सर को जकड़ लेने वाला भयंकर दर्द कब कहलाता है 'माइग्रेन'?
क्यों होती है ये दर्दनाक बीमारी और इससे कैसे बचें.
ईश्वर की प्रिय संतान होछुटपन से ही मां मुझसे कहती आई हैंहोना तो यह थाकि कबाड़ में मिले उस दीपक को धरती पर घिसते हीधुएं के पीछे से प्रकट हो जाता कोई देवदूत और मेरे आदेशका दास बन जाता
हुआ यह कि पत्थर पर रगड़ खाने से कांसे की देह पीड़ा से कराह उठीऐन उसी दिन कान के पीछे उभर आई एक हरी बेलकोई रंग होता ‘माइग्रेन’ का तो हरा ही होता
बाबुषा कोहली की यह कविता पढ़ने तक यक़ीन नहीं होता कि दर्द को भी इतने ख़ूबसूरत अंदाज़ में बखाना जा सकता है. एक दर्दनाक बीमारी को बाबुषा ने एक बेल बताया है, जो कान के पीछे उगती और फैलती रहती है. उनके मुताबिक़ माइग्रेन से होने वाले इस दर्द का अगर कोई रंग होता तो वह बेशक़ हरा होता. क्योंकि यह दर्द ताज़ा है. बढ़ता और रहता है. मगर लेखिका जिस तकलीफ़ से जूझ रहीं हैं, वह माइग्रेन आख़िर है क्या?
माइग्रेन क्या है
माइग्रेन सिरदर्द की बीमारी है. इसमें सिर का एक हिस्सा बहुत तेज़ दुखता है. यह दर्द या तो लम्बे समय तक रहता है या बीच बीच में आता-जाता रहता है. माइग्रेन का दौरा 2 से 72 घंटे तक चल सकता है. फ़िज़िकल ऐक्टिविटी से दर्द बढ़ जाता है. सिरदर्द के साथ साथ उबकाई, उल्टी, और रोशनी, आवाज़ या गंधों से ऐलर्जी भी कॉमन हैं. माइग्रेन के एक-तिहाई रोगियों को सिरदर्द से पहले कुछ समय के लिए देखने में तकलीफ़ होती है, जिसे ‘औरा’ (aura) कहते हैं. कभी-कभी औरा बिना सिरदर्द के भी आता है.
लंदन के किंग्स कॉलेज में न्यूरॉलजी के प्रोफ़ेसर पीटर गोड्ज़बी के शब्दों में, ‘माइग्रेन एक जेनेटिक (यानी पीढ़ी दर पीढ़ी ट्रांसफर होने वाली) बीमारी है जिसमें दिमाग़ में डिस्टर्बन्स के कारण सिर में दर्द होता है. जब दिमाग बाहर से आनेवाली जानकारी को ठीक से प्रॉसेस नहीं कर पाता, यह उसका नतीजा होता है. यह समस्या नींद, खाना-पीना जैसे बाहरी कारणों से प्रभावित भी हो सकता है.’
दुनियाभर में क़रीब 15% लोग माइग्रेन से पीड़ित होते हैं. यह बीमारी पुरुषों से ज़्यादा महिलाओं को होती है. माइग्रेन के लक्षण 15 से 24 साल की उम्र में नज़र आने लगते हैं और 35 से 45 साल के लोगों को यह सबसे ज़्यादा अफ़ेक्ट करती है. 7 से 15 साल के बीच लगभग 100 में से 4 बच्चों में माइग्रेन के लक्षण देखे गए हैं.
औरतों में माइग्रेन की शुरुआत 'प्यूबर्टी' के दौरान होती है. यानी तब, जब उनके हॉर्मोन्स उन्हें बचपन से जवानी की ओर ले जा रहे होते हैं. इस उम्र में स्तन विकसित हो रहे होते हैं, पीरियड चालू हो जाते हैं. माइग्रेन की तकलीफ मेनोपॉज़ (यानी हमेशा के लिए पीरियड ख़त्म होने वाले हों, तब) के आसपास बढ़ जाती है. मगर मेनोपॉज़ के बाद सिम्प्टम्ज़ अपने आप ही सुलझने लगते हैं. औरतों में माइग्रेन ज़्यादातर बिना औरा का होता है. मगर मर्दों में दोनों तरह के माइग्रेन देखे गए हैं.
पश्चिमी देशों के मुक़ाबले एशियाई और अफ़्रीकी देशों में माइग्रेन बहुत कम होता है. यहाँ आबादी के 1.4% से 2.2% को ही माइग्रेन से भुगतना पड़ता है.
माइग्रेन के कारण
माइग्रेन का मुख्य कारण अभी भी जाना नहीं गया है. इसकी वजह जेनेटिक भी हो सकती है या आपके आस-पास की चीजों से जुडी भी हो सकती है.
दो-तिहाई केसेज़ में देखा गया है कि मरीज़ के परिवार में माइग्रेन की हिस्ट्री रही है.
जुड़वा बच्चों पर की गई स्टडीज़ भी बतातीं हैं कि एक बच्चे को माइग्रेन हो तो दूसरे बच्चे को होने की संभावना बढ़ जाती है.
आधे से ज्यादा मरीज़ों को माइग्रेन के साथ मानसिक तनाव से जूझता भी पाया गया है.
माइग्रेन का संबंध पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर (यानी किसी चीज के सदमे से बिगड़ी दिमागी हालत) से निकाला गया है. माइग्रेन के कारण हॉर्मोनल भी हो सकते हैं क्योंकि पीरीयड़्स, प्रेग्नन्सी, कॉंट्रसेप्टिव यूज़ के समय इसके दौरे ज़्यादा पड़ते हैं.
कुछ क़िस्म के भोजन को कई मरीज़ों ने माइग्रेन का ट्रिगर बताया है. हालांकि इस पर कोई ठोस सबूत नहीं है. इसके अलावा लाइटिंग और हवा की क्वालिटी जैसे परिवेशिक फ़ैक्टर्ज़ को भी माइग्रेन के कारणों में गिना गया है.
कैसे करें इलाज
माइग्रेन के लिए दो तरह की दवाएं होतीं हैं:
1. अबॉर्टिव (जो माइग्रेन को भगाने में मदद करें), और 2. प्रिवेंटिव (जो माइग्रेन होने से रोकें).
ध्यान रखिए, अपने डॉक्टर की सलाह के बिना किसी भी तरह की दवा नहीं लेनी चाहिए.
माइग्रेन को क़ाबू में रखने के लिए यह तरीक़े आज़माए जा सकते हैं:
कैफ़ीन-युक्त कोई ड्रिंक पियें. गरम चाय या कॉफ़ी से माइग्रेन को उसके शुरुआती स्टेजेज़ में क़ाबू में रखा जा सकता है. यह पैरसीटमॉल जैसी दवाओं का असर भी बढ़ा सकते हैं. मगर अतिरिक्त मात्रा में कैफ़ीन लेना हानिकारक भी हो सकता है.
खाने-पीने का ध्यान रखें. हर रोज़ टाइम पर खाना खाएं. मील्ज़ स्किप न करें. जो कुछ भी खाते हों, एक डायरी में नोट करते रहिए. अगर आपको लग रहा है किसी विशेष खाने की वजह से आपको तकलीफ़ हो रही है तो उसे छोड़ दें.
कुछ देर अंधेरे में रहें. तेज़ रोशनी माइग्रेन का दर्द बढ़ा सकती है. कुछ देर कमरे की लाइटें बंद कर दें. हो सके तो सो जाएं.
डिस्ट्रैक्शन कम कीजिए. ज़्यादा देर तक फ़ोन न देखें. बेडरूम को सिर्फ़ सोने के लिए रखें और वहां लैपटॉप, टीवी, फ़ोन जैसे गैजेट्स यूज़ न करें.
एक्सरसाइज़ करें. रोज़ थोड़ा वक़्त निकालकर स्विमिंग, स्किपिंग, साइकल चलाने या स्पोर्ट्स खेलने जैसी ऐक्टिविटीज़ करें.
अगर आपको लगता है आपको माइग्रेन है तो अपने डॉक्टर से सम्पर्क करें और उनसे सलाह लें. माइग्रेन एक बीमारी है मगर इस पर क़ाबू रखा जा सकता है अगर डॉक्टर्ज़ से सलाह ली जाए और अपने दैनिक जीवन में कुछ बदलाव किए जाएं.
यह स्टोरी ऑडनारी के साथ इंटर्न्शिप करती ईशा ने लिखी है.
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