क्या होता है 'टोकोफ़ोबिया', जिसमें औरत बच्चा पैदा करने से बहुत डरती है

ये कोई आम डर नहीं कि बातचीत भर से सही हो जाए.

सरवत फ़ातिमा सरवत फ़ातिमा
सितंबर 19, 2018
टोकोफ़ोबिया का इलाज मुमकिन है. फ़ोटो कर्टसी: Pixabay

सुप्रिया की शादी को पांच साल हो गए थे. उसके ससुराल वाले उसपर बच्चा पैदा करने के लिए ज़ोर देने लगे थे. अब तो उसके मम्मी-पापा भी रोज़ फ़ोन कर के एक ही सवाल पूछते थे. ऐसा नहीं था कि सुप्रिया को बच्चे पसंद नहीं थे. या वो बच्चा पैदा नहीं करना चाहती थी. सच ये था कि उसे प्रेगनेंसी से बहुत ज़्यादा डर लगता था. इतना ज़्यादा कि प्रेगनेंसी के बारे में सोचते ही उसे चक्कर आने लगते थे. उसकी धड़कन बढ़ जाती थी. एक दिन वो और उसके पति सुबोध एक डॉक्टर से मिलने गए. सुप्रिया ने डॉक्टर को खुलकर सारी बातें बताईं. उसके कुछ टेस्ट भी हुए. पता चला उसे टोकोफ़ोबिया है.

क्या होता है टोकोफ़ोबिया?

टोकोफ़ोबिया को सरल शब्दों में समझें तो बच्चा पैदा करने का फ़ोबिया. कुछ औरतों में ये सिर्फ़ डर तक सिमित नहीं रहता. ये बच्चा न पैदा करने की इच्छा से लेकर प्रेगनेंसी से नफ़रत करने की हद तक होता है.

और ये कोई अजूबे वाली बात नहीं है. ये कई औरतों को होता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक़, ये फ़ोबिया हर 100 में से 14 औरतों को होता है. कुछ रिपोर्ट्स तो यहां तक कहते हैं कि 22% औरतें इस फ़ोबिया से ग्रसित होती हैं. इसके बारे में थोड़ा तफ़सील से समझने के लिए हमने डॉक्टर आशा शर्मा से बात की. वो रॉकलैंड हॉस्पिटल दिल्ली में एक स्त्रीरोग विशेषज्ञ हैं.

टोकोफ़ोबिया को सरल शब्दों में समझें तो बच्चा पैदा करने का फ़ोबिया. फ़ोटो कर्टसी: Pixabay टोकोफ़ोबिया को सरल शब्दों में समझें तो बच्चा पैदा करने का फ़ोबिया. फ़ोटो कर्टसी: Pixabay

टोकोफ़ोबिया दो तरह के होते हैं

ये फ़ोबिया दो तरह का होता है. प्राइमरी और सेकेंडरी. प्राइमरी टोकोफ़ोबिया उन औरतों में होता है जिन्होंने कभी भी बच्चा पैदा नहीं किया है. इन औरतों में बच्चा पैदा करने का डर उनके पास्ट में हुए किसी हादसे से जुड़ा होता है. कोई बुरी याद. जैसे यौन उत्पीड़न. या फिर इन औरतों ने बचपन में प्रेगनेंसी और डिलीवरी से जुड़ी कुछ बहुत डरावनी कहानियां सुनी होती हैं. या कुछ ऐसा देखा होता है जिसमें प्रेगनेंसी को बहुत डरावना और शर्मनाक दिखाया गया होता है.

अब आते हैं सेकेंडरी टोकोफ़ोबिया पर. ये उन औरतों को होता है जो बच्चा पैदा कर चुकी होती हैं. पर उनकी डिलीवरी इतनी दर्दनाक और डरावनी रही होती है कि उन्हें फिर से मां बनने में बहुत ज़्यादा डर लगता है.

एक बात है. हो सकता है ये फ़ोबिया किसी औरत को ज़्यादा असर करे और किसी को थोड़ा कम. जिन औरतों को डिप्रेशन की दिक्कत होती है, टोकोफ़ोबिया उनको ज़्यादा असर करता है.

ये फ़ोबिया दो तरह का होता है. प्राइमरी और सेकेंडरी. फ़ोटो कर्टसी: Pixabay ये फ़ोबिया दो तरह का होता है. प्राइमरी और सेकेंडरी. फ़ोटो कर्टसी: Pixabay

किसको होता है टोकोफ़ोबिया

किसी औरत की बैकग्राउंड तय नहीं कर सकती कि उसे टोकोफ़ोबिया हो सकता है या नहीं. पर जिन औरतों को मानसिक तकलीफें होती हैं, टोकोफ़ोबिया उनको होने के चांसेस होते हैं. ये औरतें या तो कभी भी प्रेगनेंट नहीं होना चाहती. पर अगर वो गलती से प्रेगनेंट हो गईं तो उन्हें बच्चा गिरवाना ज़्यादा ठीक लगता है. डॉक्टर आशा शर्मा के मुताबिक जिन औरतों को टोकोफ़ोबिया होता है पर वो एबॉर्शन नहीं करवातीं, वो नॉर्मल डिलीवरी पसंद नहीं करतीं. वो चाहती हैं बच्चा ऑपरेशन से हो.

किसी औरत की बैकग्राउंड तय नहीं कर सकती कि उसे टोकोफ़ोबिया हो सकता है या नहीं. फ़ोटो कर्टसी: Pixabay किसी औरत की बैकग्राउंड तय नहीं कर सकती कि उसे टोकोफ़ोबिया हो सकता है या नहीं. फ़ोटो कर्टसी: Pixabay

क्या होता है जब टोकोफ़ोबिया से ग्रसित औरत प्रेगनेंट हो जाती है

टोकोफ़ोबिया की वजह से उनको प्रेगनेंसी के दौरान भी काफ़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. ख़ासतौर पर जब उनका पेट बड़ने लगता है और उनको बच्चे का मूवमेंट पेट में महसूस होता है. उस वक़्त उनको एंग्जायटी होना, रात में नींद न आना, भूख न लगना, और पोस्टपारटम डिप्रेशन यानी बच्चा पैदा होने के बाद डिप्रेशन होता है.

यहीं नहीं, टोकोफ़ोबिया की वजह से औरतों को लेबर पेन भी लंबा चलता है. इसलिए उन्हें 'एपिड्यूरल' नाम का इंजेक्शन दिया जाता है. इससे लेबर पेन पर काबू पाया जाता है. साथ ही बच्चे को मां के शरीर से बाहर लाने के लिए एक वैक्यूम-नुमा चीज़ का इस्तेमाल किया जाता है. पर उससे मां और बच्चे दोनों पर असर पड़ता है.

डिलीवरी के बाद भी टोकोफ़ोबिया से ग्रसित मां अपने बच्चे के साथ वो रिश्ता नहीं बना पाती जो आमतौर पर समाज को मां से अपेक्षित होता है.

टोकोफ़ोबिया की वजह से उनको प्रेगनेंसी के दौरान भी काफ़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. फ़ोटो कर्टसी: Pixabay टोकोफ़ोबिया की वजह से उनको प्रेगनेंसी के दौरान भी काफ़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. फ़ोटो कर्टसी: Pixabay

इसका इलाज क्या है?

टोकोफ़ोबिया का इलाज मुमकिन है. ये कोई बड़ी बीमारी नहीं बल्कि एक मानसिक अवस्था है. इसके लिए महिला को काउंसलिंग की ज़रुरत होती है. उसमें उन्हें लेबर पेन और प्रेगनेंसी के बारे में तफ़सील से जानकारी दी जाती है. साथ ही उन औरतें से भी बात कराई जाती है जिन्होंने बच्चा पैदा किया है. वो अपने अनुभव शेयर करती हैं. डॉक्टर की सलाह से कई बार औरतें इस डर से छुटकारा पा लेती हैं. 

पर अगर किसी महिला को सारे इलाज के बावजूद भी टोकोफ़ोबिया से छुटकारा नहीं मिलता, तो बेहतर है मां बनने के लिए बच्चा अडॉप्ट कर ले. अगर कोई औरत मां बनना चाहती है तो उसके अब सरोगेसी का भी विकल्प उपलब्ध है.

हां, ये भी जरूरी नहीं कि हर औरत जो बच्चा नहीं कर रही है वो किसी तरह  फोबिया या बीमारी से ग्रसित हो. मां बनना चॉइस का मसला है और हर औरत को हक़ है कि वो बच्चा करे या न करे. और करे तो किस तरह की डिलीवरी करवाना चाहे.  

 

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