सोनी सोरी: कोई माओवादियों के साथ नाम जोड़ता है, कोई हीरो मानता है, पर ये एक्टिविस्ट हैं कौन?
क्या है सोनी सोरी की कहानी.
छत्तीसगढ़ में बस्तर नाम का एक जिला है. उसके पास है दंतेवाड़ा. इस का नाम आपको सुना सुना लग रहा होगा. लगेगा भी. यहां नक्सलवादी हमलों की खबरें अक्सर आती रहती हैं. अभी हाल में ही इसी जगह की एक लड़की नम्रता जैन ख़बरों में आई थी. वजह? UPSC यानी सिविल सर्विसेज के एग्जाम में 12वीं रैंक आई थी उसकी. लेकिन इसके पहले से ये जगह ख़बरों में बनी रही है. और इसी के साथ एक नाम बना रहा है , और वो है सोनी सोरी का.
कौन हैं सोनी सोरी?
तस्वीर: पीटीआई
दंतेवाड़ा के समेली गांव में टीचर थीं. इनके ऊपर माओवादियों की इनफॉर्मर होने का आरोप लगा था. छत्तीसगढ़ पुलिस ने आरोप लगाए कि सोनी माओवादियों के साथ मिलकर एक्सटोर्शन रैकेट चलाती थीं. विकिलीक्स में ये खबर आई थी कि एसार ग्रुप माओवादियों को पैसे देता है ताकि उनके बिजनेस को वो लोग चलने दें, बिना किसी पंगे के. मामला चला. कोर्ट में गया. साल था 2010. सोनी सोरी को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार करके छतीसगढ़ पुलिस के हवाले कर दिया.
यहीं पर सोनी सोरी ने आरोप लगाए कि पुलिस कस्टडी में उनका यौन शोषण किया गया. उन्हें भद्दी भद्दी गालियां दी गईं. उनके प्राइवेट पार्ट्स में पत्थर भर दिए गए. इंडियन एक्सप्रेस ने जब इस पर रिपोर्ट की, तो उसमें बताया गया कि सरकारी डॉक्टरों ने एक्स रे के बाद भी उन पत्थरों को नोटिस नहीं किया. लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट की बिठाई गई इन्क्वायरी में साबित हुआ कि यौन शोषण किया गया था.
तस्वीर: विकिमीडिया
उस समय केंद्र में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली UPA सरकार थी. 250 के करीब एक्टिविस्ट्स और लेखकों ने अर्जी लगाई कि सोनी सोरी के मामले में ध्यान दिया जाए. ये कि उनकी तबियत जेल में बिगड़ती जा रही है और उनको मेडिकल अटेंशन की ज़रूरत है. इसके बाद सोनी को एम्स में ले जाया गया. वहां पता चला कि उनके प्राइवेट पार्ट्स में फोड़े निकल आए हैं. ये कि उनकी तबियत खराब होती जा रही है, और ये भी कि उनको पहले ही भर्ती कर देना चाहिए था.
2014 में बेल मिली. आम आदमी पार्टी जॉइन की. बस्तर से टिकट मिला. लेकिन बीजेपी के कैंडिडेट दिनेश कश्यप के सामने हार गईं. 2016 में उनके ऊपर केमिकल से हमला हुआ. इस बात को लेकर लोगों ने ये भी कहा कि वो अटेंशन पाने के लिए ये सब कर रही हैं. डॉक्टर्स हमले में इस्तेमाल हुए केमिकल सब्सटेंस की पहचान नहीं कर पाए.
तस्वीर: पीटीआई
ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क लिखता है कि सोनी सोरी का मामला माओवादियों और सरकार के बीच में पिस रहे आदिवासियों का मामला है. राहुल पंडिता ने ओपन मैगजीन में लिखा था कि सोनी के बारे में फैलाई गई कहानियां झूठ का एक जटिल जंजाल हैं जिनको सिस्टेमैटिक तरीके से स्टेट मशीनरी द्वारा फैलाया गया है, ऐसा मानने के काफी कारण हैं. इंडियन एक्सप्रेस में लिखा गया कि सोनी पुलिस और माओवादियों द्वारा शोषित हुई, और अब उनके एक्टिविस्ट दोस्त भी यही कर रहे हैं.
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