वीरांगना भाग 9: वाजिद अली शाह ने तलाक़ दिया तो अकेले ही अंग्रेजों पर हमला बोल दिया
जो अंग्रेजों के दबाव में भी क़ौमी एकता की मिसाल बनी रहीं.
सन 1856.
नवाब वाजिद अली शाह को अंग्रेजों ने अवध के तख़्त से उतार दिया था. उनके साथ उनकी मां और दो ख़ास बेगमें कलकत्ता के लिए निकल रहे थे. अपनी पूरी ज़िन्दगी अवध में बिताने के बाद अब इस तरह निकाल दिया जाना नवाब वाजिद अली शाह के लिए अपना घर छोड़ कर जाती नई-नवेली दुल्हन जैसा था. ना जाने अपना घर दुबारा कब देखने को मिले.
अंग्रेजों के इस देश निकाले पर उन्होंने एक कविता लिखी- बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाए. इस पर बाद में कुंदन लाल सहगल ने फिल्म स्ट्रीट सिंगर में बेहद खूबसूरत ठुमरी गाई. पंडित भीमसेन जोशी, गिरिजा देवी, किशोरी अमोनकर सभी ने इस कविता को सुर में ढाला.
इस कविता की बात हम इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि जब नवाब वाजिद अली शाह अंग्रेजों से हारकर ये कविता लिख रहे थे, तभी उनकी तलाकशुदा बीवी बेग़म हज़रत महल अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए कमर कस चुकी थीं.
आप पढ़ रहे हैं हमारी स्पेशल सीरीज- वीरांगना. ये सीरीज हम ख़ास तौर पर लेकर आए हैं भारत की आज़ादी का 72वां साल पूरा होने पर. इस सीरीज में हम उन सभी औरतों और लड़कियों के बारे में बताएंगे जिन्होंने भारत की आज़ादी में कभी न भुला सकने वाला किरदार निभाया.15 अगस्त तक चलने वाली हमारी ये सीरीज उन सभी कहानियों से आपको रू-ब-रू कराएगी जो हमें अक्सर किताबों में पढ़ने को नहीं मिलीं. वीरांगना सीरीज में आज जानिए बेग़म हज़रत महल के बारे में.
फैजाबाद में पैदा हुई मुहम्मदी खामुन को उनके माता-पिता ने शाही हरम में बेच दिया था. वहां पर उनको महक परी कहा जाने लगा. जब वो पेट से हुईं, तो नवाब वाजिद अली शाह ने उनको खवासीन बनाकर अपने पास रख लिया. उनको इफ्तिखार-उन-निसा का तमगा दिया. जब बेटे को जन्म दिया तो बेगम हज़रत महल का खिताब मिला उनको. नवाब वाजिद अली शाह उनकी खूबसूरती पर कविताएं लिखा करते थे काफी. लेकिन बेगम हज़रत महल सिर्फ एक खूबसूरत चेहरा नहीं थीं.
अंग्रेजों की चाल भांप कर उन्होंने बार-बार नवाब को आगाह किया लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ. उल्टे नवाब ने उनको तलाक दे दिया. जब अंग्रेजों ने अवध पर कब्ज़ा कर लिया तब नवाब वाजिद अली शाह अपनी दूसरी 9 बेगमों को पीछे छोड़ चला गया. उनमें से एक थीं बेगम हज़रत महल. उन्होंने अपने बेटे बिरजीस कद्र को राजा घोषित किया और अंग्रेजों के खिलाफ जंग के मैदान में कूद पड़ीं.
तकरीबन दस महीनों तक उन्होंने अवध पर राज किया. अंग्रेजों के खिलाफ साथ देने वालों में थे आजमगढ़ के राजा जयलाल सिंह, और पेशवा नाना साहिब. इनकी मदद से बेगम हज़रत महल ने अंग्रेजों को धूल चटाई. बेगम का मानना था कि रोड बनवाने के लिए मंदिर और मस्जिद तोड़े जा रहे हैं, ईसाई धर्म को फैलाने के लिए पादरी सड़कों पे उतारे जा रहे हैं, तो ये कैसे मान लिया जाए कि अंग्रेज हमारे धर्म के साथ खिलवाड़ नहीं करेंगे. हिन्दू मुस्लिम एकता की एक नायाब मिसाल थीं बेगम हज़रत महल.
अंग्रेजों के बढ़ते दबाव में आकर एक दिन बेगम को पीछे हटना पड़ा. 1857 का ग़दर असफल होने के बाद उन्होंने नेपाल में जाकर शरण ली. 1879 में उनकी मौत हो गई.
उनके और वाजिद अली शाह की मौत के बाद उनके बेटे बिरजीस कद्र कलकत्ता वापस आए. अपना हक मांगा. उनको ज़हर देकर मार डाला गया. उनकी पत्नी बहादुर शाह जफ़र की परपोती थी जिसके साथ उनका एक बेटा था- शहज़ादा मेहेर कद्र. उन्होंने जब सरकार का ध्यान खींचा, तब बेगम हज़रत महल के नाम पर पार्क बना, आज के लखनऊ में और उनके नाम पर डाक टिकट भी जारी हुए. वाजिद अली शाह के वंश के आखिरी ज्ञात राजकुमार अली राजा की मौत हाल में ही दिल्ली के मालचा महल में हो गई. बेगम हज़रत महल की मजार बर्फबाग, काठमांडू में आज भी देखी जा सकती है.
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