनके पूरे जीवन को खा लिया? किस व्यक्ति ने उनके आत्मसम्मान को चकनाचूर कर दिया. क्योंकि सच बोलने की कुलबुलाहट को दबाना बड़ा मुश्किल है. चुप रहना कोई आसान काम नहीं है, बड़ी मेहनत लगती है जनाब!

 

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