स्कूल के ब्लैकबोर्ड हरे क्यों होते हैं?
नाम में ही 'ब्लैक' है तो रंग हरा क्यों?
साल 2001. पांच साल की उम्र में मैंने पहली बार क्लासरूम में क़दम रखा था. मुझे याद है मैं कितनी डरी हुई थी उस दिन. सब कुछ कितना अलग, कितना नया था मेरे लिए. सबसे अच्छे से याद है टीचर के टेबल के पीछे लगा हुआ बड़ा सा हरे रंग का बोर्ड जिस पर वे चॉक से लिखती थीं. समझ नहीं आता था कि यह बोर्ड हरा है तो इसे ‘ब्लैकबोर्ड’ क्यों कहते हैं. स्कूल की चौखट लांघकर कॉलेज आई, तब भी यह बोर्ड हरा का हरा रह गया. सच में, स्कूल और कॉलेज में इस्तेमाल होनेवाला यह ब्लैकबोर्ड आख़िर हरा क्यों होता है?
जवाब है अमेरिकी लेखक लूइस बज़्बी की किताब ‘ब्लैकबोर्ड: अ पर्सनल हिस्ट्री आफ़ द क्लासरूम’ में. बात यह है कि आज से कुछ 200 साल पहले ब्लैकबोर्ड ब्लैक ही होते थे. जिन ब्लैकबोर्ड्स को हम क्लास के सामने टंगे हुए देखते आए हैं, वे उनसे बहुत छोटे थे और छात्रों के निजी इस्तेमाल के लिए होते थे. यह काली स्लेट से बने होते थे और इन पर सफ़ेद चॉक से लिखा जाता था. करीब 1815 तक इनका आकार बड़ा होता गया. स्लेट की जगह यह लकड़ी से बनाए जाने लगे और इन पर काला रंग किया गया. इन्हें ऐसी जगह टांगा गया जहां सब छात्र इन्हें पढ़ सकें.
फिर इन्हें बनाने में नई तकनीकें आती रहीं. 1930 के दशक में स्टील बेस पर बनाए गए एक नए एनामेल पेंट का आविष्कार हुआ. यह पेंट हरे रंग का था. ब्लैकबोर्ड रंग करने में इसका इस्तेमाल होने लगा तो देखा गया इसके कई फ़ायदे हैं. इन पर लिखा पढ़ने में काले ब्लैकबोर्ड्स के मुक़ाबले आंखों पर ज़ोर कम पड़ता है. हरा रंग देखने से आंखों और मन को आराम मिलता है. जिन छात्रों और शिक्षकों की आंखें कमज़ोर हैं, यह उनके लिए बहुत फ़ायदेमंद हैं.
यही वजह है ब्लैकबोर्ड्स के हरे होने की. उभरती टेक्नॉलजीज़. ब्लैकबोर्ड का नाम फिर भी ‘ब्लैक’बोर्ड ही रह गया क्योंकि ‘ग्रीन बोर्ड’ में शायद वह बात नहीं.
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