वीरांगना भाग 2: अंग्रेजों ने घेर लिया था, तो सायनाइड खा कर जान दे दी

पंजाबी लड़के के भेस में अंग्रेजों पर हमला बोलने आई थीं प्रीतिलता

आप पढ़ रहे हैं  हमारी स्पेशल सीरीज- वीरांगना. ये सीरीज हम ख़ास तौर पर लेकर आए हैं भारत की आज़ादी का 72वां साल पूरा होने  पर. इस सीरीज में हम उन सभी औरतों और लड़कियों के बारे में बताएंगे जिन्होंने भारत की आज़ादी में कभी न भुलाया जा सकने वाला किरदार निभाया. 15 अगस्त तक चलने वाली हमारी ये सीरीज उन सभी कहानियों से आपको रू-ब-रू कराएगी जो हमें अक्सर किताबों में पढ़ने को नहीं मिलीं. वीरांगना सीरीज में आज जानिए प्रीतिलता वड्डेदार के बारे में.

23 सितम्बर 1932

जगह: पहाड़तली यूरोपियन क्लब, चटगांव. उस वक़्त की बंगाल प्रेसिडेंसी. आज का बांग्लादेश.

अन्दर मौजूद थे ब्रिटिश राज के ऊंचे पदों पर बैठे अफसर, उनके दोस्त. कुछ पुलिस अफसर. मौज-मस्ती का माहौल था. इस क्लब के बाहर दरवाजे पर लिखा था : डॉग्स एंड इंडियन्स नॉट अलाउड. अन्दर मौजूद अंग्रेज़ नहीं जानते थे कि तीन तरफ से उनको घेरा जा चुका है.

इस क्लब को जलाकर ध्वस्त कर देने की योजना थी. फोटो: विकिमीडिया इस क्लब को जलाकर ध्वस्त कर देने की योजना थी. फोटो: विकिमीडिया

घेरने वाले लोग थे मास्टरदा सूर्य सेन के संगठन इंडियन रिपब्लिकन आर्मी, चटगांव ब्रांच के सदस्य. इनमें शामिल थे कालिशंकर डे, बीरेश्वर रॉय, शान्ति चक्रबर्ती, महेंद्र चौधरी, पन्ना सेन, प्रफुल्ल दास. इनको लीड कर रहा था एक पंजाबी लड़का. जो असल में लड़का नहीं लड़की थी. ये लड़की थी प्रीतिलता वड्डेदार.

कोलकाता में प्रीतिलता की मूर्ति. फोटो: विकिमीडिया कोलकाता में प्रीतिलता की मूर्ति. फोटो: विकिमीडिया

प्रीतिलता चटगांव के ही धलघट गांव में पैदा हुई थीं. उन्होंने फिलॉसफी में ग्रेजुएशन किया था. बड़ी होनहार स्टूडेंट थीं. एक स्कूल की हेडमिस्ट्रेस भी बनी थीं. लेकिन दिल देश के लिए धड़क रहा था. मास्टर दा सूर्य सेन चटगांव में वहां के हथियारों के ज़खीरे पर कब्ज़ा करने की कोशिश में लगे हुए थे. उसके लिए उन्होंने 50 के करीब लोगों का दल बनाया था. प्रीतिलता इसी में शामिल हुईं. उन्होंने ढाका में लड़ाई की ट्रेनिंग ली थी. उसे कॉम्बैट ट्रेनिंग कहा जाता है.

सूर्य सेन को लोग प्यार से मास्टरदा बुलाया करते थे. फोटो: विकिमीडिया सूर्य सेन को लोग प्यार से मास्टरदा बुलाया करते थे. फोटो: विकिमीडिया

चटगांव के इस पूरे मुद्दे पर दो फिल्में भी बनी हैं. एक, आशुतोष गोवारिकर ने बनाई. खेलें हम जी जान से. इसमें अभिषेक बच्चन और दीपिका पादुकोण लीड रोल में थे. इस फिल्म में विशाखा सिंह ने उनका किरदार निभाया था.

इस फिल्म में प्रीतिलता वड्डेदार का किरदार छोटा था. इस फिल्म में प्रीतिलता वड्डेदार का किरदार छोटा था.

दूसरी चटगांव. बेदब्रता पईन ने लिखी और डिरेक्ट की. मनोज बाजपेयी इसमें मास्टरदा सूर्य सेन के किरदार में थे. वेगा तमोतिया ने इस फिल्म में प्रीतिलता का किरदार निभाया था.

चटगांव फिल्म का पोस्टर. चटगांव फिल्म का पोस्टर.

इंडियन रिपब्लिकन आर्मी ने इससे पहले भी अटैक किए थे. लेकिन वो सफल नहीं हुए. इस बार इस क्लब को घेरकर वहां के अंग्रेजों को सबक सिखाने की तैयारी की गई थी. सूर्य सेन, और उनकी टीम के बिनोद बिहारी चौधरी को किसी औरत को अपने साथ जोड़ने में झिझक थी. लेकिन जब ये तर्क दिया गया कि औरतें अगर हथियार यहां से वहां ले जाएंगी तो लोगों को कम शक होगा, तो कल्पना दत्ता और प्रीतिलता को शामिल किया गया था. इस अटैक के एक हफ्ते पहले ही कल्पना गिरफ्तार हो गईं. अब इस मिशन में प्रीतिलता अकेली लीड कर रही थीं.

इसी जगह प्रीतिलता ने जान दी थी. फोटो: विकिमीडिया इसी जगह प्रीतिलता ने जान दी थी. फोटो: विकिमीडिया

रात के 10:45 बजे के आस पास क्लब में घुसकर तीन तरफ से इन्होंने अटैक कर दिया. बदले में उस क्लब में मौजूद पुलिसवालों ने फायरिंग शुरू कर दी. प्रीति को भी एक गोली लगी. वो वहीं गिर गईं. अब तक वो घिर चुकी थीं. जब उन्हें इस बात का एहसास हुआ तो उन्होंने अपने पास रखा पोटेशियम सायनाइड मुंह में डाल लिया. पुलिस की जांच रिपोर्ट में पता चला कि गोली का घाव जानलेवा नहीं था. मौत की वजह ज़हर थी.

उस क्लब के पास ही प्रीति की मूर्ति भी है. फोटो: विकिमीडिया उस क्लब के पास ही प्रीति की मूर्ति भी है. फोटो: विकिमीडिया

प्रीतिलता का नाम आज भी बांग्लादेश और भारत, दोनों जगह बड़ी इज्ज़त के साथ लिया जाता है. जहां उन्होंने अपनी जान दी थी, उसी क्लब के सामने 2012 में उनकी कांसे की मूर्ति लगाई गई. उनके नाम से सड़कें हैं. उनके नाम से चटगांव में प्राइमरी स्कूल भी है. चटगांव यूनिवर्सिटी में उनके नाम का हॉल भी है.

प्रीति चली गईं, लेकिन उनके किस्से आज भी लोगों को प्रेरणा देते हैं.

 

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