बच्चों से रेप को लेकर बना ये कानून कश्मीर में मान्य क्यों नहीं है?

कठुआ गैंगरेप और मर्डर केस में नहीं लागू हुआ था POCSO एक्ट

कुसुम लता कुसुम लता
जून 11, 2019
प्रतीकात्मक फोटो

कठुआ गैंगरेप और मर्डर केस. जम्मू-कश्मीर में पिछले साल सामने आए इस मामले ने पूरे देश को झकझोर दिया था. 8 साल की बच्ची से चार दिनों तक गैंगरेप हुआ. बाद में उसे मारकर जंगल में फेंक दिया गया. इस मामले में फैसला आ चुका है.

पठानकोट की अदालत ने 8 में से छह आरोपियों को दोषी करार दिया है. एक को सभी आरोपों से बरी कर दिया है. वहीं, एक नाबालिग आरोपी के खिलाफ अभी सुनवाई शुरू नहीं हुई है.

जो लोग दोषी पाए गए हैं उनमें सांजी राम, परवेश कुमार और स्पेशल पुलिस ऑफिसर दीपक खजूरिया को उम्रकैद हुई है. ये तीनों रनबीर पीनल कोड (RPC) की धाराओं 376 (रेप), 120 बी (क्रिमिनल कॉन्स्पिरेसी), 302 (मर्डर) और 201 (सबूतों से छेड़छाड़) के तहत दोषी पाए गए हैं. इनके अलावा तीन पुलिसवालों को आरपीसी की धारा 201 के तहत दोषी पाया गया है. उन्हें पांच साल की सजा हुई है.

इस मामले में पीड़िता 8 साल की मासूम बच्ची थी. लेकिन इस मामले में POCSO एक्ट के तहत कार्रवाई नहीं हुई. POCSO यानी बच्चों को यौन शोषण से बचाने वाला कानून. सोमवार के फैसले में इस एक्ट का कहीं पर भी जिक्र नहीं था. सोशल मीडिया पर कई लोगों ने सवाल किया कि पॉक्सो एक्ट नहीं लगा था क्या? मेट्रो में ट्रैवल कर रही एक लड़की ने पूछा कि इतनी छोटी बच्ची से गैंगरेप हुआ है, फांसी क्यों नहीं मिली इन लोगों को?

इन सवालों का जवाब ये है कि इस मामले में वाकई पॉक्सो एक्ट नहीं लगाया गया था. इसके पीछे एक बड़ी वजह है.

कठुआ गैंगरेप मर्डर मामले का मास्टरमाइंड सांजी रामकठुआ गैंगरेप मर्डर मामले का मास्टरमाइंड सांजी राम

पूरे देश में क्रिमिनल मामलों में इंडियन पीनल कोड यानी IPC की धाराएं लगती हैं. जबकि जम्मू-कश्मीर में रनबीर पीनल कोड यानी RPC की धाराएं लगती हैं. अब आप पूछेंगे ऐसा क्यों? क्योंकि आर्टिकल 370. इस आर्टिकल के तहत भारतीय संविधान में जम्मू-कश्मीर को स्पेशल स्टेटस मिला है. ये जानकारी हमें दी सुप्रीम कोर्ट की वकील प्रज्ञा पारिजात सिंह ने दी.

प्रज्ञा ने हमें बताया कि 1932 में रनबीर पीनल कोड कश्मीर में लागू हुआ था. इसका नाम वहां के महाराजा के नाम पर रखा गया था. कई मामलों में इसके प्रावधान आईपीसी की तरह ही हैं लेकिन कई मामलों में काफी अलग है. उन्होंने बताया कि आईपीसी में होने वाले सुधार और संशोधन आरपीसी में लागू नहीं होते हैं.

उन्होंने बताया कि पॉक्सो एक्ट कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू है. इस वजह से कठुआ गैंगरेप मामले में दोषियों पर पॉक्सो के तहत कार्रवाई नहीं हुई.

पिछले साल कठुआ केस सामने आने के बाद जम्मू-कश्मीर में पॉक्सो जितने मजबूत कानून बनाने की मांग उठी थी. तब राज्य में पीडीपी-बीजेपी के गठबंधन वाली सरकार थी. महबूबा मुफ्ती मुख्यमंत्री थीं. अप्रैल में इस सरकार ने एक ऑर्डिनेंस यानी अध्यादेश पास किया. इसमें पॉक्सो के जैसे ही प्रावधान थे.

कठुआ गैंगरेप-मर्डर केस के विरोध में देशभर में कई प्रोटेस्ट हुए थेकठुआ गैंगरेप-मर्डर केस के विरोध में देशभर में कई प्रोटेस्ट हुए थे

एक नजर उन प्रावधानों पर-

- 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से रेप के दोषियों को उम्रकैद या फांसी की सजा. यहां उम्रकैद से मतलब मरते दम तक की जेल.

- मामलों की फास्टट्रैक जांच होगी.

- महिला ऑफिसर्स ऐसे मामलों की जांच करेंगी और जांच पूरी करने के लिए दो महीने का टाइम फ्रेम

- ट्रायल के पूरा होने के लिए छह महीने का वक्त.

- मामले की पूरी सुनवाई कैमरे में होगी. जमानत को लेकर कड़े प्रावधान

कठुआ केस क्या था इस पर एक क्विक जानकारी

10 जनवरी, 2018 को बकरवाल समुदाय की 8 साल की एक बच्ची गायब हो गई. 12 जनवरी को गुमशुदगी की रिपोर्ट उसके पिता ने लिखा. बच्ची को गांव के ही कुछ लोगों ने मंदिर में बंधक बनाकर रखा था. चार दिनों तक उसे नशे की गोलियां देते रहे और उसके साथ रेप होता रहा. इसके बाद उसकी हत्या कर दी गई और बॉडी जंगल में फेंक दी गई. बच्ची के किडनैपिंग, गैंगरेप और मर्डर का पूरा प्लान रसाना गांव के प्रधान सांजी राम ने बनाया था. उसका मकसद था कि ऐसा करके वो बकरवाल समुदाय के लोगों को सबक सिखाएगा. और वो लोग डरकर गांव छोड़कर भाग जाएंगे. मामला अप्रैल, 2018 में सुर्खियों में आया जब जम्मू कोर्ट में वकीलों ने क्राइम ब्रांच को चार्जशीट फाइल करने से रोका. काफी हंगामा हुआ और चार्जशीट बाहर आ गई. चार्जशीट में हुए खुलासे बेहद डिस्टर्बिंग थे. मामले ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खींचा था.

अब, घटना के डेढ़ साल बाद इस मामले में फैसला आ चुका है. फैसला बच्ची के पक्ष में आया है लेकिन दोषियों के लिए फांसी की सजा की उम्मीद कर रहे उसके पेरेंट्स उम्रकैद की सजा से संतुष्ट नहीं हैं. वहीं, नाबालिग आरोपी के खिलाफ अभी तक ट्रायल शुरू नहीं हो सका है.

क्या रेप, हत्या, बच्चों से यौन शोषण जैसे गंभीर मामलों में कश्मीर में भी पूरे देश की तरह ही कानून लागू होने चाहिए?

 

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