जिन रोहिंग्या लड़कियों के रहने का ठिकाना नहीं है, वो मेकप लगाने के पीछे क्यों परेशान रहती हैं?
घर छूटा पर मेकप नहीं, क्या हैं इसके मायने?
रोहिंग्या मुसलामानों के बारे में आपने काफ़ी सुना होगा. ये एक अल्पसंख्यक समुदाय है. म्यांमार यानी बरमा के रहने वाले हैं. इस देश में एक राज्य है रखाइन नाम का. रोहिंग्या वहां के रहने वाले हैं. पर अगस्त 2017 में उनपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. इनमें से कुछ लोग आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देते पाए गए. इसके बाद वहां की सेना इनके पीछे हाथ धोकर पड़ गई. न सिर्फ़ आंतंकवादी बल्कि आम लोगों को भी सताने लगी. उनपर बहुत ज़ुल्म हुआ. हज़ारों की तादाद में उनको मारा गया. औरतों का रेप हुआ. इस वजह से रोहिंग्या अपना घर छोड़ने पर मजबूर हो गए. कइयों ने बांग्लादेश में शरण ली. कइयों ने हिंदुस्तान में.
अपना सबकुछ छोड़ के आना आसान नहीं है. पर इनके पास कोई चारा नहीं है. अपनी ज़मीन से हज़ारों मील दूर ये रिफ्यूजी कैंप्स में रह रहे हैं. रॉयटर्स नाम की एक अंग्रेजी न्यूज़ एजेंसी है. उसके फोटोग्राफर क्लोडॉफ किल्कोयन ने एक बहुत ख़ूबसूरत चीज़ की. वो बांग्लादेश के एक रिफ्यूजी कैंप में रहने वाले रोहिंग्या मुस्लिम्स के पास गए और कैंप्स में रह रही लड़कियों की बहुत ख़ूबसूरत तस्वीरें खींचीं.
इन सारी लड़कियों ने अपने चेहरे पर मेकअप किया हुआ है. पारंपरिक मेकअप. इस मेकअप को थानाका कहते हैं. ये दिखने में एक पीले रंग के पेस्ट की तरह होता है. म्यांमार के सूखे इलाकों में उगने वाले एक पेड़ की छाल से ये पेस्ट बनता है. सदियों से ये मेकअप की तरह इस्तेमाल किया जाता है. लड़कियां और औरतें इसे अपने गालों पर लगाती हैं.
आप सोचेंगे कि जिन्हें रहने-खाने का ठिकाना नहीं है, वो औरतें मेकप के बारे में कैसे सोच सकती हैं.
ये पेस्ट सिर्फ़ मेकअप के काम नहीं आता. ये खाल को ठंडा रखता है, उसे सूरज की किरणों से बचाकर रखता. ये पेस्ट सूखने के बाद चेहरे पर एक परत बना देता है. ये न ही सिर्फ़ मच्छरों को दूर भगाता है बल्की मुहासों से भी निजात दिलाता है.
बांग्लादेश के रिफ्यूजी कैंप्स में ये पेस्ट बेचा जाता है. ये उनकी ज़िन्दगी में थोड़ी समान्यता लाता है.
13 साल की जुहारा बेगम ने क्लोडॉफ को बताया:
“मेकअप मेरी हॉबी है. ये हमारी परंपरा का एक हिस्सा है. सेना ने हमपर बहुत गोलियां चलाई हैं. हम एक पहाड़ी के ऊपर रहते थे. वहां बहुत गर्मी होती थी. हम पिछले सितंबर में यहां आए. हमारे गांव पर हमला हुआ था. हम पांच दिनों तक चलते रहे. तब जाकर यहां पहुंचे. मैं बिना खाना खाए रह सकती हूं. पर बिना मेकअप नहीं.”{mosimage}
इक दूसरे कैंप में रह रही ज़न्नत आरा ने बोला:
“मैं मेकअप चेहरा साफ़ रखने के लिए लगाती हूं. मच्छर बहुत काटते हैं. ये मेकअप उनसे बचाकर रखता है.”
इन लड़कियों के लिए ये मेकअप सिर्फ़ सुंदर दिखने का ज़रिया नहीं है. ये उनको घर की याद दिलाता है. वो घर जो हमेशा के लिए छूट गया.
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