मैनस्प्लेनिंग: पुरुषों की एक प्रॉब्लम जो शीघ्रपतन से भी ज्यादा खतरनाक है
और भुगतना लड़कियों को पड़ता है.
आपके साथ कभी ऐसा हुआ है? आप किसी मर्द से किसी मुद्दे पर बहस कर रहीं हैं. बहस के दौरान आप महसूस करती हैं कि आपको अपने विचार व्यक्त करने का मौक़ा नहीं दिया जा रहा. वह बीच बीच में आपकी बात काट रहा है. आपके व्यूज़ को अनसुना कर रहा है. ऐसे बिहेव कर रहा है जैसे वह इस मुद्दे पर आपसे ज़्यादा जानता हो, जबकि हक़ीक़त शायद इसका उल्टी है. आप चिढ़ जाती हैं और सोचती हैं कि यह अपने आपको समझता क्या है? क्या इसे लगता है मैं बेवक़ूफ़ हूं? या कोई छोटी बच्ची जिसे चीज़ों की समझ नहीं?
अगर आपके साथ ऐसा हुआ है तो आप अकेली नहीं हैं.
- 2012 में अमेरिका के प्रिन्सटन विश्वविद्यालय और ब्राईहैम यंग विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर्ज़ ने एक रीसर्च स्टडी की थी. कॉर्पोरेट सेटिंग्स पर की गई इस स्टडी से पता चला कि बिज़नेस मीटिंग्स में पुरुषों का योगदान लगभग 75% होता है और महिलाओं का सिर्फ़ 25%.
- 2004 में हार्वर्ड लॉ स्कूल की एक स्टडी भी बताती है कि एक आम क्लासरुम में छात्र छात्राओं से 50% ज़्यादा और दो गुना ज़्यादा देर तक बोलते हैं.
- 1998 में कैलिफ़ॉर्न्या विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग की कैंडस वेस्ट ने अस्पतालों में एक स्टडी की थी. उन्होंने देखा कि मरीज़ अक्सर डॉक्टरों को बीच में टोकते हुए ख़ुद ज्ञानी होने का दिखावा करते हैं. मगर उनके ऐसा करने के चांसेज़ दुगने हो जाते हैं अगर डॉक्टर महिला हो.
इन सारी स्टडीज़ से एक बात ज़ाहिर होती है कि औरतें भले ही हर उस फ़ील्ड में सक्रिय हों, जिस पर कभी मर्दों का डॉमिनेंस था, पर उनकी आवाज़ दबाने की कोशिश आज भी की जाती है. मर्दों की आदत सी हो गई है औरतों के बीच में बोलना, उनकी बुद्धि या क़ाबिलियत पर शक़ करना और उनके विचारों और अनुभवों को लाइटली लेना. सिर्फ़ ऐकडेमिक मुद्दों पर ही नहीं. बात औरतों के व्यक्तिगत अनुभवों पर चल रही हो, तब भी.
अपने निबंध ‘मेन एक्सप्लेन थिंग्स टु मी’ (2008) में लेखिका रेबेका सोलनिट ने एक ऐसी घटना का ज़िक्र किया है. वह अपनी सहेली के साथ एक पार्टी में थीं. पार्टी के होस्ट ने उन्हें उनके पेशे के बारे में पूछा. जब उन्होंने बताया कि वह लिखतीं हैं और हाल ही में उनकी एक किताब निकली है, उस सज्जन ने कहा, ‘अच्छा! तुमने इसी विषय पर यह किताब भी पढ़ी है क्या? बहुत अच्छी किताब है. तुम ज़रूर पढ़ना’. फिर उस किताब पर वह एक लम्बा-चौड़ा भाषण देने लग गए. तब तक नहीं रुके जब तक उन्हें बताया नहीं गया कि वह किताब खुद रेबेका की ही है. इसे कहते हैं मर्दाना कॉन्फिडेंस.
मर्दों की अपने आपको महाज्ञानी समझने की इस प्रवृत्ति को ‘मैनस्प्लेनिंग’ कहा गया है. ‘मैन’ और ‘एक्सप्लेनिंग’ की संधि से बना यह शब्द 2010 में सोशल मीडिया पर इस्तेमाल किया जाने लगा. न्यू यॉर्क टाइम्ज़ द्वारा 2010 के ‘वर्ड्ज़ आफ़ द इयर’ में भी गिना गया था. ‘टाइम’ मैगज़ीन की सीन्यर एडिटर लिली रॉथमैन अपने निबंध, ‘अ कल्चरल हिस्ट्री आफ़ मैनस्प्लेनिंग’ (2012) में लिखती हैं, ‘मैनस्प्लेनिंग तब होती है जब एक मर्द एक औरत को कोई बात समझाना ज़रूरी समझता है, बिना इस बात की क़दर किए कि वह शायद उससे ज़्यादा जानती हो.’
अक्टूबर 2017 के एक सर्वे के अनुसार 80% भारतीय महिलाओं के साथ मैनस्प्लेनिंग हुई है. मैनस्प्लेन करनेवालों में से 32% उनके दोस्त हैं, 22% उनके सहकर्मी, 31% उनके सीन्यर्ज़, 30% उनके पति या पार्ट्नर और 27% सोशल मीडिया पर अनजान मर्द.
ऐसा समझना ग़लत होगा कि किसी मर्द का किसी औरत को कुछ भी समझाना हमेशा मैनस्प्लेनिंग ही है. ऐसा बिलकुल संभव है कि आप, एक मर्द, किसी मुद्दे पर बहुत जानकार हों और बाक़ियों से उस पर ज़्यादा जानते हों. समस्या तब होती है जब आप किसी औरत को अपनी बात रखने का मौक़ा नहीं देते और उन्हें अपने जितने समझदार नहीं मानते, ख़ासकर अगर मुद्दा औरतों से जुड़ा हो. ट्विटर यूज़र किम गुडविन ने एक चार्ट भी डिज़ाइन की है जिससे एक आम बहस और मैनस्प्लेनिंग में फ़र्क़ पता चले.
क्यों होती है मैनस्प्लेनिंग
मैनस्प्लेनिंग के कई कारण हो सकते हैं. इनमें से एक मुख्य कारण है सत्ता. एक पुरुषवादी समाज में सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक सत्ता मर्दों के ही हाथ में रहती है. ऐसे में वे डिस्कशन्स को अपने फ़ेवर में इन्फ़्लूएंस कर सकते हैं और दूसरों को उससे वंचित कर सकते हैं. व्यक्तिगत मसलों में मैनस्प्लेनिंग करने की वजह सेन्सिटिविटी ट्रेनिंग, यानी दूसरों के अनुभवों के प्रति संवेदनहीनता हो सकती है. मर्दों को औरतों के संघर्षों के बारे में आज भी सिखाया नहीं जाता जिसकी वजह से वे उनके इशूज़ को लेकर इतने संवेदनशील नहीं हो पाते. पुरुषतंत्र में वैसे भी मर्दों को इमोशनल मामलों से दूर रहने को कहा जाता है.
जब कोई औरत कथित ‘मर्दों वाले’ विषयों पर बात कर रही हो, जैसे स्पोर्ट्स, विज्ञान, राजनीति या ऑटोमोबील, तब मैनस्प्लेनिंग की सम्भावना दुगनी हो जाती है क्योंकि मर्दों को सिखाया गया है कि औरतें इन सब बातों पर जानकार नहीं हो सकतीं.
कोई मैनस्प्लेनिंग कर रहा हो तो क्या करें
- इग्नोर करें. लोगों को टोकना और बीच में बोलना बुरी आदत है. कोई ऐसा करे तो उन्हें सरासर इग्नोर करके कंटिन्यू कीजिए. अगर वह ज़्यादती कर रहा हो तो सख़्ती से कहें कि वह आपको अपनी बात पूरी करने दे.
- चैलेंज करें. अगर आपको लग रहा है कि आगे वाला आपसे बहुत कम जानकार होने के बावजूद ओवर-कॉन्फ़िडेंट हो रहा है, उसका इम्तहान लीजिए. उससे पूछिए कि उसने इस विषय के बारे में क्या और कहां से पढ़ा है. बेशक उसे कुछ पता होगा नहीं और साबित हो जाएगा कि वह सिर्फ़ अपना ईगो सैटिस्फ़ाई करने के लिए आपसे भिड़ रहा है.
- अपने क्वालिफ़िकेशंज़ बताएं. उन्हें याद दिलाएं कि आपने इस विषय पर उनसे कितना ज़्यादा पढ़ा है. अगर बात औरतों के किसी इशू पर हो रही है, (जैसे बलात्कार, यौन शोषण, छेड़छाड़ वग़ैरह), उन्हें बताएं कि क्योंकि औरतों को यह चीज़ें फ़ेस करनी पड़तीं हैं, उन्हें इन पर बोलने का ज़्यादा अधिकार है.
- मिज़ाज गरम करने से हिचकिचाइए मत. अगर मामला हाथ से निकाल रहा है और सौ कोशिशों के बावजूद आपको बोलने का मौक़ा नहीं दिया जा रहा तो संकोच मत कीजिए. उसे सीधे-सीधे बताइए कि आपको ऐसा व्यवहार पसंद नहीं और बात को वहीं ख़त्म कर दीजिए.
- उसे समझाइए ‘मैनस्प्लेनिंग’ क्या है. हो सके शायद कुछ अक़्ल आए.
अगर आप मर्द हैं जिसे ऐसा करने की आदत हो…
- इस मानसिकता से बाहर आइए कि औरतों को ‘मर्दों वाले’ टॉपिक्स पर बात करनी नहीं आती. किसी औरत के इंटेलिजेन्स पर सवाल उठाने से पहले उसका बैकग्राउंड और क्वालिफ़िकेशंज़ अच्छे से जान लें. हो सकता है उसने इस विषय पर पढ़ाई की हो या उसका पेश उससे सम्बंधित हो.
- औरतों के मुद्दों पर औरतों को बोलने दें. उन्हें सेक्सिज़म, भेदभाव और शोषण का अनुभव आपसे ज़्यादा है. उनके अनुभावों का सम्मान करें और उन्हें उन्हीं के एक्सपीरियंस समझाने की कोशिश मत करें.
- चुप रहना सीखें. हर चीज़ आपके बारे में नहीं है. दूसरों को भी बोलने का मौक़ा दें. क्योंकि इस दुनिया का केंद्र आप नहीं हैं.
- अगर किसी चीज़ पर जानकार नहीं हैं तो विनम्रता से स्वीकार करें और अपने आसपास से सीखने की कोशिश करें.
- किसी विषय पर आलोचना करते वक़्त अपना ईगो साइड में रखें और इसे एक एजुकेशनल अनुभव की तरह देखें.
मैनस्प्लेनिंग एक बुरी आदत है. किसी को टोकना और चुप करना वैसे ही बुरा है मगर यह और बुरा हो जाता है जब मर्द औरतों के साथ ऐसा करने को अपना अधिकार मानते हैं. इसलिए, बोलिए. वो आपको कहेंगे कि बकबक करती है. कभी कहेंगे कि आप ज्यादा इमोशनल हो जाती हैं. कभी कहेंगे कि आपको अच्छा सेक्स नहीं मिल रहा, इसलिए आपके पास ज्यादा ओपिनियन हो रखी है. और कभी पुरुषवाद का फेवरेट शब्द 'बिच' आपके लिए इस्तेमाल किया जाएगा. पर आप अपनी बात ज़रूर कहें.
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