कैमरामैन को भाने वाली लड़कियां
और देखने वाले लड़कों का 'उफ़' मोमेंट.
"मैं शुक्रगुज़ार हूं कि मुझे सभी से इतना प्यार मिला. पर जिस तरह की अतिरिक्त नकारात्मकता उसके साथ आई है, वो मुझे डिस्टर्ब कर रही है. मेरे लिए ये शोषण, ट्रॉमा, मानसिक टॉर्चर का मसला है. मैं कन्फ्यूज हूं ये सोचकर कि मेरा नाम और प्रोफाइल लोगों को कैसे मिले. मेरी पहचान, निजता और जीवन को एक पल में ही हैक कर लिया गया. रातोंरात बढ़ने वाले मेरे फॉलोवर्स में कई पुरुष थे. जिन्होंने सोशल मीडिया का इस्तेमाल मुझे असभ्य, अश्लील, बुरे और अपमानजनक मैसेज भेजने के लिए किया."
4 मई 2019. एक लड़की रातोंरात वायरल हो गई. क्योंकि वो एक मैच देखने आई थी. RCB टीम की फैन है. कैमरामैन ने उसपर कैमरा लगया. और वो लाखों दिलों की धड़कन बन गई. ऊपर लिखे गए शब्द उसकी एक इन्स्टाग्राम पोस्ट से हैं. जिसे यहां फ़िलहाल नहीं लगाया है.
ये पहला वाकया नहीं था जब इस तरह किसी लड़की को क्रिकेट देखते हुए कैमरे में कैद किया गया.
-2018 में इंडिया और पाकिस्तान के बीच एशिया कप चल रहा था. तब पाकिस्तान की एक लड़की इसी तरह कैमरे में कैद हुई थी.
पाकिस्तानी लड़की, जो एशिया कप के समय वायरल हुई थी. जिसके पीछे इंडियन लड़के पाकिस्तान से अपनी दुश्मनी ख़त्म करने को तैयार थे.
-2017 में IPL की ओपनिंग सेरेमनी के दौरान एमी जैक्सन परफॉर्म कर रही थीं. तब एक लड़की की तस्वीर खींची गई थी. जिसे कई दिनों तक मिस्ट्री गर्ल कहा गया.
क्रिकेट में पैटर्न रहा है इस तरह रैंडम लड़कियों पर कैमरा रोक लेने का. इसके लिए आपको न्यूज़ रिपोर्ट्स खंगालने या उदाहरण मांगने की जरूरत नहीं है. कोई भी मैच, खासकर IPL, बैठकर देख लीजिये. एक न एक बार तो कैमरा किसी लड़की पर रोका ही जाएगा.
इसमें प्रॉब्लम क्या है?
सतही तौर पर कुछ नहीं. असल में आज से कुछ साल पहले तक ये खतरनाक नहीं होता. क्योंकि लाइव टीवी खत्म होने के बाद लड़की आपकी आंखों के सामने से चली जाती है. मगर स्मार्टफ़ोन, इंटरनेट और तमाम तरह की रिकॉर्डिंग की सुविधा के बाद लड़की की तस्वीर कैप्चर कर लेना बेहद आसान है.
RCB फैन गर्ल के नाम से बीते दिनों वायरल हुई लड़की ने अपनी इन्स्टा पोस्ट में लिखा है. कि उनका कितना शोषण हुआ. पहले समझें, कि इस तरह किसी भी लड़की की तस्वीर कैप्चर हो जाने के नुकसान क्या हैं:
1. चूंकि वो लड़की के पर्टिकुलर शहर की टीम को सपोर्ट कर रही है, बहुत संभावना है कि या तो वो टीम के शहर से हो. या उस शहर से, जहां मैच हो रहा है. लड़की की लोकेशन का पता चलना, उसको खोजने या उसका पीछा करने को आसान बना देती है.
2. किसी भी तस्वीर का रिवर्स सर्च कर उसकी सोशल मीडिया की प्रोफाइल खोजकर उसे फॉलो किया जा सकता है. या फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी जा सकती है.
3. कोई व्यक्ति अगर उस लड़की से किसी भी तरह बदला लेने की भावना रखता हो तो वो खुद ही सोशल मीडिया पर उस लड़की की प्राइवेट जानकारी रिलीज कर सकता है. लड़की को मिस्ट्री गर्ल मानकर उसके बारे में जानकारी के लिए भूखा बैठा मीडिया और सोशल मीडिया उसे आगे बढ़ा सकता है.
IPL 2017 में वायरल हुई 'मिस्ट्री गर्ल'. 'मिस्ट्री' शब्द का इस्तेमाल मीडिया को लड़की की खोज का काम दे देता है.
4. अचानक लाखों लोगों की नजर में आना किसी भी लड़की के इनबॉक्स में अनचाहे मैसेज, गालियां या अश्लील तस्वीरें आने की वजह बन सकता है.
5. इनमें से किसी भी चीज के होने में लड़की की सहमति किसी भी तरह से नहीं होती है. इस तरह मिली प्रसिद्धि उसे खुद चाहिए या नहीं, उससे कोई नहीं पूछता. पूछने की नौबत आए, इसके पहले लड़की की तस्वीर वायरल हो चुकी होती है.
6. अगर टीवी पर आ रहे मैच की फोटो खींच या इंटरनेट से स्क्रीनशॉट लेकर निकाली गई किसी तस्वीर का गलत इस्तेमाल होता है. जैसे उसे मॉर्फ़ करना, या उसे अश्लील बातें लिखकर अपलोड किया जाता है. तो लड़की के सम्मान पर इस तरह के हमले पर किसकी जवाबदेही होगी, इस बात को लेकर कहीं कोई नियम नहीं है.
जवाबदेही नहीं है, तो क्यों खींची जाती हैं ऐसी तस्वीरें
किसी भी खेल से हमारा एंटरटेनमेंट दो तरीकों से हो सकता है. एक्टिव और पैसिव. यानी सक्रिय और निष्क्रिय. एक्टिव यूं, कि आप उस खेल को खुद खेल रहे हों. पैसिव यूं, कि आप उसे सिर्फ देख रहे हों. पैसिव एंटरटेनमेंट हमें उपभोक्ता बनाता है.
एक चैनल को, एक क्रिकेट मैच अपने पोटेंशियल उपभोक्ताओं को बेचना है, इसका खेल से लेना-देना कम है. खेल के एथिक्स क्या हैं, इससे उसके बिजनेस मॉडल का वास्ता नहीं है. एंटरटेनमेंट के इस बिजनेस मॉडल में ये गौण हो जाना, कि अंततः क्या चीज है जो एंटरटेनमेंट लेकर आ रही है, कोई बड़ी बात नहीं है.
- क्या वो सिक्सर, रन आउट, अच्छी फील्डिंग का नमूना--यानी क्रिकेट का ही हिस्सा है?
- क्या वो किसी खिलाड़ी की दूसरे से हुई गाली-गलौज है?
- क्या वो दर्शक दीर्घा में बैठी किसी खिलाड़ी की पत्नी/परिवार है?
- क्या वो चियरलीडर है?
- क्या वो कोई मुस्कुराती हुई रैंडम लड़की है?
मुस्कुराती हुई रैंडम लड़की का सुख
एक शब्द है 'सेंरेंडीपिटी'. जिसका अर्थ होता है एक सुखद संयोग. सुखद संयोग, ओल्ड स्कूल रोमैंस की जान है. किस्मत दो प्यार करने वालों को साथ ले ही आती है. दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे में तो सिमरन 5 मिनट एक ऐसे लड़के की ख्वाहिश में तौलिया लपेटकर नाचती है, जिसका होना ही संशय में है:
कैसा है, कौन है, वो जाने कहां है
जिसके लिए मेरे होठों पे हां है
या फिर
जरा तस्वीर से तू निकलके सामने आ
मेरी महबूबा
या फिर
मेरी जिंदगी में अजनबी का इंतजार है
मैं क्या करूं, अजनबी से मुझे प्यार है
नॉन-एक्सिस्टिंग महबूबा के इंतजार में, 'नए' पुरुष की परिभाषा गढ़ते हुए
रोमैंस के बादलों में घिरे हम पीढ़ी दर पीढ़ी अपने राजकुमार/राजकुमारी के इंतजार में बैठे हैं. अचनाक स्क्रीन पर एक मुस्कुराते चेहरे का चमकना हमारे अंदर दबे इसी बीज को धूप देता है. और अजनबियों के प्रति हमारे आकर्षण को पोसता है.
मगर पुरुष क्रिकेट फैन से प्रेम के सपने नहीं देखे जाते
धर्मवीर आज 26 साल के हैं. पर लोगों की स्मृति में तबसे हैं, जबसे वे 11 साल के थे. क्रिकेट के जूनून में घर छोड़कर आ गए थे. धर्मवीर दिव्यांग हैं. आपने इन्हें कई बार देखा होगा. कभी बॉल बॉय तो कभी दर्शक के तौर पर.
धर्मवीर पाल. क्रेडिट: स्पोर्ट्सकीड़ा
सुधीर कुमार चौधरी, इन्हें हममें से कई लोगों ने बचपन से देखा है. चेहरा और सर तिरंगे से पुता हुआ रहता है. शरीर पर तेंदुलकर. सिर्फ इंडिया नहीं, दुनिया भर में फेमस हैं ये.
ये टीवी और कैमरा का ही जादू था, कि ये नाम मशहूर हुए. लोगों की स्मृतियों में बस गए. मगर इनका लोगों की स्मृतियों में बसा होना, किसी फैन गर्ल के मुकाबले बहुत अलग है. कैसे:
1. पहली वजह बुनियादी है. वो ये कि ये पुरुष हैं. काफ़ी हद तक, इन्हें सेफ्टी और सिक्योरिटी के बारे में नहीं सोचना पड़ता. ये नतीजा समाज की बनावट का है.
2. ये सेक्स ऑब्जेक्ट नहीं बनते. प्रेम से अधिक ये इज्ज़त या वात्सल्य का पात्र बनते हैं. लोग इन्हें देखकर इमोशनल महसूस करते हैं. देश और क्रिकेट जे जुड़ाव महसूस करते हैं.
इज्जत और वात्सल्य के भागी सुधीर, तथाकथित और कथित भगवान के साथ
वहीं कैमरे पर लड़की के दिखने पर हमें क्रिकेट से जुड़ाव नहीं महसूस होता. कैमरे पर दिखने वाली लड़की, खेल से इतर कंज्यूम की जाती है. महिला फैन की क्रिकेट में मौजूदगी सीमा रेखा के बाहर होती है.
सीमा रेखा के बाहर औरतें
रैंडम लड़कियों के अलावा जो औरतें सीमा रेखा के बाहर होती हैं, वो हैं पत्नियां. पत्नियों का होना हमें दो तरीकों से संतुष्ट करता है:
1. हमारा खिलाड़ी, प्रेमी और पति के तौर पर एस्टेब्लिश होता है. परिवार, शादी, बच्चे और प्रेम पर हमें नैसर्गिक तौर पर भरोसा होता है. हम उनपर सवाल नहीं उठाते. ये हमारे पूरक हैं, इसका हमें भरोसा है. ये एक पुरुष के पौरुष के पूरक हैं. ये सिर्फ खेलों में ही नहीं, फ़िल्मी सलेब्स की दुनिया से लेकर राजनेताओं की दुनिया के लिए सच है. परिवार का साथ होना आपको एक ज़िम्मेदार व्यक्ति के तौर पर सामने लाता है. और 'गुड प्रेस' का जरिया बनता है.
2. एक समय घोड़े पर चलने वाले बड़े योद्धाओं (जिनको अंग्रेजी कल्चर में नाईट 'knight' कहा जाता है) के लिए एक सोशल कोड होता है. अच्छा पुरुष वही था जो जितनी क्रूरता और तेज़ी से युद्ध में लड़ सके उतनी ही सौम्यता से एक औरत से प्रेम कर सके. चूंकि हमारा मॉरल कोड और स्त्री-पुरुष की परिभाषा अंग्रेज हमारे लिए लिख गए हैं, पुरुष की इस 'शिवलरी' (chivalry) पर हमें बेहद यकीन है. 'परदेस' का अर्जुन, जो कबड्डी में हार रहा होता है, अचानक गंगा को याद कर अपनी टीम को जिता देता है. 'दिलवाले दुल्हनिया...' का राज भी अपनी सिमरन को याद कर गुंडों को खूब पीटता है.
रोहित शर्मा, पत्नी रितिका और बेटी समायरा के साथ.
पत्नियों और बच्चों का दर्शक दीर्घा में बैठना हमें अच्छा लगता है. क्योंकि हमें लगता है इससे खिलाड़ी को बेहतर खेलने की शक्ति मिलेगी. ये और बात है कि जब कोई खिलाड़ी खराब खेलता है तो उसका ब्लेम भी स्त्री के सर मढ़ा जा सकता है. जैसे दीपिका पादुकोण का होना युवराज की परफॉरमेंस खराब कर देता था. स्त्री को दैवीय और चुड़ैल की केटेगरी में बांटने का काम हम यहां भी बड़ी सहजता से करते हैं.
सीमाओं के अंदर पुरुष
ये बात सिर्फ क्रिकेट नहीं, लगभग सभी टीम स्पोर्ट्स पर लागू होती है कि उन्हें मर्दानगी से जोड़कर देखा जाता है. टीम में खेलना एक मर्दाना एनर्जी का प्रतीक है जिसमें एकजुटता, भाईचारा और 'एक-दूसरे के लिए' वाली भावना रहती है. लड़कियों के बारे में एक पूर्वाग्रह ये भी है कि वे एकजुट होकर नहीं रह सकतीं. वो जलनखोर होंगी, एक दूसरे का बुरा चाहेंगी. इसलिए अक्सर उन्हें एकजुट करने के लिए कबीर खान जैसे कोच की ज़रुरत पड़ती है- ये हमारी सोच है.
खिलाड़ियों के अंदर एक 'ब्रो कोड' डेवलप होना, उन्हें लड़कियों को वस्तु की तरह ट्रीट करने का लाइसेंस भी देता है.
- 2016 में क्रिस गेल ने एक ब्रिटिश महिला पत्रकार से इंटरव्यू के बीच पूछा था कि क्या महिला ने कभी थ्रीसम किया है. उसके बाद ये भी कहा है, 'मेरा बल्ला बहुत बड़ा है. दुनिया में सबसे बड़ा. तुम पकड़ सकोगी? दोनों हाथ लग जाएंगे.'
बड़े बल्ले और छोटी समझ वाले क्रिस गेल.
- 'कॉफ़ी विद करन' शो पर हार्दिक पंड्या ने इस बात को बहत गर्व के प्रस्तुत किया था कि वो कई लड़कियों के साथ सेक्शुअल रिश्ते रख चुके हैं. क्लब में जाकर लड़कियों के कूल्हे 'चेक-आउट' करना उन्हें पसंद है, एक ऐसी ओपिनियन है जो वे खुद तक रख सकते थे. पर शायद उनका सोचना था कि ऐसा कहकर वो अपने पौरुष को स्थापित कर पाएंगे.
अंग्रेजी क्रिकेट मैगज़ीन 'विस्डेन' के लिए तान्या अल्ड्रेड लिखती हैं (जनवरी, 2019):
'आम जीवन की तरह क्रिकेट में पर्याप्त सेक्सिज्म है. शायद ज्यादा ही. क्योंकि खेल पुरुष प्रधान है. क्रिकेट की दुनिया में नौकरी करने वाली औरतों के साथ अक्सर यौन शोषण की घटनाएं होती हैं. घटिया ईमेल. बुरे कमेंट. रेप से जुड़े चुटकुले. बॉस के साथ सोने का आरोप. कूल्हे पर चिकोटी काटा जाना. इंडिया की एक युवा महिला रिपोर्टर ने तो बताया था कि उससे उसके बॉस ने पूछा- क्रिकेट में रिपोर्टिंग करनी है तो क्या तुम सर्जरी से ब्रेस्ट बढ़वाने के लिए तैयार हो?
20 साल पहले एक इंटरनेशनल क्रिकेटर ने मुझे गलत तरीके से छुआ था. खुद को खुश रखने के लिए हम सोच सकते हैं कि चीज़ें बदल गई हैं. पर सच तो ये है कि लड़कियां कुछ कहती ही नहीं हैं. इस डर से कि उनके करियर ख़त्म हो जाएंगे.'
पत्नियों से इतर औरतें
क्रिकेट ट्रेडिशनल तौर पर पुरुषों के देखने के लिए बनाया गया खेल है. उसकी ब्रांडिंग, मार्केटिंग उसी तरह की जाती है. जेंटलमैन्स गेम कहलाने के बावजूद अगली टीम को रौंदने और उसका रेप करने जैसे मेटाफर अक्सर इस्तेमाल होते हैं.
क्रिकेट का पौरुष केवल इस बात से नहीं आता कि उसे पुरुष खेलते हैं. या उसे भारी मात्रा में पुरुष देखते हैं. बल्कि क्रिकेट को, अन्य खेलों की ही तरह, पुरुषों के लिए 'कस्टम मेड' तरीके से तैयार किया जाता है.
एंटरटेनमेंट के कारखाने की महंगी मशीन
अंपायर, कमेंटेटर, थर्ड अंपायर, रेफरी, पत्रकार (अधिकतर), फोटोग्राफर, कैमरामैन-- सभी पुरुष होते हैं. इसे डिजाइन ही 'मेल प्रोडक्ट' की तरह किया जाता है. जैसे SUV गाड़ी या LIC की बीमा पॉलिसी. हम कभी ठहरकर ये भी सोचें कि एक तरह के बॉडी और फेस टाइप की लड़कियों की तस्वीरें ही क्यों वायरल होती हैं. शायद इसका जवाब यही है कि वो कैमरामैन को भा जाती हैं. और स्क्रीन पर आते ही मैच टीवी पर देख रहे लड़कों के साथ कैमरामैन का एक 'ब्रो-मोमेंट' हो जाता है.
जब किसी मुस्कुराती, चहकती, उदास या प्रार्थना करती रैंडम लड़की पर कैमरा जाता है, उसे एक पुरुष के खेल में, पुरुष के द्वारा, पुरुषों के लिए टेलीकास्ट किया जाता है.
और बेचारे सख्त लौंडे पिघल जाते हैं. जैसे प्रिया प्रकाश वारियर के लिए पिघल गए थे.
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